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शनिवार, 28 नवंबर 2015

बिना गुंबद का मकबरा - सिकंदरा Akbar's Tomb, Sikandara, Agra

इतिहास की किताबों में भारत के दो महान सम्राटों का जिक्र हमेशा से होता रहा है। एक तो मगध के चक्रवर्ती राजा व पाटलिपुत्र नरेश अशोक का तो दूसरे मुगलिया सल्तनत के अज़ीम बादशाह अकबर का। नतीजन इनसे जुड़ी इमारतों को देखने का चाव मुझे शुरु से रहा है । आगरा मैं तीन बार जा चुका हूँ। अपनी दूसरी यात्रा में मुझे अकबर की बनाई खास इमारतों में से एक फतेहपुर सीकरी को देखने का सौभाग्य मिल चुका था पर समय आभाव की वजह से उस वक़्त मैं अकबर के मकबरे को देख नहीं पाया था। इसीलिए पिछले महीने जब उत्तर प्रदेश पर्यटन द्वारा आयोजित यात्रा लेखकों के सम्मेलन के पहले भरी दोपहरी में हमारी बस सिंकदरा के सामने रुकी तो मुझे बेहद खुशी हुई। 

Sikandara..the tomb of Akbar

पेड़ों  की झुरमुट के बीच से दिखता सिंकदरा का दक्षिणी द्वार पहली ही नज़र में हमें मंत्रमुग्ध कर गया। हुमायूँ का मकबरा तो उनकी बेगम ने बनवाया था पर अकबर ने अपने मकबरे की नींव ख़ुद ही रखी थी। मकबरे के इस मुख्य द्वार को देखते ही सबसे पहले नज़र जाती है द्वार के चारों कोनों पर खड़ी संगमरमर की बनी मीनारों पर। इससे पहले मुख्य द्वार के साथ मीनारों के बनने का प्रचलन कम से कम मुगल स्थापत्य में नहीं था। 1605 ई में जब ये इमारत बननी शुरु हुई उसके पहले ही हैदराबाद में कुली कुतुब शाह द्वारा चार मीनार का निर्माण हो चुका था। इतिहासकार ऐसा अनुमान लगाते हैं कि शायद चारमीनार की प्रेरणा पर अकबर ने इस द्वार का ये स्वरूप रखा होगा।

South Gate, Sikandara
संगमरमर की ये मीनारें तिमंजिली है जिन्हें अलग करने का काम हर मंजिल पर स्थित बॉलकोनी करती है। अगर आप इस द्वार की तुलना ताजमहल के बाहरी द्वार से करें तो लाल बलुआ पत्थरों पर रंग बिरंगे पत्थरों से की गई कलमकारी सिकंदरा के प्रमुख द्वार को अपेक्षाकृत ज़्यादा सुंदर बना देती है। 

Beautiful inlay work with coloured stone

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

ताज़ के आगे का आगरा Agra Beyond Taj : Uttar Pradesh Travel Writers Conclave 2015

अक्टूबर के पहले हफ्ते में उत्तर प्रदेश पर्यटन की तरफ़ से एक न्योता आया आगरा, लखनऊ और बनारस के आस पास के इलाकों में उनके साथ घूमने का। सफ़र का समापन यात्रा लेखकों के सम्मेलन से लखनऊ में होना था। सम्मेलन में भारत और विदेशों से करीब चालीस पत्रकार, ब्लॉगर और फोटोग्राफर बुलाए गए थे।

उत्तर प्रदेश मेरे माता पिता का घर रहा है। बनारस, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद व आगरा जैसे शहरों में मैं पहले भी कई बार जा चुका हूँ।  बनारस के घाट की स्मृतियाँ तो एकदम नई थीं क्यूँकि वहाँ पिछले साल ही गया था पर आगरा गए पन्द्रह साल से ऊपर हो चुके थे। सो मैंने आगरा वाले समूह के साथ जाने की हामी भर दी।

उत्तर प्रदेश पर्यटन ने अपने इस कार्यक्रम को दि हेरिटेज आर्क (The Heritage Arc) का नाम दिया था। इस परिधि में आगरा, लखनऊ व बनारस के आस पास के वो सारे इलाके शामिल किए गए थे जहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं। यानि उद्देश्य ये कि इनमें से पर्यटक किसी भी जगह जाए तो उसके करीब के सारे आकर्षणों को देखते हुए ही लौटे। ज़ाहिर था उत्तर प्रदेश पर्यटन  हमें भी ताज़ के आगे का आगरा (Agra beyond Taj) दिखाने को उत्सुक था। सफ़र के ठीक पहले जब पूरे कार्यक्रम को देखा तो मन आनंदित हुए बिना नहीं रह सका। ऐतिहासिक धरोहरों, वन्य जीवन, प्रकृति, कला, संस्कृति व खान पान का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण बिड़ले ही किसी कार्यक्रम में देखने को मिलता है।

First ray of the Sun falling on the Taj
तीन अक्टूबर को पौ फटते ही हमारे सफ़र की शुरुआत हुई ताज दर्शन से। ताज के दरवाजे सवा छः बजे के लगभग खुलते हैं। पर जब हम वहाँ पहुँचे तो पर्यटकों की भारी संख्या सूर्योदय के समय के ताज़ के दर्शन के लिए आतुर थी। इधर सूरज की किरणों ने संगमरमर की दीवारों का पहला स्पर्श किया और उधर ढेर सारे कैमरे इस दृश्य को अपने दिल में क़ैद करने की जुगत में जुट गए। हमारे गाइड इमरान और आदिल ताज़ महल परिसर की इमारतों के शिल्प की बारीकियों के बारे में बताते रहे और उधर  तब तक   सूर्य देव  ने  सुनहरी रौशनी से पूरे ताज को अपने आगोश में ले लिया ।

The Taj in all its glory !