अक्टूबर के पहले हफ्ते में उत्तर प्रदेश पर्यटन की तरफ़ से एक न्योता आया आगरा, लखनऊ और बनारस के आस पास के इलाकों में उनके साथ घूमने का। सफ़र का समापन यात्रा लेखकों के सम्मेलन से लखनऊ में होना था। सम्मेलन में भारत और विदेशों से करीब चालीस पत्रकार, ब्लॉगर और फोटोग्राफर बुलाए गए थे।
उत्तर प्रदेश मेरे माता पिता का घर रहा है। बनारस, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद व आगरा जैसे शहरों में मैं पहले भी कई बार जा चुका हूँ। बनारस के घाट की स्मृतियाँ तो एकदम नई थीं क्यूँकि वहाँ पिछले साल ही गया था पर आगरा गए पन्द्रह साल से ऊपर हो चुके थे। सो मैंने आगरा वाले समूह के साथ जाने की हामी भर दी।
उत्तर प्रदेश पर्यटन ने अपने इस कार्यक्रम को दि हेरिटेज आर्क (The Heritage Arc) का नाम दिया था। इस परिधि में आगरा, लखनऊ व बनारस के आस पास के वो सारे इलाके शामिल किए गए थे जहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं। यानि उद्देश्य ये कि इनमें से पर्यटक किसी भी जगह जाए तो उसके करीब के सारे आकर्षणों को देखते हुए ही लौटे। ज़ाहिर था उत्तर प्रदेश पर्यटन हमें भी ताज़ के आगे का आगरा (Agra beyond Taj) दिखाने को उत्सुक था। सफ़र के ठीक पहले जब पूरे कार्यक्रम को देखा तो मन आनंदित हुए बिना नहीं रह सका। ऐतिहासिक धरोहरों, वन्य जीवन, प्रकृति, कला, संस्कृति व खान पान का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण बिड़ले ही किसी कार्यक्रम में देखने को मिलता है।
उत्तर प्रदेश मेरे माता पिता का घर रहा है। बनारस, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद व आगरा जैसे शहरों में मैं पहले भी कई बार जा चुका हूँ। बनारस के घाट की स्मृतियाँ तो एकदम नई थीं क्यूँकि वहाँ पिछले साल ही गया था पर आगरा गए पन्द्रह साल से ऊपर हो चुके थे। सो मैंने आगरा वाले समूह के साथ जाने की हामी भर दी।
उत्तर प्रदेश पर्यटन ने अपने इस कार्यक्रम को दि हेरिटेज आर्क (The Heritage Arc) का नाम दिया था। इस परिधि में आगरा, लखनऊ व बनारस के आस पास के वो सारे इलाके शामिल किए गए थे जहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं। यानि उद्देश्य ये कि इनमें से पर्यटक किसी भी जगह जाए तो उसके करीब के सारे आकर्षणों को देखते हुए ही लौटे। ज़ाहिर था उत्तर प्रदेश पर्यटन हमें भी ताज़ के आगे का आगरा (Agra beyond Taj) दिखाने को उत्सुक था। सफ़र के ठीक पहले जब पूरे कार्यक्रम को देखा तो मन आनंदित हुए बिना नहीं रह सका। ऐतिहासिक धरोहरों, वन्य जीवन, प्रकृति, कला, संस्कृति व खान पान का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण बिड़ले ही किसी कार्यक्रम में देखने को मिलता है।
First ray of the Sun falling on the Taj |
The Taj in all its glory ! |
उन डेढ़ घंटों में ताज़ के इतिहास के बारे में हम सभी कुछ नए पहलुओं से रूबरू हुए। दिल कर रहा था कि मकबरे के बाहर चबूतरे पर धूनी रमा कर बैठ जाएँ और ताज़ के इस सुनहरे तिलिस्म के जाल में ख़ुद को डुबो दें। पर वक़्त की पाबंदी थी। सो मन मसोस के ताज़ परिसर से थोड़ी दूर जलपान के लिए ताज़ खेमे (Taj Khema) में पहुँचे। हमें बताया गया कि वर्तमान मुख्य मंत्री अपनी पत्नी के साथ वैलेंटाइन डे पर यहीं से साथ साथ ताज़ को निहारा करते हैं। सच, रुमानी जगह तो थी वो। ताज के अंदर की भीड़ भाड़ से कहीं दूर हरियाली के इस आँगन में उसके सुनहरे गुंबद को देखना किसके लिए प्रीतिकर नहीं होगा?
