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मंगलवार, 19 जनवरी 2010

यादें केरल की - भाग 4 : कोच्चि से मुन्नार टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान

24 दिसंबर की सुबह हमारे लिए खास थी क्योंकि कुछ ही घंटों में हमें मुन्नार कूच करना था। पूरी यात्रा की योजना बनाते वक़्त मुन्नार के बारे में पढ़ कर हम वहाँ जाने के प्रति सबसे ज्यादा उत्साहित थे। मुन्नार कोचीन से करीब 140 किमी है और गाड़ी से ये दूरी करीब साढ़े चार से पाँच घंटे में पूरी होती है। दस बजे तक हम कोच्चि छोड़ NH 49 की राह पकड़ चुके थे। कोच्चि से कुछ दूर बाहर निकलते ही हमें रबर के बागान दिखाई देने लगे।

इससे पहले रबर के जंगल हमने अंडमान में देखे थे तो वही दृश्य फिर आँखों के सामने घूम गया। थोड़ी ही दूर आगे बढ़े थे की रबर निकालने की प्रक्रिया सामने खुद ही दृष्टिगोचर हो गई। हमारे मलयाली ड्राइवर ने तुरत गाड़ी रोकी ताकि कैमरे से हम चित्र उतार सकें। जैसा कि आप देख सकते हैं, रबड़ निकालने के लिए पेड़ के तने में घुमावदार चीरा लगाया जाता है जिसके रास्ते रबर, एक पात्र में जमा होता है। रबर के जंगल खत्म हुए ही थे कि अनानास के खेत दिखने लगे। हमारे पूरे समूह के लिए ये एक नया और अद्भुत नज़ारा था।

लगभग ग्यारह बजे हम कोठामंगलम (Kothamangalam) की व्यस्त सड़कों के बीच से गुज़र रहे थे।

केरल का भूगोल अपने आप में अनूठा है। यूँ तो इसकी तट रेखा 580 किमी. लंबी है पर इसकी चौड़ाई पूरे राज्य में मात्र 35 से 120 किमी. के बीच है। इस चौड़ाई के एक तरफ़ तो समुद्र है तो दूसरी और 1500 से 1600 तक औसत ऊँचाई वाले पश्चिमी घाट। इसलिए जब भी आप पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व की ओर सफ़र करेंगे, आपको काफी घुमावदार रास्तों से विचरण करना होगा। इसलिए इन रास्तो पर चलने के पहले उल्टी की दवा खाकर चलना श्रेयस्कर है। यूँ तो हमारे दल के सदस्यों ने एवोमीन ली थी पर देर से लेने की वज़ह से मेरे पुत्र वोमिटिंग का शिकार हो गया।

हम नेरिएमंगलम (Neriamanglam) से कुछ दूर आगे एक नर्सरी में रुके। कोच्चि से मुन्नार के रास्ते में कुछ छोटे जलप्रपात भी आते हैं जिसके बगल में बैठकर आप सफ़र की थकान मिटा सकते हैं। आदिमाली (Adimali) जो कोच्चि से करीब 100 किमी की दूरी पर है, तक पहुँचते-पहुँचते हम सब की हालत खराब हो रही थी। सब यही सोच रहे थे कि इन सर्पीलेकार, चक्करदार रास्तों से कब मुक्ति मिलेगी ? मुन्नार शहर से करीब १२ किमी पहले एक विउ प्वांट पर हमने आधे घंटे का ब्रेक लिया ताकि चकराते सिर को पहाड़ों से आती हल्की ठंडी हवा की खुराक दी जा सके। अब हम पहाड़ों के बिलकुल करीब आ चुके थे। हरे भरे पहाड़ों और जंगलों की गोद में मुन्नार के मशहूर चाय बागान अपनी झलक दिखला रहे थे।

