यह शिमला के मेरी पहली यात्रा नहीं थी। अंतर सिर्फ इतना था की पहली बार मनाली से लौटते हुए शिमला में रुके थे और इस बार शिमला होते हुए किन्नौर और फिर स्पीति की यात्रा पर जा रहे थे। इस बार एक फर्क ये भी था कि शिमला के आस पास होते हुए भी हम शहर से कोसों दूर थे। शहर से दूर रहकर उसकी खूबसूरती को देखना बेहद सुकूनदेह होता है, खासकर तब जब आप पहाड़ों में हैं। ये बात मैंने मुन्नार और मसूरी जैसी जगहों में अनुभव करके देखी थी।
मुन्नार से थेक्कड़ी के रास्ते में जाती घुमावदार सड़कों के दोनों ओर मखमली कालीन की तरह बिछे चाय बागानों में अपने आप को गुम कर लेना और कानाताल में सुबह सुबह बड़े से चांद को पर्वतों के पीछे ढकेल कर बंदरपूंछ की चोटियों पर सूर्य की पहली किरणों के स्पर्श का इंतजार करना अभी तक भूला नहीं है। इसीलिए इस बार जब शिमला गए तो मुख्य शहर में न रहकर वहां से दस किमी दूर तारा देवी में रहना मुनासिब समझा।
तारा देवी में मां दुर्गा का एक प्राचीन मंदिर है। सत्रहवीं शताब्दी में सेन वंश के शासकों ने इसे बनाया था। आज भी हिमाचल के जुनगा में उनका प्राचीन महल जीर्ण शीर्ण हालत में उपस्थित है। ऐसी किंवदंतियाँ है कि दुर्गा की बेहद छोटी एक प्रतिमा को लॉकेट के रूप में बंगाल से शिमला तक लाया गया था । बाद में राजा भूपेंद्र सेन को स्वप्न में जब माँ तारा ने दर्शन दिए तो राजा ने यहाँ मंदिर बनाने के आदेश दिए। तारा देवी की पहली प्रतिमा लकड़ी की बनी जिसे बाद में अष्ट धातु से बदल दिया गया।
हिंदी फिल्मों में असित सेन, अपर्णा सेन व सुचित्रा सेन जैसे नामी कलाकारों को तो आप सभी जानते हैं पर शिमला में ऐसे नाम के शासकों का होना उनके बंगाल से जुड़ाव की ओर इशारा करता था। इतिहास के पन्ने टटोले तो पता चला कि शिमला के आस पास के इन इलाकों में क्योंथल रियासत के राजा राज करते थे जिनके पहले नरेश बंगाल से यहाँ पधारे थे इसीलिए ये वंश सेन वंश कहलाया।
बारिश में नहाते तारा देवी के घने जंगल
दिल्ली से चंडीगढ़ होते हुए जब हम दिन में 3:00 से 4:00 के बीच तारा देवी पहुंचे तो हल्की हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। होटल के सामने ही हरी-भरी शानदार घाटी थी बादलों के पतले पतले फाहे बड़ी तेज़ी से उमड़ते घुमड़ते नीचे घाटी की तलहटी को छूने आ रहे थे। पर्वतों के शिखर के आस पास पेड़ों को उन्होंने अपने आँचल में छुपा रखा था। नीचे घना जंगल था और उसके ठीक बीचों बीच तीन चार घर दिखाई दे रहे थे प्यारे से। मन किया कि उड़ के पहुँच जाऊँ उन घरों के बाहर पसरी हुई हरी दूब की चादर पे, इससे पहले कि बादल उन्हें इस बाहरी दुनिया से ओझल कर दें।
दिमाग ने कल्पना को हल्की सी चपत लगाई और दुष्यंत कुमार का ये शेर फुसफुसाते हुए कानों में डाल दिया
दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
तो बस मन मसोस कर अपने सपने को कैमरे में क़ैद भर कर लिया। तस्वीर खिंचने के चंद मिनटों में बाहर मेघों की स्याह सफेदी के आलावा कुछ भी नहीं था। ना वो घर , ना घाटी में फैले हुए हरे भरे जंगल। मेरा सपना उस सफेद धुंध में गुम सा हो गया था।
बारिश की वजह से करीब साढे 6 किलोमीटर दूर तारा देवी के मंदिर में जाना संभव तो नहीं हो पाया इसलिए सामने के जंगल का आनंद लेते हुए हम यूं ही चहल कदमी करने लगे।
होटल के बाहर गौरैया का एक बड़ा सा झुंड
