राजस्थान के उत्तर पश्चिम में एक जिला है झुँझुनू और जिसका मुख्यालय भी इसी नाम से है। झुँझुनू दो वज़हों से जाना जाता रहा है। एक तो अपनी मंदिर और हवेलियों की वज़ह से और दूसरे पानी की किल्लत की वज़ह से भी। मारवाड़ियों में झुँझुनू का सबसे श्रद्धेय मंदिर है रानी सती जी का मंदिर। हालांकि सती प्रथा को तो कबका ये देश अलविदा कह गया पर लगभग तीन दशक पहले एक दाग तो लग ही गया था भारतीय समाज के दामन पर। ख़ैर छोड़िए उस बात पर कुछ देर बाद आते हैं। अभी तो बस ये जान लीजिए कि जिस रानी सती मंदिर के दर्शन आज आपको कराने जा रहा हूँ वो राजस्थान में ना होकर ओड़िशा में है।
मंदिर का मुख्य द्वार |
कार्यालय के काम के सिलसिले में मेरा अक्सर राउरकेला जाना होता रहता है। ऍसी ही एक यात्रा में वापस लौटते हुए पता चला कि जिस ट्रेन से हमें जाना है वो चार घंटे विलंब से आने वाली है। थोड़ी देर सोचने के बाद आनन फानन में योजना बनी कि समय का सदुपयोग करने के लिए क्यूँ ना राउरकेला से पैंतीस किमी दूर स्थित वीरमित्रपुर कस्बे के प्रसिद्ध रानी सती मंदिर में चला जाए। झटपट ओला मँगवाई गयी और कुछ ही क्षणों में अपने सामान सहित हम वीरमित्रपुर के रास्ते में थे।
NH 143 राजमार्ग से दिखती मंदिर की भव्य इमारत |
वीरमित्ररपुर का कस्बा, उत्तरी ओड़िशा को झारखंड से जोड़ने वाले राष्ट्रीय
राजमार्ग 143 पर है। इससे आगे बढ़ने पर कुछ ही देर में झारखंड की सीमा शुरु हो
जाती है। इसी रास्ते से राउरकेला का वेद व्यास मंदिर भी पड़ता है। झारखंड, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ से पास होने के कारण यहाँ हिंदी व ओड़िया दोनों धड़ल्ले से
बोली जाती है। मारवाड़ियों की भी यहाँ अच्छी खासी संख्या है। राजस्थान से
ठीक उलट देश के पूर्वी किनारे पर होने की वजह से अपनी इष्ट देवी की याद में
यहाँ रहने वाले मारवाड़ियों ने साठ के दशक में ये मंदिर बनवाया। नब्बे के
दशक में दो एकड़ में फैले इस मंदिर का सौंदर्यीकरण भी हुआ।
प्रार्थना कक्ष |
झुँझुनू के मुख्य मंदिर की याद में इस मंदिर को झुँझुनू धाम (Jhunjhunu Dham ) के नाम से भी जाना जाता है। स्थापत्य भी बाहर से एक जैसा है और राजस्थान के मुख्य मंदिर की तरह ही भगवान की मूर्तियाँ अंदर के कक्ष में नहीं लगी हैं। रानी सती जी को प्यार से श्रद्धालु दादी मैया के नाम से भी पूजते हैं। मंदिर का सबसे खूबसूरत हिस्सा इसका मुख्य हॉल है जहाँ लोग पूजा के लिए बैठते हैं। यहाँ छत पर लगे रंगीन टाइल के डिजाइन देखते ही बनते हैं।
रंग बिरंगी ज्यामितीय आकृतियों से सुसज्जित छत |
छत के बीचो बीच रथ पर रानी सती की पालकी के साथ एक घुड़सवार का चित्र प्रदर्शित है। जो रानी सती के महात्म से परिचित नहीं हैं उन्हें बताना चाहूँगा कि लोक कथाओं के अनुसार रानी सती को अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का अवतार माना जाता है। अभिमन्यु की मृत्यु के बाद उत्तरा ने सती होने की इच्छा ज़ाहिर की थी। भगवान कृष्ण ने इसकी स्वीकृति तो नहीं दी पर ये वरदान अवश्य दिया कि अगले जन्म में तुम फिर अभिमन्यु की पत्नी बनोगी और तब तुम सती होने की इच्छा पूर्ण कर लेना।
रानी सती जी मंदिर का प्रांगण |
कहते हैं कि उत्तरा का जन्म फिर नारायणी के रूप में राजस्थान में हुआ और
अभिमन्यु का तंधन के रूप में हिसार में। दोनी की शादी हुई और वे हँसी खुशी
अपना जीवन यापन करने लगे। तंधन के पास एक खूबसूरत घोड़ा था जिस पर हिसार के
राजकुमार की बहुत दिनों से नज़र थी। उसने बलपूर्वक घोड़े को तंधन से छीनना