बाहर फेरीवाला एक अलग तरह का फल बेच रहा था। नाम ऐसा कि आप खाने से अपने आप को रोक ना पाएँ। चौंकिए मत,एक सामान्य नीबू से आकार में दुगने बड़े इस फल का नाम था पैशन (Passion Fruit)। अब इस फल का नाम कैसे पड़ा ये तो मालूम नहीं पर इसे खाने का तरीका भी कुछ अलग सा है। फल को लम्बवत काटिए और इसके लिज़लिज़े हिस्से को हाथों या चम्मच से निकाल कर इसका मज़ा लीजिए। इसका स्वाद तो मुझे हल्के मीठे साइट्रस फ्रूट की तरह का लगा पर बच्चों में ये ऍसा जमा की जहाँ जाते इस फल की माँग कर बैठते। बाद में मुझे पता चला कि ये फल केरल ही नहीं वरन् विश्व के अन्य भागों में भी खाया जाता है। यहाँ देखें

थोड़ी देर में हम मुन्नार शहर में थे। चारों ओर की छटा निराली हो चुकी थी पर हमारा ध्यान कहीं और था। रास्ते के हिचकोलों ने पेट में एक अलग तरह का संग्राम मचाया हुआ था। सो पहले हल्की पेट पूजा की । हल्की इसलिए कि हमारी यात्रा मुन्नार पहुँचने तक ही खत्म नहीं होने वाली थी। बल्कि हमें शहर से २५ किमी दूर मुन्नार से थेक्कड़ि (Thekkady) जाने वाले रास्ते में देवीकुलम से थोड़ा आगे स्थित चांसलर रिसार्ट में रहना था। दूसरे दिन के लिए आरक्षण नहीं था। बजट के अंदर होटल ढूंढने में हमें एक घंटा लगा। कोई हजार दो हजार से नीचे की बात ही नहीं कर रहा था। पर मलयाली ड्राइवर की कुशलता से इतने पीक सीजन में हमें ७०० रुपये का कमरा मिला पर वो भी एक।

खैर कल की कल देखी जाएगी कह कर हम अपने ठिकाने की तरफ निकल पड़े। मुन्नार से थेक्कड़ी की तरफ़ निकलने वाले रास्ते में थोड़ी दूर बढ़े ही थे कि चाय के हरे भरे बागान हमारे बिल्कुल करीब आ गए। पहाड़ की ढलानों के साथ उठते गिरते चाय बागान और उनके बीचों बीच कई लकीरें बनाती पगडंडियाँ इतना रमणीक दृश्य उपस्थित करते हैं कि क्या कहें ! पर्वतों की चोटियों और बादलों के बीच छन कर आती धूप हरे धानि रंग के इतने शेड्स बनाती है कि मन प्रकृति की इस मनोहारी लीला को देख विस्मृत हो जाता है। हृदय इन बागानों के बीच बिताए एक एक पल को आत्मसात करने को उद्यत करता है। चाय बागानों की बात तो अभी आगे भी होनी है ।

अपने गन्तव्य से ५‍-१० किमी पूर्व चिन्नाकनाल का ये खूबसूरत झरना मिला। बच्चे पानी की गिरती धाराओं को देखने के लिए खुशी से दौड़ पड़े। शाम के ठीक चार बजे हम अपने रिसार्ट में थे। शाम चार बजे से अगली सुबह तक का हाल लेकर आऊंगा अगली किश्त में।

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

रविवार, 17 जनवरी 2010

क्या आप $72 में कोचीन शहर खरीदना चाहेंगे ?

72 डॉलर है आपकी जेब में ? अगर हैं तो कोच्चि शहर आपका। यक़ीन नहीं आता तो यहाँ देख लीजिए जनाब।

बात पिछले दिसंबर की है। कोचीन यानि कोच्चि में यहूदियों के प्रार्थना स्थल से डच पैलेस की ओर आ रहा था कि एक दुकान के बाहर दीवार पर ये पंक्तियाँ लिखी दिखाई दीं। दीवार पर लिखे बाकी ब्राड अंग्रेजों के ज़माने में बेहद प्रचलित थे।

इटली के यात्री निकोलस कोन्टी (Nicholas Conti) कोचीन के बारे में अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा था कि

"आप चीन में खूब पैसा बना सकते हैं और कोचीन में खर्च कर सकते हैं।"

क्यूँ ना खर्च करें जब इतने कम दामों में पूरा शहर मिल रहा हो :) !

