सोमवार, 13 जुलाई 2015

क्यूँ बना समुद्र तट पर कुनकेश्वर का महादेव मंदिर ? Beaches of Konkan : Kunkeshwar

दक्षिण महाराष्ट्र के समुद्र तटों से जुड़ी इस श्रंखला में गणपतिपुले के बाद आज चलिए कुनकेश्वर के समुद्र तट पर। अरब सागर से सटे कुनकेश्वर के तट पर भगवान शिव का एक भव्य मंदिर है और इसकी धार्मिक महत्ता की वज़ह से इसका नाम कोंकण काशी भी लिया जाता है। 

कुनकेश्वर Kunkeshwar Temple, Devgad
पर कुनकेश्वर जाने के पहले हमें अगली रात के लिए ठहरना था मालवण में जहाँ सिंधुदुर्ग का प्रसिद्ध किला है। गणपतिपुले से करीब दो सौ किमी की दूरी पर स्थित मालवण सिंधुदुर्ग जिले का एक छोटा सा शहर है।

Ganpatipule to Malvan, NH 17

दोपहर बारह बजे खिली धूप के बीच हम गणपतिपुले से निकले। मालवण तक 200 किमी की दूरी लगभग चार घंटे में तय होती है। रास्ता बड़ा ही हरा भरा है। सड़क के दोनों ओर घने वृक्षों की कतार हमेशा साथ चलती रही। पेड़ के बीच कभी कभी घास से भरे पूरे धानी मैदानों का मंज़र सामने आ जाता।

जीवन के दो पहलू हैं हरियाली और रास्ता..

पेड़ों में नारियल, केले की गाछों की बहुतायत पर यहाँ का असली राजा तो अलफांसो है जिसके बागान आप मालवण से कुनकेश्वर जाने वाली सड़क पर देख सकते हैं।


राष्ट्रीय राजमार्ग 17 से गणपतिपुले से सावंतवाड़ी के रास्ते में एक रास्ता दाँयी ओर मालवण के लिए कटता है। बातों बातों में हम उस मोड़ से दस किमी आगे निकल गए। वापस घुमा कर लौटते हुए जब हम अपने होटल Countryside पहुँचे तो दिन के चार बज चुके थे ।


जो लोग मांसाहारी हैं उनके लिए कोंकणी व्यंजन के कई लजीज़ विकल्प मालवण में उपलब्ध हैं। खासकर  स्थानीय मछलियों की विविधता के लिए ये जगह मशहूर है।


भोजन के पश्चात पाँच बजे के करीब हम लोग वापस उसी रास्ते से कुनकेश्वर के लिए बढ़े। मालवण से कुनकेश्वर की दूरी करीब 54 किमी है। छः बजे तक हम कुनकेश्वर के समुद्र तट के सामने थे।


शाम की उस वेला में समुद्र तट सुनसान ही था। तट के एक छोर पर पहाड़ियों का एक सिरा समुद्र से हाथ मिलाता प्रतीत हो रहा था। एक दो पुरानी नावें भी तट पर पड़ी थीं। 

तट के दूसरे सिरे पर कुनकेश्वर का ये मंदिर छाती ताने खड़ा था। समुद्र तट पर आख़िर ये मंदिर खड़ा कैसे हुआ? ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार यादव राजाओं द्वारा इस मंदिर को ग्यारह वीं सदी में बनाया गया था। पर यहाँ के स्थानीय इस मंदिर की उत्पत्ति के बारे में एक और ही कहानी कहते हैं।


कोंकण का ये तट प्राचीन काल से व्यापार के लिए प्रयुक्त होता रहा है। किवंदती है कि एक इरानी नाविक अपने जहाज के साथ जब इस तट के पास पहुँचा तो तूफान ने उसे घेर लिया। दूर तट पर उसे एक ज्योति जलती हुई दिखाई दी और उसने प्रार्थना की कि हे ज्योति अगर तू इस तूफान को शांत कर दे तो मैं यहाँ मंदिर बनाऊँगा। तूफान शांत हो गया और उस नाविक ने अपने वचनानुसार यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया पर उसके धर्म के लिए ये गुनाह था इसलिए उसने पश्चाताप करते हुए मंदिर के शिखर से कूद कर अपनी जान दे दी।