बारिश की फुहारों के बीच ही पक्षियों का कलरव सुनाई दिया। थोड़ी ही दूर पर एक झाड़ी के आस पास गौरैया का विशाल झुंड सम्मेलन कर रहा था। कहाँ भारत के कई हिस्सों में ये कभी कभार नज़र आती हैं पर यहाँ प्रकृति की हरी चादर के बीच मज़े में हँसी ठिठोली कर रही थीं। बगल की डाल पर हिमालय में रहने वाली काली और पीले पार्श्व वाली बुलबुल भी उड़ती नज़र आयीं। सामने अपने दोनों हाथों खोल बुलाता जंगल, पक्षियों की चहचहाहट और मंद मंद चलती ठंडी बयार मन को प्रफुल्लित किये दे रही थी। मन में यही विचार आया कि दुनिया की हर जगह ऊपरवाले ने अपने आप में निराली और विशिष्ट बनाई थी पर कई जगह हमने उसके मूल स्वरूप से इतनी छेड़छाड़ की वो जगहें उजाड़ और रसहीन हो गयीं।
कमरे की खिड़की से बाहर की छटा
आधे घंटे बाद होटल के कमरे में चाय की चुस्कियाँ लेते हुए शीशे का पर्दा हटाया तो बारिश गायब थी। पर पहाड़ों की बारिश का क्या ठिकाना कब जाए और कब वापस आ जाए? सो हम निकल लिए ढलती शाम और उतरते अँधेरे के बीच शिमला का रूप रंग देखने के लिए। बाहर आसमान खुल चुका था। घाटी में उतरे हुए बादल अपने को जलविहीन कर मानो अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए थे। हल्के फुल्के मन से अब वो पास पड़ोस की घाटियों पर डोरे डालने में लगे थे।
घाटी में तफ़रीह करते बादल
सूरज की किरणें शिमला के रंग बिरंगे घरों को कल फिर आने का वादा दे के पर्वतों के पार धीरे धीरे कदमों से आगे बढ़ते हुए विदा ले रही थीं। बड़ा ही सुहाना दृश्य था। आख़िर मुझसे ना रहा गया तो किनारे गाड़ी खड़ी करवा के चुपचाप ढलते सूरज और मचलते बादलों को निहारता रहा। ढेर सारी तस्वीरें लीं और फिर शिमला की ओर बढ़ चला।
शिमला की पहली झलक
भींगा भींगा शिमला रात की रोशनियों में जगमगा उठा था। ये जरूर था कि आसमान इतना भी नहीं खुला था कि फलक पर तारों की ज़री का काम देख सकें जिसकी बात गुलज़ार ने अपनी इस नज़्म में की थी।
रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है
आसमान बुझता ही नहीं
और दरिया रौशन रहता है
इतना ज़री का काम नज़र आता है फ़लक़ पे तारों का
जैसे रात में प्लेन से रौशन शहर दिखाई देते हैं
आसमान बुझता ही नहीं
और दरिया रौशन रहता है
इतना ज़री का काम नज़र आता है फ़लक़ पे तारों का
जैसे रात में प्लेन से रौशन शहर दिखाई देते हैं
अँधेरे में जगमगाती शहर की रोशनी
शिमला की जान है माल रोड का रिज़। पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र तो है ही, साथ ही इसके नीचे बने हुए टैंक से सारे शिमला को जल की आपूर्ति भी होती है। प्रकाश की साज सज्जा से वहाँ की मशहूर इमारतें जगमगा रही थीं।
उत्तर भारत के दूसरे सबसे पुराना क्राइस्ट चर्च को अंग्रेजों ने शिमला को बसाने के बाद बनाया था। वहाँ का राजकीय पुस्तकालय भी इसी इमारत की बगल में है। पुस्तकालय के दूसरी ओर रिज़ का मुख्य अड्डा है जहाँ से आप आस पास के नज़ारों से रूबरू होते हैं। उस शाम तो इतनी भीड़ नहीं थी पर अमूमन ये हिस्सा पर्यटकों से ठसाठस भरा ही मिलता है। लहराते झंडे के पीछे की पहाड़ियों के बीच से जाकू के हनुमान जी मुँह उठाकर सब पर नज़र बनाए हुए थे। कहते हैं कि जब अंग्रेज पहली बार इस जगह पर आए थे तो घने जंगलों के बीच कुछ गड़ेरियों के घर के साथ यहाँ हनुमान का मंदिर भी मौज़ूद था।
उत्तर भारत का दूसरा सबसे पुराना गिरिजाघर
जिस व्यू प्वाइंट से पहचान है शिमला के मॉल रोड की
ब्रिटिश स्थापत्य शैली से प्रभावित शिमला का पुलिस स्टेशन
शिमला नगर निगम और अग्नि शमन कार्यालय की खूबसूरत इमारत
चौराहे पर अपनी विशिष्ट पोशाक के साथ खड़ा मुस्तैद जवान
कौन सा पान पसंद करेंगे आप स्ट्राबेरी या चॉकलेटी?