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...

यूँ तो कोचीन का इतिहास बड़ा पुराना है पर आज तक इसके नाम की व्युत्पत्ति पर सारे इतिहासकार एक मत नहीं हैं। इसकी एक वज़ह ये भी है कि कोचीन के व्यवसायिक महत्त्व के चलते यहाँ अरब, चीनी, पुर्तगाली, डच और अंग्रेज सभी आए और इन सब ने इस जगह को अपने इतिहास के पन्नों में अलग-अलग ढंग से दर्ज किया।


कुछ इतिहासकार मलयालम शब्द कोच अज्हि (Small Lagoon) से और कुछ कसि (harbour) से कोचीन नाम पड़ने की बात करते हैं। फिर कुछ लोग ये भी कहते हैं कि कोच्चि नाम कुबलई खान के दरबार से आए व्यापारियों का रखा है।

अलग-अलग संस्कृतियों को किस तरह अपने दिल में संजोए है ये शहर, ये देखने के लिए कड़ी धूप में ठीक दो बजे हम एरनाकुलम बोट जैट्टी ( जो मेरीन ड्राइव की बगल में है) से विलिंगडन द्वीप की और बढ़ चले। हमारी मोटरबोट के एक ओर तो मुख्य भूभाग का छूटता किनारा दिखाई दे रहा था तो दूसरी ओर नौ सेना के छोटे-छोटे पोत। सबसे पहले ये खूबसूरत इमारत नज़र आई जिसे लोग कोई सरकारी कार्यालय बता रहे थे।



क़ायदे से हमें सबसे पहले सेंट फ्रांसिस के चर्च जाना था। पर दिन था रविवार। अब मुश्किल ये थी कि रविवार के दिन, प्रार्थना की वज़ह से चर्च पर्यटकों के लिए खुला नहीं था। हमारे गाइड ने बताया कि सेंट फ्रांसिस चर्च (St. Francis Church) , भारत के सबसे पुराने चर्च के रूप में जाना जाता है। सन ५२ में सेंट थामस ने इस चर्च की स्थापना की थी। १५२४ ई. में वास्कोडिगामा की मृत्यु के पश्चात उसे इसी चर्च में दफ़नाया गया था। मन ही मन ऍसी ऍतिहासिक धरोहर ना देख पाने का अफ़सोस हुआ।

हमारा पहला पड़ाव था डच पैलेस (Dutch Palace) नौका से उतरकर कुछ दूर चलने पर ही डच पैलेस का मुख्य द्वार आ जाता है। अब जिन लोगों ने राजस्थान के किलों और महलों को देखा है वो इस इमारत को पैलेस कहने में जरूर हिचकिचाहट महसूस करेंगे। दूर से देखने से ये खपड़ैल से बने बड़े घर जैसा दिखता है। वास्तव में इस इमारत की नींव पुर्तगालियों ने रखी थी, पर सत्रहवी शताब्दी में जब डच कोचीन में अपना प्रभामंडल बढ़ा रहे थे तो कोच्चि के राजा को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने इस इमारत में थोड़ी बहुत फेरबदल कर राजा को भेंट कर दिया।

