नागपुर यूँ तो अपने चारों ओर तरह तरह के अभ्यारण्यों को समेटे है बस शहर के बीचो बीच भी एक इलाका है जो जानवरों के लिए तो नहीं पर प्रकृति प्रेमियों और स्वास्थ के प्रति सजग रहने वालों में खासा लोकप्रिय है। इस इलाके का नाम है अंबाझरी जैवविविधता उद्यान जो करीब साढ़े सात सौ एकड़ में फैला हुआ है और अपने अंदर दो सौ से भी अधिक प्रजातियों के पक्षियों को समेटे है।
पिछले नवंबर में जब मैं पेंच राष्ट्रीय उद्यान में गया था तो उससे पहले अपनी दो सुबहें मैंने यहीं व्यतीत की थीं और सच पूछिए बड़ा आनंद आया था मुझे अंबाझरी झील के किनारे बसे इस इलाके में अकेले विचरण करते हुए। ये पूरा क्षेत्र घास के मैदानों और झाड़ियों से भरा है। यही वज़ह है कि यहाँ आपको वो पक्षी दिखते हैं जिन्हें पानी के पास या झाड़ियों में रहना पसंद है।
घास के मैदान जो आश्रयस्थल है ढेर सारे पक्षियों के |
घर से चलने के पहले ही अंबाझरी में काले और नारंगी रंग के थिरथिरे से मेरी मुलाकात हो गयी। बताइए क्या रंगों का मिश्रण दिया इन्हें भगवान ने! शरीर का ऊपरी हिस्सा काला रखा तो निचले सिरे को खूबसूरत नारंगी बना दिया। अब इन दोनों रंगों का मेल ऐसा कि एक बार देखते ही नज़रें ठिठक जाएँ। इन जनाब से मेरी पहली मुलाकात दो साल पहले सितंबर के महीने में तब हुई थी जब में स्पीति के गांव लंग्ज़ा की ओर बढ़ रहा था और ये उस पथरीले रेगिस्तान में ज़मीन पर अपने भोजन को ढूँढ रहे थे। जाड़ों में ये हिमालय की ऊँचाई त्याग कर मैदानी इलाकों की राह तय करते हैं।
अंबाझरी जैवविविधता उद्यान, नागपुर |
साढ़े सात बजे तक मैं पार्क में दाखिल हो चुका था। यूँ तो वहाँ साइकिल की व्यवस्था है पर पक्षियों को ढूँढने और साथ ही साथ कैमरा सँभालने के लिए पैदल चलने से बेहतर कुछ भी नहीं। शुरुआत में तो मुझे पक्षियों की आवाज़ों के आलावा वहाँ कोई शख़्स नज़र नहीं आया। पर इतने एकांत में प्रकृति को यूँ निहारना अपने आप में एक अलग तरह का अनुभव था। जानते हैं सबसे पहले मुझे वहाँ कौन सा पक्षी दिखाई दिया? एक ऐसा पक्षी जिसकी साहित्य में तो महिमा अपरमपार है पर जिसके दर्शन मुझे इससे पहले कभी सुलभ नहीं हो पाए थे।
वो पक्षी था चातक ! वही चातक जिसके बारे में कहा जाता है कि चाहे वो कितना भी प्यासा हो मगर नदी या झील के पानी के बजाय वर्षा की गिरती बूँदों से ही अपना गला तर करता है। कालिदास के प्रसिद्ध महाकाव्य में भी इसका जिक्र है। बहरहाल ये तो बस कहानियों की बाते हैं जो बेचारे चातक पर यूँ ही लाद दी गयी हैं। काले और सफेद रंग के पंखों वाले इस पक्षी का सबसे आकर्षित करने वाला हिस्सा इसकी बड़ी बड़ी आँखें और कलगी है। बहरहाल मैं इसे देख ही रहा था कि एक विचित्र गूँज से मेरा ध्यान दूसरी ओर पलटा।
चातक (Pied Cuckoo, Jacobin Cuckoo) |
