गर्मियाँ अपने
पूरे शबाब पर हैं । आखिर क्यूँ ना हों, मई का महिना जो ठहरा । अगर ऐसे में
भी सूर्य देव अपना रौद्र रूप हम सबको ना दिखा पायें तो फिर लोग उन्हें
देवताओं की श्रेणी से ही हटा दें :)। अब आपके शहर की गर्मी तो मैं कम कर
नहीं सकता, कम से कम इस चिट्ठे पर ही ले चलता हूँ एक ऐसी जगह जहाँ तमाम ऊनी कपड़े भी हमारी ठंड से कपकपीं कम करने में पूर्णतः असमर्थ
थे।
Orchids of Sikkim |
बात कुछ साल पहले अप्रैल की है जब हमारा कुनबा रांची से रवाना हुआ । अगली दोपहर हम न्यू
जलपाईगुड़ी पहुँचे । हमारा पहला पड़ाव गंगतोक था जो कि सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी
से 4 घंटे की दूरी पर है । सिलीगुड़ी से ३० किलोमीटर दूर चलते ही सड़क के
दोनों ओर का परिदृश्य बदलने लगता है पहले आती है हरे भरे वृक्षों की कतारें
जिनके खत्म होते ही ऊपर की चढ़ाई शुरू हो जाती है।
हाँ, एक बात तो बतानी रह ही गई कि सिलीगुड़ी (Siligudi) से निकलते ही हमारे इस समूह को इक नयी सदस्या मिलने वाली थीं। वो यहाँ से जो साथ हुईं....क्या बताऊँ पूरा सफर उसकी मोहक इठलाती तो कभी बलखाती अदाओं को निहारने में ही बीता। खैर,कुछ भी हो उसकी वजह से पूरी यात्रा खुशनुमा रही ।
क्या कहा आपने नाम क्या था उनका? अजी छोड़िए नाम में क्या रखा है पर फिर भी आप सब की यही इच्छा है तो बताये देते हैँ....नाम था उनका तीस्ता (Teesta) । कहीं आप कुछ और तो उम्मीद नहीं लगाये बैठे थे :)?
खैर तीस्ता की हरी भरी घाटी और घुमावदार रास्तों में चलते चलते शाम हो गई और नदी के किनारे थोड़ी देर के लिये हम टहलने निकले। नीचे नदी की हल्की धारा थी तो दूर पहाड़ पर छोटे छोटे घरों की बगल से निकलती उजले धुँऐ की लकीर।
गंगतोक* (वैसे तो वहाँ जाने के पहले मैं गंगटोक बोलता था पर वहाँ हिंदी में हर जगह गंगतोक ही लिखा मिला) से अभी भी हम ६० किलोमीटर की दूरी पर थे।) करीब ७.३० बजे हमें ऊँचाई पर बसे शहर की जगमगाहट दूर से ही दिखने लगी । पर गंगतोक में तो हमारी इस यात्रा का संक्षिप्त ठहराव था । हमें अभी बहुत दूर और बहुत ऊपर जाना था ......
गंगतोक
(Gangtok) पहुँचते ही हमने होटल में अपना सामान रखा । दिन भर की घुमावदार
यात्रा ने पेट में हलचल मचा रखी थी । सो अपनी क्षुधा शान्त करने के लिये
करीब 9 बजे मुख्य बाजार की ओर निकले । पर ये क्या एम. जी. रोड (M.G.Road)
पर तो पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ था। दुकानें तो सारी बंद थीं ही कोई
रेस्तरॉ भी खुला नहीं दिख रहा था ! पेट में उछल रहे चूहों ने इत्ती जल्दी
सो जाने वाले इस शहर को मन ही मन लानत भेजी ।मुझे मसूरी की याद आई जहाँ रात
10बजे के बाद भी बाजार में अच्छी खासी रौनक हुआ करती थी । खैर भगवन ने उन
चूहों की सुन ली और अंततः घूमते घामते हमें एक बंगाली भोजनालय खुला मिला ।
वैसे भोजन यहाँ अन्य पर्वतीय स्थलों की तुलना में सस्ता था।
सुबह
हुई और साथ वालों ने खबर दी की बाहर हो आओ अच्छा नज़ारा है। फिर क्या था
निकल पड़े कैमरे को ले कर। होटल के ठीक बाहर जैसे ही सड़क पर कदम रखा सामने
का दृश्य ऐसा था मानो कंचनजंघा (Kanchanjungha) की चोटियाँ बाहें खोल हमारा स्वागत कर रही हों । आप भी देखें !
सुबह का गंगतोक शाम से भी प्यारा था । पहाड़ों की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यहाँ मौसम बदलते देर नहीं लगती । सुबह की कंचनजंघा १० बजे तक तक बादलों में विलुप्त हो चुकी थी । कुछ ही देर बाद हम गंगतोक के ताशी विउ प्वाइंट(५५०० फीट MSL) पर थे । यहाँ से दो मुख्य रास्ते कटते हैं । एक पूरब की तरफ जो नाथू ला जाता है और दूसरा उत्तरी सिक्किम जिधर हमें जाना था ।
ताशी विउ प्वाइंट (Tashi View Point) से हमने उत्तरी सिक्किम राजमार्ग (North Sikkim Highway)
की राह पकड़ी और थोड़ी ही देर में समझ लिया कि पहाड़ पर आने के पहले भगवान को
अच्छी मनःस्थिति यानि गुड ह्यूमर में रखना इतना जरूरी क्यूँ है ? बाप
रे ! एक ओर खाई तो दूसरी ओर भू-स्खलन से जगह जगह कटी फटी सड़कें ! अन्नदाता
के ऊपर से बस एक चट्टान खिसकाने की देरी है कि सारी यात्रा का बेड़ा गर्क !
