मुसाफ़िर हूँ यारों ने अपने जीवन के दस साल पिछले महीने पूरे कर लिए। यूँ तो ब्लागिंग करने का मेरा ये सिलसिला तेरह साल पुराना है। शुरुआत रोमन हिंदी ब्लॉग से मैंने 2005 में की क्यूँकि तब यूनिकोड की सुविधा सारे आपरेटिंग सिस्टम में आयी नहीं थी। रोमन से देवनागरी में टंकण सीखने के बाद 2006 अप्रैल में एक शाम मेरे नाम की नींव रखी गयी। ब्लागिंग के उस शुरुआती दौर में सारा कुछ एक ही थाली में परोसने की परंपरा थी। मैंने भी ब्लागिंग के अपने पहले दो सालों में गीत, ग़ज़लों, किताबों के साथ यात्रा वृत्तांत भी एक शाम मेरे नाम पर ही लिखे।
पर वक़्त के साथ मुझे लगने लगा कि ब्लॉग विषय आधारित होने चाहिए और इसीलिए मुझे संगीत और यात्रा जैसे अपने प्रिय विषयों को दो अलग अलग वेब साइट्स पर डालने की जरूरत महसूस हुई। संगीत और साहित्य जहाँ एक शाम मेरे नाम की पहचान बना वहीं अपने यात्रा लेखन को एक जगह व्यवस्थित करने के लिए 2008 अप्रैल में मुसाफ़िर हूँ यारों अस्तित्व में आया। हिंदी में यात्रा ब्लागिंग की ये शुरुआती पहल थी जो अगले कुछ सालों में तेजी से फैलती गयी। आज हिंदी में सैकड़ों यात्रा ब्लॉग हैं जिसमें लोग अपने संस्मरणों को सजों रहे हैं।
इस ब्लॉग की पहली पोस्ट |
व्यक्तिगत रूप से सफ़र का सिलसिला जारी रहा। आपको भारत के कोने कोने से लेकर विदेशों की भी सैर कराई। इस ब्लॉग पर लगभग चार सौ आलेख व फोटो फीचर्स लिख चुका हूँ। हिंदी में यात्रा लेखन करते हुए मेरा ये उद्देश्य रहा है कि इसे उस स्तर पर ले जा सकूँ जहाँ इसे अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में हो रहे काम के समकक्ष आँका जाए। इस सतत प्रयास से विगत कुछ वर्षों में इस ब्लॉग की जो उपलब्धियाँ रहीं है उनमें कुछ का जिक्र आप यहाँ देख सकते हैं।
पिछले दस सालों के इस सफ़र में मैंने बहुत कुछ सीखा। हिंदी और अंग्रेजी में हो रहे यात्रा लेखन को नजदीक से देखने का अवसर मिला। कई बार देश के अग्रणी यात्रा लेखकों के साथ अलग अलग मंचों पर मुलाकात और चर्चाएँ भी हुईं। आज जिस हालत में यात्रा उद्योग और उनसे जुड़ा ब्लागिंग का परिदृश्य है उसके कुछ सुखद और कुछ अफसोसनाक पहलू दोनों ही हैं।
अगर पहले धनात्मक बिंदुओं की चर्चा करूँ तो यात्रा उद्योग में अब ब्लॉग और सोशल मीडिया में लेखन के महत्त्व को समझा जाने लगा है। घूमने फिरने का शौक रखने वाले एक निष्पक्ष राय जानने के लिए ब्लॉगस और सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। यही वजह है कि देश और विदेशों में किसी स्थान को बढ़ावा देने के लिए ब्लॉगरों को आमंत्रित किया जा रहा है। निजी कंपनियाँ आपको अपने इवेंट को कवर करने के लिए आमंत्रित करने के साथ आपकी सेवाओं का मूल्य भी दे रही हैं। आम लेखन का स्तर भी पहले से बेहतर हुआ है। कैमरों की बढ़ती गुणवत्ता का असर आजकल सोशल मीडिया और ब्लॉग पर लगाए गए चित्रों में नज़र आने लगा है। यात्रा के अपने अनुभवों को लोग पुस्तकों के माध्यम से छपवा रहे हैं।
राहें जो तय हो चुकीं , Places covered in this blog |
अगर पहले धनात्मक बिंदुओं की चर्चा करूँ तो यात्रा उद्योग में अब ब्लॉग और सोशल मीडिया में लेखन के महत्त्व को समझा जाने लगा है। घूमने फिरने का शौक रखने वाले एक निष्पक्ष राय जानने के लिए ब्लॉगस और सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। यही वजह है कि देश और विदेशों में किसी स्थान को बढ़ावा देने के लिए ब्लॉगरों को आमंत्रित किया जा रहा है। निजी कंपनियाँ आपको अपने इवेंट को कवर करने के लिए आमंत्रित करने के साथ आपकी सेवाओं का मूल्य भी दे रही हैं। आम लेखन का स्तर भी पहले से बेहतर हुआ है। कैमरों की बढ़ती गुणवत्ता का असर आजकल सोशल मीडिया और ब्लॉग पर लगाए गए चित्रों में नज़र आने लगा