दुर्गा पूजा हर साल आती है धूमधाम के साथ मनाई जाती है और फिर माँ को विदा भी करना होता है। बचपन में पटना की पूजा देखी। स्टेशन से लेकर गाँधी मैदान, नाला रोड और फिर पैदल चलते चलते अशोक राजपथ तक का पाँच छः किमी सफ़र कैसे तय हो जाता पता ही नहीं चलता था। उस धूम धाम में माँ के दर्शन के बाद किसी संगीत की महफिल मैं बैठने का आनंद ही कुछ और हुआ करता था।
फिर नौकरी व पढ़ाई के लिए फरीदाबाद व रुड़की का रुख किया तो कुछ सालों तक पता ही नहीं चला की दुर्गा पूजा कब आई और कब गयी । पर देखिए तक़दीर ने फिर राँची भेज दिया और जब यहाँ की पूजा देखी तो समझ आया कि झारखंड, बंगाली संस्कृति से बिहार कीअपेक्षा ज़्यादा जुड़ा हुआ है। विगत कुछ सालों से राँची के आलावा कोलकाता की दुर्गा पूजा देखने का अवसर मिला है और इस इलाके में पंडाल और मूर्ति बनाने की जो अद्भुत कला है उसने हर साल कुछ नया दिखाकर चमत्कृत ही किया है। यही वज़ह है कि जैसे ही पूजा आती है हमारी रातें अपने शहर की सड़कों पर गुजरती हैं। एक बार पंडाल परिक्रमा पर निकल जाएँ तो इस इलाके के सभी शहर आधी रात से लेकर पौ फटने तक आपको जागते हुए मिलेंगे।
तो चलिए इस साल की पंडाल परिक्रमा शुरु करते हैं राँची के पंडालों से और इसका समापन करेंगे पश्चिम बंगाल के शहर दुर्गापुर में।
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OCC Club में माँ दुर्गा की प्रतिमा |
राँची में बड़ा तालाब के पास स्थित OCC Club यानि बांग्ला स्कूल का पंडाल इस साल के अनूठे पंडालों में से एक था। पंडाल बनाने में बड़े अजीबोगरीब किस्म के सामान का प्रयोग किया गया था। अब बताइए होज़ पाइप, चलनी, टोकरी और शहनाई सरीखे वाद्य यंत्र को मिलाकर एक दूसरे ग्रह से आए प्राणियों की काया तैयार कर दी जाए तो कैसा रहे? बस ऐसा ही कुछ माहौल था इस पंडाल में।
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माँ दुर्गा का स्वागत बाजे गाजे के साथ |
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वाह !क्या ठुमका लगा रिया है... |
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मानव आकृतियाँ बनाने में होज़ पाइप का अद्भुत इस्तेमाल |
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पंखे से निकल आया पक्षी |
रातू रोड में आर आर स्पोर्टिंग का पंडाल दुर्भाग्यवश पिछले साल आग की बलि चढ़कर भी आनन फानन में पुनर्जीवित होकर लौटा था। इस बार मलेशिया की आक्टोपस बिल्डिंग की बनावट से प्रेरित ये पंडाल लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। आक्टोपस के साथ कमल के फूल सी आकृति पेश करते इस पंडाल की खासियत इसका पूरी तरह नारियल के खोखे से बना होना था।
नारियल के खोखों से नारियल निकाल उसमें अलग अलग रंगों से की गई सजावट देखते ही बनती थी।
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पंडाल की रंग बिरंगी आकर्षक छत |
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रोशनी से नहाया हुआ पंडाल |
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और ये है इसका दिन का रूप |
राँची के कलात्मक पूजा पंडालों में सत्य अमर लोक सदैव अग्रणी रहा है। इस बार यहाँ कार्तिकेय के महल कृतिकालोक के प्रारूप का पूजा पंडाल बनाया गया था।
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सत्य अमर लोक का पंडाल |
पंडाल के अंदर सात मोरों द्वारा माता के मंदिर बनाते हुए दिखाया गया था।
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सत्य अमर लोक में देवी की प्रतिमा |
राँची के पंडालों में बकरी बाजार का पंडाल अपनी विशालता के लिए मशहूर रहा है। पिछले साल यहाँ मैसूर का जगमगाता महल बना था। पर इस साल अनेकता में एकता की थीम पर बना पर्वतनुमा पंडाल पहले की तुलना में काफी फीका रहा। हाँ यहाँ देवी की प्रतिमा अवश्य बेहद सुंदर थी।
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बकरी बाजार में माँ दुर्गा |
इक ज़माने में कोकर और कचहरी का इलाका अपनी विद्युत सज्जा के लिए जाना जाता था लेकिन अबकि बार बरियातु, मोराबादी और हरमू के इलाकों में भी शानदार विद्युत सज्जा देखने को मिली।
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हरमू का पंडाल जहाँ था समुद्री जहाजों का डेरा |
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हरमू में विद्युत सज्जा |
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सेल टाउनशिप में केदारनाथ के मंदिर का प्रारूप |
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मेकॉन, श्यामली में माँ की सलोनी मूरत |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-010-2017) को
जवाब देंहटाएं"शुभकामनाओं के लिये आभार" (चर्चा अंक 2747)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार !
हटाएंनारियल के खोखों से बना पंडाल बेहद खूबसूरत है.. होज पाइप की मूर्तियाँ गजब हैं.
जवाब देंहटाएंमुझे भी इन दोनों जगहों की सजावट बेहद पसंद आयी।
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 94वीं पुण्यतिथि : कादम्बिनी गांगुली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इसे बुलेटिन में स्थान देने का !
हटाएंशानदार!
जवाब देंहटाएंपसंदगी ज़ाहिर करने के लिए शुक्रिया !
हटाएंवाह ! एक से बढ़कर एक पूजा पंडाल..कलाकारों की सृजनात्मक क्षमता देखते ही बनती है
जवाब देंहटाएंहाँ, सही कहा आपने। ये सिलसिला राँची से लेकर दुर्गापुर तक आपको देखने को मिलेगा।
हटाएंExtraordinary ! Joy maa Durga
जवाब देंहटाएंThank you !
हटाएंBAHUT badiya…...jai ma durga
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंवाह बेहतरीन। कला के उम्दा नमूने हैं ये पंडाल। जितनी तारीफ़ की जाये कम है।
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई की कारीगरों का काम आपको भी पसंद आया।
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