पश्चिम बंगाल में ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे विख्यात जगह है तो वो है बिष्णुपुर। वर्षों पहले बांकुरा जिले में स्थित इस छोटे से कस्बे में जब मैं यहाँ के विख्यात टेराकोटा मंदिरों को देखने गया था तो ये जगह मुझे अपनी ख्याति के अनुरूप ही नज़र आई थी। तब बिष्णुपुर एक छोटा सा कस्बा था जहां एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक जाने के लिए संकरी सड़कों की वज़ह से ऑटो की सवारी लेनी पड़ती थी। अब सड़कें तो अपेक्षाकृत चौड़ी हो गई हैं पर इतनी नहीं कि ऑटो को उनकी बादशाहत से हटा सकें।
पिछले हफ्ते एक बार फिर बिष्णुपुर जाने का मौका मिला पर इस बार कुछ नया देखने की इच्छा मुझे जोयपुर के जंगलों की ओर खींच लाई। मैंने सुना था कि इन जंगलों के आस पास की ज़मीन पर फूलों के फार्म हैं जिसे एक रिसार्ट का रूप दिया गया है। नाम भी बड़ा प्यारा बनलता। तो फिर क्या था चल पड़े वहाँ जंगल और फूलों के इस मिलन बिंदु की ओर।
बांकुड़ा वैसे तो एक कृषिप्रधान जिला है पर अपने टेराकोटा के खिलौनों, बालूचरी साड़ियों और डोकरा कला के लिए खासा जाना जाता है। बांकुरा में टेराकोटा से बने घोड़ा की पूछ तो पूरे देश में होती ही है, आस पास के जिलों में यहाँ का गमछा भी बेहद लोकप्रिय है। बांकुड़ा जिले में आम के बागान और सरसों के खेत आपको आसानी से दिख जाएँगे। चूँकि जाड़े का मौसम था तो सरसों के पीतवर्ण खेतों को देखने का मौका मिला। कुछ तो है इन सरसों के फूलों में कि लहलहाते खेतों का दृश्य मन को किसी भी मूड से निकाल कर प्रसन्नचित्त कर देता है।
बांकुड़ा और बिष्णुपुर के बीचों बीच एक जगह आती है बेलियातोड़। चित्रकला के प्रशंसकों को जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि ये छोटा सा कस्बा एक महान कलाकार की जन्मभूमि रहा है। जी हाँ, प्रसिद्ध चित्रकार जामिनी राय का जन्म इसी बेलियातोड़ में हुआ था। वैसे आज लोग बेलियातोड़ से गुजरते वक़्त जामिनी राय का नाम तो नहीं पर लेते पर यहाँ की मलाईदार लालू चाय और ऊँट के दूध से बनने और बिकने वाली चाय का घूँट भरने के लिए अपनी गाड़ी का ब्रेक पेडल जरूर दबा देते हैं।
बेलियातोड़ से निकलते ही रास्ता सखुआ के जंगलों में समा जाता है। सड़क पतली है पर है घुमावदार। मैं तो वहाँ समय की कमी की वज़ह से नहीं उतर सका पर मन में बड़ी इच्छा थी कि जंगल के बीच चहलकदमी करते हुए जाड़े की नर्म धूप का लुत्फ़ उठाया जाए।
बेलियातोड़ वन क्षेत्र
बिष्णुपुर शहर से जोयपुर का वन क्षेत्र करीब 15 किमी दूर है। इन वनों के एक किनारे बना है बनलता रिसार्ट जो कि रिसार्ट कम और फूलों का गाँव ज्यादा लगता है। इस रिसार्ट में पहुँचने पर जानते हैं सबसे पहला फूल हमें कौन सा दिखा? जी हाँ गोभी का फूल और वो भी नारंगी और गुलाबी गोभी का जिन्हें ज़िंदगी में मैंने पहली बार यहीं देखा।
सच पूछिए तो इनकी ये रंगत देख कर एकबारगी विश्वास ही नहीं हुआ कि इनका ये प्राकृतिक रंग है। ऐसा ही अविश्वास राजस्थान से गुजरते हुए लाल मूली को देख कर हुआ था।
बाद में पता चला कि विश्व में फूलगोभी नारंगी, सफेद, और जामुनी रंग के अलावा हल्के हरे रंग में भी
