पिछले बीस सालों में झारखंड में रहते हुए भी राँची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद के आलावा अन्य इलाकों में जाना कम ही हुआ है। इसलिए इस बार अगस्त के दूसरे हफ्ते का लंबा सप्ताहांत नसीब हुआ तो मन में इच्छा जगी कि क्यूँ ना मानसूनी छटा से सराबोर झारखंड की सड़कों को नापा जाए। नेतरहाट और झारखंड के सबसे ऊँचे जलप्रपात लोध तक पहुँचने की अपेक्षा मन में झारखंड के उन दक्षिणी पश्चिमी इलाकों को नापने का उत्साह ज्यादा था जहाँ हमारे कदम आज तक नहीं पड़े थे। पड़ें भी तो कैसे पलामू, लातेहार और गुमला का नाम हमेशा से नक्सल प्रभावित जिलों में शुमार जो होता आया है।
मानसून में नेतरहाट के विख्यात सूर्योदय व सूर्यास्त देखने की उम्मीद कम थी
पर मेरा उद्देश्य तो इस बार धान के खेतों, हरे भरे जंगलों और बादलों के
साथ आइस पाइस खेलते सूरज का सड़कों पर पीछा करने का था। तो अपने दो मित्रों
के साथ चौदह तारीख की सुबह हम अपनी यात्रा पर निकल पड़े।
बरसाती मौसम में झारखंड के अंदरुनी इलाकों में सफ़र करना रुह को हरिया देने वाला अनुभव है। झारखंड की धरती का शायद ही कोई कोना हो जो इस मौसम में हरे रंग के किसी ना किसी शेड से ना रँगा होता है । तो आप ही इन तसवीरों से ये निर्णय लीजिए कि हमारी आशाओं के बीज किस हद तक प्रस्फुटित हुए?
राँची से नेतरहाट की ओर जाने का रास्ता दक्षिणी छोटानागपुर के नगरी, बेरो, भरनो और सिसई जैसे कस्बों से हो कर गुजरता है। कस्बों के आस पास के तीन चार किमी के फैलाव को छोड़ दें तो फिर सारी दुनिया ही हरी लगने लगती है।
पेड़ यूँ झुका हुआ, धान पर रुका हुआ धानी रंग रूप पर जैसे कोई फिदा हुआ |
हरी भरी धान की काया, उस पर जो बादल गहराया प्रकृति का ये रूप देख मन आनंदित हो आया |
दक्षिण कोयल नदी पर जर्जर हो चुके इस पुल को हमने अपना पहला विश्रामस्थल बनाया |
सिसई पार करते ही हमारी मुलाकात दक्षिणी कोयल नदी से होती है। लोहड़दगा के पास के पठारों से दक्षिण पूर्व बहती हुई ये नदी गुमला और फिर सिंहभूम होती हुई उड़ीसा के राउरकेला में शंख नदी से मिलकर ब्राह्मणी का रूप धर लेती है। झारखंड की तमाम अन्य नदियों की तरह ये भी एक बरसाती नदी है जो इस मौसम में अपना रौद्र रूप दिखाती है।
सिसई गुमला रोड |
गुमला से नेतरहाट जाने के पहले घाघरा प्रखंड पड़ता है। अपनी यात्रा के ठीक एक हफ्ते पहले भारी बारिश के बीच मैंने घाघरा नेतरहाट रोड की एक पुलिया बहने की बात पढ़ी थी। सो एक डर मन में बैठा था कि अगर रास्ता खराब निकला तो क्या वापस लौट जाना पड़ेगा। पर हमारा भाग्य था कि पिछले कुछ दिनों में तेज बारिश ना होने से पुलिया के डायवर्सन को पार करने में हमें कठिनाई नहीं हुई।
इस इलाके से दक्षिणी कोयल की बड़ी बहन उत्तरी कोयल बहती है। इसे पार करने के बाद घाघरा का रास्ता दो भागों में बँट जाता है। दाँयी और निकलने से आप बेतला के राष्ट्रीय अभ्यारण्य में पहुँचते हैं तो बाँयी ओर का रास्ता आपको नेतरहाट घाटी में ले जाता है।
