इस श्रंखला के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह रास्ते की हरियाली का स्वाद लेते हुए हम चेरापूंजी पहुँचे। चेरापूंजी मेघालय का एक छोटा सा कस्बा है जिसे हम सभी बारिश की अधिकता के लिए जानते हैं। चेरापूंजी में देखने लायक बहुत कुछ है..... हर जगह फैली प्राकृतिक सुंदरता, ढेर सारे छोटे बड़े जलप्रपात , चूनापत्थर की पहाड़ियों के बीच बनी दुर्गम गुफाएँ और खासियों द्वारा पेड़ों की जड़ का इस्तेमाल कर आवगमन के लिए बनाए लिविंग रूट्स ब्रिज। पर दूसरी ओर इतनी प्राकृतिक संपदा की मिल्कियत सँभाले इस कस्बे में अच्छे होटलों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। एक डेढ़ महीने पहले से आरक्षण की कोशिश करते रहने के बाद भी हमें यहाँ जगह नहीं मिली। मतलब ये कि हमें यहाँ सुबह चलकर शाम तक शिलांग लौट आना था।
This definitely shows that city of Cherrapunji loves Football चेरापूंजी का फुटबाल प्रेम |
चेरापूंजी खासी पहाड़ियों के दक्षिणी सिरे पर बसा एक पठारी भूभाग है जो अपने आस पास की घाटियों से पाँच छः सौ मीटर ऊँचा है। पठार की इन खड़ी ढालों और गहरी घाटियाँ के दक्षिण में बाँग्लादेश का मैदानी इलाका है। जब बाँग्लादेश की ओर से मानसूनी हवाएँ चलती हैं तो जलवाष्प से भरी हवा ऊपर उठकर और ठंडी होती हुई इन खड़ी ढालों से टकराती है जिससे इस इलाके में भारी बारिश होती है। पठारी भाग के घने जंगलों में बने पानी के छोटे बड़े स्रोत मिलकर जब इन खड़ी ढालों से गिरते हैं तो झरनों का निर्माण करते हैं। चेरापूंजी में मैंनै वैसे तो करीब आधा दर्जन जलप्रपात देखे पर इनमें नोहकालिकाई का जलप्रपात मेरी स्मृतियों में हमेशा बना रहेगा।
नोहकालिकाई जाने का रास्ता चेरापूंजी के बाकी आकर्षणों की राह से थोड़ा हटकर है। पठारी इलाकों से बीच से गुजरती इस सड़क के दोनों ओर आश्चर्यजनक रूप से जंगल नदारद हैं। दूर दूर तक जंगली घास और झाड़ियों का ही साम्राज्य दिखाई देता है। आसपास के कुछ इलाके कोयले के खनन के लिए भी इस्तेमाल हो रहे हैं। शायद इसका असर यहाँ की वानस्पतिक संरचना पर पड़ा हो। पाँच छः किमी के इस रास्ते को पार करने के बाद गाड़ियों के जमावड़े को देखकर लगता है कि शायद जलप्रपात आ गया। पर दिक्कत ये है कि घने जंगलों के बीच से गिरते इस अद्भुत प्रपात के पास आप जा नहीं सकते। जहाँ से पर्यटकों को इसे देखने के लिए व्यू प्वाइंट बनाया गया है वहाँ से नीचे की ओर सीढ़ियाँ तो जाती हैं पर वो झरने से काफी दूर ही खत्म हो जाती हैं।
Nohkalikai Falls नोहकालिकाई का जलप्रपात |
पर दूर से ही इस झरने और इसके आस पास की मनोहारी छटा मन को लुभा जाती है। इतने हरे भरे दरख्तों के बीच पानी की गिरती मोटी धार और नीचे बनते नन्हे से नीले सरोवर की छवि नयनों में अटक सी जाती है और महीनों दिल से नहीं निकलती। अपने कैमरे के जूम से धारा और नीचे की जलराशि को क़ैद करने की कोशिश की तो वो एक फ्रेम में समा ही नहीं पाई। आख़िर समाती भी तो कैसे? एक बार में इतनी ऊँचाई से गिरने वाला ये भारत का सबसे ऊँचा जलप्रपात ठहरा। हम खुशकिस्मत थे कि हमें ये प्रपात ऊपर से
नीचे तक देखने का मौका मिला वर्ना अक्सर इसके मुहाने पर मानसूनी बादलों का
डेरा रहता है जिसकी वजह से इसकी मुख्य धार और आस पास की हरियाली कैमरे की
