एफिल टॉवर की ऊँचाइयों को छूने के बाद मेरे पास दो विकल्प थे। या तो पेरिस के मशहूर डिज्नीलैंड में धमाचौकड़ी मचाई जाए या फिर वहाँ की सड़कों पर चहलकदमी करते हुए कुछ वक़्त बिताया जाए। जापान के अत्याधुनिक स्पेसवर्ल्ड और भारत के निक्को और रामोजी फिल्म सिटी जैसे मनोरंजन पार्क की सैर के बाद मेरे मन में डिज्नीलैंड के लिए कोई खास उत्साह नहीं था। हाँ दा विंची कोड पढ़ते वक़्त लूवर के संग्रहालय में जाने का सपना मैंने अपने मन में बहुत पहले से पाल लिया था। समूह के बाकी सदस्य भी डिज्नीलैंड जाने को उत्सुक नहीं थे।
लूवर के मशहूर पिरामिड के साथ मैं |
पर पहले से हमने ये तय नहीं किया था कि वहाँ जाने के लिए मेट्रो या बस का सहारा लेंगे। कुछ लोगों से पूछा तो पता चला कि मेट्रो से लूवर का नजदीकी स्टेशन पास ही है। मेट्रो का रास्ता पूछते हुए हम एक अश्वेत सज्जन से टकरा गए जिसने रास्ता तो बताया पर साथ ही ये कहना ना भूला Man I always walk for such small distance. It will take not more than 15-20 minutes for you to reach there. अब ये पन्द्रह बीस मिनट का उसका जुमला हमें जोश दिला गया और हम मेट्रो छोड़ लूवर की ओर पैदल ही बढ़ लिए। आसमान में छाई बदलियों के बीच सीन नदी के किनारे किनारे दो तीन भारतीय परिवारों का दल चल पड़ा।
Vertical Gardens of Quai Branly Museum दीवारों पर चढ़ते उद्यान का अद्भुत उदहारण |
पैदल चलने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि आप रास्ते के सारे आकर्षणों को आराम से वक़्त देते हुए चल सकते हैं। एफिल टॉवर से निकले ही थे कि हमें सड़क के किनारे यहाँ का Quai Branly Museum दिख गया जो कि अपने Vertical Garden के लिए मशहूर है। हरी दीवार यानि Green Wall को प्रचलित करने का श्रेय फ्रांस के वनस्पति वैज्ञानिक पैट्रिक ब्लांक को दिया जाता है। यूँ तो दीवारों के समानांतर ऊँचाई तक पौधे उगाने का पेटेंट सबसे पहले अमेरिकी वैज्ञानिक स्टेनले वाइट के नाम है पर आज जिस रूप में इस विधा का विकास विश्व के अनेक देशों में हुआ है उसमें पैट्रिक ब्लांक का बड़ा हाथ है।
वैसे भारत में पुरानी इमारतों में उगती पीपल की गाछ तो भला किसने नहीं देखी होगी। रखरखाव के आभाव में अक्सर इन पौधों की जड़े दीवारों को कमजोर और सीलन की दावेदार बना देती हैं। पर वर्टिकल गार्डन की तकनीक कुछ ऐसी है कि इस पर उगी वनस्पतियाँ ना केवल भवनों को खूबसूरत बनाती हैं बल्कि उनसे उन्हें कोई नुकसान भी नहीं पहुँचता।
वैसे भारत में पुरानी इमारतों में उगती पीपल की गाछ तो भला किसने नहीं देखी होगी। रखरखाव के आभाव में अक्सर इन पौधों की जड़े दीवारों को कमजोर और सीलन की दावेदार बना देती हैं। पर वर्टिकल गार्डन की तकनीक कुछ ऐसी है कि इस पर उगी वनस्पतियाँ ना केवल भवनों को खूबसूरत बनाती हैं बल्कि उनसे उन्हें कोई नुकसान भी नहीं पहुँचता।
नदी के किनारे पिकनिक मनाने आए छोटे बच्चों के साथ उनकी शिक्षिका |
सीन नदी के किनारे चलने का अपना ही आनंद है। सड़क और नदी के बीच फैली जगह को Riverfront की तरह विकसित किया गया है। यहाँ की विख्यात इमारतों के आस पास लगी भीड़ के विपरीत इन रास्तों पर पर्यटकों के बजाए यहाँ के स्थानीय निवासी ही दिखते हैं।
