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शनिवार, 14 जुलाई 2018

TVS Jupiter : एक अग्रणी उत्पाद के अंतिम रूप में आने की कहानी मेरी जुबानी ! Brand development story of a flagship product !

अपने जीवन में हम कई तरह के उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि रोज़ाना इस्तेमाल होने वाली चीजें आखिर बनती कैसे हैं और उन्हें अपने अंतिम रूप में लाने के पहले कितनी मेहनत मशक्कत की जाती है? ऐसे ही रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली एक वस्तु है हमारा दुपहिया वाहन जिसके बिना एक मध्यमवर्गीय परिवार का काम सुचारु रूप से चल ही नहीं सकता। इसीलिए ब्लॉगरों की सबसे बड़ी संस्था इंडीब्लॉगर के सौजन्य से जब TVS Motor Company ने अपने अग्रणी उत्पाद TVS Jupiter के बारे में बताने के लिए तमिलनाडु में अपने होसूर स्थित संयंत्र में आने का आमंत्रण भेजा तो मैंने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। 
कर्नाटक के मानसूनी रंग
होसूर में TVS का ये संयंत्र बिल्कुल तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर स्थित है। बेंगलुरु से होसूर की दूरी महज चालीस किमी है पर जब आपका सामना वहाँ के मंथर गति से चलते अतिव्यस्त ट्राफिक के साथ होगा तो ये दूरी सौ किमी से कम की नहीं लगेगी। सुबह सुबह हम इस ट्राफिक का शिकार हुए और नतीजन अपने गंतव्य तक पहुँचते पहुँचते हमें एक घंटे से भी ज्यादा की देरी हो गयी। इससे पहले भी मैंने इस तरह के आयोजनों में हिस्सा लिया है पर इस आयोजन की खास बात ये थी कि इसमें सिर्फ भारतीय भाषाओं के ब्लॉगरों को आमंत्रित किया गया था, यानि हिंदी के आलावा तमिल और कन्नड़ भाषी ब्लॉगर इस सफ़र में हमारे सहयात्री थे। ये इस बात का द्योतक है कि आज कंपनियाँ ये समझ रही हैं कि अपने ग्राहकों तक पहुँचने के लिए उनसे उनकी भाषा में बात करनी होगी।


होसूर के पास हम पहुँच ही रहे थे कि हमारी बस ने गलती से एक ग्रामीण इलाके से होकर जाने वाली सड़क का मोड़ ले लिया। ये एक तरह से अच्छा ही हुआ क्यूँकि बाहर का नज़ारा एकदम से बदल गया। कर्नाटक की लाल मिट्टी और हरे भरे खेत और काले बादल मिलकर प्रकृति की मोहक छवि दिखला ही रहे थे कि अचानक इनके साथ नारियल पेड़ों की लंबी कतार का खूबसूरत परिदृश्य  मन को आनंदित कर गया।

ये चला ब्लॉगरों का जत्था बेंगलुरु से होसूर की ओर

जैसी ही हम कर्नाटक की सीमा पार कर होसूर पहुँचे TVS का संयंत्र सामने आ गया। मैं अपने काम के सिलसिले में कई संयंत्रों में गया हूँ पर इतना हरा भरा प्लांट मैंने पहली बार देखा। साथ ही अंदर की स्वच्छता देख कर मन प्रसन्न हो गया। कार्यक्रम की शुरुआत में हमें बताया कि TVS Jupiter ब्रांड को बनाने के पहले मार्केटिंग टीम ने किस तरह से बाजार का अध्ययन किया। उनके समक्ष मुख्य मसला था कि समाज का कौन सा वर्ग इस स्कूटर का इस्तेमाल करेगा, वो किन बातों के लिए इसका प्रयोग करेगा और बाकी प्रतिद्वंदियों के रहते हुए उसे ऐसी क्या ज्यादा सहूलियतें दी जाएँ कि वो स्कूटर खरीदने जाए तो TVS Jupiter का चुनाव करे।

