डायमंड हार्बर.... बचपन में भूगोल की कक्षा में पहली बार इस जगह का नाम सुना था और तबसे आज तक मैं यही सोचता था कि कोलकाता का मुख्य बंदरगाह यही होगा। हीरा तो वैसे भी अनमोल होता है सो डायमंड हार्बर बाल मन से अपने प्रति उत्सुकता जगाता रहा। पर पिछले तीन दशकों में दर्जनों बार कोलकाता गया पर डायमंड हार्बर चाह कर भी नहीं जा पाया। जाता भी तो कैसे भीड़ भाड़ वाले कोलकाता में पचास किमी का सफ़र दो से तीन घंटे से पहले कहाँ खत्म होने वाला है और इतना समय होता नहीं था। सो विक्टोरिया मेमोरियल, बेलूर मठ, दक्षिणेश्वर, बोटानिकल गार्डन, साइंस सिटी, निको पार्क जैसी जगहों के चक्कर तो लग गए पर डायमंड हार्बर, डायमंड नेकलेस की तरह पहुँच से दूर ही रह गया। डायमंड हार्बर के बारे में जो गलतफहमी मैंने बचपन से पाल रखी थी वो तब दूर हुई जब डेढ़ महीने पहले यानि पिछले दिसंबर में मैं वहाँ पहुँचा।
Diamond Harbour डायमंड हार्बर, |
आज की तारीख़ में डायमंड हार्बर में कोई बंदरगाह नहीं है। ये जरूर है कि कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट कई दिनों से यहाँ जेटी बनाने की सोच रहा है। फिर डायमंड हार्बर है क्या? दरअसल कोलकाता से दक्षिण पश्चिम बहती हुगली नदी इसी के पास दक्षिण की ओर घुमाव लेती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक ज़माने में ये देश विदेश से होने वाले व्यापार का केंद्र था क्यूँकि यहीं से कोलकाता के बाजारों तक पहुँचा जा सकता था। आज तो यहाँ बस एक रिवर फ्रंट और टूटा हुआ किला ही है।
बॉलीगंज से टालीगंज होते हुए जब हमने डायमंड हार्बर रोड की राह थामी तब घड़ी की सुइयाँ दस बजा रही थीं। छुट्टी का दिन था फिर भी सड़क पर ट्राफिक कम नहीं था। वैसे भी राष्ट्रीय राजमार्ग 117 से जाने वाला ये रास्ता चौड़ा नहीं है। दोपहर बारह बजे जब हम डायमंड हार्बर पहुँचे तो आसमान को स्याह बादलों ने घेर रखा था।
कभी कभी धूप की किरणें शरीर में हल्की सी गर्माहट भर देती थीं। सामने नदी
अब हमारे समानांतर बह रही थी पर नदी के दूसरी तरफ़ फैले हुए कोहरे ने
हरियाली को ढक रखा था। अपने मुहाने तक मिट्टी ढोती गंगा के पानी का रंग
बादलों के रंग से ऍसा मिल गया था कि नदी के जल के विस्तार का अंदाज
लगा पाना मुश्किल था।
रिवर फ्रंट के दूसरी ओर पश्चिम बंगाल पर्यटन का गेस्ट हाउस था जहाँ जलपान के साथ हल्का फुल्का हुआ जा सकता है। पर भूख तो कोसों दूर थी। नदी के साथ कुछ घंटे भटकने का दिल कर रहा था। सो रिवर फ्रंट के किनारे किनारे चहलक़दमी करने लगे ।
River Front |
सरकार द्वारा बनाई गई छायादार सीमेट की सीटों पर कुछ परिवार व जोड़े अच्छे मौसम का आनंद उठा रहे थे। जहाँ पूरा देश सर्दी से ठिठुर रहा था वहीं दिसंबर का आख़िरी हफ्ता होने के बावज़ूद कोलकाता में तब स्वेटर पहनने की भी जरूरत नहीं थी। सड़क पर चलते चलते हमारी नज़र एक छोटे से पार्क पर पड़ी। सामने रवी्द्र नाथ टैगोर की मूर्ति बनी थी। वही रवींद्र बाबू जिनके द्वारा दी गई राष्ट्रवाद की परिभाषा सोशल मीडिया पर आजकल खूब उद्धरित की जा रही है।
Tagore's Statue रवींद्र नाथ टैगोर की मूर्ति |
टैगोर की मूर्ति के सामने खड़े इस पेड़ से सीधे गिरती लतरें अनायास ही ध्यान खींच गई। मैं तो समझ नहीं पाया शायद आप बता सकें कि ये कौन सा पेड़ है?
Identify the tree ? बताइए कि ये कौन सा पेड़ है ? |
दूर किले की दिशा में एक जहाज तट के किनारे फँसा दिख रहा था। पता नहीं कितने दिनों से वो यूँ ही वहाँ पड़ा था । घने पेड़ों की छाया में बने चबूतरे पर कुछ वक़्त बिताने के बाद हम नदी के किनारे बने पुराने किले के खंडहर की ओर चल पड़े।
A stylish electric rickshaw इलेक्ट्रिक रिक्शा |
जबसे तृणमूल का शासन बंगाल में आया है ममता दीदी ने पूरे बंगाल को नीले सफेद व आसमानी रंगों में रंग दिया है। सरकारी इमारतों, पार्क, गेस्टहाउस यहाँ तक कि बैठने के लिए बनाई गई सीमेंट की कुर्सियाँ और सड़क के दोनों ओर पेड़ पर लगाई गई धारियाँ भी इसी रंग में रंगे हैं। अब अगर इस इलेक्ट्रिक रिक्शा वाले ने भी ये रंग अपना लिया है तो इसमें अचरज कैसा? :)
Guest House in Diamond Harbour डायमंड हार्बर पर बना एक गेस्ट हाउस |
मुख्य सड़क से किले की ओर जाने का रास्ता दाँयी ओर कटता है। एक गेस्ट हाउस व पार्क के आलावा वहाँ कुछ था तो नहीं पर दस रुपये का टिकट जरूर लग गया। पार्क में पिकनिक मनाने वालों की अच्छी खासी भीड़ थी। पेड़ पौधे तो नदारद थे पर स्वच्छ भारत अभियान को शर्मिंदा करती गंदगी भरपूर थी। साफ सुथरा था तो ये नए रंग रोगन से परिपूर्ण गेस्ट हाउस। अब चूंकि गेस्ट हाउस के हर कमरे पर ताला लटक रहा था तो हम फोटो खिंचाने का ये अवसर कैसे जाने देते?
Jaggery being made from Khajoor खजूर से बनता गुड़ |
Square stones at riverside नदी के किनारे बिखरे चोकौर पत्थर |
The remains of a throne :) किला नहीं रहा, सिंहासन ही सही ! :) |
इसका इस्तेमाल गोदाम की तरह होता था। बाहर से आयातित वस्तुएँ और यहाँ से ले जाए जाने वाले सामान यहाँ रखे जाते थे जिन्हें जहाजों के माध्यम से यूरोप भेजा जाता था। तब इस जगह का नाम हाजीपुर था जिसे अंग्रेजों ने बदलकर डायमंड हार्बर कर दिया।
किले के नाम पर तो यहाँ अब थोड़े से खंडहर बचे हैं। रखरखाव के आभाव में वो भी ज्यादा दिन रह पाएँगे इसमें संदेह है। आश्चर्य इस बात का है कि यहाँ किले के इतिहास के बारे में ना कोई जानकारी देने वाला बोर्ड बनाया गया है ना वहाँ तक पहुँचने का कोई अच्छा रास्ता है।
Ready for the kill...शिकार के लिए तैयार |
नदी की टोह तो बहुत ले ली अब इस वृक्ष के नीचे ही धूनी रमाई जाए :) |
हमें किसी ने बताया था कि नदी के कुछ खूबसूरत दृश्य यहाँ के होटल
पुण्यलक्ष्मी के आहाते से दिखाई देते हैं। वेसे भी भोजन का समय हो चला था
तो मैंने सोचा कि इसी बहाने दोनों काम हो जाएँगे। होटल का अहाता बेहद साफ
सुथरा व हरियाली से भरपूर था। खाना खाने के बाद यहाँ बनी बैठकों से नदी
को निहारने का एक बार फिर मौका मिला।
River view from Hotel Punyalakshmi पुण्यलक्ष्मी होटल परिसर से नदी का दृश्य |
डायमंड हार्बर का ये अनुभव मेरे लिए मिश्रित रहा। वैसे ये बता दूँ कि डायमंड हार्बर गंगासागर के रास्ते में पड़ता है यानि यहीं से होकर गंगासागर तक पहुँचा जा सकता है। सो अगर आप चाहें तो दोनों जगहों को एक साथ ही देख सकते हैं।
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
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बहुत बढिया यात्रा, सन 2000 में यहाँ आया था रथयात्रा के दिन। सड़कों पर बड़ी गहमा गहमी थी। अब फ़िर कभी समय मिलने पर एक चक्कर और लगाएगें।
जवाब देंहटाएंहाँ अच्छी जगह है पर किले की तरफ़ थोड़ी साफ सफाई और रख रखाव थोड़ा बेहतर हो तो यहाँ आने वाले यात्रियों के लिए आना और सुखद हो जाए।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बृहस्पतिवार (18-02-2016) को "अस्थायीरूप से चर्चा मंच लॉक" (वैकल्पिक चर्चा मंच अंक-2) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
मित्रों।
सात वर्षों से प्रतिदिन अनवरतरूप से
ब्लॉगों की अद्यतन प्रविष्टियाँ दिखा रहे
आप सब ब्लॉगरों की पहली पसन्द "चर्चा मंच" को
किसी शरारती व्यक्ति की शिकायत पर अस्थायीरूप से
लॉक किया गया है। गूगल को अपील कर दी गयी है।
तब तक आपके लिंकों का सिलसिला यहाँ
"वैकल्पिक चर्चा मंच" पर जारी रहेगा।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जानकर दुख हुआ कि चर्चा मंच ब्लॉक कर दिया गया है। क्या गूगल से इस बात का कारण पूछा गया है कि किस आधार पर किसी की शिकायत को मान्यता दी गई?
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विरोध के लिए विरोध की राजनीति - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
हटाएंडायमण्ड हार्बर नाम तो सुना है, नीले रंग के घर और रिक्शा मजेदार लगा।
जवाब देंहटाएंपेड़ के तने भी यहाँ नीले सफेद रंगों मे रँगे हैं :)
हटाएंबेहतरीन पोस्ट। इस पोस्ट को पढ़कर मेरी भी गलतफहमी दूर हुई। मैं भी पहले डायमण्ड हार्बर को बन्दरगाह ही समझता था।
जवाब देंहटाएंहाँ और मेरी भी! पर कुछ सालों यहाँ एक जेटी बनने की उम्मीद तो है।
हटाएंBahut achaa aapke post ko padke sukun milta h thank you
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई!
हटाएंहम पिछले महिने कोलकत्ता और सुंदरबन हो आऐ पर इसके बारे में पता नाही था । आपके लेख ने इस जगह सि पहचान करा दी । धन्यवाद । अगली बार यहा जाना जरूर पसंद करेंगे ।
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका इस ब्लॉग पर सोनाली। मैं वहाँ तीन साल पहले गया था। शांत औेर सुरम्य जगह है।
हटाएंबहुत अच्छा लगा आपका यह लेख इससइ पर्यटकों को काफी जानजान मिलेगी।
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