वैटिकन सिटी का शुमार विश्व के सबसे छोटे देश में होता है। अगर आप पूछें कि इस छोटे का मतलब कितना छोटा तो समझ लीजिए कि उतना ही जितना की छः सौ मीटर लम्बा और सात सौ मीटर चौड़ा कोई इलाका हो। मतलब ये कि आप मजे से तफरीह करते हुए घंटे भर में इस देश की चोहद्दी नाप लेंगे। इस देश की जनसंख्या भी कितनी? सिर्फ एक हजार ! इतने को तो हमारी एक गली की आबादी सँभाल ले।
संत पीटर बाज़िलिका |
मजे की बात है कि इतने छोटे से इलाके में एक रेलवे स्टेशन भी है जिसके स्वामित्व में सिर्फ तीन सौ मीटर की रेलवे है। कभी वैटिकन जाइए तो यहाँ के बैंक वाले ATM से पैसे निकालने की जुर्रत ना कीजिएगा। इस बैंक का ATM दुनिया का एकमात्र ऐसा ATM है जहाँ पैसे निकालने के लिए निर्देश लैटिन भाषा में दिए गए हैं। इसी छोटे से देश को देखने के लिए हर दिन संसार के कोने कोने से हजारों लोग आते हैं। आए भी क्यूँ ना आखिर यही तो रोमन कैथलिक चर्च का मुख्य केंद्र है।
रोम की संगिनी टाइबर नदी |
रोम के संग संग बहने वाली टाइबर नदी को पार करके जब मैं वैटिकन सिटी जाने वाली सड़क पर पहुँचा तो सबसे पहले इस झंडे ने मेरा स्वागत किया। बड़ा कमाल का झंडा है वैटिकन का। शक्ल से वर्गाकार आधा पीला और आधा सफेद। पीला वाला हिस्सा तो बिल्कुल सादा पर सफेद हिस्से में दो चाभियाँ दिखती हैं। एक सुनहरी और दूसरी चाँदी के रंग की एक दूसरे के ऊपर क्रास का आकार बनाती हुईं। इन दोनों चाभियों को जोड़ती है इक लाल डोरी।
चाभियों को देखकर मन ही मन सोचा जरूर ये स्वर्ग तक पहुँचाने वाली चाभियाँ होंगी और बाद में पता चला कि मेरा तुक्का बिल्कुल सही निकला। ऐसी मान्यता है कि ये स्वर्गारोहणी चाभियाँ ईसा मसीह ने खुद संत पीटर को दी थीं। सुनहरी चाभी आध्यात्मिक शक्ति जबकि चाँदी के रंग की चाभी संसारिक शक्ति का प्रतीक है।
विश्व के सबसे छोटे देश का ध्वज |
बहरहाल अब हमें पत्थरों से बनी एक पतली सी सड़क संत पीटर बाज़िलिका ( बाज़िलिका दरअसल किसी बड़े महत्त्वपूर्ण गिरिजाघर को कहते हैं । ) की ओर ले जा रही थी। यूरोप की प्राचीन जगहों की पहली पहचान वहाँ की कॉबलस्टोन सड़कें है जिनका इस्तेमाल मध्यकालीन यूरोप में होना शुरु हुआ था।
संत पीटर स्कवायर की ओर जाती सड़क |
बाज़िलिका तक पहुँचने के ठीक पहले एक विशाल सी खुली जगह मिलती है जिसे रोमन स्थापत्य की पहचान माने जाने वाले गोलाकार स्तंभों के गलियारे से दोनों ओर से घेरा गया है। इस के ठीक मध्य में रोमन सम्राट कालिगुला द्वारा मिश्र से लाया गया पिरामिडनुमा स्तंभ है जिसे अंग्रेजी में ओबेलिस्क के नाम से जाना जाता है। रोमन सम्राट कालिगुला से मेरा परिचय तो सुरेंद्र वर्मा के प्रसिद्ध उपन्यास "मुझे चाँद चाहिए" की प्रस्तावना में हुआ था पर जूलियस सीज़र के इस परपोते को रोमन इतिहास एक क्रूर आतातायी की तरह जानता है। अब सोचता हूँ कि असंभव की आशा जगाने के लिए वर्मा जी को यही सनकी प्रतीक मिले।
याद कीजिए ऐसे ही एक स्तम्भ के बारे में विस्तार से पहली बार मैंने आपको अपनी पेरिस यात्रा में बताया था।
