दिस्कित के ठंडे रेगिस्तान से वापस लेह तक की अपनी यात्रा मुझे हमेशा याद रहेगी। इस सफ़र के स्मृतियों में समाने की तीन वज़हें थीं। पहली, नुब्रा श्योक घाटी को चीरती उस सड़क से मुलाकात जो मेरे लद्दाख आगमन की प्रेरणा स्रोत रही थी और दूसरी सियाचीन बेस कैंप मार्ग पर कुछ दूर ही सही पर जाने का मौका मिलना और तीसरी खारदोंग ला और लेह के बीच की जबरदस्त बर्फबारी। आज के इस आलेख मैं मैंने अपने इन्हीं संस्मरणों को सँजोया है।
किताबें आपको किसी जगह जाने के लिए प्रेरित करती हैं। सालों पहले अजय जैन की पुस्तक Postcards from Ladakh की अपने ब्लॉग पर समीक्षा की थी। किताब का कथ्य तो कुछ खास नहीं लगा था पर बतौर फोटोग्राफर अजय की तस्वीरें शानदार थीं। उन्हीं में से एक तस्वीर थी नुब्रा घाटी की पतली सी सड़क पर चलते दो लामाओं की। ये तस्वीर मेरे मन में इस क़दर बस गई कि सालों बाद नुब्रा जाते वक़्त मैं उसी सड़क की तलाश करता रहा जो दूर दूर तक फैले सफेद मटमैले पत्थरों को चीरती हुई सी गुजरती है और जब ये सड़क मिली तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
दिस्कित जाते समय जब तक समझ आया कि जिस सड़क की खोज मैं कर रहा था वो यही है तब तक हमारी गाड़ी उस सड़क पर काफी आगे बढ़ चुकी थी। मैंने सोचा कि लौटते हुए जरूर कुछ पल वहाँ बिताऊँगा। दिस्कित से नीचे उतरते ही नुब्रा का एक पठारी मैदान सामने आ जाता है। इस मैदान के दोनों किनारों पर जो पहाड़ हैं वो सड़क के समानांतर चलते हैं। बाँयी तरफ कुछ दूर पर श्योक नदी भी पहाड़ के किनारे किनारे बहती है पर वो सड़क से दिखाई नहीं देती।
![]() |
इससे सीधी सड़क क्या होगी ? |
इस सड़क पर उतर कर लगता है कि दोनों तरफ फैले पहाड़ की गोद में लेटे इस मैदान में बस आप ही आप हैं। मन एक अजीब सी सिहरन और रोमांच से भर उठा। सोचने लगा कि वे लामा यहाँ से मठ तक के दस किमी की राह यूँ ही बारहा पैदल पार करते होंगे। कैसा लगता होगा इस निर्जन राह पर चलना? दरअसल ऐसा माहौल ही उन्हें अध्यात्म से जोड़े रखता होगा।
![]() |
हरियाली और रास्ता |
उन अनूठे पलों को क़ैद कर मैं पनामिक की ओर चल पड़ा। दिस्कित से लेह की ओर जाती सड़क में पन्द्रह किमी बाद बाँयी ओर एक रास्ता जाता है जिस पर मुड़ते ही एक छोटे से पुल को पार कर आप श्योक नदी के दूसरी ओर पहुँचते हैं। श्योक नदी के समानांतर बढ़ते हुए करीब 15 km बाद सुमूर ( Sumur ) गाँव के दर्शन होते हैं जो इस रास्ते की सबसे प्रचलित जगह है।
सुमूर की लोकप्रियता के कारण कई हैं। सुमूर एक प्यारा और छोटा सा हरा भरा गाँव हैं। हुंडर की तरह यहाँ रहने की भी व्यवस्था है। अगर सुमूर से थोड़ी दूर पथरीले मैदानी हिस्से में ट्रेक करें तो नुब्रा नदी से आपकी मुलाकात हो सकती है । सुमूर आने के चंद किमी पहले ही नुब्रा नदी श्योक नदी से मिलती है यानी असली नुब्रा नदी घाटी सुमूर के पास से शुरु होती है।
सुमूर की लोकप्रियता के कारण कई हैं। सुमूर एक प्यारा और छोटा सा हरा भरा गाँव हैं। हुंडर की तरह यहाँ रहने की भी व्यवस्था है। अगर सुमूर से थोड़ी दूर पथरीले मैदानी हिस्से में ट्रेक करें तो नुब्रा नदी से आपकी मुलाकात हो सकती है । सुमूर आने के चंद किमी पहले ही नुब्रा नदी श्योक नदी से मिलती है यानी असली नुब्रा नदी घाटी सुमूर के पास से शुरु होती है।