आती है। नारंगी फूलगोभी मूलतः सत्तर के दशक में कनाडा में उगाई गई थी। आम सफेद फूलगोभी और इसमें मुख्य फर्क ये है कि इसमें बीटा कैरोटीन नामक पिगमेंट होता है जो इसे नारंगी रंग के साथ साथ सामान्य गोभी की तुलना में पच्चीस फीसदी अधिक विटामिन ए उपलब्ध कराता है।
जामुनी गोभी का गहरा गुलाबी रंग एक एंटी ऑक्सीडेंट एंथोसाइनिन की वज़ह से आता है। इस गोभी में विटामिन C प्रचुर मात्रा में विद्यमान है।आलू गोभी की भुजिया में नारंगी गोभी का स्वाद चखा तो लगभग सफेद गोभी जैसी पर थोड़ी कड़ी लगी। जामुनी गोभी तो खाई नहीं पर वहां पूछने पर पता चला कि उसका ज़ायक़ा हल्की मिठास लिए होता है।
एक नारंगी गोभी की कीमत चालीस रुपये
बनलता परिसर में घुसते ही बायीं तरफ एक छोटा सा जलाशय दिखता है जिसके पीछे यहां रहने की व्यवस्था है। बाकी इलाके में छोटे बड़े कई रेस्तरां हैं जो बंगाल का स्थानीय व्यंजन परोसते दिखे। पर खान पान में वो साफ सफाई नहीं दिखी जिसकी अपेक्षा थी। ख़ैर मैं तो यहां के फूलों के बाग और जंगल की सैर करने आया था तो परिसर के उस इलाके की तरफ चल पड़ा जहां भांति भांति के फूल लहलहा रहे थे।
गजानिया के फूलों से भरी क्यारी
कुछ आम कुछ खास
ऊपर चित्र में आप कितने फूलों को पहचान पा रहे हैं। चलिए मैं आपकी मदद कर देता हूं। ऊपर सबसे बाएँ और नीचे सबसे दाहिने गज़ानिया के फूल हैं। यहां गज़ानिया की काफी किस्में दिखीं। इनमें एक किस्म ट्रेजर फ्लावर के नाम से भी जानी जाती है। फ्लेम वाइन के नारंगी फूलों को तो आप पहचान ही गए होंगे। इनकी लतरें तेजी से फैलती हैं और इस मौसम में तो मैने इन्हें पूरी छत और बाहरी दीवारों को अपने रंग में रंगते देखा है। नास्टर्टियम की भी कई प्रजातियां दिखीं।
पर जिस फूलने अपने रंग बिरंगे परिधानों में हमें साबसे ज्यादा आकर्षित किया वो था सेलोसिया प्लूमोसा। सेलोसिया का मतलब ही होता है आग की लपट। इसके लाल, मैरून नारंगी व पीले रंगों के शंकुधारी फूलों की रंगत ऐसा ही अहसास कराती है।
सेलोसिया प्लूमोसा (Silver Cockscomb)
अब जहां फूल होंगे वहां तितलियां तो मंडराएंगी ही:) चित्र में दिख रही है निंबुई तितली (Lime Butterfly )
गुलाबी और नारंगी फूलगोभी की खेती यहां का विशेष आकर्षण है।
नास्टर्टियम और स्नैपड्रैगन
गजानिया
पुष्पों से मुलाकात के बाद मैंने जोयपुर के जंगलों का रुख किया। दरअसल बनलता जोयपुर वन क्षेत्र के एक किनारे पर बसा हुआ है। विष्णुपुर की ओर जाती मुख्य सड़क के दोनों और सखुआ के घने जंगल हैं। मुख्य सड़क के दोनों और कई स्थानों पर हाथियों और हिरणों के आने-जाने के लिए पगडंडियां बनी हैं। थोड़ा समय हाथ में था तो मैं अकेले ही जंगल की ओर बढ़ चला। थोड़ी दूर पर जंगल के अंदर जाती एक कच्ची सड़क दिखी।
जोयपुर के जंगल और बनलता रिसार्ट
मुझे लगा के इस रास्ते को थोड़ा एक्सप्लोर करना चाहिए पर जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया वैसे-वैसे वनों की सघनता बढ़ती गई और फिर रह रह के पत्तों से आई सरसराहट से मेरी हिम्मत जवाब देने लगी। मुझे ये भान हो गया कि यहां छोटे ही सही पर जंगली जीव कभी भी सामने आ सकते हैं
