दक्षिणी कोलकाता के गरियाहाट के आस पास के पंडालों को तो हम कोलकाता में बिताई पहली शाम को ही देख चुके थे। दूसरे दिन की शुरुआत हमने जोधपुर पार्क से की। गरियाहाट और जादवपुर के बीच पड़ने वाला ये इलाका दुर्गा पूजा की दृष्टि से हर साल चर्चा में रहता है। पिछले साल यहाँ पंडाल को तो प्राचीन मंदिर की शक़्ल दी गई थी पर काग़ज़ पर माँ दुर्गा की छवि 3D प्रिंटर से निकाल पंडाल में लगाई गई थी एक अलग से अनुभव को जगाने के लिए।
Ancient temple depicted at Jodhpur Park |
दूर से दिखते खंभो और उनके बीच की कलाकृतियों को देखकर तो यही लगता था कि सचमुच हम किसी पुरातन ऐतिहासिक मंदिर के करीब आ गए हैं। माता का 3D निरूपण तो अपनी जगह था पर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से जानकर अच्छा लगा कि ये सारे चित्र काग़ज़ पर उतारे गए हैं।
Goddess Durga in 3D |
और दीवारों पर बने इन नमूनों के बारे में कहना ही क्या ! सादगी और सुंदरता का मिश्रण लगे ये..
A simple but beautiful flower pattern at Jodhpur Park |
जोधपुर पार्क के इलाके में जूट से बनाया गया ये पंडाल भी अपनी महीन कलाकारी की वजह से आँखों को बहुत सुहाया..
Another beautiful pandal in Jodhpur Park area |
जोधपुर पार्क से बाहर निकले तो पल्ली मंगल समिति का ये छोटा पर सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया पंडाल सामने आ गया। पंडाल को देख ऐसा प्रतीत होता था कि एक बड़ी सी टोकरी हमारे सामने रख दी गई हो और उसमें माँ दुर्गा को विराजमान कर दिया गया हो।
Pally Mangal Samity Sarbojanin Durga Puja |
यहाँ ख़ास बात ये थी कि पूरे पंडाल की सजावट शंख, मिट्टी की बनी मटकियों, बोतलों, गोल तश्तरी और सूप से की गई थी। देखिए पंडाल की छत का एक नज़ारा..
रोज़मर्रा काम आने वाली वस्तुएँ भी अगर सही तरीके से इस्तेमाल की जाएँ तो कितनी खूबसूरत दिख सकती हैं
टॉलीगंज से मध्य कोलकाता के सबसे नामी पूजा पंडाल मोहम्मद अली पार्क तक दस किमी की दूरी तय करने में हमें करीब घंटे भर का समय लग गया। यहाँ पंडाल की थीम शिवालय की थी। कहानी ये कि पानी की कमी को पूरा करने के लिए ग्रामीणों ने शिव की अर्चना की। स्वप्न में उन्हें शिव की जो छवि दिखी उसे ही पास की पहाड़ी पर उकेरना शुरु कर दिया। शिव जी अपने 27 मुखों को बनने के बाद प्रसन्न हुए और पानी के लिए अपनी जटा से गंगा की अविरल धारा बहा दी।
Shivalaya at Mohd. Ali Park |
मोहम्मद अली पार्क से ही सटा यहाँ का कॉलेज स्कवॉयर वाला इलाका है। शिवालय में माँ दुर्गा के दर्शन के बाद हम उधर पैदल ही निकल लिए।
Puja Pandal at College Square, Kolkata |
कॉलेज चौक पर जो पंडाल बनता है उसके सामने एक छोटी सी झील है। यहाँ रात को आने से पंडाल की छवि झील में भी चमकती दिखती है। पर हम वहाँ भरी दुपहरी में पहुँच गए थे। रात को मध्य कोलकाता के पंडालों में भारी भीड़ होती है और बैरिकेडिंग के बीच आपको कम से कम एक किमी तक की पंक्ति के बीच से हो कर गुजरना पड़ सकता है।
Goddess Durga at College Square |
मध्य कोलकाता के इन दो पंडालों के बाहरी स्वरूप ने मुझे ज्यादा आकर्षित नहीं किया था। गर्मी की वज़ह से अब ये निर्णय लेना था कि वहाँ से डेढ़ किमी दूर संतोष मित्रा चौक पर बने पंडाल तक जाया जाए या नहीं? पर कुछ नया देखने की चाहत ने पन्द्रह मिनटों में ही हमें इस पंडाल के सामने खड़ा कर दिया और मुझे लगा कि हमारी मेहनत बेकार नहीं गई।
Abu Simbel Temple at Santosh Mitra Square, Durga Puja |
इस पूजा पंडाल ने हमें सीधे मिश्र ही पहुँचा दिया। ऐसा लगा की हम फराओ के साम्राज्य में विचरण कर रहे हों। वैसे क्या आप बता सकते हैं कि ये कौन सा मंदिर है?
बंगाल के कारीगरों व आयोजकों का ये कमाल है कि वो हर साल ऐसी ऐसी इमारतों को हमारी नज़रों के सामने ले आते हैं जहाँ शायद हम ख़ुद कभी ना जा पाएँ। अब भला मिश्र और सूडान की सीमा पर बारहवीं सदी ईसा पूर्व बनाए इस अबू सिम्बेल मंदिर (Abu Simbel Temple) का नाम किसने सुना होगा? अपने धर्म और प्रभुता को अपने दक्षिणी पड़ोसियों को दिखाने के लिए पहाड़ों को काटकर बनाया गया ये मंदिर वक़्त के साथ बालू के पहाड़ों में दब गया था। उन्नीसवीं शताब्दी में इसे अबू सिम्बेल नाम के स्थानीय लड़के की मदद से खोजा गया और तभी से ये इस नाम से जाना जाने लगा।। नील नदी की बाढ़ से बचाने के लिए इसे पचास साल पहले यूनेस्को की सहायता से इसे और ऊँची जगह पुनर्स्थापित किया गया।
बंगाल के कारीगरों व आयोजकों का ये कमाल है कि वो हर साल ऐसी ऐसी इमारतों को हमारी नज़रों के सामने ले आते हैं जहाँ शायद हम ख़ुद कभी ना जा पाएँ। अब भला मिश्र और सूडान की सीमा पर बारहवीं सदी ईसा पूर्व बनाए इस अबू सिम्बेल मंदिर (Abu Simbel Temple) का नाम किसने सुना होगा? अपने धर्म और प्रभुता को अपने दक्षिणी पड़ोसियों को दिखाने के लिए पहाड़ों को काटकर बनाया गया ये मंदिर वक़्त के साथ बालू के पहाड़ों में दब गया था। उन्नीसवीं शताब्दी में इसे अबू सिम्बेल नाम के स्थानीय लड़के की मदद से खोजा गया और तभी से ये इस नाम से जाना जाने लगा।। नील नदी की बाढ़ से बचाने के लिए इसे पचास साल पहले यूनेस्को की सहायता से इसे और ऊँची जगह पुनर्स्थापित किया गया।
मध्य कोलकाता के इन पूजा पंडालों को देखने के बाद हमने वापस घर की राह
पकड़ी। शाम को पास के मुदियाली इलाके में गए जहाँ पंडाल के माध्यम से
पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर रखने का संदेश दिया जा रहा था।
Mudiali Club Puja Pandal |
और ये थीं यहाँ की माँ दुर्गा अपने पारम्परिक रूप में..
कोलकाता के पंडाल दर्शन की अगली कड़ी में ले चलेंगे पहले आपको उन पूजा पंडालों की ओर जो कलात्मकता की दृष्टि में मुझे सबसे अच्छे लगे.. अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
पूरा आकर्षण है इन भव्य पंडालों में।
जवाब देंहटाएंहाँ यहाँ की दुर्गा पूजा सबसे भव्य है।
हटाएंलाखों की पोस्ट ............घर बैठे सैर हो रही है ........
जवाब देंहटाएंजानकर अच्छा लगा कि इस पंडाल यात्रा की सैर का आपको भी आनंद आया।
हटाएंI took few mins to read this but brilliant Manish ji :)
जवाब देंहटाएंShukriya :) !
हटाएंदूसरा भाग भी शानदार ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
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