झारखंड से ओडिशा तक का सफ़र हमें सिमडेगा, सुंदरगढ़, झारसुगुड़ा जिलों को पार कराता हुआ हीराकुद तक ले आया था। हीराकुद देखने के बाद हमने पिछली रात संबलपुर में गुजारी थी। संबलपुर में ठंड तो बिल्कुल नहीं थी पर जहाँ भी देखो रक्त पिपासु मच्छरों की फौज मौज़ूद थी। होटल के कमरे में घुसते ही उन्होंने धावा बोल दिया था। अंत में जब रिपेलेन्ट की महक से काम नहीं बना तो हार कर कंबल ओढ़ पंखे की हवा का सहारा लेना पड़ा। ये तरीका कुछ हद तक कारगर रहा और थोड़ी बहुद नींद आ ही गई।
अगली सुबह हमें ओडिशा के पर्वतीय स्थल दारिंगबाड़ी की ओर कूच करना था। संबलपुर से दारिंगबाड़ी की दूरी वैसे तो 240 किमी है पर फिर भी कुछ सीधे कुछ घुमावदार रास्ते पर चलते हुए कम से कम 6 घंटे तो लगते ही हैं। संबलपुर से दारिंगबाड़ी जाने के लिए यहां से सोनपुर जाने वाली सड़क की ओर निकलना होता है। सोनपुर का एक और नाम सुवर्णपुर भी है। नाम में बिहार वाले सोनपुर से भले साम्यता हो पर ओडिशा का ये जिला पशुओं के लिए नहीं बल्कि साड़ियों और अपने ऐतिहासिक मंदिरों के लिए जाना जाता है। संबलपुर से सोनपुर के रास्ते में लगभग 25 किमी बढ़ने के बाद दाहिने कटने पर आप हुमा के लोकप्रिय शिव मंदिर तक पहुंच सकते हैं । महानदी के तट पर स्थित ये छोटा सा मंदिर एक तरफ थोड़ा सा झुका होने की वज़ह से काफी मशहूर है।
संबलपुर सोनपुर राजमार्ग खेत खलिहानों के बीच से होता हुआ महानदी के समानांतर चलता है । हीराकुद में महानदी का जो प्रचंड रूप दिखता है वो बांध के बाद से छू मंतर हो जाता है। बाँधों से जुड़ी नदी परियोजनाओं ने सिंचाई और बिजली बनाने में भले ही महती योगदान दिया हो पर इन्होने नदियों की अल्हड़ मस्त चाल पर जगह जगह अंकुश लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सोनपुर के पुल के नीचे नदी अपने विशाल पाट के महज एक तिहाई हिस्से में ही बहती दिखती हैं। हालांकि बारिश के दिनों में हीराकुद के द्वार खुलते ही इस इलाके में महानदी इस कदर उफनती है कि आस पास के गांव भी जलमग्न हो जाते हैं।
सोनपुर में महानदी पर बने पुल को पार करने के बाद कुछ ही देर बाद उसकी सहायक नदी तेल से रूबरू होना पड़ता है। इस नदी की इजाज़त के बगैर आप दक्षिण पूर्वी ओडिशा के बौध जिले में प्रवेश नहीं ले सकते। अगर आपको जिले के इस नाम से इलाके का इतिहास बौद्ध धर्म से जुड़ा होने का खटका हुआ हो तो आप का अंदेशा बिल्कुल सही है। दरअसल इस इलाके में बौद्ध स्थापत्य के कई अवशेष मिले हैं। आठवीं शताब्दी में भांजा राजाओं के शासन काल में ये भू भाग बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था।
संबलपुर से सोनपुर तक का 2 घंटे का सफर बादलों की आंख मिचौली की वजह से थोड़ा फीका ही रहा था। पर बौध जिले के आते ही आसमान की रंगत बदल गई। हम इस बदलते मौसम का आनंद ले ही रहे थे कि अचानक हमने अपने आप को एक जंगल के बीचो बीच पाया। धूप के आते ही चौड़े पत्तों वाले पेड़ जगमगा उठे थे। हरे धानी और आसमानी रंगों की मिश्रित बहार मन को मुग्ध किए दे रही थी। प्रकृति की इस मधुर छटा का रसपान करने के लिए गाड़ी से बाहर निकलना लाजमी हो गया था।