है। यात्रा के अपने अनुभवों को लोग पुस्तकों के माध्यम से छपवा रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर ट्रैवेल ब्लागिंग एक रुचि के स्तर पर शुरु हुई थी। पर अब इसे फुल या पार्ट टाइम प्रोफेशन के तौर पर भी लोग अपनाने लगे हैं। पर जहाँ व्यवसायीकरण शुरु होता है अपने आप को बाजार में बेचने की प्रतिस्पर्धा शुरु हो जाती है। बाजार ने ब्लागरों की गुणवत्ता के लिए जो मापदंड निर्धारित किए हैं वो सोशल मीडिया पर आपकी सक्रियता और फॉलोवर्स की संख्या पर आधारित हैं। इसके आलावा आपके ब्लॉग की डोमेन अथारिटी भी माएने रखती है। कायदे से देखा जाए तो ये परिपाटी तार्किक लगती है।
यात्रा के कुछ यादगार लमहों का एक झरोखा। |
ये मापदंड पश्चिम से आए हैं पर दिक्कत ये है कि उन्होंने ही इसमें घालमेल करने की सारी व्यवस्थाएँ भी उपलब्ध कराई हैं। सोशल मीडिया पर फालोवर्स और लाइक्स खरीदे जा सकते हैं। Link Building के लिए नामी इंटरनेशनल ब्लागर एक दूसरे की लिंक को अपने ब्लॉग पर लगाकर अपनी डोमेन आथारिटी को बढ़ाने की कोशिशों में तत्पर रहते हैं और ऐसा करना एक जायज तरीके के तौर पर देखा जाता है। विदेशों में ये सालों से हो रहा है और अब वही प्रवृति भारत में देखने को मिल रही है। हाँ अपवाद हर जगह हैं लेकिन अगर ऐसे ही चलता रहा तो ईमानदारी से अपना काम करने पेशेवर यात्रा लेखकों की संख्या गिनती में रह जाएगी।
सफलता का स्वाद चखने के लिए यात्रा लेखकों द्वारा सोशल मीडिया पर झूठे दावों और हथकंडों का प्रयोग भी देखने को मिलता रहता है। पी आर एजेंसीज के पास इतना समय और योग्यता नहीं कि वो लेखकों और सोशल मीडिया पर अपना प्रभाव रखने वालों का उचित मूल्यांकन करें। इस वजह से घूमने और लिखने का जो स्वाभाविक आनंद है वो सोशल मीडिया पर हमेशा दिखते रहने के दबाव और दिखावे के इस खेल में खोता सा जा रहा है।
ये तो हुई समूचे यात्रा लेखन परिदृश्य की बात। जहाँ तक हिंदी की बात है तो अभी भी हिंदी में लिखने वालों के समक्ष बड़ी चुनौती है कि इस तरह देश के साथ विदेशों के प्रायोजकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। ये जतला सकें कि हम उनकी बात को देश के तमाम हिंदी भाषी पाठकों तक पहुँचा सकते हैं जो तेजी से इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं। ये तभी हो सकता है जब हम किसी जगह की प्रकृति, संस्कृति और इतिहास से घुलते मिलते हुए अपने विषयवस्तु की रचना करें।
ये तो हुई समूचे यात्रा लेखन परिदृश्य की बात। जहाँ तक हिंदी की बात है तो अभी भी हिंदी में लिखने वालों के समक्ष बड़ी चुनौती है कि इस तरह देश के साथ विदेशों के प्रायोजकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। ये जतला सकें कि हम उनकी बात को देश के तमाम हिंदी भाषी पाठकों तक पहुँचा सकते हैं जो तेजी से इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं। ये तभी हो सकता है जब हम किसी जगह की प्रकृति, संस्कृति और इतिहास से घुलते मिलते हुए अपने विषयवस्तु की रचना करें।
खैर इन सब बातों का मैंने जिक्र इसलिए किया कि पाठक जिन्हें यात्रा लेखन का एक खूबसूरत चेहरा दिखाई देता है वे उसके इस पक्ष से भी थोड़ा परिचित हो लें। बाकी मैं तो आपको यूँ ही अपनी यात्राओं के किस्से सुनाता ही रहूँगा। जैसा पिछले इन दस सालों से सुना रहा हूँ। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें।ब्लागिंग का एक उद्देश्य आपकी बातों, आपकी पसंद को सुनना समझना भी है और यह तभी संभव है जब आप यहाँ अपनी राय ज़ाहिर करें। अगर आपके मन में यात्रा लेखन से जुड़ा कोई सवाल हो तो बेहिचक प्रश्न करें। आपके सुझावों का सहर्ष स्वागत है। आशा है पिछले दशक की तरह आने वाले दशकों में भी आप इस चिट्ठे को ऐसे ही प्यार देते रहेंगे।