अगर मैं आपसे पूछूँ कि बैंकाक पर्यटकों में इतना लोकप्रिय क्यूँ है तो आप क्या कहेंगे? इतना तो पक्का है कि आपके जवाब एक जैसे नहीं होंगे। मौज मस्ती के लिए यहाँ आने वाले पटाया के समुद्र तट और यहाँ के मसाज पार्लर का नाम जरूर लेंगे। वहीं इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले यहाँ की बौद्ध विरासत को प्राचीन और नवीन बौद्ध मंदिरों में ढूँढेंगे। पर कुछ लोग तो ये भी कहेंगे कि बैंकाक गए और शापिंग वापिंग नहीं की तो क्या किया? घुमक्कड़ के रूप में आपकी कैसी भी प्रकृति हो पर इस बात से शायद ही आपको इंकार हो कि खरीददारी के लिए बैंकाक में आपके पास विकल्प ही विकल्प हैं।
अपनी यात्राओं में मैं सबसे कम समय मैं वहाँ के बाजारों में बिताना चाहता हूँ। वो भी तब, जब करने को और कुछ नहीं हो। बैंकाक में वैसे तो कितने सारे सुपर स्टोर हैं। सबकी अपनी अपनी खासियत है।अब हमारे मन में बाजार से कुछ लेने के लिए बनी बनाई सूची तो थी नहीं तो सोचा कि क्यूँ ना ऐसे बाजार में समय व्यतीत करें जो स्थानीय संस्कृति के करीब हो। इसलिए बैंकाक प्रवास के आख़िरी दिन का एक बड़ा हिस्सा हमने यहाँ सप्ताहांत में लगने वाले बाजार चाटुचाक में बिताया।
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BTS Skystation पर रंग बिरंगी ट्रेन |
सुखमवित इलाके में होने की वज़ह से फायदा ये था कि हम बैंकाक के Mass Transit System यानि BTS के स्काईट्रेन स्टेशन के बिल्कुल करीब थे। बैंकाक की इस BTS सेवा में दो मुख्य रेल मार्ग हैं। एक मार्ग बैंकाक के पूर्वी स्टेशन बीरिंग से चलती हुई उत्तर में मोचित तक जाता है तो दूसरा नेशनल स्टेडियम से चलकर बांग वा की तरफ। नेशनल स्टेडियम के पास का इलाका स्याम के नाम से जाना जाता है औेर इसके पास कॉफी शापिंग मॉल्स हैं।
बैंकाक में दिल्ली मेट्रो की तरह रोड के ऊपर ऊपर ट्रेन चलाने की क़वायद नब्बे के दशक में शुरु की गई थी। थाई अधिकारियों को अपनी इस परियोजना के लिए कनाडा के वैनकूवर शहर की मेट्रो ने बहुत प्रभावित किया था। वैनकूवर में ये ज़मीन के ऊपर चलने वाली मेट्रो स्काई ट्रेन के नाम से जानी जाती थी। जब आख़िरकार 1999 दिसंबर में ये ट्रेन चली तो BTS के साथ थाई निवासियों ने वैनकूवर की अपनी प्रेरणास्रोत स्काईट्रेन का नाम अपना लिया। बैंकाक में वैसे ज़मीन के अंदर चलने वाली मेट्रो (MRT) अलग से है जो कुछ जगहों पर स्काइट्रेन के रास्ते से मिल जाती है।
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रेल मानचित्र BTS Map, Bangkok |
अपने होटल से पास के स्टेशन तक पहुँचने में हमें कुछ खास परेशानी नहीं हुई।
पर टिकट के लिए मशीन में जितने छुट्टे की जरूरत थी वो हमारे पास नहीं थे।
थाई भाषा में टिकट का दाम लिखने से अलग ही परेशानी आ रही थी। किसी तरह वहाँ
के कार्यालय से छुट्टे लिए गए। स्टेशन बिल्कुल साफ था और ट्रेनें खूब रंग
बिरंगी। मतलब जापान, फ्रांस, जर्मनी व आस्ट्रिया की ट्रेनों से (जिन पर मैं सफर कर चुका हूँ) थाइलैंड की
ये स्काई ट्रेन किसी मामले में कम नहीं थी।
BTS की ये ट्रेनें इन मार्गों पर हर दो तीन मिनट के अंतराल पर आती हैं.