इस कथा का कोई प्रमाण नहीं है। पर कथाएँ इस लिए महत्त्वपूर्ण  नहीं होती कि उनमें क्या कहा जाता है पर वे  एक मनोविज्ञान की ओर इशारा जरूर करती हैं। कुछ जानकार ये क़यास लगाते हैं कि ऐसी कथा को प्रचलित करने का उद्देश्य संभवतः इस मंदिर को तत्कालीन मुगल शासकों के आक्रमण से बचाना था।


यादव शासकों के बाद मराठों के शासन काल में इस मंदिर का जीर्णोद्वार होता रहा। स्वयम् शिवाजी महाराज भी इस मंदिर में आते जाते रहे। मराठों के इस प्रभाव का ही परिणाम है कि यहाँ शिव भगवान बक़ायदा अपनी काली घनी घुमावदार मूँछों के साथ चित्रित है। जीवन में पहली बार मूँछधारी शिव भगवान को मैंने यहीं देखा। कुनकेश्वर के इस मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि के समय एक विशाल  मेला लगता है जिसमें पूरे कोंकण से लोग यहाँ आते हैं।


मंदिर के अहाते से ही समुद्र तट की ओर नीचे उतरने का मार्ग है। सूरज हमारे आने तक दूर क्षितिज में बादलों के बीच विलीन हो रहा था। मंदिर के छोर की तरफ चट्टानों का जमघट था जो तट से सटी बिखरी पड़ी थीं। सूर्य की घटती रोशनी में आकाश नीली नारंगी आभा के साथ बड़ी मनोरम झाँकी प्रस्तुत कर रहा था। मैंने भी इन्हीं चट्टानों में से एक पर जाकर अपना आसन जमाया।


दूर समुद्र में ढलती शाम के बीच दो मछुआरे समुद्र में पता नहीं क्या कर रहे थे। बढ़ते अँधेरे के बीच माहौल में एक अज़ीब सी शांति थी।


समुद्र तटों में इस तरह के पल बेहद बहुमूल्य होते हैं। आपके चारों ओर की नीरवता आपको अपने समाज अपनी चिंताओं से कुछ क्षण के लिए ही सही मुक्ति दिला देती है। हमारा समूह भी विशाल समुद्र में गहराते सायों के बीच अपने अस्तित्व को भूल सा गया। रोशनी की अंतिम किरण के जाने के बाद ही हम मंदिर के प्रांगण से निकले। अगली सुबह कोंकण के कुछ और समुद्र तट हमारा इंतजार कर रहे थे। श्रंखला की अगली कड़ी में उन तटो से होंगे आप रूबरू ...।


कोंकण से जुड़ी इस श्रंखला की सारी कड़ियाँ  (Beaches of Konkan)
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर व ज्ञानवर्धक वर्णन...धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया अपने विचार व्यक्त करने के लिए !

      हटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर और रोचक जानकारी के साथ मन भावक यात्रा वृत्तांत।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लेख आपको पसंद आया जान कर खुशी हुई।

      हटाएं
  3. manoj kumar dhakarअगस्त 01, 2015

    Very informate beautiful travel to much.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Please write in Hindi rather than incorrect English. It will help you to communicate in better way. Thanks for your appreciation though !

      हटाएं
  4. It's so nice bahut acha lga ise padh kr thank you

    जवाब देंहटाएं
  5. आप गणपतिपुले से मालवण होकर कुनकेश्वर पहुचे इसके बदले अगर आप गणपतिपुले से रत्नागिरी पावस होकर कुनकेश्वर जाते तो वक़्त कम लगता और मालवण का फेरा नही लगता...पिछले महीने मुम्बई से मालवण समुद्र के किनारे किनारे 8 दिन में किया लगभग हर समुद्र तट को जो जा सकते है छूने की कोशिश की ....मजा आ गया अच्छी जगह है कोंकण....

    जवाब देंहटाएं
  6. कुंकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में अच्छा विवरण दिया आपने ....चित्र भी बहुत सुन्दर .... वैसे समुद्र तट भी ये मन्दिर बहुत ही खुबसूरत नजर आता होगा ....

    जवाब देंहटाएं