रविवार, 19 मई 2019

क्यों झुकी पीसा की मीनार Leaning Tower of Pisa, Italy

पिछले महीने आपको अपनी इटली यात्रा की पहली कड़ी में फेरारी के संग्रहालय  की सैर कराई थी। उस सुबह संग्रहालय देखने से ज्यादा रोमांच दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक पीसा की मीनार देखने का था। मारानेल्लो जहाँ फेरारी का संग्रहालय है से पीसा की दूरी करीब दो सौ किमी की है।


यूँ समझ लीजिए कि हमें इटली के उत्तर मध्य इलाके से उसके पश्चिमी तटीय इलाके की ओर रुख करना था। इटली का उत्तरी चौरस भाग जहाँ फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी और आस्ट्रिया जैसे देशों से घिरा हुआ है वहीं दक्षिणी भाग के लंबे पतले सिरे के दोनों ओर समुद्र हैं। दक्षिण पूर्वी इटली की सीमाएँ एड्रियाटिक सागर तय करता है जबकि दक्षिण पश्चिम में टीरेनियन। नेपल्स की तरह पीसा और रोम टीरेनियन से बिल्कुल सटे ना होकर थोड़े ही दूर हैं जबकि वेनिस  इसके पूर्वी तट की शान हैं।

हरी भरी पहाड़ी के बीच छिपा इटली का एक गाँव

मारानेल्लो के इलाके से निकलते ही हमारी बस हमें हरे भरे पहाड़ों के बीच ले आई। ये मंज़र ज्यादा देर हमारे साथ नहीं रहा और आधे घंटे के अंदर हम इटली के मध्यवर्ती मैदानी इलाके में थे। कुछ देर सड़क के दोनों ओर छोटे छोटे घरों के चारों ओर एक ही फसल की बुआई किए गए बड़े बड़े फार्म दिखाई देने लगे। भारत की तरह यूरोप में छोटे खेत आप शायद ही देखेंगे। अगर इटली की बात करूँ  तो यहाँ हर किसान के पास औसतन आठ हेक्टेयर की ज़मीन है। 

ग्रामीण क्षेत्रों के खेत खलिहान
इटली में घूमते हुए मुझे एक बात खास लगी वो ये कि यहाँ के ग्रामीण इलाकों के अधिकांश घरों का रंग रोगन क्रीम या पीले से मिलते जुलते रंगों से ही किया जाता है। छतें अवश्य खपरैल के गेरुए भूरे रंग की दिखाई दीं।
साँप की तरह लहराते पौधे और गमलों में पॉम की एक नस्ल
गाड़ी चलाने वाला भटक ना जाए इसके लिए सामान्य साइनबोर्ड के आलावा पूरी सड़क पर ही बड़े बड़े अक्षरों में मुख्य शहरों की ओर जाती सड़कों को प्रदर्शित करने का यहाँ चलन हैं यानी दूसरे शब्दों में कहें तो यहाँ की सड़कें अपने आप में ही पथप्रदर्शक का काम करती हैं।
सीधी सड़क रोम को और दाँयी ओर रास्ता जा रहा है पीसा को
करीब ढाई घंटे के सफ़र के बाद हमारा समूह पीसा के छोटे से शहर में दाखिल हो चुका था। पीसा में जहाँ झुकी मीनार है वो यहाँ के कैथेड्रल यानी बड़े गिरिजाघर परिसर का हिस्सा है। इस परिसर मैं फैली इमारतों को यहाँ का चमत्कारिक मैदान यानी Field of Miracles भी कहा जाता है। मुख्य सड़क से एक पतली सी राह परिसर के मुख्य दरवाजे तक लाती है। इस सड़क के दोनों ओर यहाँ सोविनियर  बेचती छोटी छोटी दुकाने हैं। परिसर में घुसते ही आपको दाँयी ओर कुछ संग्रहालय और पर्यटक सूचना केंद्र मिलेगा जबकि बाँयी ओर एक हरे भरे मैदान के बीच यहाँ की बैपटिस्ट्री दिखाई देगी।

