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गुरुवार, 20 जून 2013

आओ यारों तुम्हे सुनाएँ एक कहानी कोसी की ! (Story of River Kosi, Uttarakhand)

कोसी का नाम सुनते ही उस नदी का ख्याल आ जाता है जिसे बिहार का शोक माना जाता है। नेपाल से बहकर बिहार में आने वाली ये नदी बारिश के मौसम में अपनी राहें बदल बदल कर आबादी के बड़े हिस्से के लिए तबाही बन कर आती रही है। इसलिए मुझे खासा आश्चर्य तब हुआ जब भोवाली से अल्मोड़ा और फिर कौसानी जाते हुए साथ साथ बहती नदी का नाम भी किसी ने कोसी बताया। 

वैसे नदियों के बगल बगल सड़क पर साथ चलने कै मौके बहुत मिले हैं। सिलीगुड़ी से गंगतोक तक साथ साथ इठलाती, बलखाती तीस्ता हो या फिर कुलु से मनाली के रास्ते में अपनी खूबसूरती से मन मोहने वाली व्यास, ये नदियाँ पूरी राह को यादगार बना देती हैं। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के पट्टी बोरारू पल्ला (Patti Borarau Palla) के प्राकृतिक झरनों से निकलने वाली कोसी, तीस्ता और व्यास जैसी वृहद तो नहीं पर ये पतली दुबली नदी संकीर्ण घाटियों के घुमावदार रास्तों के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए एक यात्री को कई खूबसूरत मंज़र जरूर दिखा देती है।