यूरोप के शहरों में एक जाना पहचाना दृश्य आपको गाहे बगाहे देखने को मिल जाएगा। ये नज़ारा है आदम मूर्तियों का। ऐसी ही एक मूर्ति से हम सीन नदी के पास टकरा गए।
यूरोप के शहरों में एक जाना पहचाना दृश्य आपको गाहे बगाहे देखने को मिल जाएगा। ये नज़ारा है आदम मूर्तियों का। ऐसी ही एक मूर्ति से हम सीन नदी के पास टकरा गए।
इन जीवित मूर्तियों के साथ तस्वीर खिंचवाने का मौका भला कौन छोड़ना चाहेगा? |
अक्सर मूर्ति का रूप धारण करने वाले ये कलाकार अपने शरीर में पेंट लगाकर स्थिर होकर कहीं खड़े हो जाएँगे। इनका हाव भाव इतना जबरदस्त
होता है कि दूर से आप बिल्कुल नहीं बता सकते कि ये मूर्ति ना हो के एक जीवित
प्राणी हैं। हाँ, जब आप इन्हें घूरेंगे तो ये अपना हाथ हिला कर या कनखी मार कर
आपके भ्रम को दूर करेंगे। इन आदम मूर्तियों के बगल में आपको दान पात्र भी
मिल जाएगा जिसमें आप स्वेच्छा से कुछ देना चाहें तो दे सकते हैं।
सीन नदी River Seine |
रुक रुक कर चलते हुए हमें करीब चालीस मिनट हो गए थे पर अभी हम एलेक्सेंडर ब्रिज तक ही पहुँचे थे। ये तय हुआ कि जिनसे चला नहीं जा रहा वो यहाँ की रिक्शे की सवारी कर लें पर जब रिक्शेवाले ने अपना रेट दस से पन्द्रह यूरो (Rs 750-1100) बताया तो किसी का उससे जाने का मन नहीं हुआ। ख़ैर अपने सहयात्रियों की हालत देख के मुझे लग चुका था कि हममें से शायद कुछ ही मोनालिसा के दर्शन कर पाएँगे। पर अब तो लगभग आधे रास्ते आ ही चुके थे सो चलते ही रहे। थोड़ी ही दूर आगे जाकर यहाँ की नेशनल एसेम्बली दिखाई दी जो कि हमारी लोकसभा के समकक्ष है।
एलेक्सेंडर III पुल पर बनी एक प्रतिमा |
किसी ज़माने में ये लुइस चौदह की पुत्री का महल हुआ करता था। फ्रांसिसी
क्रांति के बाद ये इमारत जनप्रतिनिधियों की बैठक के लिए इस्तेमाल होने लगी। सड़क से
इसके जो पंक्तिबद्ध स्तंभ दिखाई देते हैं वो मूल महल का हिस्सा नहीं थे।
नेपोलियन बोनापार्ट ने भवन के पोर्टिको के रूप में ये संरचना इसके ठीक
विपरीत छोर पर बने चर्च (जिसकी छवि मैं आपको यहाँ दिखा चुका हूँ) से साम्यता
लाने के लिए किया था।
नेशनल एसेम्बली National Assembly |
जैसा कि नीचे के मानचित्र में आप देख सकते हैं कि लूवर तक पहुँचने के लिए अब हमें नेशनल एसेंबली से बाँयी ओर मुड़कर सीन नदी को पार करना था। यदि हमने नदी पहले पार की होती तो हम Arc De Truimph होते हुए Place De Concorde के चौराहे पर पहुँच सकते थे। उनका इरादा Champ Elysees पर स्थित पेरिस के मशहूर बाजारों पर विंडो शापिंग करने का था। वैसे भी चलते चलते अब तक एक घंटे का समय हो चुका था और समूह के सब लोग उस व्यक्ति को कोस रहे थे जिसने बीस मिनट में ये दूरी तय होने की बात कही थी। वापस आ कर जब मैंने ये मानचित्र देखा तो पता चला कि चार किमी की ये दूरी बिना रुके पौन घंटे में पूरी होती है।
