भारत के आंचलिक पर्व त्योहारों में देश के पूर्वी राज्यों बिहार, झारखंड ओर पूर्वी उत्तरप्रदेश में मनाया जाने वाले त्योहार छठ का विशिष्ट स्थान है। भारत के आलावा नेपाल के तराई इलाकों में भी ये पर्व बड़ी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। जिस तरह लोग पुष्कर मेले में शिरकत करने के लिए पुष्कर जाते हैं वहाँ की पवित्र झील में स्नान करते हैं, देव दीपावली में बनारस की जगमगाहट की ओर रुख करते हैं, बिहू के लिए गुवहाटी और ओनम के लिए एलेप्पी की राह पकड़ते हैं वैसे ही बिहारी संस्कृति के एक अद्भुत रूप को देखने के लिए छठ के समय पटना जरूर जाना चाहिए।
छठ महापर्व पर आज ढलते सूर्य को पहला अर्घ्य देते भक्तगण |
छठ एक सांस्कृतिक पर्व है जिसमें घर परिवार की सुख समृद्धि के लिए व्रती सूर्य की उपासना करते हैं। एक सर्वव्यापी प्राकृतिक शक्ति होने के कारण सूर्य को आदि काल से पूजा जाता रहा है। ॠगवेद में सूर्य की स्तुति में कई मंत्र हैं। दानवीर कर्ण सूर्य का कितना बड़ा उपासक था ये तो आप जानते ही हैं। किवंदतियाँ तो ये भी कहती हैं कि अज्ञातवास में द्रौपदी ने पांडवों की कुल परिवार की कुशलता के लिए वैसी ही पूजा अर्चना की थी जैसी अभी छठ में की जाती है।
पर छठ में ऐसी निराली बात क्या है? पहली तो ये कि चार दिन के इस महापर्व में पंडित की कोई आवश्यकता नहीं। पूजा आपको ख़ुद करनी है और इस कठिन पूजा में सहायता के लिए नाते रिश्तेदारों से लेकर पास पडोसी तक शामिल हो जाते हैं। यानि जो छठ नहीं करते वो भी व्रती की गतिविधियों में सहभागी बन कर उसका हिस्सा बन जाते हैं। छठ व्रत कोई भी कर सकता है। यही वज़ह है कि इस पर्व में महिलाओं के साथ पुरुष भी व्रती बने आपको नज़र आएँगे। भक्ति का आलम ये रहता है कि बिहार जैसे राज्य में इस पर्व के दौरान अपराध का स्तर सबसे कम हो जाता है। जिस रास्ते से व्रती घाट पर सूर्य को अर्घ्य देने जाते हैं वो रास्ता लोग मिल जुल कर साफ कर देते हैं और इस साफ सफाई में हर धर्म के लोग बराबर से हिस्सा लेते हैं।
सूर्य की अराधना में चार दिन चलने वाले इस पर्व की शुरुआत दीपावली के ठीक चार दिन बाद से होती है। पर्व का पहला दिन नहाए खाए कहलाता है यानि इस दिन व्रती नहा धो और पूजा कर शुद्ध शाकाहारी भोजन करता है। पर्व के दौरान शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। लहसुन प्याज का प्रयोग वर्जित है। चावल और लौकी मिश्रित चना दाल के इस भोजन में सेंधा नमक का प्रयोग होता है। व्रती बाकी लोगों से अलग सोता है। अगली शाम तक उपवास फिर रोटी व गुड़ की खीर के भोजन से टूटता है और इसे खरना कहा जाता है। छठ की परंपराओं के अनुसार इस प्रसाद को लोगों को घर बुलाकर वितरित किया जाता है। इसे मिट्टी की चूल्हे और आम की लकड़ी में पकाया जाता है।
इसके बाद का निर्जला व्रत 36 घंटे का होता है। दीपावली के छठे दिन यानि इस त्योहार के तीसरे दिन डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और फिर अगली सुबह उगते हुए सूर्य को। अर्घ्य देने के पहले स्त्रियाँ और पुरुष पानी में सूर्य की आराधना करते हैं। इस अर्घ्य के बाद ही व्रती अपना व्रत तोड़ पाता है और एक बार फिर प्रसाद वितरण से पर्व संपन्न हो जाता है । पर्व की प्रकृति ऐसी है कि घर के सारे सदस्य पर्व मनाने घर पर एक साथ इकठ्ठे हो जाते हैं।
छठ पर्व के आनंद को बढ़ाने और इसके माहौल को रचने का काम करते है छठ पर्व में गाए जाने वाले लोकगीत। एक ही धुन में गाए जाने वाले गीतों की मिठास से तो आप परिचित होंगे। अक्सर इन गीतों में उन सभी चीजों का जिक्र किया जाता है जो इस पूजा में प्रयुक्त होते हैं। मसलन केले के घौद, नारियल, सूप, टोकरी आदि।
छठ पर आम जन हर नदी पोखर पर उमड़ पड़ते हैं उल्लास के साथ |
पर छठ में ऐसी निराली बात क्या है? पहली तो ये कि चार दिन के इस महापर्व में पंडित की कोई आवश्यकता नहीं। पूजा आपको ख़ुद करनी है और इस कठिन पूजा में सहायता के लिए नाते रिश्तेदारों से लेकर पास पडोसी तक शामिल हो जाते हैं। यानि जो छठ नहीं करते वो भी व्रती की गतिविधियों में सहभागी बन कर उसका हिस्सा बन जाते हैं। छठ व्रत कोई भी कर सकता है। यही वज़ह है कि इस पर्व में महिलाओं के साथ पुरुष भी व्रती बने आपको नज़र आएँगे। भक्ति का आलम ये रहता है कि बिहार जैसे राज्य में इस पर्व के दौरान अपराध का स्तर सबसे कम हो जाता है। जिस रास्ते से व्रती घाट पर सूर्य को अर्घ्य देने जाते हैं वो रास्ता लोग मिल जुल कर साफ कर देते हैं और इस साफ सफाई में हर धर्म के लोग बराबर से हिस्सा लेते हैं।