संग्रहालय और पर्यटक सूचना केंद्र

घास की मखमली चादर के बीच बैपटिस्ट्री के शानदार गुंबद को देख कर आगुंतक अभिभूत हो जाता है। ये इटली की सबसे विशाल बैपटिस्ट्री के रूप में जानी जाती है।  ये इमारत रोमन और गोथिक शैली के मिश्रण का अनुपम उदाहरण है। रोमन शैली में बनी इमारतों में अर्ध चंद्राकार मेहराबों का प्रचुरता से इस्तेमाल होता है जैसा आप इस बैपटिस्ट्री के निचले भाग में देख सकते हैं जबकि ऊपरी भागों में तिकोनी मेहराब दिखाई देती हैं जो कि गोथिक स्थापत्य कला की पहचान है। 
पीसा बैपटिस्ट्री Pisa Baptistery
अगर आप ईसाई धर्म के रीति रिवाज़ों से परिचित हैं तो ये जानते ही होंगे कि दूसरे धर्मों के लोगों और बच्चों को ईसाई धर्म अंगीकार करने की शुरुआत बैपटिज्म नामक प्रथा से की जाती है। ये आयोजन जिस भवन में होता है उसे ही बैपटिस्ट्री कहते हैं। अगर आप इस आलेख के पहले चित्र को देखेंगे तो इस बैपटिस्ट्री को भी दाँयी ओर ज़रा सा झुका पाएँगे। बैपटिस्ट्री में अंदर जाने का अलग से टिकट लगता है जो मैंने नहीं लिया और यहाँ के मुख्य गिरिजाघर की ओर चल पड़ा।
Pisa Cathedral
इस परिसर की सबसे पुरानी इमारत यहाँ का गिरिजाघर है। गिरिजे का ऊपरी भाग चारा समानांतर खंभों की कतारों पर टिका है। अंदर की दो कतारों के बीच बैठने के लिए लकड़ी के बेंच लगे हैं जिसके बीचो बीच चलकर आप जीसस की छवि के पास पहुँच सकते हैं। छत पर लकड़ी के फ्रेम पर नक्काशी कर सोने के पानी चढ़ा दिया गया है।

जीसस की छवि के ठीक ऊपर छत पर वर्जिन मेरी को अन्य संतों के साथ दिखाया गया है। किनारे की दीवारें चित्रित हैं पर ऊँचे ऊँचे खंभों की दीवारें बिना किसी नक्काशी के हैं। रोशनदानों की काँच पर रंग बिरंगी आकृतियाँ जरूर उकेरी गयी हैं जो आकर्षक लगती हैं। मुझे याद आया कि काँच पर ऐसी चित्रकला मैंने पहले राजस्थान के महलों में भी देखी थी। हमारे धनी रजवाड़े बड़े शौक़ से अपने महलों में काँच का काम यूरोप से कराते रहे हैं।

गिरिजे का प्रार्थना कक्ष

पीसा का बडा गिरिजा Pisa Cathedral
चूँकि ये भवन ग्यारहवीं शताब्दी में बनना शुरु हुआ इसकी संरचना रोमन स्थापत्य कला पर आधारित रही। परिसर के अंदर दो खंभों के बीच अर्ध चंद्राकार मेहराबें तो हैं ही, इसके प्रवेश द्वार पर भी इस शैली की अमिट छाप है।