Place De Concorde पहुँच कर सबसे पहले नज़र जाती है यहाँ खड़े विशाल स्तंभ पर जो लगभग तीन हजार साल पुराने हैं। ऐसे दो शंकुनुमा स्तंभ मिश्र के शहर लक्जर के प्राचीन मंदिर के बाहर लगे थे। एक स्तंभ तो अभी भी वहाँ मौजूद है पर दूसरे स्तंभ को मिश्र के राजा ने उन्नीसवीं शताब्दी में फ्रांस को उपहार स्वरूप भेंट कर दिया। पर मुश्किल ये थी कि 23 मीटर लंबे ग्रेनाइट के इस स्तंभ को पेरिस तक लाया कैसे जाए? मिश्र के जिस मंदिर के बाहर से इसे लाना था वहाँ तक फ्रांसिसी इंजीनियर ने एक नहर खुदवा दी। इस स्तंभ को लाने के लिए एक विशेष जहाज नहर के रास्ते मंदिर के पास पहुँचा और तब ये कहीं यहाँ लाया जा सका। ये स्तंभ आज भी वैसा है सिवाए इस बात के कि इसकी पिरामिडनुमा चोटी पर फ्रांस सरकार ने सोने की टोपी चढ़ा दी है।
लक्जर का स्तंभ Luxor Obelisk |
इस स्तंभ से सटे दो फव्वारे हैं जिन्हें राजा लुइस फिलिप के समय बनाया गया था। चौराहे के उत्तरी सिरे पर दो एक जैसी इमारत हैं जिनमें आज की तारीख़ में एक नौ सेना मंत्रालय के अधीन है जबकि दूसरी इमारत अभी होटल के रूप में इस्तेमाल होती है। इन दोनों के बीच का रास्ता चर्च की ओर जाता है जबकि दक्षिण का रास्ता नेशनल एसेम्बली की तरफ़। हमें तो यहाँ से लूवर जाने के लिए दाहिने मुड़ना था।
लूवर और लक्सर स्तंभ के बीच का उद्यान Tuileries Gardens |
यहाँ पहुँचने के बाद यहाँ लगी पंक्ति को देखकर हमारे पसीने छूटने लगे। भीड़
इतनी थी कि आधा घंटे से ज्यादा समय यहाँ टिकट खरीदने में ही लग गया। खाली
समय का इस्तेमाल संग्रहालय के मशहूर पिरामिड के साथ फोटो सेशन में खर्च
किया गया। दरअसल ये पिरामिड ही संग्रहालय का मुख्य द्वार है जिससे होकर आप
इसके अंदर दाखिल होते हैं।
लूवर का लोकप्रिय पिरामिड |
लूवर काफी दिनों तक फ्रांसिसी राजाओं के महल के रूप में काम में आता रहा। फिर जब राजमहल बदला तो ये प्रांगण राजाओं द्वारा संग्रहित कलाकृतियों को दर्शाने के काम में आने लगा। क्रांति के बाद ये संग्रहालय बना दिया गया। फ्रांस ने अपने विजय अभियान के दौरान इटली से लेकर मिश्र तक से कलाकृतियाँ बटोरीं और उन्हें यहाँ लाया गया।
पिरामिड के अंदर से दिखता दृश्य |
लूवर का टिकट घर व स्वागत कक्ष |
ये संग्रहालय इतना विशाल है कि अगर इसे ढंग से देखा जाए तो हफ्तों लग जाएँ। अब पैंतीस हजार कलाकृतियाँ और चार लाख के करीब प्राचीन वस्तुओं का ढंग से अवलोकन एक बार में करना तो नामुमकिन है। हमारे पास तीन घंटे का समय था इस लिए हमने चित्रकारी और शिल्प से जुड़ी दीर्घा की ओर जाने का निश्चय किया ।
संग्रहालय की शिल्प दीर्घा का एक हिस्सा |
संग्रहालय के ढेर सारे गलियारों को पार कर हम लिओनार्दो दा विंची की कृति मोनालिसा के सामने खड़े थे। जिस कक्ष में ये चित्रकला प्रदर्शित है वहाँ संसार के कोने कोने से आए लोग ठसे पड़े थे। आख़िर सही या गलत इस कृति की महिमा इतनी है कि लोग लूवर से इसे देखे बिना नहीं लौटते।
मैंने भी मोनालिसा की आँखों में आँखें डाल कर जानना चाहा कि आख़िर आप में ऐसी कौन बात है कि सारा विश्व आपको देखने को आतुर है? चित्रकला की बारीकियों से अनजान होने की वज़ह से मैं इस प्रयत्न में असफल रहा। वैसे क्या आपको मालूम है कि 600 वर्ष पुरानी इस पेंटिग को बीसवीं शताब्दी के आरंभ में संग्रहालय से चुरा लिया गया था। वो तो भला हो उस चोर का जिसने दो साल बाद खुद ही अपनी धृष्टता का राज खोल दिया। बाद में भी कई लोगों ने इसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश की। इन हमलों को देखते हुए सत्तर के दशक में इसे बुलेट प्रूफ काँच के आवरण से सुरक्षित कर लिया गया।