ज़द के बाहर हो जाती है।
...Where water falls from a height of 340m जहाँ तीन सौ चालीस मीटर की ऊँचाई से गिरता है पानी |
वैसे नोहकालिकाई का ये रहस्यमय जलप्रपात अपने नाम के पीछे एक बड़ी ही हृदय विदारक कथा को छुपाए बैठा है। खासी भाषा में नोह का लिकाई का शाब्दिक अर्थ है लिकाई की छलाँग। यहाँ 'का' स्त्री के लिए सम्मान सूचक शब्द की तरह इस्तेमाल होता है। यहाँ की दन्तकथाओं की मानें तो किसी ज़माने में जलप्रपात के पीछे के जंगलों में एक गाँव हुआ करता था जहाँ लिकाई नाम की एक महिला रहती थी। लिकाई की एक छोटी सी बच्ची थी। लिकाई के पहले पति की मृत्यु के बाद लिकाई ने दूसरी शादी की। पैसा कमाने के लिए उसे बच्चे को छोड़कर बोझा ढोने का काम करना पड़ता था। इसलिए जब भी वो काम कर वापस आती तो अपना बचा हुआ समय बच्चे पर लगाती। उसे ऐसे करते देख उसके दूसरे पति को कोफ़्त होती थी कि वो बच्चे की वज़ह से उसका ज़रा सा भी ख्याल नहीं रख रही है।
Near Nohkalikai नोहकालिकाई के आस पास |
एक दिन गुस्से में आकर लिकाई की अनुपस्थिति में उसके पति ने बच्ची को ना
केवल मार डाला बल्कि उसके मांस का भोजन भी बना डाला। थकी हारी लिकाई जब
वापस लौटी तो उसने बिना देखे खाना खा लिया। फिर उसे बच्ची का ध्यान आया तो
वो उसे ढूँढने लगी। बाहर आ कर जब उसने बच्ची की कटी उंगलियाँ देखीं तो उसे
सारी बात समझ आ गयी। दुख और क्रोध से उसकी अंतरआत्मा जल उठी और दौड़ते हुए
उसने इसी जलप्रपात के ऊपर से छलांग लगा दी। सोचता हूँ कि क्या उस शांत नीले सरोवर में आज भी लिकाई की आत्मा बिलखती होगी? मन फिर अनमना सा हो जाता है और फिर कदम जलप्रपात की दूसरी ओर अपने आप बढ़ जाते हैं।
Grasslands near Nohkalikai Falls |
व्यू प्वाइंट के दूसरी ओर पठार के शिखर पर एक विशाल घास का मैदान है।
बेतरतीबी से फैली घास के बीच अपने आप उग आए गुलाबी फुलों का जमावड़ा था।
आंगुतकों व युगल जोड़ों ने चल चल कर मैदानों के बीच से एक पगडंडी सी बना दी
थी जिसे पार करने के बाद आप जलप्रपात के आस पास की गहरी घाटियों काा नज़ारा
देख सकते हैं।
कोई चेरापूंजी जाए और मास्मई की गुफाओं के अंदर ना घुसे ऐसा हो सकता है भला ? चूनापत्थर की अपरदित चट्टानों से बनी इन गुफाओं को इससे पहले देखने का मौका मुझे अंडमान के बाराटांग और फुकेत की फॉग नागा खाड़ी के पास मिला था। पर जहाँ अंडमान में इन गुफाओं तक पहुंचने की यात्रा रोचक रही थी, वहीं चेरापूंजी में गुफाओं को पार कर दूसरी तरफ़ से निकलने का अनुभव हमारे समूह के लिए रोमांचकारी रहा।
Inside Mawsmai Caves मॉस्मई गुफा |
गुफा का मुख्य द्वार काफी बड़ा है। पर जैसे जैसे आप आगे जाएँगे मार्ग संकरा
होता जाएगा। मतलब कहीं आपको अपनी राह बहुत झुककर भी पार करनी पड़ती है। बिना अपना शारीरिक डील डौल देखे कई लोगों ने घुसने की कोशिश की पर गुफा में आगे जाकर फँस गये। गुफा में साफ साफ लिखा है कि घुसने के रास्ते से वापस ना आकर
दूसरी ओर से लौटें। कुछ लोग संकरेपन से परेशान हो गए तो कुछ अंदर बहते पानी
से और संदेशों को ताक पर रखते हुए उसी रास्ते लौटने लगे जिधर से आए थे।
मैने समझाने की कोशिश की तो जवाब आया कि "आगे जाओगे तो हमारी तरह ही वापस
लौटोगे" ।