A view of Taj from Taj Khema |
जलपान के बाद का हमारा अगला पड़ाव था सूर सरोवर (Soor Sarovar) जो आगरे से पच्चीस किमी दूर, कीथम में स्थित हैं। वैसे तो 800 हेक्टेयर में फैला ये अभ्यारण्य पक्षियों की शरणस्थली है पर यहाँ नाचने वाले भालू के बचाव व पुनर्वास के लिए बनाया गया एक अनोखा केंद्र भी है जिसे WildlifeSOS नाम की निजी संस्था चला रही है। बचपन में जिस भालू के नाच के पीछे हम खुश हुआ करते थे,उन भालुओं के साथ उन्हें नचाने वाला कलंदर समुदाय कितना अमानवीय बर्ताव करता था, वो यहीं आकर पता चला। खुशी की बात ये है कि ये संस्था ना केवल शारीरिक रूप से लाचार कर दिए गए भालुओं का रखरखाव कर रही है बल्कि कलंदर समुदाय को वैकल्पिक रोज़गार दिलाने के लिए प्रशिक्षित भी कर रही है।
सूर सरोवर झील से वापस आगरा जाते हुए हम अकबर के मकबरे सिकंदरा में रुके। अंदर से ये मकबरा जितना मामूली है, बाहर से इसका आवरण उतना ही आकर्षक। इसके मुख्य द्वार की खूबसूरती देखते ही बनती है। मकबरे में घुसते ही दीवार पर अंकित इस नक्काशी को देख दाँतों तले अँगुली दबा लेनी पड़ती है। पर जैसे ही हम आगे गलियारे में बढ़ते हैं चारों ओर सादगी ही सादगी पसरी दिखती है। हमारे गाइड आदिल प्रार्थना के लिए कुछ शब्द पढ़ते हैं और उनकी आवाज़ मकबरे की खोखली दीवारों से जब लौटती है तो उसकी गूँज चित्त को एकदम से शांत कर देती है।
Attractive wall carvings at Sikandara |
भोजन के पश्चात हम 'बेबी ताज' के रास्ते पर थे। मैं पहली बार इस नाम को सुन के कुछ वैसे ही चौंका जैसे शायद आप अचरज़ कर रहे होंगे। इमारत का नाम वैसे तो एतमाद उद दौला है पर कहा जाता है कि ताज़महल की संरचना बनाते समय इसके डिजाइन से प्रेरणा ली गई थी इसीलिए इसे बेबी ताज का नाम दे दिया गया । बेबी ताज यमुना की दूसरी तरफ़ है। वहाँ तक पहुँचने के पहले आदिल हमसे जहाँगीर के समय उनकी बेगम नूरजहाँ के बढ़ते प्रभाव की चर्चा करने लगे। ये प्रभाव केवल राजशाही के निर्णयों तक ही सीमित ना था। दरअसल नूरजहाँ के फारसी ताल्लुकातों ने मुगल स्थापत्य को एक नई दिशा दे दी थी। आदिल की बातें सुनकर मैं मन ही मन सोच रहा था कि नूरजहाँ जैसे सशक्त किरदार पर अब तक बॉलीवुड के निर्माता निर्देशकों की नज़र क्यूँ नहीं गई? मुगलेआज़म सिर्फ उस काल्पनिक चरित्र अनारकली तक क्यूँ सिमट गए?