मोनालिसा के पास ज्यादा देर खड़े रह पाना आसान नहीं था क्यूँकि उसे देखने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी।
हम जल्दी ही इस भीड़ से निकल आए। घंटे भर और इधर उधर डोलने के बाद जब शरीर की उर्जा खत्म होने लगी तो संग्रहालय से वापस अपने बाकी के समूह से मिलने चल पड़े।
मैंने भी मोनालिसा की आँखों में आँखें डाल कर जानना चाहा कि आख़िर आप में ऐसी कौन बात है कि सारा विश्व आपको देखने को आतुर है? चित्रकला की बारीकियों से अनजान होने की वज़ह से मैं इस प्रयत्न में असफल रहा। वैसे क्या आपको मालूम है कि 600 वर्ष पुरानी इस पेंटिग को बीसवीं शताब्दी के आरंभ में संग्रहालय से चुरा लिया गया था। वो तो भला हो उस चोर का जिसने दो साल बाद खुद ही अपनी धृष्टता का राज खोल दिया। बाद में भी कई लोगों ने इसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश की। इन हमलों को देखते हुए सत्तर के दशक में इसे बुलेट प्रूफ काँच के आवरण से सुरक्षित कर लिया गया।
मोनालिसा के पास ज्यादा देर खड़े रह पाना आसान नहीं था क्यूँकि उसे देखने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी।
हम जल्दी ही इस भीड़ से निकल आए। घंटे भर और इधर उधर डोलने के बाद जब शरीर की उर्जा खत्म होने लगी तो संग्रहालय से वापस अपने बाकी के समूह से मिलने चल पड़े।
अब इन्हें कौन नहीं जानता? |
बाहर निकलते ही हमें मेट्रो का रास्ता मिल गया। असली मुश्किल अब आने वाली थी। फ्रेंच जुबान एक सामान्य अंग्रेजी भाषी के लिए इतनी टेढ़ी है कि वहाँ लिखे स्टेशन के नामों का सही उच्चारण कर पाना अपने बस का तो था नहीं। फिर भी जहाँ जाना था उस स्थान का नाम लेकर लोगों से जब पूछा तो लोगों के चेहरे पर शून्यता दिखी। मुझे जल्द ही समझ आ गया कि ये सब हमारे उच्चारण दोष का कमाल है। आख़िरकार एक अधेड़ फ्रेंच महिला हमारी मदद को आगे आयीं। हमने उनसे स्टेशन का नाम ना बोलकर सीधे मानचित्र पर गन्तव्य का इशारा किया और उनकी आँखें चमक उठीं। उन्होंने टिकट खरीदने में हमारी मदद की और प्लेटफार्म के बारे में भी बताया। पर कुछ और लोगों से पूछते हुए प्लेटफार्म तक आते आते हम जिस गाड़ी पे चढ़े उस पर दो स्टेशन आगे बढ़ने तक समझ आया कि हमने अप कि बजाय डाउन दिशा की ट्रेन पकड़ रखी है। वहाँ उतरकर दूसरी दिशा की ट्रेन में बैठे तो जान में जान आई।
स्टेशन के बाहर निकले तो एक स्ट्राबेरी बेचने वाला मिला। दाम पूछने पर जब उसने टका शब्द का इस्तेमाल किया तो समझ आ गया कि वो बांग्लादेशी है। पेरिस में बाहर से आकर बसने वालों में अफ्रिकी मूल के लोग ज्यादा हैं। ऐसे में एक दक्षिण एशियाई मूल के व्यक्ति से बात करना सुखद लगा।
डिज्नीलैंड गया समूह अभी तक लौटा नहीं था। समय बिताने के लिए हम सभी पहले किराना और फिर सब्जी की दुकान में घुस गए। आलू, प्याज, नीबू और टमाटर बिकता देख घर की याद हो आई। फर्क सिर्फ दस गुना ज्यादा दाम का था।