रात में योजना बनी कि अगली सुबह तारा देवी रेलवे स्टेशन के आस पास के जंगलों की थाह लेंगे। पर सुबह जैसी ही खिड़की खोली तो बाहर बारिश कि तिड़ तिड़ के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। हरा भरा वन धुंध की चादर में विलुप्त हो गया था। शिमला में जन्में प्रसिद्ध कथाकार निर्मल वर्मा की लिखी वो पंक्ति याद आ गयी जो उन्होंने यहाँ की बरखा के बारे में लिखी थी ।
बारिश की झिर-झिर कमरे के भीतर सुनाई देती है—पर दरवाज़ा खोलकर बाहर देखो तो धुंध के पर्दे के पीछे कुछ भी दिखाई नहीं देता। जहाँ पहले चीड़ों, देवदारों की भरी-पूरी कतार दिखाई देती थी, अब वहाँ उनके सिर्फ़ धुँधले-से प्रेत दिखाई देते हैं, कुहरे के पीछे खड़े कंकाल।
बारिश की झड़ियों पर लगाम लगी तो मैं अपने साथियों संग तारा देवी रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ चला। साफ़ सुथरे स्टेशन पर कोई नहीं था। शायद कालका से शिमला आने वाली टॉय ट्रेन के आने में अभी वक्त था ।
तारा देवी रेलवे स्टेशन
स्टेशन से होते हुए हम आगे बढ़ चले। रास्ते में नीला सिर कस्तूरी, पहाड़ी फाख्ता, काला पिद्दा, काली बुलबुल और धूसर खंजन ने दर्शन दिए। कोई सुनहरा दिन होता तो शायद कुछ और पहाड़ी परिंदों से मुलाकात होती।
प्यारे पक्षियों की सोहबत में
वापस जा कर नरकंडा और रामपुर बुशहर होते हुए किन्नौर तक की लंबी यात्रा के लिये कूच करना था। बारिश से भरे दिन में हम कैसे पहुँचे किन्नौर वो अगले लेख में...
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यह तो सही है हम भी इस बार एक छोटे से गांव में रुके अद्भुत अकल्पनीय था
जवाब देंहटाएंजी भीड़ भाड से दूर प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता को महसूस करना निश्चय ही मन को ज्यादा सुकून पहुँचाता है।
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद वृत्तांत आया। पढ़कर अच्छा लगा। हमारा भी जल्द ही शिमला जाना होगा। इन जगहों पर जाने की कोशिश रहेगी।
जवाब देंहटाएंकोरोना के कारण इधर उस तरह से घूमना तो हो नहीं पाया। चारों ओर माहौल भी ऐसा था कि पुरानी यात्राओं के बारे में लिखने की इच्छा नहीं हो रही थी। अब सोचा है कि स्पीति और कच्छ के अपने संस्मरण को यहाँ सिलसिलेवार ढंग से पेश करूँ।
हटाएंआपकी आगामी शिमला यात्रा के लिए अग्रिम शुभकामना। पीक सीज़न से दूर रहें तो बेहतर होगा।
आपकी नज़र से हर जगह सुंदर दिखती है।
जवाब देंहटाएंआगे की यात्रा का इंतज़ार ❤️
शुक्रिया, अनुलता वो शाम सच में बेहद खूबसूरत थी 😊
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद :)
हटाएंबहुत बढ़िया लिखे हैं। 2 बार शिमला गया, दोनों ही बार माल रोड के पास ही रहा। सही लिखा आपने कि शहर की आपाधापी से दूर रहकर ही हिल स्टेशन की खूबसूरती को महसूस किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 😊 ! आज से एक दो दशक पहले घूमने का चलन इतना नहीं था। मुख्य जगहों पर चहल पहल रहती थी पर आज वो मेले जैसी दिखने लगी है। अब जैसे एयरपोर्ट रेलवे स्टेशन की तरह नज़र आते हैं वही हाल लोकप्रिय पर्वतीय स्थलों का भी हो गया है।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-06-2022) को चर्चा मंच "बहुत जरूरी योग" (चर्चा अंक-4468) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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शुक्रिया आपका।
हटाएंबहुत सुन्दर ♥️
जवाब देंहटाएंधन्यवाद🙂
हटाएंबहुत मनोरम जगह का मनोरम विवरण
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सराहने का।🙂🙏
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