किसी तरह दीवाल से चिपकते हुए उनके निकलने के लिए जगह बनाई। पर उनकी बातों को अनसुना कर हमारा समूह पूरे जोश के साथ आगे बढ़ गया। दो तीन जगह एकदम से नीचे आ गई चट्टान और बहते पानी से बचते बचाते जब हम दूसरी ओर निकले तो सबके चेहरे पर इस गुफा को फतह करने की खुशी देखते ही बनती थी।
किसी तरह दीवाल से चिपकते हुए उनके निकलने के लिए जगह बनाई। पर उनकी बातों को अनसुना कर हमारा समूह पूरे जोश के साथ आगे बढ़ गया। दो तीन जगह एकदम से नीचे आ गई चट्टान और बहते पानी से बचते बचाते जब हम दूसरी ओर निकले तो सबके चेहरे पर इस गुफा को फतह करने की खुशी देखते ही बनती थी।
Final hurrah at the exit of Mawsmai Cave गुफा यात्रा पूर्ण करने की खुशी |
वैसे मानसून में कभी कभी इस गुफा में घुटनों तक पानी भर जाता है। तब इसके अंदर चलना थोड़ा कष्टकर जरूर हो जाता है। इस श्रंखला की अगली कड़ी में आपको बताएँगे कि क्यूँ सात बहनों का जलप्रपात हमारी आशा के अनुरुप नहीं रहा और किस तरह हुई शाम की वो अनहोनी घटना जिसने मेरे इस कैमरे को मुझसे जुदा कर दिया।
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Bhut khub sir ji esa lg ra h ki humne bhi gufa ki yatra purn kr li ho
जवाब देंहटाएंOr sir ji aap to suspence bdate hi ja rhe ho camera ka 😝
अब अगली बार वो घटना ब्लॉग के पन्नों पर आ ही जाएगी। :)
हटाएंएक शूट मे दो प्रपात दिखाई दे रहे है क्या दो है या एक के दो रूप हैं?
जवाब देंहटाएंजलप्रपात को कैमरे से जूम करने के बाद इसकी ऊँचाई की वज़ह से एक फ्रेम में लाना संभव नहीं हो रहा था। इस लिए ऊपर के हिस्से को बाँयी तरफ़ और उसके बाद के हिस्से को दाँयी तरफ अलग अलग खींच कर यहाँ एक साथ जोड़ दिया है।
हटाएंअद्भुत होती है प्रकृति।
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल !
हटाएंबहुत बढ़िया मनीष जी..... यात्रा का लुफ्त आपके साथ ही आ रहा हैं...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर !
हटाएंअद्भुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंकमाल का है ! बहुत ज्यादा उँचा है !
जवाब देंहटाएंवाकई !
हटाएंदोनों पोस्ट बेहतरीन रहे.. तस्वीरों में दिखी हरियाली ने मन मोह लिया.. चेरापूंजी के नामकरण की जानकारी देने का सादर आभार सर जी...
जवाब देंहटाएंहाँ, बहुत हरा भरा है ये इलाका ! शुक्रिया पोस्ट पसंद करने के लिए !
हटाएंवाह जन्नत की सैर करा दी Manish भईया !
जवाब देंहटाएंScotland of the East यूँ ही नहीं कहते इसे खासकर तब जब आप मानसून या उसके तुरंत बाद यहाँ जाएँ :)
हटाएंकहाँ कहाँ से जुगाड़ लगा लेते हैं। यूँ ही नहीं किसी को मान सम्मान मिलता, गुण होना जरूरी तो है ही उसे सही समय पर सही जगह प्रस्तुत करने की शैली भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वरना चेरापूंजी तो हम भी घुमे हैं और हम जैसे न जाने कितने।
जवाब देंहटाएंकैसा जुगाड़ ? :)
हटाएंहम तक ऐसी जानकारियाँ पहुँचाने का जुगाड़
हटाएंThe falls look stunning. Definitely in my 2016 go to list!
जवाब देंहटाएंHope you have visited it by now !
हटाएंI am reading youre blog v.v.nice
जवाब देंहटाएंThanks Rahul !
हटाएंबहुत सही जानकारी है सर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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