संबलपुर से चलकर रास्ते रुकते रुकाते दारिंगबाड़ी हम करीब चार बजे पहुँचे। दारिंगबाड़ी के बारे में आप सबने कम ही सुना होगा। दक्षिण मध्य ओडिशा में लगभग 1000 मीटर से कुछ कम ऊंचाई पर बसा ये पर्वतीय स्थल एक ऐसे जिले कंधमाल का हिस्सा है जिसकी गिनती समीपवर्ती कालाहांडी और कोरापुट की तरह ओडिशा के एक पिछड़े जिले के रूप में होती है।
दारिंगबाड़ी इको रिट्रीट जो ओडिशा पर्यटन का सबसे मँहगा ठिकाना है।
हालांकि दारिंगबाड़ी और उसके आस पास के इलाके की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यहां के लोग इसकी आबोहवा के हिसाब से इसे ओडिशा का कश्मीर कहते हैं। ये उपमा कितनी सटीक है इस बारे में तो मैं बाद में टिप्पणी करूंगा।
इस आदिवासी बहुल इलाके की आबादी ज्यादा नहीं है। खेती बाड़ी और पशुपालन पर ही यहां के लोगों की नैया चलती है। एक ज़माने में यहां पर मौर्य शासकों का आधिपत्य था। उनके साथ ही यहां बौद्ध धर्म आया और इसी वजह से आज भी इसके पास बौध नाम का एक जिला है जिसका कंधमाल भी कभी एक हिस्सा था। अंग्रेजों के आने के पहले तक ये भूभाग स्थानीय गंगा वंश के शासकों के प्रभाव में रहा।
दारिंगबाड़ी के दस किमी पहले जंगलों के बीच से गुजरता रास्ता
19 वी शताब्दी में जब अंग्रेज यहां आए तो उन्होंने बौध को कंधमाल से अलग कर दिया। तभी इस रमणीक इलाके में प्रशासक के तौर पर दारिंग नाम का एक अंग्रेज अफसर आया जिसके नाम पर इस इलाके का नाम दारिंगबाड़ी (यानी दारिंग साहब का घर) पड़ गया।
दारिंगबाड़ी से बीस किमी पहले ही पहाड़ियों की पंक्तियां राह के दोनों ओर खुली बाहों से आपका स्वागत करती हैं। चटक धूप और गहरे नीले आसमान के आंचल में हरे भरे पेड़ों से लदी इन पहाड़ियों के बीच से गुजरना संबलपुर से दारिंगबाड़ी तक के सफ़र का एक सबसे खूबसूरत हिस्सा था। 
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पर्वतीय स्थलों पर सूर्यास्त की बेला सौम्य तो होती ही है, साथ ही उसमें चित्त को भी शांत कर देने की अद्भुत शक्ति होती है। सूरज को बादलों के साथ लुका छिपी खेलते देखना पहले तो मन को आनंदित करता है पर जैसे जैसे सूरज का अंतिम सिरा पर्वतों में अपना मुंह छुपा लेता है पूरे वातावरण में गहन निस्तब्धता सी छा जाती है।
दारिंगबाड़ी के हमारे ठिकाने के ठीक ऊपर वहां का सूर्यास्त बिंदु था। कमरे में सामान रखकर थोड़ी ही देर में हम वहां जा पहुंचे थे। बादलों के बीच सूर्यास्त दिखने की संभावना ज्यादा नहीं थी फिर भी हमारे जैसे पचास सौ लोग अपने अंदर उम्मीद की किरण जगा कर वहां डेरा जमा चुके थे।
सनसेट प्वाइंट पर ढलती शाम के नज़ारे
उनका उत्साह देख कर सूरज बाबा पिघल गए। डूबने के पहले अपने हाथों से बादलों को तितर बितर किया और अपनी मुंहदिखाई करा कर पहाड़ियों के पीछे दुबक लिए। हल्की ठंड में चाय की गर्माहट का साथ मिला तो मैंने वहीं सड़क के किनारे ही बैठ कर आसमान पर नज़रें टिका दीं।
आसमान में रंगों का असली खेल तो सूर्यास्त के बाद ही चलता है। घर हो या बाहर आकाश की इस बदलती छटा को एकटक निहारना मन को बेहद सुकून पहुंचाता रहा है। ये वो लम्हा होता है जब आप खुद उस दृश्य में एकाकार हो जाते हैं। पहाड़ों के ऊपर धुंध बढ़ने लगी थी। परत दर परत दूर होती चोटियां स्याह होती जा रही थीं। पर इस बढ़ती कालिमा से बेखबर ऊपर का मंजर आकर्षक हो चला था। डूबते सूरज की आड़ी तिरछी किरणें बादलों को दीप्त किए दे रही थीं। जब तक रोशनी की आखिरी लकीर साथ रही हम वहां टस से मस नहीं हुए।
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प्राकृतिक सुंदरता के बीच अगर रहने का सही ठिकाना मिल जाए तो वक्त और मजे में कटता है। दारिंगबाड़ी में रहने के ढेर सारे विकल्प नहीं है या तो बिल्कुल मामूली या फिर काफी महंगे। ऐसे में Utopia Resort सचमुच एक आदर्श चुनाव के रूप में हमारे सामने आया।
शहर से अलग थलग घाटी में बना हुआ ये आशियाना प्रकृति को तो आपके सामने लाता ही है और साथ ही सुबह की सैर में आपको अपने आस पास के ग्रामीण जीवन की झलक भी दिखला जाता है। हफ्ते भर की यात्रा में हम जितनी जगह ठहरे उसमें ये ठिकाना सबसे ज्यादा प्यारा था। रहने और खाने पीने दोनों ही मामलों में।
यूटोपिया रिसार्ट की सुबह...
वैसे तो ये इलाका सूर्यास्त बिंदु के पास है पर प्रभात बेला में पहाड़ों के पीछे से आती किरणें बादलों से टकरा कर जो स्वर्णिम आभा बिखेरती हैं वो दृश्य देखने लायक होता है। आस पास के खेत खलिहानों में आपको कुछ रंग बिरंगे पक्षी भी दिख जाएंगे जिनकी वज़ह से मेरी सुबह कुछ और खूबसूरत हो गई।
रात में जगमगाता रिसार्ट
रात में अगर आसमान साफ हो सप्तर्षि सहित तारों का जाल स्पष्ट दिखाई देता है। रात को रिसार्ट पर लौटने के बाद पता लगा कि दारिंगबाड़ी के लोकप्रिय स्थलों में कुछ जलप्रपात और उद्यान हैं । सबसे दूर वाली जगह मंदासारू की घाटी थी जो दारिंगबाड़ी से चालीस किमी दूर थी। इतना तो तय था कि हम एक दिन में सारी जगहें सिर्फ भागा दौड़ी में देखी जा सकती थीं जो कि हमें करनी नहीं थी इसलिए तय हुआ कि हम पहले मंदासारू जाएँगे और फिर बचे समय के हिसाब से बाकी की जगहों का चुनाव करेंगे। गूगल की गलती ने अगली सुबह मंदासारू की जगह हमें कैसे दूसरी जगह पहुँचा दिया ये कथा इस वृत्तांत के अगले चरण में..