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शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

आइए ले चलें आपको मानसूनी झारखंड की सड़कों पर.. Road journey through countryside of Jharkhand

पिछले बीस सालों में झारखंड में रहते हुए भी राँची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद के आलावा अन्य इलाकों में जाना कम ही हुआ है। इसलिए इस बार अगस्त के दूसरे हफ्ते का लंबा सप्ताहांत नसीब हुआ तो मन में इच्छा जगी कि क्यूँ ना मानसूनी छटा से सराबोर झारखंड की सड़कों को नापा जाए। नेतरहाट और झारखंड के सबसे ऊँचे जलप्रपात लोध तक पहुँचने की अपेक्षा मन में झारखंड के उन दक्षिणी पश्चिमी इलाकों को नापने का उत्साह  ज्यादा था जहाँ हमारे कदम आज तक नहीं पड़े थे। पड़ें भी तो कैसे पलामू, लातेहार और गुमला का नाम हमेशा से नक्सल प्रभावित जिलों में शुमार जो होता आया है। 


मानसून में नेतरहाट के विख्यात सूर्योदय व सूर्यास्त देखने की उम्मीद कम थी पर मेरा उद्देश्य तो इस बार धान के खेतों, हरे भरे जंगलों और बादलों के साथ आइस पाइस खेलते सूरज का सड़कों पर पीछा करने का था। तो अपने दो मित्रों के साथ चौदह तारीख की सुबह हम अपनी यात्रा पर निकल पड़े।

बरसाती मौसम में झारखंड के अंदरुनी इलाकों में सफ़र करना रुह को हरिया देने वाला अनुभव है। झारखंड की धरती का शायद ही कोई कोना हो जो इस मौसम में हरे रंग के किसी ना किसी शेड से ना रँगा होता है । तो आप ही इन तसवीरों से ये निर्णय लीजिए कि हमारी आशाओं के बीज किस हद तक प्रस्फुटित हुए?


राँची से नेतरहाट की ओर जाने का रास्ता दक्षिणी छोटानागपुर के नगरी, बेरो, भरनो और सिसई जैसे कस्बों से हो कर गुजरता है। कस्बों के आस पास के तीन चार किमी के फैलाव को छोड़ दें तो फिर सारी दुनिया ही हरी लगने लगती है।

पेड़ यूँ झुका हुआ, धान पर रुका हुआ
धानी रंग रूप पर जैसे कोई फिदा हुआ
हरी भरी धान की काया, उस पर जो बादल गहराया
प्रकृति का ये रूप देख मन आनंदित हो आया
दक्षिण कोयल नदी पर जर्जर हो चुके इस पुल को हमने अपना पहला विश्रामस्थल बनाया
सिसई पार करते ही हमारी मुलाकात दक्षिणी कोयल नदी से होती है। लोहड़दगा के पास के पठारों से दक्षिण पूर्व बहती हुई ये नदी गुमला और फिर सिंहभूम होती हुई उड़ीसा के राउरकेला में शंख नदी से मिलकर ब्राह्मणी का रूप धर लेती है। झारखंड की तमाम अन्य नदियों की तरह ये भी एक बरसाती नदी है जो इस मौसम में अपना रौद्र रूप दिखाती है।
सिसई गुमला रोड
गुमला से नेतरहाट जाने के पहले घाघरा प्रखंड पड़ता है। अपनी यात्रा के ठीक एक हफ्ते पहले भारी बारिश के बीच मैंने घाघरा नेतरहाट रोड की एक पुलिया बहने की बात पढ़ी थी। सो एक डर मन में बैठा था कि अगर रास्ता खराब निकला तो क्या वापस लौट जाना पड़ेगा। पर हमारा भाग्य था कि पिछले कुछ दिनों में तेज बारिश ना होने से पुलिया के डायवर्सन को  पार करने में हमें कठिनाई नहीं हुई।

इस इलाके से दक्षिणी कोयल की बड़ी बहन उत्तरी कोयल बहती है। इसे पार करने के बाद घाघरा का रास्ता दो भागों में बँट जाता है। दाँयी और निकलने से आप बेतला के राष्ट्रीय अभ्यारण्य में पहुँचते हैं तो बाँयी ओर  का  रास्ता आपको नेतरहाट घाटी में ले जाता है।
घाघरा नेतरहाट मार्ग
नेतरहाट तक की चढ़ाई घने जंगल से होकर गुजरती है। वैसे तो इस रास्ते में सामान्य आवाजाही कम ही है पर कार चलाने वालों को बसों के आलावा बॉक्साइट अयस्क से लदे ट्रकों को ओवरटेक करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इन जंगलों में बाँस के पेड़ों की बहुतायत है। सघनता ऐसी की नीचे घाटी का नजारा देखने के लिए इनके पतले तनों के बीच की दरारों से झांकने के लिए आप मजबूर हो जाएँ।

ऐ बारिश तू ही तो दिखाती है मुझे अपना चेहरा !

अगर मानसूनी झारखंड की हरियाली में कोई व्यवधान डाल पाता हे तो वो हैं यहाँ की लाल मिट्टी। ये मिट्टी ज्यादा उपजाऊ नहीं होती। इसलिए धान की फसल कटने के बाद सिंचाई की अनुपस्थिति में इसका ज्यादा उपयोग नहीं हो पाता।
झारखंड की लाल मिट्टी
पेड़ हों पहाड़ हों, धान की कतार हो
ऐसी वादियों में बस प्यार की बयार हो

हर भरे खेतों से निकल अचानक ही जंगलों का आ जाना झारखंड के रास्तों की पहचान है।

नेतरहाट महुआडांड़ रोड

नेतरहाट से महुआडांड़ का रास्ता बेहद मनमोहक है। यहाँ रास्ते के दोनों तरफ या तो खेत खलिहान दिखते हैं या बड़े बड़े चारागाह। मजा तब और आता है जब इनसे गुजरते गुजरते अचानक से सामने कोई घाटी और उससे सटा जंगल आ जाए।

महुआडांड़ से डुमरी के रास्ते में हमें मिला ये बरगद का पेड़

आशा है झारखंड की हरियाली ने आपका मन मोहा होगा। झारखंड की इस मानसूनी यात्रा की अगली कड़ी में ले चलेंगे आपको यहाँ के मशहूर पर्वतीय स्थल नेतरहाट में।