महिलाओं के साथ कई पुरुष भी छठ का व्रत रखते हैं। |
इसके बाद का निर्जला व्रत 36 घंटे का होता है। दीपावली के छठे दिन यानि इस त्योहार के तीसरे दिन डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और फिर अगली सुबह उगते हुए सूर्य को। अर्घ्य देने के पहले स्त्रियाँ और पुरुष पानी में सूर्य की आराधना करते हैं। इस अर्घ्य के बाद ही व्रती अपना व्रत तोड़ पाता है और एक बार फिर प्रसाद वितरण से पर्व संपन्न हो जाता है । पर्व की प्रकृति ऐसी है कि घर के सारे सदस्य पर्व मनाने घर पर एक साथ इकठ्ठे हो जाते हैं।
पानी के बीच सूर्य की उपासना में लीन व्रती |
पूजा में प्रयुक्त होने वाले ईख और केले के घौद |
अर्घ्य के समय इस्तेमाल होने वाली पूजा सामग्री को टोकरी या दौरे में लाद कर पास के घाट तक पहुँचाने के जिम्मेदारी घर के पुरुषों की होती है। ईख और केले के घौद भी कान्हे पर सँभाले लोग आपको इस पर्व में अर्घ्य के दौरान आपको हर जगह दिख जाएँगे। पूजा में इनके आलावा, फल, चुकन्दर, हल्दी और अदरक पत्तियों सहित आदि का प्रयोग होता है।
सिर पर टोकरी सँभाले श्रद्धालु |
अंतिम 36 घंटे के निर्जला उपवास के दौरान घर में व्यंजनों के बनने का दौर चलता रहता है। छठ के दौरान बनने वाला सबसे प्रसिद्ध व्यंजन है ठेकुआ जो आटे और गुड़ से बनाया जाता है। वैसे चीनी के ठेकुए भी बनते हैं। बचपन में जब अगल बगल के घरों से प्रसाद आता था तो सबसे पहले हम ठेकुए के लिए लपकते थे। कॉलेज में हॉस्टल में घुसते ही दूसरे राज्य के सहपाठी ठेकुए पर ही धावा बोलते थे।
पूजा साम्रगी के साथ ठेकुआ |
चलते चलते मैं आपको छठ पर गाया जाने वाला सबसे लोकप्रिय गीत सुनाना चाहता हूँ जिसका अनुवाद मैंने सबसे पहले 2007 में अपने संगीत ब्लॉग पर किया था। आज फिर उस गीत को देखा तो पाया कि विकिपीडिया सहित कई जालपृष्ठों पर मेरा वही अनुवाद नज़र आ रहा है। :)
इस गीत में एक ऐसे ही तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे। पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को ? अब तो ना देव या सूर्य कोई उसकी सहायता नहीं कर सकते आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है उसने।
केरवा जे फरेला घवद से
ओह पर सुगा मेड़राय
उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से
सुगा देले जुठियाए
उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से
सुगा गिरे मुरझाय
उ जे सुगनी जे रोए ले वियोग से
आदित होइ ना सहाय
देव होइ ना सहाय
केरवा जे फरेला घवद से
ओह पर सुगा मेड़राय
उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से
सुगा देले जुठियाए
उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से
सुगा गिरे मुरझाय
उ जे सुगनी जे रोए ले वियोग से
आदित होइ ना सहाय
देव होइ ना सहाय
अगर आपको भारत के विभिन्न हिस्सों की संस्कृति को करीब से देखने परखने की उत्सुकता हो तो एक बार बिहार की राजधानी पटना या फिर इससे सटे राज्यों की ओर रुख करें। आस्था के इस पवित्र पर्व को एक बिहारी परिवार के साथ रहकर आप यहाँ की संस्कृति के एक बेहतरीन पहलू से रूबरू हो पाएँगे।
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
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अत्यंत सुन्दर वर्णन... बिहार से बाहर के मित्रों के लिए उपयोगी जानकारी देने के लिए बधाई सर जी
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है बिहार के छठ पर्व से जनता जिस तन्मयता से जुटती है उसे देखना हर घुमंतू के लिए जरूरी है। सरकार को चाहिए कि बिहारी संस्कृति के इस अनूठे रूप को पर्यटकों के समक्ष पेश करें।
हटाएंBahut sundar. Bachpan me kabhi ek baar attend kiya tha, uske baad to sirf TV par he dekhne ko mila.
जवाब देंहटाएंहाँ आपके पूर्वज तो उसी इलाके से हैं जहाँ ये त्योहार खूब धूमधाम से मनाया जाता है। :)
हटाएंबहुत सुन्दर गायन और महत्वपूर्ण जानकारी दी है धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको ये जानकारी पसंद आई।
हटाएंआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १५०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है - १५०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
हार्दिक आभार !
हटाएंसुन्दर ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद :)
हटाएंबहुत सुन्दर रोचक और यादगार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसराहने के लिए शुक्रिया !
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