रौशनी अभी धीरे धीरे अपने पैर पसार रही थी। इसलिए एक सूखे पेड़ के ऊपर उस आवाज़ करती काली सी आकृति को पहचानना मुश्किल था। कैमरे से ज़ूम कर इतना समझ जरूर आया कि हो न हो ये तीतर के दो आगे तीतर , तीतर के दो पीछे तीतर ,बोलो कितने तीतर वाले प्रश्न का ही तीतर है। जनाब की हुंकार मीठी तो कहीं से नहीं थी पर ये जरूर था कि उनकी हर हूक का जवाब करीब आधे किमी दूर बैठे पक्षी से लगातार मिल रहा था। नतीजा ये था कि उनकी वाणी पूरे उत्साह से वातावरण को गुंजायमान किए थी। बाद में मुझे पता चला कि प्रजनन काल में सुबह सुबह ही अपनी प्रेयसी की तलाश में ही भोर होते ही ये अपने रियाज़ पर लग जाते हैं और उसके लिए कोई ऊँचा स्थान ढूँढ लेते हैं। कम रौशनी और दूरी की वज़ह से उनकी तस्वीर बहुत साफ नहीं आई। इसकी आवाज़ का वीडियो बनाना उस वक़्त सूझा नहीं पर आप सुनना चाहें तो यहाँ सुन सकते हैं।
तीतरों की कई प्रजातियाँ होती है और इस तीतर को चित्रित तीतर के नाम से जाना जाता है। चित्रित तीतर पश्चिमी और मध्य भारत के इलाकों में ज्यादा देखा जाता है।
चित्रित तीतर (Painted Francolin) |
उजाला हो रहा था और अब कई युवा भाड़े की साइकिलों के साथ नज़र आने लगते थे। कहीं रास्ते में मैं किसी पक्षी की तस्वीर खींच रहा होता तो सब बिना आवाज़ किए पहले ही रुक जाते और मेरे से इशारा पाकर ही आगे बढ़ते। बच्चों को ऐसा करते देख अच्छा लगा। कई माता पिता अपने बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने भी लाए थे पर बिना किसी दूरबीन के। इसीलिए उनहें वहाँ लगे पक्षियों के साइनबोर्ड पर दी गयी जानकारी से ही संतोष करना पड़ रहा था।
राबिन, महोख, फुटकी, अबाबील की झलक पाते हुए नज़रें इस लंबी पूँछ वाले लहटोरे पर जा अटकीं। इससे तो कई बार पहले भी मुलाकात हुई थी। आँखों के आगे काली पट्टी बाँधे ये पक्षी दिखने में भले छोटा सा दिखे पर इसकी गिनती बेरहम शिकारियों में होती है।
लंबी दुम वाला लहटोरा या लटोरा, Long Tailed Shrike |
फाख़्ता तो आपने कई देखे होंगे पर चितरोखा और छोटे फाख्ता की तुलना में गेरुई फाख्ता अपेक्षाकृत कम दिखाई देता है। अपने गले के पास के घेरे और नर के स्याह रंग के सिर की वजह से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
फाख्ता के बाद जो पक्षी मुझे दिखाई पड़ा वो थी लाल मुनिया। कहना ना होगा कि इसकी खूबसूरती के चर्चे और झाड़ियों वाले इलाकों में इसके नज़र आने की अधिक प्रायिकता ते मेरे मन में विश्वास जगा दिया था कि सुबह की मेरी इस सैर में इसके दर्शन जरूर होंगे।
गेरुई फाख्ता (Red Collared Dove) |
लाल रंग तो कुदरत ने कई पक्षियों पर उड़ेला है पर लाल शरीर और भूरे काले पंखों के साथ इन छोटे छोटे से सफेद बूटों को देख कर इस रूप पर कौन ना वारी जाए? सच पूछिए इसकी लाल सफेद काया का दर्शन ऐसा है मानों पक्षियों के सांता क्लाज के दर्शन हो गए :)।
अंग्रेज बड़े अच्छे इतिहासकार थे। किसी भी चीज़ को देखना और उसके बारे में लिखकर दस्तावेज़ की शक़्ल देना उन्हें बखूबी आता था। सालिम अली का युग तो बाद में आया पर उसके पहले बहुतेरे भारतीय पक्षियों का नामकरण अंग्रेजों द्वारा कर दिया गया। इस क्रम में कुछ नाम उन्होंने ऐसे बिगाड़े कि आप समझ ही नहीं पाएँगे कि इस पक्षी का नाम ऐसा क्यूँ दिया गया? अब लाल मुनिया को ही लीजिए। ये पक्षी अंग्रेजी में रेड अवदावत (Red Avadavat ) के नाम से मशहूर है। अब अवदावत तो अंग्रेजी मूल का शब्द है ही नहीं तो क्या आपने कभी सोचा कि आख़िर बेचारी इस छोटी और प्यारी सी मुनिया का इतना क्लिष्ट नाम क्यूँ रख दिया गया?