याद कीजिए ऐसे ही एक स्तम्भ के बारे में विस्तार से पहली बार मैंने आपको अपनी पेरिस यात्रा में बताया था।
संत पीटर बाज़िलिका के सामने खड़ा मिश्र से लाया गया स्तंभ |
संत पीटर स्कवायर |
ओबेलिस्क के दोनों ओर छोटे छोटे फव्वारे हैं। पोप जब बाज़िलिका की खिड़की से अपने दर्शन देते हैं तो ये पूरा स्कवायर लोगों से खचाखच भर जाता है। धार्मिक उत्सवों में लोग के इकठ्ठा होने के लिए ये जगह इतनी खुली बनाई गयी।
गोलंबर के चारों ओर फैला गोलाकार गलियारा |
संत पीटर स्कवायर में आ तो गए पर आधा किमी लंबी पंक्ति देख लगा कि अब तो हो गए पीटर साहब के दर्शन। पूरा वृताकार गलियारा कैथलिक चर्च के इस पवित्र स्थान को देखने के लिए पंक्तिबद्ध खड़ा था। थोड़ी ही देर में पंक्ति का अनुशासन देख के समझ आ गया कि यहाँ देर है पर अँधेर नहीं। पंक्ति लगातार आगे चल रही थी और दस पन्द्रह मिनट में तेज़ी से खिसकते हम इमारत की दाँयी ओर से चर्च में दाखिल हो गए। मुख्य परिसर में प्रविष्टि के ठीक पहले दाहिनी ओर संत पाल की सफेद मूर्ति लगी है जबकि चर्च की बाँयी ओर संत पीटर विराजमान हैं।
Add caption |
संत पीटर का ये विशाल गिरिजाघर अंदर घुसते ही अपनी प्रसिद्धि का कारण बता देता है। गिरिजे की आंतरिक दीवारों और छत को इतनी खूबसूरती से सजाया गया है कि आँखें फटी की फटी रह जाती है। मुख्य गुंबद की छत तीन हिस्सों में बँटी है। एल्टर की ओर जाने से ठीक पहले दोनों ओर दो खूबसूरत गलियारे कटते हैं जिनकी छतों के अलग अलग रूप मन को मोहित करते हैं। दीवारों के किनारे किनारे भिन्न भंगिमाओं में कई संतों की प्रतिमाएं लगी हैं। माइकल एंजेलो के कुछ खूबसूरत शिल्प भी हैं और तमाम पेटिंग्स भी।
गिरिजाघर का शानदार गुम्बद |
ऐसा नहीं कि वैटिकन ईसाई धर्म आने के पहले नहीं था। टाइबर नदी के पश्चिमी किनारे का ये इलाका पहले दलदली हुआ करता था। आम लोगों को यहाँ बसने की मनाही थी क्यूँकि इस हिस्से को पवित्र समझा जाता था। कालिगुला ने दलदली ज़मीन से पानी निकालकर इस क्षेत्र में उद्यान बना दिया। बाहरी सेनाओं ने यदा कदा वैटिकन के इलाके में अपनी अस्थायी छावनी बनाई पर खराब पानी ने उनका यहाँ के जीना दूभर कर दिया।
इटली की प्राचीन सभ्यता में उपवन को वैटिकम कहा जाता था जो कि कालांतर में वैटिकन हो गया। कितनी अचरज की बात है कि संस्कृत में भी बाग बगीचे के लिए इससे मिलते जुलते शब्द वाटिका का इस्तेमाल होता रहा है।
इटली की प्राचीन सभ्यता में उपवन को वैटिकम कहा जाता था जो कि कालांतर में वैटिकन हो गया। कितनी अचरज की बात है कि संस्कृत में भी बाग बगीचे के लिए इससे मिलते जुलते शब्द वाटिका का इस्तेमाल होता रहा है।
यूरोपीय चित्रकला का एक नमूना |
छत पर की गई बेहतरीन नक्काशी |
इस शृंखला की पिछली कड़ी में मैंने आपको बताया था कि रोम की भीषण आग के लगने के बाद किस तरह नीरो ने शक की सुई अपनी ओर से हटाने के लिए ये अपराध ईसाई अनुयायिओं पर मढ़ दिया था। इस घटना के फलस्वरूप ईसाई मत मानने वाले तमाम लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया । ईसा मसीह के बारह प्रमुख अनुयायिओं में सर्वोच्च स्थान रखने वाले संत पीटर उस समय रोम के पहले बिशप थे। ऐसा माना जाता है कि उन्हें उलटा लटकाकर यहाँ सूली पर चढ़ा दिया गया था।
