टोरंटो कनाडा का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है । अब अगर मैं बता दूँ कि यहाँ की आबादी करीब छब्बीस लाख है तो आप कहेंगे इसमें कौन सी बड़ी बात है? भारतीयों को आबादी के मामले में चीन के आलावा टक्कर ही कौन दे सकता है? वैसे इस बड़े शहर की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ की सर्वदेशीय संस्कृति है। कनाडा के इस पहलू के बारे में विस्तार से आगे बताऊँगा ही पर इस शहर में गुजारे दो दिनों में पहले दिन के अनुभवों को आज आपसे साझा कर लेते हैं ..
टोरंटो से नियाग्रा लगभग एक सौ तैंतीस (133) किमी की दूरी पर है।सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय यात्रियों के यहाँ आने और बसने से पहले ये इलाका आदिम जनजातियों की मिल्कियत हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि यहाँ की एक जनजाति ने इस क्षेत्र का नान टकारोन्टो रखा था जिसका शाब्दिक अभिप्राय एक ऐसी जगह से होता है जहाँ पानी में पेड़ उगते हों। इस इलाके को शहरी रूप अठारहवीं शताब्दी के आख़िर में मिला। ब्रिटिश लोगों ने इस शहर को यार्क का नाम दिया। पर उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में अमेरिकी लड़ाकों ने युद्ध में ब्रिटिश सेना को धूल चटा दी। अमेरिकी तो शहर को तहस नहस कर वापस चले गए पर इसके बाद जब शहर बसा तो टोरन्टो के नाम से।
नियाग्रा से लौटते हुए हम टोरंटो पहुँचे थे। क्वीन एलिजाबेथ राजमार्ग से गुजरता हुआ ये रास्ता कार्यालय जाने और आने के वक़्त बेहद व्यस्त रहता है। कई किमी लंबी गाड़ियों की रेंगती कतारें इस राजमार्ग की पहचान हैं। ख़ैर क्वीन एलिजाबेथ मार्ग से तो हम अपेक्षाकृत जल्दी निकल आए पर डाउनटाउन टोरंटो में अपने होटल तक पहुँचने के लिए हमें घंटे भर का वक़्त लग गया।
टोरंटो शहर की गगनचुंबी अट्टालिकाएँ
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हमारी कार हर मोड़ और चौराहे पर रुक रही थी। लिहाजा इस शहर की झांकियों को क़ैद करने का हमें यथेष्ट अवसर मिल रहा था। महानगरों की आकाश छूती इमारतों को वृहत स्तर पर देखने का मौका इससे पहले टोक्यो में मिल चुका था। फिर भी नए शहर में आँखे कुछ नया तो तलाशती ही रहती हैं। एक ओर बड़ी बड़ी इमारतें तो दूसरी ओर ओंटोरियो झील का किनारा दिख रहा था। शाम पूरी ढली भी नहीं थी पर लोग वर्जिश करते नज़र आ रहे थे। कुछ दौड़ रहे थे । कई साइकिल पर सवार थे। बाकी झील के किनारे पार्क में धूप का आनंद ले रहे थे।
ब्रुकफील्ड प्लेस जहाँ है टोरंटो के बड़े बड़े कार्यालयों का जमावड़ा |
सबसे पहले हम ब्रुकफील्ड प्लेस के इलाके के बगल से गुजरे। इस इलाके की दो विशाल इमारतें TD Canada Trust Tower और Bell Wellington Tower के नाम से जानी जाती हैं। नब्बे के दशक में बनी ये इमारतें क्रमशः 53 और 49 तल्ले ऊँची हैं।
CN Tower जिसे कनाडियन नेशनल टॉवर के नाम से भी जाना जाता है |
CN Tower यानि कनाडियन नेशनल टॉवर टोरंटो की पहचान है। साढ़े पाँच सौ मीटर से भी ज्यादा ऊँचे इस टॉवर को शहर के मुख्य केंद्र के किसी भी हिस्से से देखा जा सकता है। साठ के दशक में टोरंटो शहर तेजी से फल फूल रहा था।उस ज़माने में सारे टीवी चैनल संकेतों को माइक्रोवेव तरंगों के माध्यम से प्रसारित करते थे पर ऊँची इमारतें इसमें रुकावट खड़ी कर रही थीं। कनाडियन नेशनल रेलवे को तभी ये टॉवर बनाने का ख्याल सूझा कि क्यों ना एक सबसे ऊँचा टॉवर बना दिया जाए और ब्राडकास्टरों से उसके द्वारा प्रसारण संकेतों के वितरण का किराया वसूला जाए।
ये आड़ी तिरछी इमारत भी किसी सावन के अंधे ने ही बनवाई होगी :) :p |
1973 में
ये टॉवर बनना शुरु हुआ और लगभग तीन साल में बन के तैयार भी हो गया। अपने
अवलंब पर खड़े टॉवरों में उस वक़्त ये दुनिया का सबसे ऊँचा टॉवर था। अपनी इस हैसियत को ये टॉवर तीन दशकों तक बरकरार रख सका। आज की तारीख में टोक्यो स्काईट्री और कैंटन टॉवर के बाद इसका स्थान आता है।