महल के अंदर रामायण और महाभारत के सुंदर भित्ति चित्र (Mural Paintings) लगे हैं। इन चित्रों में चटकीले रंगों का प्रयोग किया गया है। एक कक्ष से दूसरे में जाने के लिए लकड़ी की सीढ़ियाँ हैं। एक संकरी सीढ़ी नीचे की ओर के कक्ष की तरफ जाती है। इस कक्ष में चित्रों में भिन्नता ये है कि इन्हें आप बच्चों के साथ देखने में सहज नहीं महसूस करेंगे। डच पैलेस में करीब २०-२५ मिनट बिताने के बाद हम चल पड़े बगल ही में यहूदियों के प्रार्थना स्थल पर।

(चित्र सौजन्य विकीपीडिया यहाँ अंदर चित्र लेने की मनाही थी)

मात्तनचेरी की गलियों से गुजरते हम जब इस यहूदी सिनगॉग पर पहुँचे तो सबसे पहले इसका अज़ीब सा नाम ध्यान आकर्षित कर गया। यहूदियों का ये प्रार्थना स्थल परदेशी सिनगॉग (Pardeshi Synagogue) कहलाता है। इसका कारण ये है कि इसे यहाँ रह रहे स्पेनिश, डच और बाकी यूरोपीय यहूदियों के वंशजों ने मिलकर 1568 में बनाया था। इसलिए परदेशियों का बनाया परदेशी प्रार्थना स्थल हो गया। मज़े की बात ये है कि किसी यहूदी प्रार्थना स्थल में चप्पल उतार कर जाना अनिवार्य नहीं रहता । पर परदेशी सिनागॉग में आप बिना चप्पल उतारे प्रवेश नहीं कर सकते। साफ है कि समय के साथ हिंदू रीति रिवाज का यहाँ रहने बाले यहूदियों पर भी असर पड़ा और उन्होंने उसे अपना लिया।

प्रार्थना स्थल, चीन से लाई गई सफ़ेद नीली टाइलों और बेल्जियम से लाए गए शानदार झाड़फानूसों से सुसज्जित है। प्रार्थना स्थल से डच पैलेस के बीच का पतला रास्ता बड़ा ही मनोहारी है। जी नहीं, मैं किसी प्राकृतिक दृश्य की बात नहीं कर रहा बल्कि उन दुकानों की बात कर रहा हूँ जिसमें बिकती वस्तुएँ बरबस आपका ध्यान खींच लेती हैं। पुराने ज़माने की वे धरोहरें जिसे भारतीय पर्यटक सिर्फ देख पाते हैं और विदेशी जिन्हे खरीदने में बेहद दिलचस्पी दिखाते हैं। अब इस पुरानी लकड़ी की नाव को ही देखें।

हमारा अंतिम पड़ाव था फोर्ट कोच्चि के तट का वो हिस्सा जहाँ मछुआरे चाइनीज फिशिंग नेट का प्रयोग करते हैं। चीन के बाहर पूरे विश्व में सिर्फ केरल में मछली पकड़ने के लिए ऐसे विशाल जाल का प्रयोग होता है।

कोच्चि से अगली सुबह यानि 24 दिसंबर को निकलना था हमें मुन्नार की ओर। ये दिन हमारी संपूर्ण केरल यात्रा का सबसे अविस्मरणीय दिन था। क्या था ऍसा अद्भुत ये जानते हैं इस यात्रा वृत्तांत की अगली किश्त में....
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...

वैसे तो कोच्चि (पुराना नाम कोचीन) दस छोटे बड़े द्वीपों से मिलके बना है,पर मुख्यतः इसे आप तीन भागों मे बाँट सकते हैं।


एक हिस्सा मानव निर्मित विलिंगडन द्वीप (Willingdon Island) है जिसे अंग्रेजों ने समुद् से निकाली गई मिट्टी से 1920 में बनाया था। कोच्चि के इस हिस्से में कोंकण रेलवे का कोचीन रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा और भारतीय नौ सेना के कार्यालय आते हैं। विलिंगडन द्वीप के एक ओर फोर्ट कोच्चि मात्तनचेरी (Mattancherry) के इलाके आते हैं जिसमें कोच्चि की ज्यादातर ऍतिहासिक विरासतें स्थित हैं तो दूसरी ओर मुख्य भूभाग से जुड़ा एरनाकुलम (Ernakulam) का व्यवसायिक नगर आता है।

