कुछ ही दिनों पहले आपको कोंकण के समुद्रतटों की यात्रा पर मालवण ले गया था। मालवण के डांडी समुद्र तट से सिंधुदुर्ग मोटरबोट से दस पन्द्रह मिनट की दूरी पर है। दूर से सिंधुदुर्ग का किला राजस्थान के किसी किले सा दिखाई देता है। चार किमी तक टेढ़ी मेढ़ी फैली इसकी परिधि के साथ नौ मीटर ऊँची और लगभग तीन मीटर चौड़ी दीवारें इसकी अभेद्यता के दावे को मजबूत करती हैं। पर सिंधुदुर्ग की राजस्थानी किलों से समानता यहीं खत्म भी हो जाती है। जहाँ पहाड़ियों पर स्थित राजस्थानी किले दूर से ही अपनी मजबूत दीवारों के साथ ऊँचाई पर बने भव्य महलों का दर्शन कराते हैं वहीं इस जलदुर्ग की दीवारों के पीछे नारियल वृक्षों की कतारों के आलावा कुछ भी नहीं दिखाई देता।
इतना ही नहीं एक और खास बात है सिंधुदुर्ग में जो इसे अन्य किसी राजस्थानी किले से अलग करती है। वो ये कि एकदम पास जाने पर भी आप इसके मुख्य द्वार की स्थिति का पता नहीं लगा पाते।
शिवाजी महाराज उन दूरदर्शी महाराजाओं में से थे जिन्होंने पश्चिमी तट पर पुर्तगालियों, सिद्दियों और अंग्रेजों के बढ़ते दबाव की वज़ह से अपनी नौसेना को सदृढ़ करने की सोची। शिवाजी ने सिद्दी नवाबों से जंजीरा किला छीनने की बहुत कोशिशें की पर नाकामयाब रहे। सो 1664 में मालवण से सटे कर्टे द्वीप पर उन्होंने इस किले की नींव रखी। इस किले को बनने में तीन साल लगे। वैसे 42 बुर्जों सहित 48 वर्ग एकड़ में फैले इस किले की मुख्य देख रेख वास्तुकार हिरोजी इन्दुलकर द्वारा की गई। साथ में तीन हजार मजदूरों और सौ के करीब पुर्तगाली विशेषज्ञों की सहायता भी ली गई।
मराठी वास्तुकारों ने मुख्य द्वार को घुमावदार रास्तों के बीच इस तरह बनाया की शत्रु को किले में घुसने का मार्ग सहज ही ना दिखाई दे। किले के परकोटे भी इतने टेढ़े मेढ़े बनाए गए कि उनकी ओट लेकर शत्रु पर जबरदस्त हमला किया जा सके।
इतना ही नही अगर गलती से दुश्मन मुख्य द्वार तक पहुँच भी गया तो उसमें बने इन छेदों से गर्मागर्म तेल की बारिश कर दी जाती थी।
आज इस किले में इस मुख्य द्वार के आलावा जहाँ तहाँ खंडहर ही बचे हैं। मुख्य
द्वार के पास शिवाजी की हथेली और पाँव के निशान चूना पत्थर की दीवारों पर
अंकित करवा कर सहेज लिए गए हैं।
मुख्य द्वार से थोड़ा आगे बढ़ने पर शिवराजेश्वर का मंदिर आ जाता है। इसे
शिवाजी के छोटे पुत्र राजाराम ने अपने पिता की याद में बनाया था।
मंदिर के अंदर शिवाजी को एक नाविक की वेशभूषा में दिखाया गया है। मजे की बात ये है कि मंदिर में लगी शिवाजी की प्रतिमा उनकी देश में ऐसी एकमात्र प्रतिमा है जो बिना दाढ़ी की है।
दुर्ग के बाकी इलाके में कोई इमारत बची नहीं रह गई है। जब किला आबाद था तब इसमें रहने वाले बाशिंदों को पानी की आपूर्ति दुर्ग के अंदर स्थित तीन मीठे पानी के कुएँ किया करते थे। सीढ़ियों के माध्यम से आज भी इन कुओं तक पहुंचा जा सकता है। ये आश्चर्य की ही बात है कि चारों ओर से समुद्री जल से घिरा होने के बावज़ूद ये दुर्ग पीने के पानी के स्रोतों का धनी था।
दुर्ग के दक्षिणी सिरे में चहलकदमी करते वक्त हमें ऊपर ऊँचाई पर बने चबूतरे की ओर जाता एक रास्ता दिखाई दिया। चबूतरे पर एक झंडा फहराने के लिए खंभा बना था। मुझे समझ आ गया कि उस पर चढ़कर दुर्ग के चारों ओर फैले अथाह समुद्र की झलक मिल सकती है तो मैं उधर की ओर चल पड़ा।
चबुतरे पर चढ़ कर चारों ओर फैले समुद्र के साथ एक छोटा सा तट का हिस्सा दिखाई दिया । दीवार में तट के पास एक चोकोर सुराख किया हुआ था। पूछने पर पता चला कि तट का वो छोटा सा टुकड़ा शिवाजी महाराज की पुत्रवधू का निजी तट हुआ करता था। इसलिए इस छोटे से तट का नाम मराठी में रानीचि वेला दिया गया।
दुर्ग में कोई इमारत ना होने के कारण धूप तेज थी। रह रह कर समुद्र की ओर से बहती हवा थोड़ा सुकून जरूर दे रही थी। कुछ देर किले के इस दक्षिणे किनारे में वक़्त गुजारने के बाद हम इन सुहाने दृश्यों को देखते हुए वापस चल पड़े।
रास्ते में हमें महादेव का मंदिर और मिला। खपड़ैल की छत के अंदर बने ये मंदिर दूर से किसी घर की तरह दिखते हैं। पर महावीर मंदिर के ठीक नीचे कुछ सीढ़ियाँ जाती दिखाई दीं। सीढ़ियों से आगे नीचे की ओर सुरंग थी जो पानी से भरी हुई थी। कहते हैं दुर्ग बनवाते वक़्त महिलाओं की सुरक्षा हेतु किले से बाहर निकलने के लिए ये सुरंग बनाई गई थी जो समुद्र का हिस्सा पार कर पास के गाँव तक जाती थी। मराठा शक्ति के पराभव के साथ जब ये दुर्ग ब्रिटिश कब्जे में आया तो इसे बंद करा दिया गया।
सिंधुदुर्ग से निकलते हुए मन में एक शून्यता सी भर गई थी। कभी भरा पूरा रहा ये किला अब किस क़दर वीरान हो गया है। जिस तरह का रख रखाव होना चाहिए वैसा नहीं है। पन्द्रह बीस परिवार ही बचे हैं जो इस किले में अपना जीवन यापन करते हैं। अगर सरकार इस परिसर में राजस्थान के किलों की तरह प्राचीन मराठा संस्कृति से जुड़ा कोई संग्रहालय बनाए तो यहाँ आना आंगुतकों के लिए और रुचिकर हो सकता है। वैसे सिंधुदुर्ग के आसपास फैले समुद्र में रोमांचप्रेमियों के लिए आजकल Scuba Diving और Snorkeling का भी इंतज़ाम है।
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
शिवाजी महाराज के कई किस्से बचपन में सुनें हैं.. आज उनका किला भी देख लिया.. दुखद है कि ये किला आज वीरान है...
जवाब देंहटाएंकुछ मौसम की मार है कुछ रखरखाव की !
हटाएंNice description of The Sindhudurg Fort. When I visited it , I loved walking on its Ramparts...
जवाब देंहटाएंThx for your visit. We also tried that near the walls of the small beach.
हटाएंएज अजेय किला
जवाब देंहटाएंअगर जलदुर्गों की बात करूँ तो महाराष्ट्र के इतिहास में ये ख़िताब सिद्दियों के किले जंजीरा को जाता है जिसे ना तो मराठा हासिल कर सके ना ही अंग्रेज। जहाँ तक सिंधुदुर्ग की बात है मराठा शक्ति के पराभव के साथ इसे अंग्रेजों ने हथिया लिया और बाद में इसे वीरान छोड़कर चले गए।
हटाएंमुझे सही करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएं