बुधवार, 25 दिसंबर 2024

संत फिलोमेना कैथेड्रल, मैसूर St. Philomena's Cathedral, Mysore

अगर भारत में निर्मित गिरिजाघरों की बात करूं तो सबसे भव्य और विशाल चर्च मैंने केरल और गोवा में देखे हैं। मेघालय और मेरे राज्य झारखंड में भी कई चर्च हैं पर स्थापत्य के पैमाने पर उनमें वो विशिष्टता नहीं है।

गिरिजा के सामने का दृश्य : 53 मीटर ऊंचे शिखर जिनका स्थापत्य देखते ही बनता है।

भारत के सबसे सुंदर चर्च अगर मुझे कोई लगा तो वो था मैसूर का संत फिलोमेना कैथेड्रल। तो चलिए क्रिसमिस के शुभ अवसर पर मेरे साथ इस चर्च में जहाँ एक साथ 800 लोग बैठ कर प्रार्थना कर सकते हैं। 

अक्सर आपने चर्च के नाम किसी पुरुष संत के नाम जैसे पीटर, फ्रांसिस, जॉन के नाम पर सुने होंगे पर संत मेरी के अलावा पहली बार मैंने यहां आ के जाना कि ये गिरिजाघर ग्रीस की राजकुमारी फिलोमेना के नाम पर है। 

संत फिलोमेना चर्च का उत्तरी दरवाजा

फिलोमेना और उसके पिता ने जब ईसाई धर्म स्वीकार किया तो वहां के सम्राट ने उनपर धावा बोलने की धमकी दी। भाग कर राजा रोम में सहायता के लिए पहुंचा पर वहां भी सम्राट ने फिलोमेना की सुंदरता से रीझ कर उससे विवाह का प्रस्ताव रख दिया जिसे फिलोमेना ने ठुकरा दिया क्योंकि फिलोमेना ने तब तक अविवाहित रहते हुए धर्म की सेवा करने का निर्णय ले लिया था। चौदह वर्ष की अल्पायु में ही अपने धर्म का अनुपालन करने की वज़ह से वो सम्राट द्वारा दी गई प्रताड़ना का शिकार हुईं और अंत में उनकी मृत्यु हो गई। 

संत फिलोमेना की मूर्ति

फेलोमिना चर्च के सामने का हिस्सा

उनके सम्मान में 1930 के दशक में बने इस गिरिजाघर को अंग्रेजों ने तत्कालीन शासक कृष्णराज वाडियार चतुर्थ के सहयोग से बनाया था। इसके फ्रांसीसी आर्किटेक्ट ने इस भवन की रूपरेखा जर्मनी के विश्व प्रसिद्ध गिरिजाघर कोलोन कैथेड्रल के आधार पे रखी।

कोलोन जर्मनी में बना गिरिजाघर जिससे मैसूर में बना गिरिजा प्रेरित है।

नियो गोथिक शैली में बनाए इस बेहद खूबसूरत गिरिजाघर को ऊपर से नीचे तक देखने के लिए आपको आसमान की तरफ पूरी गर्दन टेढ़ी करनी पड़ती है। सामने की तरफ के इसके दो स्तंभकार शिखर 53 मीटर ऊंचे हैं। नीचे से आयताकार और ऊपर जाकर तिकोने होती संरचना नियो गोथिक शैली से बनाए गए भवनों की पहचान है ।

भवन की दीवारों पर लाल और पीले रंग में रंगे कांच जो सौम्य स्लेटी रंग की दीवारों में निखार ले आते हैं

मुख्य द्वार के ऊपर का डिजाइन

जैसा कि अमूमन ज्यादातर गिरिजाघरों में होता है मुख्य या बगल के दरवाजों के ऊपर बनाए गए नमूनों में रंगीन कांच का इस्तेमाल हुआ है जो स्लेटी रंग के इस भवन को और आकर्षक बनाता है। ऐसे ही रंगीन कांच भवन की आंतरिक दीवारों पर भी हैं। ये चर्च होली क्रॉस के रूप में बनाया गया है जिसमें लंबाई वाली दिशा में बैठने की व्यवस्था है ही साथ ही साथ क्रॉस के मिलन बिंदु पर प्रार्थना स्थान और Choir के लिए जगह है। दाएं और बाएं फैले भवन यानी क्रॉस के दूसरे सिरे में भी बैठने की व्यवस्था है।

मैसूर में ये चर्च वहां के प्रसिद्ध मैसूर महल से ज्यादा दूर नहीं है। तो जब भी मैसूर जाइए इस खूबसूरत गिरिजाघर के दर्शन जरूर कीजियेगा। इस ब्लॉग का अपडेट पाने के लिए आप इसके फेसबुक या इंस्टाग्राम पेज का अनुसरण कर सकते हैं।