जोयपुर जंगल की कुछ तस्वीरें
साथ में कोई था नहीं तो मैंने वापस लौटना श्रेयस्कर समझा। वैसे दो-तीन लोग इकट्ठे हों तो सखुआ के जंगलों से गुजरना आपके मन को सुकून और अनजाने इलाकों से गुजरने के रोमांच से भर देगा।
इस इलाके के जंगलों के सरताज गजराज हैं। वर्षों से इस इलाके में उनके विचरण और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का ही प्रमाण है कि पेड़ों के नीचे स्थानीय निवासियों द्वारा बनाई गई मूर्तियां रखी दिखाई दीं। उनके मस्तक पर लगे तिलक से ये स्पष्ट था कि यहां उनकी विधिवत पूजा की जाती है। गजराज हर जगह अकेले नहीं बल्कि अपनी पूरी सेना के साथ तैयार दिखे।
यहाँ जंगल का राजा शेर नहीं बल्कि हाथी है
बिष्णुपुर की पहचान रासमंच
उस रास्ते में हिरण न सही गजराज जरूर मिलते और तस्करी करने वाले भी।बहुत लम्बा रास्ता है,मैं भी कुछ दूर गया था।मिनी वृन्दावन गए कि नहीं🤔
जवाब देंहटाएंएक दो लोग साथ होते तो जरूर जाता। अच्छा लग रहा था जंगल की आवाज़ों के बीच से होकर गुजरना।
हटाएंनहीं मंदिर जाने का वक्त नहीं था। दुर्गापुर से देर से निकले थे और रात तक वापस लौटना भी था।
प्रकाश भोल
हटाएंवहां तो सड़क के किनारे ही काटी जा रही लकड़ी का डिपो दिखा। किसी ने बताया कि थोड़ा आगे जाकर पास ही एक गेस्ट हाउस भी है विभाग का। तस्करी तो फिर वन विभाग की नाक के नीचे ही हो रही होगी फिर😒।
वैसे हाथी दिन में भी गुजरते हैं उधर से? मैंने सोचा किसी गांव को जाता होगा वो रास्ता।
Manish Kumar हाथी आते हैं ,अधिकतर नजदीकी गाँव में फेंसिंग की गई है।और सरकार ने कुछ पालतू हाथी भी रखे हैं जंगली हाथिओं को भगाने के लिए।
हटाएंवाह ... आज तो इन्द्रधनुषी रँगों से सजा है ब्लॉग ... सभी चित्र अलग रँगों में ... रोचक जानकारी के साथ ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद। फूलों की दुनिया ही ऐसी है विविध रंगों से भरी हुई। बनलता की यही रंगीनियां यहां उतर आई हैं।
हटाएंkamal to ye hai ki is inderdhanushiya rang birnge phoolun ke naam bhi aap jante hai. pehchante bhi hain.
जवाब देंहटाएं🙂
हटाएंइनमें से कुछ किस्में तो गमलों और कार्यालय में लगी हैं। सेलोसिया के नाम से पहली बार वहीं परिचित हुआ।
करीब दो साल मेरी पोस्टिंग बांकुड़ा में रही। सप्ताहांत पर दुर्गापुर जाते हुए, इन जंगलों वाले रास्ते का खूब आनंद लिया है।
जवाब देंहटाएंबेलियातोड़ में कितनी ही बार चाय-समोसे या आलूचॉप के लिए रूकी हूँ। पर जामिनी राय वाली बात पता न थी।
लखी बरनवाल जहां चाय के साथ समोसा हो वहां आप नहीं रुकेंगी तो कौन रुकेगा🙂?
हटाएंजोयपुर के अलावा बेलियातोड़ के बाद दुबले पतले रास्ते के दोनों ओर आते जंगल भी बेहद मनमोहक हैं।
बहुत ही रोचक और कमाल की फोटोग्राफी !👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुमन दी।
हटाएंFantastic photographs especially the cauliflowers. They are different for sure.
जवाब देंहटाएंThanks, Yes, it was amazing to see cauliflowers in these colours.
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