जिस तरह गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े धूमधाम से भारत के पश्चिमी राज्यों में मनाया जाता है उसी तरह दुर्गा पूजा पूर्वी भारत में। पटना, राँची, कटक की पूजा देखने के बाद सिर्फ कोलकाता की पूजा देखने की हसरत रह गई थी मुझे। हर बार लोग वहाँ की भीड़ और उमस की बात कर मेरा उत्साह ठंडा कर दिया करते थे। पर पिछले साल अक्टूबर के महीने में उत्तर पूर्व की ओर निकलने के पहले मैंने कोलकाता में रुकने का कार्यक्रम बनाया। भीड़ से बचने के लिए पंचमी, षष्ठी व सप्तमी के दिन पंडालों के चक्कर लगाए और कुल मिलाकर मेरा अनुभव शानदार रहा। अब जबकि इस साल की दुर्गा पूजा पास आ रही है तो मैंने सोचा कि क्यूँ ना आपको कोलकाता के पूजा पंडालों की सैर करा दूँ ताकि आप ये समझ सकें कि क्यूँ होना चाहिए किसी को कोलकाता में दुर्गा पूजा के वक़्त?
मिट्टी के रंग में रँगी माता दुर्गा Goddess Durga in her gray avtaar |
कोलकाता में हर साल हजारों की संख्या में पंडाल बनते हैं। सारे तो आप देख
नहीं सकते पर कुछ विशिष्ट पूजा पंडाल आप छोड़ भी नहीं सकते। कोलकाता जैसे
महानगर में पूजा पंडालों का चक्कर लगाने का मतलब है कि एक दिन के लिए उसका
कोई एक इलाका निर्धारित कर लें। मोटे तौर पर कोलकाता की पूजा के तीन मुख्य
इलाके हैं उत्तरी कोलकाता, दक्षिणी कोलकाता और मध्य कोलकाता। अपने कोलकाता
प्रवास के समय मैं वहाँ के बिड़ला मंदिर के पास ठहरा था तो मैंने अपनी पंडाल
यात्रा दक्षिणी कोलकाता से शुरु की।
कोलकाता की दुर्गा पूजा की खास बात ये है कि इस अवसर पर कलाकारों को अपनी सारी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल जाता है। अधिकांश पंडाल एक विशेष थीम पर बनते हैं और ये थीम महीनों पहले स्वीकृत कर ली जाती है। उसी हिसाब से बजट और बाकी की तैयारियाँ भी होती हैं। दुर्गा माँ के चेहरे के स्वरूप से लेकर पंडाल की आंतरिक और ब्राह्य साज सज्जा में ये रचनात्मकता झलकती है।
त्रिधारा सम्मिलिनी का पूजा पंडाल दक्षिणी कोलकाता के पूजा पंडालों में नामी माना जाता रहा है। ये क्लब देश की आजादी के समय से ये पूजा हर साल यहाँ करा रहा है। यहाँ पहुँचने के लिए आपको गरियाहाट से पहले स्थित देशप्रिय पार्क आना होगा। हम जब वहाँ पहुँचे भारी भीड़ की वज़ह से पंडाल तक हमें हिलते डुलते पहुँचना पड़ा। पंडाल तो ख़ैर आादमक़द मुखौटों से भरी मूर्तियों से भरा था पर ताम्र वर्ण माँ दुर्गा की इस प्रतिमा ने मन मोह लिया था।
Maan Durga idol at Tridhara Sammilini |
Tridhara Sammilini's Puja Pandal near Deshpriya Park |
कालीघाट, दक्षिणी कोलकाता के 64 पल्ली पूजा पंडाल का नज़ारा बिल्कुल अलग सा था। चारों ओर रंग बिरंगे छाते बिखरे थे और उन्हीं की सहायता से पंडाल को रँगीली छटा प्रदान की गई थी।
All religions are under umbrella of one & only one universal God |
छातों की इस रंग बिरंगी दुनिया में हम खो से गए..
64 Pally , Kalighat puja Pandal. Isn't this attractive ? |
बॉलीगंज का एक पंडाल जहाँ विक्टोरिया मेमोरियल का रूप गढ़ा गया था..
Pandal at Bollygunge in form of Victoria Memorial |
Beautiful interior of the pandal |
पंडाल की छत और दीवार पर कपड़ों से उभारे गए नमूने झाड़फानूस की संगत पाकर और खिल उठे थे।
Beautiful Ceiling.. |
A traditional image of Goddess Durga ! |
कोलकाता के पंडाल दर्शन की अगली कड़ी में ले चलेंगे पहले आपको जोधपुर पार्क और फिर मध्य कोलकाता के पूजा पंडालों की ओर.. अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कॉल ड्राप पर मिलेगा हर्जाना - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
हटाएंकोलकाता घुमाने का शुक्रिया..अभी हाल ही में गया था वहां...और जब भी जाता हूँ लौटने का दिल नहीं करता...जन्मभूमि से लगाव शायद ऐसा ही होता है...और हाँ सर छाते वाली सजावट इस बार पटना में भी है.
जवाब देंहटाएंये तो शुरुआत है मनीष आगे की पोस्टों में वहाँ के पंडालों की कलात्मकता के और रूप उजागर होंगे smile emoticon । पटना व राँची में भी बंगाल के कारीगरों को बुलाना अब आम हो गया है।
हटाएंIt's a feel good factor for all the Calcuttans!Art is in d blood of Bengal.!! Good gesture from you towards the art n culture of Bengal.!! Thanx for sharing.!!
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