इस इलाके से दक्षिणी कोयल की बड़ी बहन उत्तरी कोयल बहती है। इसे पार करने के बाद घाघरा का रास्ता दो भागों में बँट जाता है। दाँयी और निकलने से आप बेतला के राष्ट्रीय अभ्यारण्य में पहुँचते हैं तो बाँयी ओर का रास्ता आपको नेतरहाट घाटी में ले जाता है।
घाघरा नेतरहाट मार्ग |
नेतरहाट तक की चढ़ाई घने जंगल से होकर गुजरती है। वैसे तो इस रास्ते में सामान्य आवाजाही कम ही है पर कार चलाने वालों को बसों के आलावा बॉक्साइट अयस्क से लदे ट्रकों को ओवरटेक करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इन जंगलों में बाँस के पेड़ों की बहुतायत है। सघनता ऐसी की नीचे घाटी का नजारा देखने के लिए इनके पतले तनों के बीच की दरारों से झांकने के लिए आप मजबूर हो जाएँ।
ऐ बारिश तू ही तो दिखाती है मुझे अपना चेहरा ! |
अगर मानसूनी झारखंड की हरियाली में कोई व्यवधान डाल पाता हे तो वो हैं यहाँ की लाल मिट्टी। ये मिट्टी ज्यादा उपजाऊ नहीं होती। इसलिए धान की फसल कटने के बाद सिंचाई की अनुपस्थिति में इसका ज्यादा उपयोग नहीं हो पाता।
झारखंड की लाल मिट्टी |
पेड़ हों पहाड़ हों, धान की कतार हो ऐसी वादियों में बस प्यार की बयार हो |
हर भरे खेतों से निकल अचानक ही जंगलों का आ जाना झारखंड के रास्तों की पहचान है। |
नेतरहाट महुआडांड़ रोड |
नेतरहाट से महुआडांड़ का रास्ता बेहद मनमोहक है। यहाँ रास्ते के दोनों तरफ या तो खेत खलिहान दिखते हैं या बड़े बड़े चारागाह। मजा तब और आता है जब इनसे गुजरते गुजरते अचानक से सामने कोई घाटी और उससे सटा जंगल आ जाए।
महुआडांड़ से डुमरी के रास्ते में हमें मिला ये बरगद का पेड़ |
आशा है झारखंड की हरियाली ने आपका मन मोहा होगा। झारखंड की इस मानसूनी यात्रा की अगली कड़ी में ले चलेंगे आपको यहाँ के मशहूर पर्वतीय स्थल नेतरहाट में।
तस्वीरों के साथ शायरी..बहुत पसंद आयी..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ;)
हटाएंजितना मस्त मोसम उतनी ही मस्त फोटोग्राफी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पसंदगी के लिए :)
हटाएंGrt pics Manish Kumar...I 2 hv visited some of the remotest areas in Jharkhand bcos of the coal mines out there. The freshness of greenery during monsoon is really breathtaking...the paddy fields even on the Ranchi Jsr highway...the waterfalls on the way to Barkakana..it is pity that such lushness is affected by the so called naxals....
जवाब देंहटाएंI have heard that route to Kiriburu & Megathaburu where SAIL mines are situated is equally scenic. Due to ignorance we came back through interiors of naxalite infested Gumla district and the entire route was a such a beauty though we had some anxious moments when our car was stopped by villagers for their usual demand of small token of money.