गुंबद पर बना जीसस का चित्र, किनारे की दो कतारों के खंभों के बीच से दिखता दृश्य
गिरिजाघर के ठीक पीछे यहाँ का घंटा घर है जिसे हम पीसा की झुकी मीनार के नाम से जानते हैं। कौन जानता था कि इंजीनियरिंग की एक भूल इस मीनार का शुमार दूनिया के सात अजूबों में करने में सफल हो जाएगी। इस घंटाघर का निर्माण गिरिजाघर और बैपटिस्ट्री के बनने के बाद बारहवीं शताब्दी में हुआ। इंजीनियरिंग में भवन बनाने के पहले उस स्थान की Soil Bearing Capacity मापी जाती है जो ये बताती है कि इमारत की नींव प्रति वर्ग मीटर कितना वजन सह पाएगी। कई बार बिना परीक्षण किए भी आस पास की भूमि के पहले से उपलब्ध आँकड़ों पर ये काम होता है। 

बारहवीं शताब्दी में किस प्रक्रिया का अनुसरण किया गया ये तो पता नहीं पर हुआ ये कि मीनार के एक तरफ की भूमि अपेक्षाकृत मुलायम निकली जिससे  मीनार उस ओर झुकने लगी। दूसरे तल्ले के बनने के बाद निर्माण का दोष सबकी नज़र में आया और काम वहीं रोक देना पड़ा। फिर लगभग एक शताब्दी तक पीसा के युद्ध में फँसे रहने की वजह से काम आगे नहीं बढ़ पाया। आपको जान कर ताज्जुब होगा कि निर्माण शुरु होने के लगभग दो सौ साल के बाद इस मीनार में वो घंटियाँ लगाई गयीं जिसके लिए ये घंटाघर बना था।

इंजीनियर क्या नींव  ठीक करेंगे? कैमरे का कमाल इसे पल भर में सीधा कर सकता है। 😀
एक ओर से निरंतर धँसते रहने की वज़ह से एक समय इस पूरी इमारत के गिरने का खतरा उत्पन्न हो गया। नब्बे के दशक में इस इमारत को पर्यटकों के लिए बंद कर इसके पुनरुद्धार का काम शुरु हुआ। नींव की मजबूती के बाद अब अभियंताओं का दावा है कि ये मीनार दो सौ साल तक आसानी से इस अवस्था में संतुलित रह सकती है।

पीसा और ताजमहल की एक मीनार
56 मीटर ऊँची पीसा की ये सात मंजिला मीनार सादगी और शालीनता की प्रतिमूर्ति लगती है। मेहराबों की एकरूपता और इसका सफेद रंग मन में निर्मलता जगाता है। । इन इमारतों के पीछे की कहानियाँ तो हम बाद में जानते हैं पर इन्हें नज़दीक से आँखों में भर कर जब भी देखते हैं तो एक अलग ही अहसास तारी होता है... शांति का सुकून का। कुछ पल के ही लिए ही सही अपने आप को भूल जाने का..। मन करता है बैठे रहें इस अहसास को पकड़ कर.. निहारते रहें कुशल कारीगरों के बनाए इन अद्भुत प्रतिमानों को ...पर इस मशीनी युग में इतनी फुर्सत कहाँ दी है हमने अपने आप को

प्रथम तल पर की गयी नक्काशी
कुतुब मीनार से उलट पीसा की मीनार में अतिरिक्त टिकट लेकर आप अंदर जा सकते हैं पर एक समय मीनार के अंदर एक निश्चित संख्या में ही लोग प्रवेश कर सकते हैं। यही वज़ह है कि अगर टिकट लें तो ये देख लें कि आपके पास कुछ अतिरिक्त समय है या नहीं? मीनार के बगल से एक रास्ता इस परिसर के बाहर बनी रंगीन इमारत को जाता है। इन इमारतों में एक ज़माने में यहाँ काम करने वाले कारीगर और कर्मचारी रहा करते थे। आज इसका इस्तेमाल आपेरा हाउस की तरह होता है। इन इमारतों से लगा यहाँ एक प्राचीन समाधि स्थल भी है।