अंग्रेज बड़े अच्छे इतिहासकार थे। किसी भी चीज़ को देखना और उसके बारे में लिखकर दस्तावेज़ की शक़्ल देना उन्हें बखूबी आता था। सालिम अली का युग तो बाद में आया पर उसके पहले बहुतेरे भारतीय पक्षियों का नामकरण अंग्रेजों द्वारा कर दिया गया। इस क्रम में कुछ नाम उन्होंने ऐसे बिगाड़े कि आप समझ ही नहीं पाएँगे कि इस पक्षी का नाम ऐसा क्यूँ दिया गया? अब लाल मुनिया को ही लीजिए। ये पक्षी अंग्रेजी में रेड अवदावत (Red Avadavat ) के नाम से मशहूर है। अब अवदावत तो अंग्रेजी मूल का शब्द है ही नहीं तो क्या आपने कभी सोचा कि आख़िर बेचारी इस छोटी और प्यारी सी मुनिया का इतना क्लिष्ट नाम क्यूँ रख दिया गया?
इतिहास के पन्नों को टटोलें तो पाएँगे कि ये नाम दरअसल भारत के गुजरात राज्य के शहर अहमदाबाद का अपभ्रंश है। सत्रहवीं शताब्दी में अंग्रेजों ने अपने दस्तावेज़ों में अहमदाबाद में पिंजरों में बंद इन सुंदर पक्षियों का जिक्र किया है। वहीं से इन्हें यूरोप भी ले जाया गया। कहीं अमिदावाद, कहीं अमदावत होते होते इस पक्षी का नाम अंग्रेजों ने रेड अवदावत कर दिया।
खैर छोड़िए अवदावत को हमारे लिए तो ये लाल मुनिया ही रहेगी। जब मेरी इससे मुलाकात हुई तो ये झाड़ी के एक नुकीले सिरे पर झूला झूल रहा था। हमारी नज़रे मिलीं और अपनी आजादी में खलल देख कर कुछ देर तो इसने नाक भौं सिकोड़ी पर फिर मुझ पर ध्यान ना देते हुए ये अपने गायन में तल्लीन हो गया। तस्वीर का ये लम्हा तभी का है।
लाल मुनिया नर (Red Munia) |
इनके बीच एक और दिलचस्प अंतर ये है कि जहाँ प्रजनन काल में नर की आँखों के नीचे सफेद धारी आ जाती है वही मादा में आँखों के चारों ओर हमेशा काला घेरा रहता है। मादा को रिझाने के लिए नर छोटा नृत्य भी करता है। मैंने नर को गाते तो देखा पर नाचते देखना अभी बाकी है।
लाल मुनिया मादा (Red Munia) |
लार्क समुदाय के पक्षियों को पहचानना टेढ़ी खीर है। दूर से देखने पर पिपिट और इनमें भेद करना मुश्किल हो जाता है पर जहाँ तक इस चंडोल का प्रश्न है इसका पेट के पास और नीचे का हल्का नारंगी कत्थई सा हिस्सा इसे बाकी सहोदरों से अलग कर देता है।
ये पक्षी ज़मीन की सतह पर ही अक्सर अपना दाना पानी खोजते हैं। पिपिट की तुलना में इनकी चोंच अपेक्षाकृत मोटी और पैर छोटे होते हैं। लार्क प्रजाति के पक्षी गले से सुरीले होते हैं और सुना है कि मादाओं को रिझाते वक़्त उड़ते हुए नृत्य भी अच्छा कर लेते हैं।
कत्थई दुम अगीया या चंडोल (Rufous Tailed Lark) |
जैसा इनके अंग्रेजी नाम से स्पष्ट है पिद्दे भी झाड़ियों के आसपास ही अपना बसेरा बनाते हैं। चंडोल से कुछ ही दूरी पर एक ठूँठ पर ये अपना आसन जमाए मिले और फिर कीड़ों की तलाश में मेरे आगे आगे जमीन पर भी फुदकने लगे। इनके काले शरीर में पहचान के लिए भगवान ने सफेदी का एक कतरा जरूर छोड़ दिया। दक्षिण भारत में नीलगिरी के पास रहने वाले आदिवासी इस पक्षी को बेहद शुभ मानते हैं। उनकी दंत कथाओं में इस बात का भी जिक्र है कि ये सफेद कतरा उन्हें कैसे मिला? अब वो कहानी फिर कभी नहीं तो ये आलेख कुछ ज्यादा ही लंबा हो जाएगा।