चाहा। तंधन से हुई लड़ाई में राजकुमार मारा गया। गुस्साये राजा ने बदला लेने
के लिए तंधन पर फिर हमला किया। तंधन और नारायणी ने मिलकर राजा का मुकाबला
किया। तंधन तो राजा के हाथों मारा गया पर नारायणी ने अपने पराक्रम से अंततः
राजा को मार गिराया और पति की चिता के साथ ही सती हो गयीं।
सभाकक्ष की छत पर पत्थरों पर बनाया गया चित्र |
रानी सती जी मंदिर का मुख्य कक्ष |
इस मंदिर का अहाता भी रमणीक है। छोटे छोटे पर सुंदर दो पार्क हैं जिनकी हरी
भरी घास आँखों को सुकून देती है। यहाँ श्रद्धालुओं के रहने और खाने पीने
की भी व्यवस्था है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित होने के कारण ये जगह
सैलानियों के लिए बीच में रुकने के लिए आदर्श है। ये मंदिर सुबह पाँच बजे से बारह बजे तक और फिर चार बजे शाम से नौ बजे तक खुला रहता है।
और चलते चलते एक मन की बात जिसका जिक्र मैंने पोस्ट की शुरुआत में किया था। सती
प्रथा का मैं घोर विरोधी रहा हूँ। हाई स्कूल में था जब अस्सी के उत्तरार्ध में राजस्थान में रूप
कुँवर के सती होने की दर्दनाक घटना हुई थी। ये घटना मेरे किशोर मन को
महीनों मथती रही थी और अपने निष्ठुर समाज के प्रति क्रोधित करती रही थी । मैं चाहूँगा कि ऐसे मंदिरों में दादी माँ के अद्भुत
पराक्रम और अपने पति के प्रति निष्ठा व प्रेम को महिमामंडित किया जाए ना कि
उनके सतीत्व को। आज के युग में सती प्रथा ना केवल अप्रासंगिक है बल्कि अमानवीय भी। सभ्य समाज में ऐसी प्रथाओं का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। आशा करता हूँ कि आपकी राय भी इस विषय पर मुझसे मिलती जुलती होगी।
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
आपकी सूचना के लिए है कि देवराला कांड के बाद राजस्थान में सति-पूजा प्रतिबंधित हो चुकी है.
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल। उस घटना के बाद राज्य और देश दोनों में कानून सख्त किए गए। पर कानून से ज्यादा ऐसी सोच को सामाजिक जागरुकता से ही बदला जा सकता है।
हटाएंअद्भुत शिल्प और सौन्दर्य , आपकी अनुपम शैली , सुन्दर चित्रावली ....और जानकारी पूर्ण तथ्यों की भरमार , मित्र आपने हिन्दी अंतरजाल के लिए एक नायाब पृष्ठ प्रस्तुत किया , बहुत साधुवाद आपको | बहुत अच्छा लगा पढ़ कर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अजय! आपको ये आलेख पसंद आया जानकर प्रसन्नता हुई।
हटाएंएक बहुत सुन्दर स्थान की बहुत ही सुन्दर जानकारी . चित्रों ने प्रसंग को और भी मनोरम बना दिया है .आभार इस नए खूबसूरत स्थान से परिचित कराने के लिये .
जवाब देंहटाएंआपको ये आलेख पसंद आया जानकर खुशी हुई।
हटाएंबहुत ही सुन्दर लिखा है ..पढ़ क मन आहलादित हो उठा ..आभार .भविष्य में भी ऐसा लिखे ..सादर
जवाब देंहटाएंकोशिश तो हमेशा रहती है बेहतर करने की :)
हटाएंToran looks straight out of a Jain Temple...and this is beautiful example of how culture moves with humans.
जवाब देंहटाएंOhh Yes it has a striking similarity !
हटाएंदेशकाल के अनुसार सतीत्व की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल, मैं भी यही मानता हूँ !
हटाएंkaash k hum rani sati ko sati jaise nahi verangana ki tarah poojte
जवाब देंहटाएंआगे की पीढ़ियों से यही आशा है।
हटाएंबहुत ही सुन्दर एक गंभीर विषय अच्छे रोचक तरीके से प्रस्तुत किया आपने !
जवाब देंहटाएंHave visited this temple 2 years back. True copy of Rani Sati Dadi Mandir in Jhunjhunu. Brilliant :)
जवाब देंहटाएं