बेबी ताज़ निहायत ही खूबसूरत है और ये खूबसूरती इसलिए भी अद्भुत लग रही थी क्यूँकि मैंने इससे पहले इसे कभी नहीं देखा था। वैसे भी आपने माता पिता, भाई बहन व बेटे बेटी के याद में बनी इमारतें देखी होंगी। पर बेबी ताज़ जहाँगीर के सास ससुर के लिए बनाया गया। आज उनका यहाँ मकबरा है। कहना ना होगा कि इसी बात पर जहाँगीर को सबसे बेहतरीन जमाई के खिताब से नवाज़ा जाना चाहिए था ।
बेबी ताज़ निहायत ही खूबसूरत है और ये खूबसूरती इसलिए भी अद्भुत लग रही थी क्यूँकि मैंने इससे पहले इसे कभी नहीं देखा था। वैसे भी आपने माता पिता, भाई बहन व बेटे बेटी के याद में बनी इमारतें देखी होंगी। पर बेबी ताज़ जहाँगीर के सास ससुर के लिए बनाया गया। आज उनका यहाँ मकबरा है। कहना ना होगा कि इसी बात पर जहाँगीर को सबसे बेहतरीन जमाई के खिताब से नवाज़ा जाना चाहिए था ।
Aitmad Ul Daula or Baby Taj |
बेबी ताज में तो दर्जन भर ही पर्यटक थे पर आगरे के किले में भारी भीड़ हमारे साथ चल रही थी। अकबरी, जहाँगीरी व शीश महल से होते हुए दीवान ए खास व दीवान ए आम के जाने पहचाने रास्ते पर हम मुगल सल्तनत के इस अभेद्य किले की कहानियाँ सुनते रहे। शाम को यहाँ हमें संगमरमर के पत्थरों पर की जाने वाली नक्काशी से रूबरू कराया गया। फिर मोहब्बत दि ताज के रंगारंग कार्यक्रम ने दिल मोह लिया। दिन भर के सफ़र की थकान, इस कार्यक्रम की ताज़गी ने हर सी ली।
Clothings in display at Kalakriti, Agra |
आगरे की इमारतों में फतेहपुर सीकरी हमेशा से मेरा प्रिय रहा है। सलीम चिश्ती की दरगाह की पत्थरों की जाली और वहाँ का विशाल बुलंद दरवाजा मुझे कभी नहीं भूलता। अगले दिन की शुरुआत हमने इसी किले से की और किले की अपनी प्रिय इमारतों को देख मन खिल उठा। अकबर ने किस राजनीतिक समझ बूझ से भिन्न भिन्न धर्मों के लोगों को एक सूत्र में बाँधा, ये किला उसका चश्मदीद गवाह है। रानियों के महल का अलग अलग शिल्प, अकबर का पत्थर का बना पलँग, तानसेन की गायिकी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला चबूतरा, बीरबल का महल और विभिन्न धर्मप्रवर्तकों की बातें सुनने के लिए बना अहाता देखते देखते कैसे समय बीत गया पता ही नहीं चला।
The famous courtyard of Fatehpur Sikri |
फतेहपुर सीकरी से हमने विदा ली और चंबल के इलाके की ओर चल पड़े। चंबल नदी तक पहुँचने का रास्ता थोड़ा झटकों से भरा जरूर था पर बीहड़ की धूल धूसरित सड़कों पर चलते हुए जब चंबल नदी की विशाल नीली जलराशि के दर्शन हुए तो समझ आ गया कि यहाँ आना क्यूँ जरूरी था। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं के बीच बहती इस नदी के किनारे मगरमच्छ व घड़ियाल के आलावा पक्षियों की तमाम प्रजातियों की सैरगाह हैं ।
अगली सुबह हम सभी आगरा से इटावा के लिए चल पड़े जहाँ एक लायन सफ़ारी का काम जोरों पर है और अगले साल ये शायद शुरु भी हो जाए। इस योजना के तहत गुजरात से शेरों को यहाँ लाया जा रहा है। इटावा को पर्यटन मानचित्र से जोड़ने का ये प्रयास सराहनीय जरूर है पर प्रश्न ये भी है कि क्या गिर वन के सिंह उत्तर प्रदेश के इस बीहड़ इलाके की आबोहवा से सामंजस्य बैठा पाएँगे?
Proposed Lion Safari at Etawah |
आगरा के पेठे, कचौड़ियों, छाछ व चाट का स्वाद लेने के बाद हम लखनऊ पहुँचे। ख़ाने के शौकीनों के लिए तो ये शहर विख्यात है ही। ग्यारह तरह के पानी की पानीपूरी और चौक की मशहूर ठंडई पीकर सचमुच शहर के मशहूर ज़ायके का लुत्फ़ आ गया। मज़े की बात ये रही कि हमारे पोलिश और चाइनीज साथियों ने भी पानीपूरी का जम कर स्वाद लिया।
The taste of Awadh |
होटल लौटते वक्त रोशनी में जगमगाते भूलभुलैया की चमकती रंगत देख के विश्वास नहीं हुआ कि ये वही इमारत है जो दो दशक पहले मैंने देखी थी। यही नहीं यहाँ का प्रतीक रूमी दरवाज़ा और घंटा घर भी सुनहरी रोशनी में नहाकर तरो ताज़ा दिख रहे थे।
An illuminated passage of Bhool Bhulaiya, Lucknow |
अगली सुबह सम्मलेन स्थल होटल ताज में जब हम पहुँचे पूरे राज्य का मीडिया पहले ही अपनी जगह ले चुका था। बनारस और लखनऊ में आए साथियों से मुलाकात का ये एक अच्छा अवसर था।
मुख्यमंत्री द्वारा कार्यक्रम के उद्घाटन के बाद चार अलग अलग सत्र रखे गए थे जिसमें वक्ता के रूप में इतिहासकार , वरिष्ठ पत्रकार, नौकरशाह और फिल्मी हस्तियाँ से लेकर लखनवी खान पान के विशेषज्ञ भी थे। मुद्दा तो ख़ैर एक ही था कि किस तरह राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक विरासत को आगे ले जाया जाए।
Intellectuals voicing their opinion for growth of tourism in UP |
दिन भर के इस बौद्धिक विचार विमर्श के बाद शाम गुलज़ार हुई कत्थक के भाव प्रवण नृत्यों से।
'Bidai' scene depicted through Kathak |
अखिलेश जी शाम को भी आए पर दिन के अपने भाषण में उन्होंने जो एक बात कही वो मुझे बेहद अच्छी लगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि
"आख़िर मैं आप ट्रैवेल राइटर्स से क्या उम्मीद रखता हूँ? आप वही लिखिए जो आपने देखा। पर देखने का आपका नज़रिया कुछ अलग होना चाहिए। जब आप फतेहपुर सीकरी में जोधा के महल में जाएँ तो आपके मन में ये ख़्याल आना चाहिए कि अगर जोधा चाँद देखना चाहती होंगी तो कहाँ से देखती होंगी? अकबर अगर गर्मी में उस महल में रहते होंगे तो फिर उनके कमरे में हवा कैसे आती होगी? आपकी ये बातें ही आम जन को वहाँ खींच लाएँगी "
Chief Minister of UP Akhilesh Yadav interacting with participants |
At the terrace of Hotel Renaissance, Lucknow with Baba Ambedkar Park in background |
इन पाँच दिनों में इस आयोजन से जुड़े लोगों ने इस गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया कि ये मुस्कुराहट मेरे चेहरे से कभी जा ही नहीं सकी। इसलिए चलते चलते उत्तरप्रदेश को अपना अगला मुकाम बनाने वाले सहयात्रियों से इतना ही कहूँगा कि मुस्कुराइए कि आप उत्तर प्रदेश में हैं :)
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
Nice account :)
जवाब देंहटाएंThx for liking it :)
हटाएंWow :-) Memories refreshed!
जवाब देंहटाएंहाँ ये यादें अभी बहुत दिनों तक ज़ेहन का हिस्सा बनी रहेंगी :)
हटाएंSir aapki aagra yatra dekhkar meri aagra ki yatra ki yaadein taza ho gyi..aapki har yatra me aapki lekhni hume bahut kuch sikha jati hai..thanks.
जवाब देंहटाएंतो आगरा की कौन सी जगह तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद है?
हटाएंBahut shandar Sir !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंElaborately done...padh ke maza aa gaya..yaadein taaza ho gayi..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ! आप सब के साथ ने इस सफ़र को और यादगार बना दिया।
हटाएंShanndaar prastuti Manish Bhai !!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंBought back memories of my visit to Agra.. really nice post..
जवाब देंहटाएंThx Arun for liking the post !
हटाएंआपकी यात्रा और वृतान्त दोनो ही सुखद अनुभव दे जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमन से लिखा हुआ मन तक पहुँच जाए इससे खुशी की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है?
हटाएंमनीष जी.... मैं आगरा में ही रहता हूँ... आने से पहले सम्पर्क तो करते ..
जवाब देंहटाएंकार्यक्रम सिर्फ एक दिन पहले पक्का हुआ इस लिए नेट पर सूचना देने का वक़्त नहीं रहा । आगरा और लखनऊ में कार्यक्रम इतना व्यस्तता भरा था कि अपने नजदीकी रिश्तेदारों से भी नहीं मिल सका। फिर कभी आना हुआ तो जरूर मुलाकात होगी़।
हटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार आपको बधाई
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
शुक्रिया !
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