हटाएंकरीब पांच साल पहले जसिडीह से पटना तक के रेल सफर में झारखंडी मानसून के दर्शन पहली दफा हुए थे, उफ्फ क्या नज़ारा था! पहाड़ियों के कंधों पर सवार बादलों को चीरकर ज़मीन छूने को बेताब बारिश की झड़ी ने उस रेल के सफर को आज तक यादगार बना रखा है।
जवाब देंहटाएंजसिडीह से पन्द्रह बीस किमी के बाद वर्तमान बिहार की सीमा शुरु हो जाती है। जरूर इस दौरान आपने छोटानागपुर पठारी भू भाग के उत्तरी सिरे की झलक देखी होगी।
हटाएंमेरा ज्यॉग्राफिया इतना दुरुस्त नहीं है आपके इलाके का, लेकिन बस इतना मालूम है कि झारखंड से बिहार तक का वो पहला सफर था, देवघर में बाबा के दर्शन के बाद अगर कुछ आज तक याद है तो वो रेल की खिड़की से झंकता मानसून ही है
हटाएंये तो एक पूरी तरह अनजान दुनिया है मेरे लिए. उस तरफ कभी जाना हुआ ही नहीं. औरों से भी इस इलाके के बारे में ज्यादा नहीं सुना. आपका वर्णन तो अद्वितीय है ही.
जवाब देंहटाएंझारखंड के दो बेहद सम्मोहक रूप हैं। एक तो मार्च अप्रैल का दहकता पलाश जब पूरे के पूरे जंगल लाल नारंगी रंग से रँग जाते हैं और दूसरा ये मानसून जब यहाँ की लाल भूरी मिट्टी अपने ऊपर धानी चादर ओढ लेती है।
हटाएंआपका यह बयान मुझे छत्तीसगढ़ खींचकर ले गया है, वहां भी मार्च में भोरमदेव उत्सव के बहाने गर्मी में दहकते लाल पलाश के सम्मोहन में बंधी थी। फिर मानसून के ठीक बाद लौटी थी बस्तर में चित्रकोट प्रपात को देखने के बहाने। और तब मुझे वहां के टूरिस्ट आॅफिसर ने बताया था कि बारिश में उस ज़मीन का सौंदर्य खास होता है। हालांकि ठीक उस पल मेरे मन ने चुपके से कहा था — "और आसमान से बरसती आग को अपने सीने में दहकाते पलाश के मतवाले सौंदर्य को क्यों भूल रहे हो, जनाब?"
हटाएंमानसून में धान के कटोरे कहे जाने वाले बिलासपुर और रायपुर के खूबसूरत इलाकों से गुजरा हूँ और उसे बहुत कुछ झारखंड सा ही पाया है पर अभी तक बस्तर जाने का मौका नहीं मिला है। देखें उस भूमि पर पलाश और जलप्रपातों का सौंदर्य कब देखने को मिलता है।
हटाएंHow beautiful...Never seen Jharkhand like that.
जवाब देंहटाएंHope to bring more of hidden beauty of Jharkhand in the this three part series.
हटाएंहम तो आपके ब्लाग के साथ ही सैर कर लेते है, आपके चित्रो से आनन्दित हो जाते है।
जवाब देंहटाएंआप सब का साथ ही मुझे सतत लिखने को प्रेरित करता है। :)
हटाएंYou have shown different Jharkhand....Beautiful pics and hinterland
जवाब देंहटाएंThanks for appreciation. Interior of Jharkhand is untouched and pure with amazing natural beauty.
हटाएंशानदार विवरण, बेहतरीन फोटोग्राफी....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आलेख व चित्र पसंद करने के लिए!
हटाएंManish bahi 105%shi bol rhe hi, main naterhaat, mahuadanr, ki sundarta ko nihar chukka ho, hundru fall nothing in front of lodh fall
जवाब देंहटाएंमैं भी दशम को अब तक सबसे सुंदर जलप्रपात मानता था पर लोध देखने के बाद अपनी धारणा बदल दी।
हटाएंलाल सलाम साथी.
जवाब देंहटाएंमैं बोकारोवासी हूं. एसा ब्लाग ही झारखंड को भारत के पर्यटन नक्शे पर सफलतापूर्वक ला पाएगा.
आप झारखंड से हैं जानकर अच्छा लगा। आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया !
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