TVS Jupiter  ब्रांड के इस रूप में आने की कहानी बताते अधिकारी

बाजार के सर्वेक्षण से जो नतीजे निकले उसके बाद ये निर्णय लिया गया कि इसे ज्यादातर तीस से पैंतालीस साल के पुरुष अपने परिवार की सारी छोटी बड़ी जरूरतों के लिए इस्तेमाल करेंगे। उनकी आवश्यकताओं के हिसाब से  110 cc और  7.88 BHP का शक्तिशाली इंजन चुना गया ताकि अगर स्कूटर fully loaded  भी रहे तो उसकी गति और Pickup से कोई समझौता ना हो।  ग्राहकों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए पैर रखने और सीट के नीचे सामान रखने की जगह में इज़ाफा किया गया। पेट्रोल भरवाते वक़्त सीट उठानी ना पड़े इसलिए कार की तरह बाहर ही फिलिंग प्वाइंट बनाया गया। फिर बात आई उसके रूप रंग की क्यूँकि अधिकतर उपभोक्ता चाहते थे कि वो ऐसे आकर्षक स्कूटर के स्वामी बने जिस पर उन्हें गर्व हो। उनकी पसंद के हिसाब से स्कूटर का बाहरी आकार, सीट और रंगों की विविधता तय की गयी।

TVS की पाठशाला

साल 2013 में ये स्कूटर बाजार में लाया गया और आज अन्य स्कूटरों की तुलना में सबसे तेजी से पाँच सालों में ये पच्चीस लाख उपभोक्ताओं की पसंद बन गया है। TVS ने ज्यादा का फायदा की अपनी टैगलाइन को घर घर तक पहुँचाने के लिए अमिताभ बच्चन को अपना ब्रांड एम्बैस्डर बनाया। 2017 में इसके बाहरी रूप को क्लासिक वर्जन में औेर सँवारा गया और डिकी में USB Charging port की सुविधा भी दे दी गयी। इस ब्रांड को इस रूप में लाने वाले अभियंताओं की खुशी तब दोगुनी हो गयी जब साल 2018 में J. P. Power ने  Most appealing executive scooter के लिए TVS Jupiter को  चुना


हिंदी, कन्नड़ और तमिल भाषाओं के ब्लॉगर
स्कूटर के बारे में ये सारी जानकारियाँ लेने के बाद ब्लॉगरों के समूह को उस संयत्र के अंदर ले जाया गया जहाँ स्कूटर के साथ मोपेड का निर्माण चल रहा था। सारे कर्मचारी अपने अपने काम में व्यस्त थे। मशीनिंग और पेंट विभाग में बारीक काम के लिए रोबोट्स और सी एन सी मशीनों का व्यापक इस्तेमाल हो रहा था। मशीनों और रोबटों को बिना किसी मानवीय नियंत्रण के इस तरह काम करते देखना एक रोचक अनुभव था। महिलाएँ, कामगारों के समूह का एक अहम हिस्सा बने इसलिए कंपनी ने पूरे कार्मिकों में करीब एक तिहाई नियुक्ति महिलाओं की ही की है। इंजन एसेंबली में तो पूरे आत्मविश्वास से काम करती हुई वो बहुतायत में दिखीं। आख़िर में हम फाइनल एसेंबली विभाग में पहुँचे जहाँ हर मिनट में करीब दो स्कूटर बन के निकल रहे थे और उसके बाद उनका परीक्षण हो रहा था।

कैसी लगी आपको मेरी ये वेशभूषा 😂 ?
पर असली आनंद तो तो तब आया जब हमें स्कूटर की टेस्ट ड्राइव करने के लिए टेस्ट ट्रैक ले जाया गया। आख़िर हमें स्कूटर की इतनी खूबियों के बारे में बताया गया था पर उनमें से कुछ का तो ख़ुद अनुभव तभी हो सकता था जब उसकी सवारी की जाए।

टेस्ट ड्राइव को तैयार
पहले हमें ट्रैक में प्रयोग होने वाले रास्ते से अवगत कराया गया। फिर किसी अनहोनी को टालने के लिए सिर से पैर तक सुरक्षा कवचों से लैस कर दिया गया। यूँ कह लीजिए कि हमारी वेशभूषा ऐसी थी कि दूर से पहचानना भी मुश्किल हो गया। घुमावदार रास्तों से गुजरते ट्रैक के हम सभी ने दो चक्कर लगाए। टेस्ट ड्राइव करने के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ कि यह स्कूटर काफी संतुलित है और इसका पिक अप भी बेहतरीन है। इस  श्रेणी के स्कूटरों के बारें में एक शिकायत इनकी कमजोर फाइबर बॉडी का होना है। वहीं अगर पूरी फ्रेम ही धातु की बना दी जाए तो गाड़ी का वजन काफी बढ़ जाता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए TVS ने स्कूटर के उन हिस्सों को धातु का बनाया है जो गिरते वक़्त सड़क के संपर्क में सबसे पहले आते हैं। इस स्कूटर से जुड़ी अन्य तकनीकी जानकारी आप यहाँ से ले सकते हैं

TVS Motor Company के अधिकारियों के साथ
विदा लेने के पहले हमारी मुलाकात संयंत्र के वरिष्ठ अधिकारियों से हुई। हमने स्कूटर का इस्तेमाल करने वालों की अपेक्षाओं से उन्हें अवगत कराया। बाहर मौसम तेजी से करवट ले रहा था। काले बादलों की खेप आने वाली वर्षा का संकेत कर रही थी। वापस उसी ट्राफिक से गुजरना था तो हम सबने TVS Jupiter की टीम से विदा ली।

आशा है कि एक स्कूटर के ब्रांड के रूप में स्थापित होने की ये प्रक्रिया आपको रोचक लगी होगी। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram  पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

रविवार, 19 अप्रैल 2015

तमिलनाडु का पर्वतीय स्थल येरकाड : क्या आप स्वाद लेना चाहेंगे काली मिर्च और कॉफी का ? Yercaud Hill Station, Tamilnadu

सेलम की चम्पई सुबह का नज़ारा तो आपने पिछले आलेख में देखा ही, आइए आज ले चलते हैं आपको सेलम से सटे पर्वतीय स्थल येरकाड  में जो कॉफी और मसालों के बागानों के लिए जाना जाता रहा है। सेलम शहर से मात्र 28 किमी की दूरी पर स्थित येरकाड, बेंगलूरु (बंगलौर) से भी चार घंटे की दूरी पर है इसलिए अक्सर इन शहरों से सैलानी सप्ताहांत बिताने यहाँ आते हैं। मार्च के प्रथम हफ्ते में दिन के एक बजे जब हम सेलम से निकले तो पारा 35 डिग्री से. को छू रहा था। पर पन्द्रह सौ मीटर की ऊँचाई पर स्थित येरकाड (तमिल उच्चारण के हिसाब से इसे येरकौद भी पुकारा जाता है) तक पहुँचते पहुँचते तापमान दस डिग्री नीचे गिर चुका था। 

 रंग बिरंगी छटा बिखेरती येरकाड (येरकौद) घाटी

1500 मीटर की इस ऊँचाई को छूने में तकरीबन बीस हेयरपिन घुमाव पार करने होते हैं। वैसे हेयरपिन घुमावों के पीछे के नामाकरण को समझना चाहें तो ये ये आलेख पढ़ सकते हैं। शुरुआती कुछ  घुमावों को पार करते ही बाँस के जंगल नज़र आने लगते हैं जो अधिकतम ऊँचाई तक पहुँचने के बाद भी अपने आकार और रंग की वज़ह से अलग झुंड में दूर से ही चिन्हित हो जाते हैं।

घुमावदार रास्तों का साथ देते बाँस के जंगल

पर रास्ते का असली आनंद तब आता है जब आप सात सौ मीटर से ऊपर उठना शुरु करते हैं। येरकाड ( येरकौद ) के इसी इलाके में कॉफी और काली मिर्च के पौधे भारी तादाद में दिखते हैं। इन पौधों को करीब से देखने का सबसे अच्छा उपाय तो ये है कि आप ऊपर तक गाड़ी से जाएँ और फिर बागानों के बीच से ट्रैक करते नीचे उतर आएँ। हमारे पास आधे दिन का ही समय था इसलिए अपनी गाड़ी को बीच बीच में रुकवाते रहे। कालीमिर्च के पौधे को इससे पहले मैंने अपनी केरल यात्रा में दिसंबर के महीने में देखा था। पर इस बार खुशी की बात ये थी कि मार्च में काली मिर्च के पौधे में ढेर सारी कच्ची फलियाँ आई हुई थीं। काली मिर्च यानि ब्लैक पेपर (Black Pepper) की लताएँ Creepers यानि दूसरे पेड़ों पर चढ़ने वाली होती हैं। इसके लिए उन्हें ऐसे तनों की जरूरत होती है जो ख़ुरदुरे हों। चंपा की तरह ही इन्हें भी वही जगहें रास आती हैं जहाँ मिट्टी में जलवाष्प तो हो पर पानी ठहरा या जमा हुआ ना हो। पहाड़ियों की ढलाने इसके लिए उपयुक्त होती हैं।

