मेहरानगढ़ व जसवंत थड़ा देखने व और उमैद भवन पैलेस से बेरंग लौटने के बाद कुछ आराम लाज़िमी था। सो कुछ घंटे निद्रा देवी की शरण में बिताए। चार बजे जब धूप मलिन होती दिखाई पड़ी तो हमारा समूह चल पड़ा जोधपुर से नौ किमी दूर स्थित मारवाड़ शासकों की पुरानी राजधानी मण्डोर (Mandore) की तरफ़। पर मण्डोर का इतिहास राठौड़् शासनकाल से कहीं अधिक प्राचीन है। पाँचवी से बारहवीं शताब्दी के बीच ये गुर्जर प्रतिहारों के विशाल साम्राज्य का हिस्सा था। कुछ समय बाद नाडोल के चौहानों ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया। इस दौरान दिल्ली से गुलाम वंश और तुगलक शासकों के हमले मण्डोर पर होते रहे। चौहानों से होता हुआ ये इन्द्रा पीड़िहारों और फिर उनसे दहेज में ये राठौड़ नरेश राव चूण्डा के स्वामित्व में आ गया। तबसे लेकर राव जोधा के मेहरानगढ़ को बनाने तक ये राठौड़ राजाओं की राजधानी रहा।
पर मेहरानगढ़ के बनने के बाद राठौड़ शासकों ने मण्डोर को पूरी तरह छोड़ दिया ऐसा भी नहीं है। राठौड़ शासकों के मरने पर उनकी स्मृति में छतरियाँ मण्डोर में ही बनाई जाती रहीं। आज की तारीख़ में मण्डोर में सबसे बड़ी छाप महाराणा अजित सिंह की दिखाई देती है। मण्डोर के खंडहर हो चुके किले तक पहुँचने के लिए सबसे पहले जो द्वार दिखाई देता है वो राणा का बनाया अजित पोल ही है।
पर मेहरानगढ़ के बनने के बाद राठौड़ शासकों ने मण्डोर को पूरी तरह छोड़ दिया ऐसा भी नहीं है। राठौड़ शासकों के मरने पर उनकी स्मृति में छतरियाँ मण्डोर में ही बनाई जाती रहीं। आज की तारीख़ में मण्डोर में सबसे बड़ी छाप महाराणा अजित सिंह की दिखाई देती है। मण्डोर के खंडहर हो चुके किले तक पहुँचने के लिए सबसे पहले जो द्वार दिखाई देता है वो राणा का बनाया अजित पोल ही है।
जोधपुर पर सत्रह साल (1707-1724) के अपने शासनकाल में महाराणा ने मण्डोर में एक जनाना महल का निर्माण किया। राठौड़ शासनकाल में लाल बलुआ पत्थर से बनाए जाने वाले खूबसूरत झरोखों का दीदार आप इस महल में कर सकते हैं। कहा जाता है कि राजघराने की महिलाओं को गर्मी से निज़ात देने के लिए इस महल का निर्माण किया गया।
आज ये महल राजकीय संग्रहालय बन चुका है। तेज कदमों से चलते हुए जब हम शाम करीब चार पच्चीस पर इसके मुख्य द्वार पर पहुँचे, इसके कर्मचारियों द्वारा इसे बंद करनी की क़वायद पूरी हो चुकी थी। चूँकि ये संग्रहालय मुख्य द्वार से दस पन्द्रह मिनटों के पैदल रास्ते की दूरी पर है, इसलिए इसे देखने के लिए मण्डोर साढ़े तीन बजे तक पहुँचना जरूरी है। वैसे ये संग्रहालय दस से साढ़ चार तक खुला रहता है।