काला पिद्दा नर (Pied Bush Chat) |
थोड़ा और बढ़ने पर काले पिद्दे की भूरे रंग की मादा से भी मिल लिए। अचानक देखा कि कैमरे से पक्षियों की इस खोज बीन का हमारे कोतवाल साहब मुआयना कर रहे हैं। अब उन्हें सलाम बजाए हुए भला कैसे आगे बढ़ा जा सकता था तो उनका हाल चाल लेने चल पड़े।
काला पिद्दा मादा (Pied Bush Chat) |
कोतवाल को कौन नहीं जानता ? घर के आस पास देखे जाने वाले इस पक्षी के बहादुरी के नमूने आपने देखे ही होंगे। जैसे ही किसी शिकारी पक्षी को आस पास मँडराता देखता है उसको खदेड़ने के लिए पूरा ज़ोर लगा देता है। अपने से दुगनी तिगुनी चील को भी मैंने इससे बिना पंगा लिए अपनी राह बदलते देखा है। कई पक्षी इसकी इसी बहादुरी के कारण उसी पेड़ पर अपना आशियाना बनाते हैं जहाँ इसका घर होता है। अपनी आक्रामकता ये छोटे पक्षियों के लिए भी दिखाता रहता है।
अपनी दोनों ओर घुमाव लेती पूँछ की वज़ह से ये भुजंग नाम से भी जाना जाता है। स्त्रियों में काले तिल की खूबसूरती के चर्चे साहित्य मे आम हैं तो वहीं बच्चों को किसी अशुभ से बचाने के लिए काले टीके की बात तो आप सब जानते ही हैं। अब भगवान की लीला देखिए काले भुजंग या कोतवाल पर उन्होंने चोंच के पीछे एक सफेद टीका या बिंदी दे रखी है जो इनकी पहचान को पुख्ता बना देता है।।
कोतवाल (Black Drongo) |
सादी फुटकी (Plain Prinia) |
काला थिरथिरा मादा (Black Redstart) |
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नई जानकारी.. नए पक्षी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंBade lambe antraal k baad aya nagpur wala vistrit lekh. ..Dhanyvad
जवाब देंहटाएंज्योत्सना जी आप तो देख ही रही होंगी, पिछले दो महीने से अपनी संगीतमाला से जुड़ी सालाना तैयारी में लगातार लगा हुआ था :)। इसके दूसरे भाग में मुलाकात होगी वहाँ मिले जलीय पक्षियों से।
हटाएंरोचक वर्णन मनीष जी ।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर यात्रा
सराहने के लिए शुक्रिया !
हटाएंVery interesting and some great photographs. I have also started learning more about wildlife these days and the information you provided was useful. Did not know that the Black Drongo was called Kotwal in Hindi :D
जवाब देंहटाएंYeah I could see that from your Instagram posts. You may come out from a national park without seeing a lion or a tiger but Birds welcome you everywhere and their world is equally fascinating if not more. Because of its policing nature Drongo is also called as Kotwal.
हटाएंWow....really awesome place😊
जवाब देंहटाएंपक्षियों की दुनिया बड़ी खूबसूरत है पूजा। :)
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