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बुधवार, 3 सितंबर 2014

चलिए ले चलें आपको चूहों के मंदिर में Temple of Rats, Deshnok, Bikaner

अपने ब्लॉग मुसाफ़िर हूँ यारों पर अब तक आपको उदयपुर, चित्तौड़, माउंट आबू, कुंभलगढ़, राणकपुर, जोधपुर, जैसलमेर की यात्रा करा चका हूँ। जैसलमेर तक जाकर कोई बीकानेर ना जाए ऐसा हो सकता है भला। तो आज आपको लिए चलते हैं बीकानेर की ओर। वैसे तो बीकानेर के नाम से ही आँखों के सामने पापड़, भुजिया व नमकीन का स्वाद जीभ पर उतरने लगता है  पर वहाँ का किला भी काफी शानदार है ऐसा सुना था। पर इन सब से ज्यादा जिस बात ने मुझे वहाँ जाने के लिए उत्साहित कर रखा था वो था देशनोक का चूहे वाला मंदिर। 

इसलिए जैसलमेर से चलते ही गाड़ी के चालक को मैंने कह दिया था कि मुझे देशनोक होते हुए बीकानेर पहुँचना है। बीकानेर से 32 किमी दूर करनी माता का ये मंदिर जोधपुर बीकानेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ता है। जैसलमेर से जोधपुर जाइए या बीकानेर पोखरन तक रास्ता एक ही है उसके बाद ये दुबली पतली सड़क आपको बीकानेर तक ले चलती है। 


फलोदी के पहले तक सड़क के दोनों ओर के मैदानों में खेतों का नामोनिशान न था। बहुत से बहुत दूर दूर तक फैली रेतीली ज़मीन पर बबूल की झाड़ियों के बीच पीलापन लिए जंगली घास ही दिखाई पड़ती थी। साढ़े तीन सौ किमी की दूरी तय करने में हमें साढ़े पाँच घंटे से थोड़ा ज्यादा समय लगा। लगभग पौने पाँच बजे हम मंदिर प्रांगण के सामने खड़े थे। अपने गुलाबी परकोटों के बीच दूर से इस मंदिर का शिल्प सादा सादा ही दिखता है।



पर जब इसके संगमरमर से बनाए गए मुख्य द्वार के पास पहुँचते हैं तो इसकी भव्यता निखर उठती है। द्वार के पास तो हम पहुँच गए पर चूहों के दर्शन हमें नहीं हुए। मूषको से मिलने के लिए हम उत्कंठित तो थे पर उनकी संख्या का अंदाज़ा ना होने के कारण ये भय भी सता रहा था कि कहीं हमारे शरीर को आने जाने का रास्ता समझ वो मुझ पर ना चढ़ बैंठें। एक ज़माने में इस मंदिर में प्रचलित प्रथा ये थी कि अगर गलती से भी आपका पैर पड़ने से किसी चूहे की मृत्यु हुई तो आपको उसी के जैसा एक सोने का चूहा मंदिर को अर्पित करना पड़ेगा। ख़ैर मँहगाई के इस ज़माने में तो अब तो सोने के बजाए चाँदी से ही काम चला लिया जाता होगा।