शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

पंडाल परिक्रमा दुर्गा पूजा 2018 राँची : जहाँ दुर्गा माँ स्थापित हैं दशानन के दरबार में.. Best Pandals of Durga Puja Ranchi 2018 Part - III

इक ज़माना था जब राँची की दुर्गा पूजा का मतलब था बकरी बाजार, रातू रोड, राजस्थान मित्र मंडल, कोकर और सत्य अमर लोक के पंडालों का विचरण करना। पिछले पाँच सालों में ये स्थिति बदली है। राँची रेलवे स्टेशन, बांग्ला स्कूल और बाँधगाड़ी के पंडाल हर साल कुछ अलग करने के लिए जाने जा रहे हैं और रेलवे स्टेशन पर लगने वाला पंडाल इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो चुका है। आज सब लोग यही पूछते हैं कि रेलवे स्टेशन का पंडाल देखा क्या ? यानि यहाँ  होकर नहीं आए तो आपकी पंडाल यात्रा अधूरी ही रही।

मुखौटों के साथ होने वाले छऊ नृत्य पर आधारित है रेलवे स्टेशन का पंडाल

पंडाल में घुसते ही दिखता है सूर्य का ये मुखौटा
राँची रेलवे स्टेशन के पंडाल की इस लोकप्रियता की वजह उसका हर साल किसी खास प्रसंग या विषयवस्तु को लेकर बनाया जाना है। इस बार पंडाल को झारखंड, बंगाल और उड़ीसा में किए जाने वाले छऊ नृत्य को केंद्र में रखकर बनाया गया था । इस नृत्य के पारम्परिक केंद्र बंगाल का पुरुलिया, झारखंड का सरायकेला और उड़ीसा का  मयूरभंज जिला रहा है  तीनों इलाकों की शैली थोड़ी अलग है पर इस लोकनृत्य के आवश्यक अंगों में वास्तविक या सांकेतिक मुखौटे, कलाबाजियाँ और रामायण महाभारत की कथाओं को कहने का चलन आम है।

छऊ नृत्य में इस्तेमाल होने वाले पारम्परिक मुखौटे

पंडाल का मुख्य द्वार

रावण के दरबार में स्वागत करते कुंभकरण

आदिवासी नृत्यों में नगाड़ों और मांडर की थाप ना सुनाई दे तो वो नाच कैसा। यही सोच रखते हुए पंडाल के मुख्य द्वार को नगाड़ों से सजा दिया गया। मुखौटों के इन चरित्रों को रामायण से जोड़ते हुए रावण का दरबार बनाया गया। प्रवेश द्वार के अंदर घुसते ही स्वयम् कुंभकरण हाथ जोड़ते नज़र आए।

कुंभकरण के पीछे दशानन मिले मुझे इस रूप में
अचरज की बात ये रही कि यहाँ रावण अपनी पूरी सेना के साथ माता की कवच ढाल बन कर आए़। मन ही मन सोचा कि हमारी पौराणिक कथाओं के खलनायक पहले महिसासुर और अब रावण तो सुधरते जा रहे हैं पर आज का समाज ऐसे रावण पैदा कर रहा है जो इंसानियत से कोसों दूर हैं।

नंदी की विशालकाय प्रतिमा
आहाते की सारी दीवारें सैनिकों और ढालों से सजायी गयी थीं। उनके ऊपर बने मुखौटे सुरक्षा के दूसरे कवच के प्रतीक के रूप में दिखे। हालांकि पिछले सालों की अपेक्षा मुझे इन दीवारों की कलाकृतियों में उस रचनात्मकता की झलक नहीं दिखाई दी जैसे पिछले कुछ सालों से देखते आए थे।
साँपों की माला से भयभीत करता रावण का दसवाँ शीश
पंडाल की सबसे शानदार कलाकारी रावण के मुखौटों में थी। घनी रोबदार मूँछें, लाल होठ, नीला चेहरा और जलती आँखें शत्रु को भस्म कर देने को आतुर लग रही थीं। मुख्य मुखौटे के दोनों तरफ चार मुखौटे और नागों के साथ खेलता एक सिर शीर्ष में लगाया गया था। 
माँ दुर्गा की इस मूर्ति की बनावट में बंगाल का प्रभाव स्पष्ट है
पंडाल के मुख्य द्वार  तक आने वाले रास्ते में छऊ नर्तकों के आलावा प्राकृतिक रंगों से बनी सोहराई चित्रकला से किया गया था जिसके बारे में विस्तार से मैंने आपको पिछली पोस्ट में बताया था। जंगली जानवरों की घटती संख्या पर लोगों का ध्याम खींचते हुए जीव हत्या ना करने का संदेश भी जगह जगह दिखा ।

मुखौटों ओर सोहराई चित्रकला के प्रदर्शन के साथ दिया जा रहा है जीव हत्या रोकने का संदेश।
तो कैसा लगा आपको ये पंडाल? पंडाल परिक्रमा की तीसरी कड़ी में मैं ले चलूँगा आपको  बांग्ला स्कूल में बने स्वप्न लोक में । अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram  पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। 

राँची दुर्गा पूजा पंडाल परिक्रमा 2018  

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहूत ही बढ़िया लेख ओर सुंदर फोटोग्राफी

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  2. रेलवे स्टेशन पर भी पंडाल...दिलचस्प है. इसका आयोजन कौन करता है ? रेलवे ? रांची में ख़ूब धूम रहती है दुर्गा पूजा की.

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    1. रेलवे स्टेशन की पार्किंग के ठीक सामने खाली जगह है। वहीं लगता है ये पंडाल। रेलवे की अनुमति से स्थानीय दुर्गा पूजा कमिटी कराती है ये आयोजन। हाँ दुर्गा पूजा साल का सबसे आनंद का पर्व हैं इस शहर का। सारी राँचि इस वक़्त सड़कों पर निकल आती है।

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