पेरिस की यात्रा का ये आख़िरी पड़ाव था। फ्रांस को Au Revoir कह कर अगली सुबह हमें यूरोप के सबसे खूबसूरत देश की ओर कूच करना था।
यूरोप यात्रा में फ्रांस
- कैसा दिखता है पेरिस मोनपारनास टॉवर से ? : An evening in Paris from top of Tour Montparnasse
- एफिल टॉवर : बुद्धिजीवियों के अनुसार जो थी बेकार सी दैत्याकार संरचना ! Eiffel Tower
- पेरिस की मशहूर इमारतें Famous Monuments of Paris near Eiffel Tower
वाह.. बहुत खूब ..ऐसा लगा पढ़ के मानो तुम सबके साथ चल रहे हैं.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, जानकर खुशी हुई।
हटाएंसही कहा आपने रामोजी किसी लिहाज से भी डिजनीलैंड से कम नही है। मैं दो बार जा चुकी हूं पर भी बहुत कुछ देखना रह गया है। निक्को के बारे में पहली बार सुन रही हूं ये क्या है और कहां पर है?
जवाब देंहटाएंनिक्को और एक्वाटिका कोलकाता के फन पार्क हैं। वैसे इनसे भी बड़ा मुंबई का एसेल्स वर्ल्ड है जहाँ बचपन में जाना हुआ था। पर रामोजी फिल्म सिटी की बात अलग है।
हटाएंशीशे का पिरामिड की जानकारी अच्छी लगी, और मोनालिसा से कौन नही मिलना चाहता..धन्यवाद सर जी
जवाब देंहटाएंहाँ सो तो है।:)
हटाएंवैसे इस शीशे के पिरामिड जैसे दो छोटे छोटे पिरामिड भी हैं यहाँ पर।
आपके साथ पेरिस घूमना अच्छा लग रहा है...
जवाब देंहटाएंआशा है यूरोप की बाकी यात्रा में भी आप साथ होंगे। :)
हटाएंमें पहली बार आप के लेख को पढ़ रहा हु बहुत अच्छा लिखा
जवाब देंहटाएंआदम मुर्तिया अछि लगी
स्वागत है आपका। आलेख पसंद करने का शुक्रिया !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-08-2017) को गये भगवान छुट्टी पर, कहाँ घंटा बजाते हो; चर्चामंच 2685 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार !
हटाएंWritten in a very lively manner with fantastic pics
जवाब देंहटाएंNice to know that u liked it !
हटाएंwoow Very nice place. thanks for share
जवाब देंहटाएंThanks.
हटाएंसर
जवाब देंहटाएंबहुत समय से आपके यात्रा लेख पढ़ रहा हूँ, पर मुझे आपसे एक शिकायत है और वो ये की आप एक यात्रा को बीच में छोड़कर दूसरी जगह घुमाना शुरू कर देते है, जिससे लम्बे समय तक पुरानी यात्रा के अगले लेख की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, और सस्पेंस तो हिंदी नाटकों से भी कही ज्यादा भड़ता जाता है ! कृपया करके आपकी जापान यात्रा और अन्य अधूरी यात्राओं को भी पूरा करे, जिससे दूसरे किसी और शहर को घूमने में भी मजा आये !
आप अगर इतने सालों से मुझे पढ़ रहे हैं तो एक बार भी अपनी शिकायत रखी क्यूँ नहीं। जापान यात्रा में हिरोशिमा व कोबे का बचा हुआ भाग मैं पहले ही लिख चुका हूँ। कभी कभी लंबे विवरण में विराम देना पड़ता है। ख़ैर आपको जब भी ऐसा लगे तुरंत इंगित करें तो मैं अपनी परेशानी भी आपसे साझा करूँगा। बिना नाम वाले कमेंट मैं शामिल नहीं करता सो कृपया अपने नाम के साथ बेहिचक अपने विचार दें।
हटाएंbahut khub sir, yeh jankar aacha lagta hai ki humara bharat bahut khubsurat hai.....
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