नृत्यशाला की छाँव में आराम करते पर्यटक (Opera House)
पीसा की मीनार से बाहर निकलते ही भगवा कपड़ों में लिपटे इन तथाकथित योगियों को हवा में लटके देख के आपको भारत की याद आ जाएगी। विश्व में भारतीय संतों के पानी पर चलने, हवा में तैरने की कहानियाँ इतनी प्रचलित हैं कि यहाँ कुछ भारतीय हवा में लटकने का करतब दिखा कर पैसे इकठ्ठा करते हैं। पीसा के चमात्कारिक मैदान के बाहर इन्हें देख कर मैं भी सकते में आ गया। बाद में पता चला कि ये सारा कारनामा इनके कपड़ों में छिपी छड़ों और प्लेटों की संरचना से संभव होता है यानी ऊपर हवा में लटकता व्यक्ति एक प्लेट पर बैठा होता है और उसका संतुलन एक दूसरी प्लेट  से होता है जिसके ऊपर नीचे वाला व्यक्ति बैठा है।

योग का छलावा है ना मजेदार

तो कैसी लगी आपको पीसा की ये यात्रा? इटली यात्रा की अगली कड़ी में ले चलेंगे आपको इटली की ऐतिहासिक राजधानी रोम में। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram  पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें।


इटली यात्रा में अब तक

19 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया पोस्ट मनीष जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 119वां जन्मदिवस - सुमित्रानंदन पंत जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!! सर भगवा वहाँ भी!! सभी तस्वीरें खूबसूरत हैं। ताजमहल का मीनार क्यों दर्शाया गया है?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Manish दर्शाया नहीं गया है मैंने ताजमहल की मीनार से पीसा की मीनार के सामने खड़े होने के एहसास की तुलना करने की कोशिश की है कि ये इमारतें अपनी सादगी भरी सुंदरता से मन में सुकून का भाव भरती हैं।

      भारत के लोग कहीं भी अपनी कलाकारी दिखाने का मौका कहाँ छोड़ते हैं? 😁

      हटाएं
    2. अच्छा..लगता है भगवाधारी योगियों ने भी भारतियों से बहुत कुछ सीखा है!!��

      हटाएं
    3. हाँ ये करतब अब विदेशी भी दिखाते हैं पर पीसा के बाहर वाले सज्जन भारतीय मूल के ही लग रहे थे।

      हटाएं
  4. पहली बार पीसा की मीनार को इतनी करीब से समझने का अवसर मिला. आपने तो घर बैठे ही पीसा घुमा दिया है. :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आलेख आपको पसंद आया जान कर खुशी हुई।

      हटाएं
  5. Italy ka Safar sobhagya ki baat hai. Bahut khoob:)

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर तरीके से हर पॉइंट को बताया है बहुत ही बढ़िया लगा जानकारी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आलेख पसंद करने के लिए शुक्रिया !

      हटाएं
  7. Manish Kumar ji बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया है आपने पीसा की मीनार का । मेरे लिए तो ये बहुप्रतीक्षित पोस्ट हैं जिसका मुझे तीन साल से इंतजार था हालांकि मैं अब मैं भी इटली के महान अजूबे को देख आयी हूँ परंतु आपके द्वारा लिखे इस लेख में आपने अपनी शैली में आज फिर से पीसा में बिताए उस खूबसूरत दिन को याद दिला दिया। आपने एकदम सही कहा कि जब यह मीनार आँखों के सामने आती है तो सब कुछ भूल कर बस इसी को निहारने का मन करता है। मुझे याद हैं मैंने दुःखी मन से पीसा को अलविदा कहा था । धन्यवाद इस बेहतरीन पोस्ट के लिए 😊💐🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने इस आलेख में लिखी बातों को दिल से महसूस किया, जानकर खुशी हुई। रही देरी की बात तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं,हिना फिल्म के गीत के इन बोलों के साथ.. मैं देर करता नहीं, देर हो जाती है😔

      हटाएं
    2. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा 😁🙏

      हटाएं
  8. पीसा की यात्रा कर मन अभिभूत हुआ।

    जवाब देंहटाएं