अक्सर लोग केरल पैकेज टूर के तहत जाते हैं। विमान से उतरने के बाद वाहन और होटल की सुविधा के बारे में पर्यटक को सोचना नहीं पड़ता पर ये जरूर है कि जेब अच्छी तरह से हल्की हो जाती है। हमलोग जब एरनाकुलम पहुँचे तो हमारे पास जाने वाली सारी मुख्य जगहों का एक-एक दिन का आरक्षण था। ये सोचकर आ गए थे कि पहले दिन तो कोई चिंता नहीं रहेगी और दूसरे दिन घूम फिरकर कोई ठौर ठिकाना ढूँढ ही लेंगे ।

एरनाकुलम स्टेशन पर उतरे ही थे कि काली काली पोशाकों में झुंड के झुंड लोग भगवान अयप्पा ( Ayappa) की जयजयकार करते हुए रेलवे ओवरब्रिज पर जाते दिखाई पड़े। ट्रेन में हमें सहयात्रियों से पता चल चुका था कि जिस तरह उत्तर भारत में जगह जगह काँवरिया काँवर उठाकर धार्मिक स्थलों की तरफ जाते हैं (राँची के समीप देवघर में भी सावन के समय ऍसी यात्राएँ होती हैं) वैसे ही ये दल कोट्टायम के समीप पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला के मंदिर जा रहा है।

जिधर प्री पेड आटो का बूथ था हम उधर ही चल पड़े। वहाँ अंदर लाइट जल रही थी पर रसीद काटने वाले का दूर-दूर तक पता ना था। ये अनुपस्थिति सुनियोजित ही थी क्योंकि साढ़े छः सात का वक्त ट्रेनों की आवाजाही के हिसाब से व्यस्त ही कहा जाएगा। पुरानी दिल्ली स्टेशन की यादें ताज़ा हो गईं। इस बात को फिर बल मिला कि अनेकता में एकता वाकई है हमारे देश में। खैर दस पन्द्रह मिनट प्रतीक्षा के बाद भी जब वहाँ कोई नही् आया तब हमने टैक्सी और आटो वालों से पूछना शुरु किया। तीस की जगह हमसे सौ रुपये माँगे जा रहे थे। कोई और उपाय ना देख हमने डेढ़ सौ रुपये में एक टेक्सी कर ली जो दस मिनट से कम समय में ही हमें अपने गन्तव्य तक पहुँचा गई।

हमारा गेस्ट हाउस रिहाईशी इलाके में था सो नहा धो कर हम खाने का जुगाड़ ढूँढने लगे। थोड़ी देर चलने के बाद हमें एक छोटा सा होटल दिखाई पड़ा। केरल में आम तौर पर भोजनालयों में रोटी नहीं मिलती। इसकी जगह मिलता हैं पराठा जो तिकोना ना होकर गोल होता है और प्रायः मैदे का बनाया जाता है। मेनू कार्ड में जो एक नयी चीज दिखाई दी वो थी अप्पम (Appam)। चावल से बनाए जाने वाले इस व्यंजन को हमारे सुपुत्र ने शीघ्र ही अपना प्रिय आहार बना लिया। सामान्यतः तमिलनाडु और केरल में लोग इसे नाश्ते के तौर पर चटनी के साथ (ये अपने आप में फीका होता है) खाते हैं। खाने के बाद हमने टूरिस्ट बस के बारे में पूछताछ शुरु की। अब वहाँ आंग्ल भाषा के जानकार गिने चुने थे। होटल के मालिक ने कुछ लोगों को हमारी बात समझने के लिए आगे किया पर वो भी हमारे प्रश्न को समझने में असफल रहे।


