सोमवार, 9 नवंबर 2015

जब राँची में उतर आया रंग बिरंगा प्यारा सा राजस्थानी गाँव .. Best Puja Pandal of Ranchi

दीपावली पास आ रही है। आप सब घर की सफाई में जुटे होंगे। नाते रिश्तेदारों से मिलने का उत्साह भी होगा। दीपावली में मैं भी बिहार की राजधानी पटना की यात्रा पर रहूँगा पर उससे पहले मैं चाहता हूँ कि अपने इस ब्लॉग पर ही दीपावली मना लूँ। आप पूछेंगे वो कैसे ? तो वो ऐसे जनाब कि मैं ले चलूँगा आपको एक ऐसी जगह जहाँ मैंने दशहरे के वक़्त ही दीपावली के  माहौल की खुशियाँ बटोर ली थीं। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ राँची के इस साल के सबसे खूबसूरत पंडाल की जो दशहरे के वक़्त एक रंग बिरंगे गाँव के रूप में  दीपावली के उल्लास से सराबोर था। 




रात नौ बजे हम जब राँची रेलवे स्टेशन के सामने बनाए गए इस पंडाल तक पहुंचे तो चार पाँच सौ लोगों की लंबी कतार से सामना हुआ। आधे घंटे हमें इस कतार को पार कर तक पंडाल के बाहरी द्वार तक पहुँचने में लग गए। बाहरी द्वार के सामने वहाँ की पारम्परिक सवारी ऊँट पर बैठे ये सज्जन हमारा स्वागत कर रहे थे। स्वागत अकेले का अच्छा नहीं लगता ना तो पीछे  तोरण द्वार के शीर्ष पर इन्होंने अपने साथियों को भी खड़ा कर रखा था।


राजस्थान में कठपुतलियों का अपना एक इतिहास रहा है। रास्ते के दोनों ये कठपुतलियाँ अपमी रंग बिरंगी पोशाकों को पहन इठला रही थीं। सो मेंने सोचा कि इनके साथ कम से कम एक तसवीर ही ले ली जाए।


जब मैं राजस्थान में जैसलमेर गया था तो एक के ऊपर एक रखे इन घड़ों के साथ वहाँ के कलाकारों को अद्भुत नृत्य करते देखा था। पानी की कमी के कारण वहाँ इस तरह के मटकों में महिलाएँ दूर दूर से पानी लाती हैं। इस  राजस्थानी गाँव के आँगन को इन्ही मटकों से सजाया गया था।


आँगन को पार कर जैसे ही हम गाँव के मुख्य द्वार तक पहुँचे दशानन की घूरती नज़रों ने एकबारगी हमें डरा ही दिया।


मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही जो दृश्य दिखा उससे मन अभीभूत हो उठा। परिसर की दीवारों पर छोटे छोटे बिजली के दीये  यूँ टिमटिमा रहे थे मानो दिवाली मनाई जा रही हो। दुर्गा माँ की फूस की बनी झोपड़ी के शीर्ष पर मोरों का डेरा था।


रंग बिरंगी बल्लियों से बनाई दीवारें, समूह में बैठे राजस्थानी कलाकारों की छवियाँ, परिसर में रखी बैलगाड़ी और राजस्थानी वेशभूषा में सुसज्जित नर नारियों की मूर्तियों को देख एक बार के लिए मैं भूल ही गया कि मैं राँची में हूँ।


अहाते के हर कोने को इतने सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था कि भीड़ के साथ आगे बढ़ने का दिल ही नहीं कर रहा था।


रंगों का इतना सुंदर समावेश मन मयूर को प्रफुल्लित किये  दे रहा था।


माँ दुर्गा का लिबास और साज सज्जा भी राजस्थानी ढंग से की गई थी।


रात की रोशनी में इस पंडाल को देखना अपने आप में अभूतपूर्व अनुभव था। पर भीड़ की वज़ह से यहाँ की गई कारीगरी  को रात में सुकून से ना देख पाने का मलाल था। सो अगले दिन मैं फिर यहाँ पहुँचा।


प्रकाश संयोजन किस तरह पंडाल की सुंदरता में चार चाँद लगा सकता है ये आप रात और दिन के चित्रों में फर्क देख कर महसूस कर सकते हैं।

 
ये है लकड़ी की सुंदर से पहियों वाली गाड़ी


बैलों को हाँकता एक गाड़ीवान...


और ये है संगीत और नृत्य की एक महफिल..


अब आप ही बताइए दिन की रौशनी में ये महानुभाव और इनका ऊँट क्या अलग नहीं लग रहे? हाँ  मैं वही हूँ लेकिन :)।

बहरहाल ये था मेरी समझ से राँची का इस साल का सबसे खूबसूरत पंडाल। आशा है आप भी मेरी राय से सहमत होंगे अगर  नहीं तो बेहिचक लिखिएगा कि इन बारह पंडालों में आपको सबसे सुंदर पंडाल कौन सा लगा ? बहरहाल दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मुझको पंडाल परिक्रमा की इस आख़िरी कड़ी का समापन करने की इज़ाजत दीजिए। अगले हफ्ते आपसे मिलेंगे बैंकाक के नाइट क्रूज पर।

राँची की दुर्गा पूजा पंडाल परिक्रमा

अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. चित्र प्रस्तुतीकरण अभिनव है।

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. Ohh for me the decor was the best part with small diya like lamps giving the feel of diwali in a village surrounding.

      हटाएं
  3. रांची में बसा राजस्थानी गाँव सच मेंसर्वश्रेष्ठ है. दो पंडालों में टूटी चूड़ियों एवं धागों की कारीगरी भी पसंद आयी. आपके माध्यम से रांची की यात्रा अद्भुत रही. सादर धन्यवाद् सर.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस पंडाल परिक्रमा में साथ बने रहने का शुक्रिया मनीष !

      हटाएं