जब रोम के सम्राट कांस्टेन्टाइन में ईसाई धर्म स्वीकारा तो उन्होंने संत पीटर के सम्मान में उसी जगह गिरिजाघर की नींव रखी जहाँ उनकी हत्या कर उन्हें दफनाया गया था।
जब रोम के सम्राट कांस्टेन्टाइन में ईसाई धर्म स्वीकारा तो उन्होंने संत पीटर के सम्मान में उसी जगह गिरिजाघर की नींव रखी जहाँ उनकी हत्या कर उन्हें दफनाया गया था।
मुख्य पूजा स्थल |
देखिए कैसे गुंबद से सूरज की रोशनी अंदर छन कर आने की व्यवस्था की गयी है |
संत पीटर के उत्तराधिकारियों को ही बाद में पोप का दर्जा मिला। इटली के शासकों से संधि के फलस्वरूप एक देश के रूप में वैटिकन आज से नब्बे साल पहले अस्तित्व में आया। आज वैटिकन की अपनी एक सेना है। भले ही उसमें दो सौ से कम जवान हों।
पोप के निवास की सुरक्षा में मुस्तैद जवान |
जिस तरह फ्रांस के सम्राट की सुरक्षा का जिम्मा एक स्विस बटालियन पर था उसी तरह पोप की सुरक्षा का दारोमदार स्विट्ज़रलैंड के सैनिक सँभालते हैं। इनकी रंगीन वेशभूषा पर मत जाइए। इन्हें रणक्षेत्र के सारे कौशल आते हैं।
संत पीटर |
इटली यात्रा में अब तक
- रंग बिरंगी कारों के बीच चलिए आज इटली के इस फेरारी संग्रहालय में
- क्यों झुकी पीसा की मीनार?
- डॉग पार्किंग से रहस्यमयी टॉयलेट तक : क्या है रोम का अनैतिहासिक चेहरा?
- कैसा था प्राचीन रोम ? Glimpses of Ancient Rome !
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें।
रोचक जानकारी। अगली कड़ी का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंआलेख आपको अच्छा लगा जान कर प्रसन्नता हुई।
हटाएंजितना छोटा देश, उतनी ही खूबसूरत तस्वीरें!! बेहतरीन वर्णन..वाटिका से वैटिकम, फिर वैटिकम से वैटिकन, जानकारी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंइटली की प्राचीन सभ्यता में प्रयुक्त भाषा और हमारी संस्कृत का साम्य मुझे भी चकित कर गया। आलेख व चित्र पसंद करने का शुक्रिया।
हटाएंI don't feel like going to Italy any longer. Reading your informative and interesting series is quite fulfilling.
जवाब देंहटाएंThanks for liking it. The fact remains that no description can completely cover what you see from your own eyes. :)
हटाएंएक बार प्राग चेक रिपालिक भी घूम आओ इस से भी अच्छा मिलेगा ,कम से कम दो दिन
जवाब देंहटाएंजी कार्यक्रम बन भी गया था पर अंतिम मौके पर कुछ अपरिहार्य कारणों से बदलना पड़ा। प्राग और पूर्वी यूरोप के कई शहर अभी भी मेरी इच्छित सूची में हैं।
हटाएंसंस्कृत के कई शब्दो का साम्य अंग्रेजी मे भी मिलता है, इतना ही नही व्याकरण की रचना में भी साम्य है।
हाँ, वो तो है ही। संस्कृत को इसीलिए विश्व में अलग अलग भाषा बोलने वाले इतना मान देते हैं।
हटाएंNice
जवाब देंहटाएं