घबराइए मत सिर्फ आपका ही शहर बढ़ते ट्राफिक से परेशान नहीं है..टोरंटो का ट्राफिक जॉम |
साठ के दशक में जब कनाडा में अप्रवासी चीनियों के लिए कनाडा के द्वार खोल दिए गए तो हांगकांग और चीन से भारी संख्या में यहाँ चीनी आबादी बसने लगी। एक समय ये इलाका अपने रेस्ट्राँ और वहाँ परोसे जाने वाले लज़ीज व्यंजनों के लिए विख्यात था। पर समय के साथ इस इलाके की चमक पहले से थोड़ी फीकी जरूर पड़ी है पर आज भी कास्मोपोलिटन टोरंटो का ये अभिन्न हिस्सा है।
बैंकाक हो या टोरंटो चाइनाटाउन के बिना इनके इन शहरों की रंगत अधूरी है |
टोरंटो का ट्राम सिस्टम या यहाँ की शब्दावली में कहूँ तो स्ट्रीट कार सिस्टम आपको अपने कोलकाता की याद जरूर दिला देगा। टोरंटों की इन ट्रामों का इतिहास बड़ा पुराना है। जानते हैं जब 1861 में इनकी शुरुवात हुई तो बस जैसी शक्ल वाली इन स्ट्रीटकारों को घोड़े खींचा करते थे।
और आपने सोचा था कि ट्राम वाले ट्रैक को सिर्फ कोलकाता वाले ही हथिया लेते हैं... |
पर अस्तित्व में आने के सौ साल बाद जब अमेरिका के शहरों में ट्राम का
प्रचलन बंद होना शुरु हुआ तो कनाडा में भी इसे बंद करने का प्रस्ताव रखा गया। पर स्थानीय जनता के भारी विरोध की वज़ह से ये निर्णय वापस लेना पड़ा।
आज की तारीख़ में टोरंटो की ये स्ट्रीट कारें शहर में 82 किमी लंबा जाल
बिछा चुकी हैं। पर इस दूरी के बेहद कम हिस्से में इन्हें दौड़ने का एकाधिकार
है यानि कोलकाता की तरह ही जब तब ट्रामों को बाकी वाहनों को जगह देनी पड़ती
है, जहाँ तहाँ रुकना पड़ता है। और तो और इनकी वज़ह से आपको नीला आसमान भी
तारों के जाल के बीच से देखना पड़ता है।
चारमीनार हो या सी एन टॉवर इन तारों के जाल से कहाँ बच पाएँगे !
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यहाँ के रामदा होटल में अपना सामान रखने और हाथ पाँव सीधा करने के बाद हमने सी एन टॉवर की राह पकड़ी। शाम के छः बजे जब हम इसके पास पहुँचे तो हल्का हल्का उजाला था। टिकट खरीदने के बाद पंक्ति में लग कर ऊपर जाते जाते शाम ढल चुकी थी और टोरंटो शहर जगमगा उठा था।
रंगीन रोशनी से दीप्तमान कनाडियन नेशनल टॉवर |
ऊँची ऊँची इन इमारतों के बीच टॉवर से दिखते शहर में सबसे पहले ओंटोरियो झील पर निगाह टिकती है। टोरंटो शहर इस झील के उत्तर पश्चिमी सिरे पर बसा हुआ है। इस टॉवर से जुड़ा स्टेडियम टोरंटो स्काईडोम के नाम से विख्यात है। इस स्टेडियम की विशेषता ये है कि इसके ऊपर की छत पूरी तरह से मोटरों के माध्यम से आंदर की जा सकती है। पचास हजार बैठने की क्षमता रखने वाले इस स्टेडियम का मुख्यतः बेसबाल व फुटबॉल खेलने में इस्तेमाल होता है। दूधिया प्रकाश में नहाए इस स्टेडियम और बौनों के समान प्रतीत होते खिलाड़ियों और दर्शकों को को टॉवर से देखना मेरे लिए अपने आप में एक अविस्मरणीय अनुभव था।
रॉजर्स सेंटर तो कभी जाना जाता था स्काईडोम के नाम से |
टोरंटों की अगली सुबह हमने वहाँ के मुख्य बाजार व शहर के मुख्य केंद्र Eaton Centre में बिताई थी। टोरंटो के बहुआयामी सांस्कृतिक परिवेश की कई झलकियाँ हमें उसी दिन देखने को मिली थीं। इस श्रंखला की अगली कड़ी में अपने उन्हीं अनुभवों को आपके साथ साझा करूँगा ।
CN Tower से दिखती ओंटोरियो झील और टोरंटो का डाउनटाउन इलाका |
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बहुत सुन्दर लेख है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंपसंद करने का शुक्रिया।
हटाएंटोरंटो वास्तव में तो पता नही कभी जा पाउँगा या नही लेकिन आपके माध्यम से आज बहुत बढ़िया तरह से घूम लिया !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पर टोरंटो का असली रंग आप इस लेख की अगली कड़ी में देखेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत शहर का सैर करा दिया आपने
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