अगली सुबह दस बजे जब टूरिस्ट आफिस में फोन लगाया तो पता चला कि कोच्चि के प्रमुख स्थानों के लिए उनके यहाँ से मोटरबोट सेवा उपलब्ध है। टूरिस्ट आफिस से दिन का टिकट ले कर हम बगल के एनर्जी यानि उर्जा पार्क चल पड़े। बच्चों को वहाँ कॉर चलाने, और तरह तरह के झूलों में आनंद आ गया। शाम को जब जेटी से लौट कर वापस आए तो पार्क में तिल भर पैर रखने की जगह नहीं थी। पूरा उत्सव सा माहौल था।

पार्क के पिछवाड़े में वेम्बनाड झील (Vembanad Lake) है जो भारत की सबसे लंबी झील है। इस झील का विस्तार एरनाकुलम, कोट्टायम और एलेप्पी जिलों तक है। कोच्चि में आकर ये अरब सागर में मिलती है। इस झील के किनारे-किनारे चहलकदमी के लिए खूबसूरत सा मार्ग बना है जो कोच्चि का मेरीन ड्राइव कहलाता है। मार्ग में बीच बीच में अर्धवृत्ताकार पुल भी हैं। मार्ग के दूसरी ओर बड़े-बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों और शॉपिंग मॉल्स की लंबी कतारे हैं। पर मेरीन ड्राइव के रास्ते में शहर के गंदे नाले आकर मिलते हैं जिनसे निरंतर आती बदबू रास्ते की शोभा को धूमिल कर देती है। इसी वज़ह से हमसे पल भर भी मेरीन ड्राइव पर बैठने की इच्छा नहीं हुई।

दिन में जेट्टी लेने के पहले हम आगे के सफ़र के लिए गाड़ी बुक करना चाहते थे। हमने सोचा कि ये काम स्टेशन के आस पास बढ़िया तरीके से हो पाएगा। इसलिए एक आटो को रोका और स्टेशन कहते हुए बैठ गए। अब वो मलयालम में हमसे कुछ पूछने लगा। हमारे अँग्रेजी में समझाने पर उसने सर पर हाथ रख लिया और कहा NO ENGLISH। फिर कुछ देर सोचने के बाद उसने कहा नार्था..साउथाहमने सोचा कि लगता है हम कहाँ से आए हैं ये पूछ रहा है तो दाँते निपोरते हुए हमने कहा नार्था.. उसने अज़ीब सा मुँह बनाया और फिर कुछ कहा। हमने बिना समझे फिर एक मुस्कुराहट से प्रत्युत्तर दिया। थोड़ी देर में मुझे लगा कि ये वो रास्ता नहीं है जिस तरफ से हम रात में आए थे, पर उसे ये समझाएँ कैसे ये सोचकर चुप रह गए। थोड़ी देर में सड़कों पर घूमते घुमाते वो हमें एरनाकुलम टाउन स्टेशन ले आया और तब हमें अहसास हुआ कि वो शायद शहर के उत्तर या दक्षिण दिशा वाले स्टेशन के बारे में पूछ रहा था। खैर तीस चालीस रुपये का चूना लगवाकर हम मुख्य स्टेशन पहुँचे।

चूंकि कोच्चि रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा वेलिंगडन में है, ज्यादातर ट्रैवेल एजेन्ट शहर के उस हिस्से में हैं। दिसंबर की भीड़ और क्रिसमस की वजह से तमाम गाड़ियाँ पहले से बुक थीं। हम लोगों की योजना थी की Non AC Qualis ले लेंगे पर वो मिली ही नहीं और हमें AC वाहन लेना पड़ा। इस भागदौड़ में दिन का एक बज गया। दिन में हमने कोच्चि की शानदार बिरयानी खाई और चल पड़े जेट्टी के सफ़र पर।
जेट्टी से हमने क्या देखा और क्या नहीं देखा इसका खुलासा अगली किश्त में।

कोचीन का मानचित्र यहाँ से लिया गया है


इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !