राँची शहर से बीस किमी की दूरी पर लालखटंगा की पठारी भूमि पर जंगलों के बीचो बीच एक उद्यान है जिसे झारखंड की जैव विविधता को दर्शाने व उसका संरक्षण कर पोषित करने की कोशिश की गई है। यूँ तो 542 हेक्टेयर मैं फैले इस प्राकृतिक बागीचे को खुले दो साल से ज्यादा का वक़्त हो गया है पर मुझे इसमें विचरने का मौका पिछले महीने ही मिला।
जैव विविधता उद्यान इतनी दूर दूर तक फैला है कि दिन भर में इसकी चौहद्दी नापना अच्छे अच्छों को थका सकता है। राँची के खुले आसमान में नवंबर दिसंबर की धूप इतनी सख़्त होती है कि अगर गलती से आपने दोपहर में गर्म कपड़े पहन रखे हों तो पसीने पसीने होते देर नहीं लगेगी। पर अंदर के नज़ारों ने अपने मोहपाश में ऐसा बाँधा कि कैसे दिन के पाँच घंटे इसमें बीते ये पता ही नहीं चला।
जैव विविधता उद्यान का सबसे मशहूर हिस्सा धनवंतरी औषधीय उद्यान के नाम से जाना जाता है जो यहाँ के मुख्य लॉन के दाहिनी तरफ़ है। जिन पौधों को मसाले या दवा के रूप में हम अक्सर इस्तेमाल करते हैं उन्हें करीब से देखना बड़ा दिलचस्प होता है।
आपको याद होगा कि अपनी केरल यात्रा में इलायची, कॉफी और दालचीनी के पौधों को देख मन आनंद से भर गया था़। इस उद्यान में भी सौ के करीब औषधीय पौधे हैं। यहीं पहली बार मैंने सर्पगंधा का लाल रंग के छोटे गोल से फल को देखा। मिंट की तीन अलग अलग प्रजातियाँ दिखी। हर एक पत्ती का स्वाद कुछ अलग सी ताजगी का अहसास दे रहा था। कईयों के तो नाम ही पहली बार सुने थे मसलन कजरी, चिड़चिड़ी, पत्थरचूर, गोकुलकाँटा।
करौंदे के पेड़ मुँह में उसकी चटनी का स्वाद उभर आया तो केवड़े के बगल से गुजरते हुए उसकी सुगंध का। तेजपत्ते के वृक्ष के नीचे गिरे हुए सूखे पत्तों को देख एक बार दिल बेईमान हो आया कि क्यूँ ना एक झोली अपनी भी भर कर चल दें।
थोड़ी दूर और आगे बढ़े तो ये सिंदूर का पेड़ सामने आ गया। पहले तो समझ नहीं आया कि इससे सिंदूरी रंग कैसे बनता होगा? पेड़ से गिरे फलों को तोड़ा तो अंदर से वही रंग अपनी हथेलियों पर फैलता पाया।
धनवंतरी के उद्यान से निकल ही रहे थे कि इन भृंगराज नरेश के दर्शन हो गए। आँखे इतनी चौकन्नी मजाल है कि कोई इनके साम्राज्य में चूँ भी कर जाए।
उद्यान से आधे किमी की दूरी पर नागफनी का इलाका है। नागफनी की विभिन्न प्रजातियों को यहाँ अलग अलग हिस्सों में चारों ओर से घेर कर रखा गया है ताकि इनके लिए उचित तापमान बनाए रखा जा सके। नागफनी की सुंदरता से मन ऐसा प्रभावित हुआ कि इन्हें छूते हुए फोटो खिंचवाने की इच्छा मन में जाग उठी। पर इधर पहला पोज देने के लिए हाथ बढ़ाया और उधर खून की पतली लकीर हाथ से निकल पड़ी। फिर तो दूर से ही राम राम कर हम इनकी बगल से चलते बने।
आगे का रास्ते में घास की अलग अलग किस्मों को बोया गया था। वहाँ से हमने जलीय उद्यान और गुलाब वाटिका की राह पकड़ी।
वाटिका के चारों ओर बोगनवेलिया के रंग बिरंगे फूल मन को अंदर तक खिला गए।
कमल व वॉटर लिली के फूलों को रोड व ट्रेन में सफर करते गुजरते पोखरों तालाबों में देखता रहा हूँ। पर जब तक कैमरा तैयार हो तब तक वो दृश्य हमेशा आँखों से ओझल हो जाया करता था। पर यहाँ आकर उनके विविध रूपों को जी भर के देखने का मौका मिला। जलीय उद्यान में इनकी पन्द्रह प्रजातियाँ हैं जिनमें से कुछ जाड़ों में भी खिली हुई थीं।
पानी में बढ़ते इन पौधों की लतरे अपने पत्तों को गोलाई में फैला लेती हैं ताकि सूर्य किरणों को अपनी सतह पर सोख लें। अब इन पौधों को क्या पता था कि इनकी ये पत्तियाँ जाड़े की नर्म धूप का आनंद लेने के लिए किसी का आसन बन जाएँगी।
अचानक ही हमारे समूह की नज़र इन पर पड़ गई फिर क्या था वहाँ जितने लोग थे वो भिन्न भिन्न कोणों से सर्पराज की तसवीरें लेने लगे पर उससे भी इनके आराम में कोई खलल नहीं पड़ा और ये चैन की बंशी बजाते वैसे ही सोते रहे।
पूरे उद्यान में पाँच किमी लंबे नेचर ट्रेल हैं जो जंगल की पगडंडियों के बीच से उद्यान की सैर कराते हैं। हम लोग भी एक ट्रेल में घुस पड़े। ऐसे जंगलों में चलते वक़्त दो जन्तुओं से बहुत सावधान रहना पड़ता है। जमीन पर रेंगती चीटों के आकार की लाल चीटियों और ऊपर अपना विशाल जाल बनाई जहरीली मकड़ियों से। एक बार शरीर का कोई हिस्सा इनसे टकराया तो समाजिये इनके घातक वार से पूरे दिन का सत्यानाश। थोड़े दूर घने जंगलों के बीच से चलते हुए हम चारों ओर जंगलों से घिरे इस मैदान में पहुँचे।
नेचर ट्रेल से निकल कर हम बाँस कुंज की ओर मुड़ गए। करीब तीन किमी की यात्रा के बाद बाँस के वृक्षों के दर्शन हुए। पर उनकी सघनता वैसी नहीं थी जितनी की हमें अपेक्षा थी। चलते चलते अब थकान होने लगी थी। सो हमने पार्क से विदा ली। अगर आप प्रकृति प्रेमी हों और राँची से ज्यादा दूर जाए बिना यहाँ की आबो हवा व वनस्पतियों से परिचित होना चाहते हों तो यहाँ आना ना भूलें। यहाँ आकर आप निश्चय ही निराश नहीं होंगे।
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साँप को फोटो शानदार है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंGood one ! there is a biodiversity park in Gurgaon also which started couple of years back only. After going through your post planning to visit soon that park.
जवाब देंहटाएंNice to know that Gurgaon is also having a Bio Diversity Park. Good to have some greenery in usual arid terrain of Haryana.
हटाएंSuch parks are need of hour. To preserve local flora/fauna, efforts be made
जवाब देंहटाएंYes, absolutely !
हटाएंअरे वाह.. यहां हम भी पिछले वर्ष गये थे, फूलों के कुछ शानदार चित्र भी मिले थे Suhano Drishti: फूलों से सुन्दर आपने देखा भी है..
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट उन यादों को फिर से ताजा कर गयीं....
हाँ याद है फूलों की छवियों से सजाया था तुमने उस पोस्ट को। चित्र तो मैंने भी ढेर सारे खींचे पर यहाँ कुछ को ही लगा पाया हूँ।
हटाएंबहुत खूबसूरत.... मैं जब वहां था तो मालूम ही नहीं था... अब कभी मौका मिला तो जरूर जाऊंगा...
जवाब देंहटाएंअगली बार आइए तो ज़रूर देखिए पर हाथ में कम से कम आधा दिन जरूर रहना चाहिए आपके पास।
हटाएंNice share
जवाब देंहटाएंThx.
हटाएंReal your Photos and collection so much attrective
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !आप गूगल हिंदी इनपुट की सहायता से नेट पर हिंदी में भी लिख सकते हैं।
हटाएंबहुत सुन्दर मनमोहक चित्रण ...लाजवाब फोटो ....
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
शुक्रिया कविता जी पोस्ट को सराहने के लिए भी और जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनाओं के लिए भी। वैसे मेरा जन्मदिन मकर संक्रांति के दिन होता है। :)
हटाएंजैव विविधता उद्यान रांची में विचरण किये गए सम्पूर्ण सुखद, यादगार पलों को काफी सुन्दर तरीके से यात्रा वृत्तांत के रूप में पिरोया है......!!! बहुत अच्छा, उत्कृष्ट !!!
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई कि आपको ये पोस्ट पसंद आई।
हटाएंमनमोहक दृश्य लेकर आये हो।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया फोटोग्राफ्स हैं ।
जवाब देंहटाएंवाह! रांची के इतने करीब होकर भी इनके बारे आज तक नहीं मालूम था। पढ़कर मजा आया।
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