सुबह साढ़े छः बजे से लेकर रात बारह बजे तक ये आवाजाही चलती रहती है। इन
ट्रेनों का कम से कम किराया पन्द्रह बहत यानि तीस रुपये के लगभग है। हमें
तो इस लाइन के अंतिम स्टेशन तक जाना था। इसलिए जो तनाव था वो गाड़ी में बैठ
भर जाने का था। बीच में उतरने का कोई चक्कर ही नहीं।
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ठाठ हों तो ऐसे ! |
ट्रेन में बैठते ही ठीक सामने की सीट पर मुझे ये सज्जन मिल गए। अपनी वेशभूषा और आकार प्रकार से वे हिंदी फिल्मों में कॉमेडियन के किरदार के लिए पूरी तरह जँच रहे थे। पाँच बालाओं के बीच चिर निद्रा में लीन चैन की बंसी बजाते से वे आधुनिक कृष्ण प्रतीत हो रहे थे।
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गुलाबी रंग की टैक्सी तो पहली बार बैंकाक में ही देखी |
मोचित पहुँचने में यहाँ का प्रसिद्ध विजय स्मारक यानि Victory Monument
नज़र आया। और हाँ यहाँ की टैक्सियाँ एक रंग की नहीं बल्कि कई रंगों की हैं।
नीली, हरी, गुलाबी , नारंगी और दोरंगी। एक रंग वाली टैक्सियाँ किसी निजी
कंपनी की होती हैं। दोरंगी टैक्सियों में सबसे प्रचलित हरी पीली टैक्सी है
जिसमें चालक ही गाड़ी का मालिक भी होता है।
मोचित स्टेशन से उतरते ही करीब सौ मीटर के फासले पर चाटुचक बाजार शुरु
हो जाता है। 27 एकड़ में फैले बैंकाक के इस बाजार को विश्व के सबसे बड़े
सप्ताहांत बाजारों में एक माना गया है। पूरा बाजार 27 हिस्सों में बँटा है।
क्या नहीं है इस बाजार में कपड़े, हश्तशिल्प, फर्नीचर, किताबें, घर की
सजावट से जुड़ी वस्तुएँ, इलेक्ट्रानिक्स, रसोई और यहाँ तक की पालतू जानवर !
बाजार के बाहरी हिस्सों को आगर आप पार कर पाए तो इसके मध्य में आपको एक
घंटाघर दिखेगा। हम चार घंटों में मुश्किल से सताइस में से दस हिस्से ही देख
पाए।
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थाई रुमाल पर गजराज |
हाथी मेरे साथी फिल्म तो ये भारत की है पर थाइलैंड के लिए बिलकुल फिट बैठती
है। आदि काल से ये देश हाथियों को पूजता रहा है। थाइलैंड के इतिहास के
पन्ने उलटें तो पाएँगे कि घने जंगलों के बीच युद्ध करने वाले राजाओं की
सवारी हाथी ही होता है। लकड़ियों और भारी सामान की ढुलाई भी इन्हीं से की
जाती थी। लिहाजा मंदिरों से लेकर रुमाल तक में इनकी छवी आपको सहजता से दिख
जाएगी। चाटुचाक मार्केट में रुमालों के बीच गजराज को मैंने जब घूमता पाया
तो उनकी तस्वीर निकाल ली...
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चित्र में तोम यम सेट बाँयी ओर व लेमन ग्रास दाहिने दिख रही है |
मसालों के बाजार में बाकी चीजें तो वहीं थी सिवाए इस तोम यम सेट के। पैकेट के अंदर तरह तरह की पत्तियाँ दिख रही थीं। पता चला कि इस सेट में तरह तरह की जड़ी बूटियाँ हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के लिए पीसकर एक घोल तैयार कर लिया जाता है जो इसी नाम के थाई सूप में इस्तेमाल होता है। इस पेस्ट के साथ इस नान वेजसूप में लेमन ग्रास भी डाली जाती है।
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इसे क्या कहते होंगे थाइ कुल्हड़ :) |
इस बाजार की विशालता को छोड़ दें तो इनमें अक़्स आपको अपने देश के बाजारों का ही दिखेगा। कई दुकानें एक दाम रखती हैं। बाकी में मोल भाव जम कर होता है। मतलब इस गिल्ट के लिए तैयार रहें कि दुकानदार आपके कहे मूल्य पर तैयार हो जाए तो दिल से आवाज़ निकले कि हाय मैंने और कम बोला होता। :)
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यात्रा से पहले हम ऐसी ही चप्पलें भारत से खरीद कर ले गए थे। हमें क्या पता था कि वो यहाँ बनती हैं। |
यहाँ अगर आपने कोई सामान पसंद कर लिया और ये सोचकर आगे बढ़ गए कि थोड़ा और
देख लें तो यकीन मानिए आप शायद ही उस दुकान को वापस लौट कर खोज सकें। मेर
इरादा तो पूरे बाजार का ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगा लूँ पर बढ़ती गर्मी और
रुक रुक कर होती खरीददारी की वज़ह से ऐसा हो नहीं पाया।
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सितारे ज़मी पर |
सुबह नौ से एक बजे तक चलते चलते भूख प्यास ने जब एक साथ धावा बोला तो हम वापस अपने होटल की ओर रुखसत हो गए।
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