हरी फलियों से लदी काली मिर्च की लताएँ
गाड़ी से उतर कर हम जंगल में घुसे और इन कच्ची फलियों का स्वाद लिया। खाने में जायक़ा काली मिर्च जैसा ही था पर तीखापन अपेक्षाकृत कम था। ये फलियाँ जब पक जाती हैं तो इन्हें पानी में उबाला जाता है और फिर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद ये सिकुड़ने लगती हैं और इनका रंग काला हो जाता है। शहर में जगह जगह इन्हें बिकता पाया। बाद में घर आकर शिकायत सुनी कि इन्हें खरीद लेते तो फिर हम यहीं सुखा कर खाते :)

अहा क्या स्वाद था इनका भी !

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

सेलम, तमिलनाडु की वो चम्पई सुबह In the midst of Champa trees at Salem, Tamilnadu

पिछले महीने काम के सिलसिले में तमिलनाडु के सेलम (Salem) शहर में था। बैंगलोर से 186 किमी दक्षिण पूर्व और कोयम्बटूर के 160 किमी उत्तर पूर्व इस शहर का शुमार राज्य के पाँच बड़े शहरों में होता है। सेलम तमिलनाडु के पर्वतीय स्थल येरकाड ( Yercaud ) का प्रवेश द्वार भी है और साथ ही यहाँ बनने वाली स्टेनलेस स्टील के बर्तनों से तो आप वाकिफ़ ही होंगे।येरकाड की यात्रा तो मैं आपको कराऊँगा ही पर पहले सेलम में बिताई उस चम्पई सुबह के कुछ हसीन नज़ारे आपको दिखाता चलूँ। 

चम्पा की गोद में समाया आकाश

राँची से दिल्ली और फिर कोयम्बटूर होते हुए जब सड़क मार्ग से मैं सेलम पहुँचा तो रात अपनी काली चादर फैला चुकी थी। मार्च का पहला हफ्ता था पर कोयम्बटूर और सेलम में इतनी गर्मी थी कि AC चलाना अनिवार्य हो गया था। वैसे यहाँ लोग कहते हैं कि साल के दो तीन महीने छोड़कर मौसम एक सा यानि गर्म ही रहता है।

सेलम सुबह सुबह सड़क का नज़ारा
यात्रा की थकान की वज़ह से नींद अच्छी आई। सुबह जब तफ़रीह के लिए निकले तो सड़कें लगभग सुनसान थीं। सूर्योदय हो चुका था पर बादलों की वज़ह से मौसम सुहावना हो गया था। सड़क के बीचो बीच और अगल बगल नारियल वृक्षों की कतारें थी। सूखे पत्तों का बिछावन मानो आमंत्रित कर रहा था भूरी धरती के आगोश में सर रख प्रकृति को निहारने का।

नेहरू पार्क Jawahar Lal Nehru Park, SSP
टहलते टहलते मेरी नज़र लाल चम्पा के इस छोटे से पेड़ पर पड़ी। भारत में तो चंपा के वृक्ष आपको हर जगह मिल जाएँगे पर सामन्यतः ये विषुवतीय और शीतोष्ण जलवायु में  मुख्यतः सफेद, लाल और पीले रंगों में पाया जाता है।

चम्पा ने कहा बादल से मुझे प्यार तुमसे नहीं है नहीं है.. :)

बादलों के बीच चंपा का लाल रंग पूरी तरह निखर नहीं पाया था। फिर भी हरे पत्तों और भूरी ज़मीन की रौनक उन्हीं से थी।

जिस तरह कमल हमारा राष्ट्रीय फूल है वैसे ही चम्पा को निकारागुआ और लाओस जैसे देशों में राष्ट्रीय फूल का दर्जा मिला हुआ है।

लाल चंपा Red Plumeria