और अगर इन्द्र का कोप हो तो ऐसी बारिश करा दें कि चट्टान आगे खिसक भी रही
हो तो भी गाड़ी की विंडस्क्रीन पर कुछ ना दिखाई दे ! खैर हम लोग कबी (Kabi) और फेनसांग (Phensang) तक सड़क के हालात देख मन ही मन राम-राम जपते गए !
फेनसांग के पास एक जलप्रपात मिला ! हमारा समूह तसवीरें खिंचवाने में उत्सुक नहीं दिखा तो हमने अपना कैमरा घुमाया । सामने बैठी एक विदेशी बाला गिरते पानी के प्रवाह से ऐसी मंत्रमुग्ध थी मानों जन्नत में विचरण कर रही हो । ये देख के स्वतः क्लिक का बटन दब गया और नतीजा आप सब के सामने है । :)
फेनसांग से मंगन (Mangan)
तक का मार्ग सुगम था ! इन रास्तों की विशेषता ये है कि एक पहाड़ से दूसरे
पहाड़ जाने के लिये पहले आपको एकदम नीचे उतरना पड़ेगा और फिर चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी
! मंगन पहुँचते-पहुँचते ये प्रक्रिया हमने कई बार दोहरायी । ऐसे में
तीस्ता कभी बिलकुल करीब आ जाती तो कभी पहाड़ के शिखर से एक खूबसूरत लकीर की
तरह बहती दिखती।
मंगन बाजार (Mangan Bazaar)
में अपने एक पुराने सहकर्मी की तालाश में हम रुके । पता चला कि वो सड़क से
थोड़े नीचे ही रहते हैं । खैर, मुलाकात भी हो गई पर पहाड़ के इस थोड़े नीचे का मर्म वापस चढ़ते समय ही पता लग सका जब अंतिम चार सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते हालत खराब हो गयी।
शाम के 4.30 बजे तक हम चुन्गथांग (Chungthang) में थे । लाचेन और लाचुन्ग की तरफ से आती जल संधियाँ यहीं मिलकर तीस्ता को जन्म देती हैं। थोड़ा विश्राम करने के लिये हम सब गाड़ी से नीचे उतरे।इस संस्मरण की अगली कड़ी में लें चलेंगे आपको लाचेन और गुरुडांगमार..
शाम के 4.30 बजे तक हम चुन्गथांग (Chungthang) में थे । लाचेन और लाचुन्ग की तरफ से आती जल संधियाँ यहीं मिलकर तीस्ता को जन्म देती हैं। थोड़ा विश्राम करने के लिये हम सब गाड़ी से नीचे उतरे।इस संस्मरण की अगली कड़ी में लें चलेंगे आपको लाचेन और गुरुडांगमार..
इस श्रंखला की सारी कड़ियाँ
- गंगटोक से उत्तरी सिक्किम (Gangtok to North Sikkim )
- गुरुडांगमार झील .. Gurudangmar Lake, North Sikkim
- चोपटा से लाचुंग और फिर यूमथांग घाटी तक का सफ़र Yumthang Valley
- सफ़र छान्गू झील का और कथा बाबा हरभजन सिंह की Changu Lake
- गंगटोक चित्रों में .. In Pictures Gangtok
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-05-2015) को "सिर्फ माँ ही...." {चर्चा अंक - 1971} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
---------------
शुक्रिया !
हटाएंअब आपके पोस्ट के जरिये सिक्किम के बारे में जानने को मिलेगा,बढ़िया लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंभई विदेशी महिला तो देख ली किन्तु उसके चक्कर में जल प्रपात नही दिखाई दिया!!!!!
जवाब देंहटाएंअगर झरना ज्यादा आकर्षक होता तो वही दिखाता.. :) :)
हटाएंबहुत सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंबहुत रोचक यात्रा वृतांत..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंबहुत मनोरंजक लेख है
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई कि आपको आनंद आया !
हटाएंआपकी यात्रा पढ़ कर हमें भी अपनी पिछली साल की गयी गंगटोक की यात्रा हो आई....
जवाब देंहटाएंआज कल अपने ब्लॉग पर इसी के बारे में लेखन भी चल रहा है ...
http://safarhainsuhana.blogspot.in/2015/05/sight-seen-to-gangtok-city-sikkim.html
धन्यवाद
अभी देखते हैं।
हटाएंबड़ा रोचक वृतांत मजा आया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पर अगर आप अपना नाम देते तो मुझे भी आनंद आता :)
हटाएंबहुत सुन्दर द्रिश्य है पहाड़ों का ।
जवाब देंहटाएंतसवीरों को पसंद करने के लिए शुक्रिया !
हटाएंस्क्किम जाने का उपयुक्त समय कौनसा है और वंहा होटल और अन्य बुकिंग कैसे कराये वंहा जाकर या जाने से पहले ?
जवाब देंहटाएंसितंबर से दिसंबर व मार्च से जून तक। जून की आखिर से बारिश शुरु हो जाती है जो अगस्त तक ज़ारी रहती है। जनवरी फरवरी काफी ठंडे महीने होते हैं। हम तो जब गए थे तो वहीं जाकर होटल बुक किया था। पर आजकल लोग आनलाइन बुकिंग करा कर जाते हैं। परिवार के साथ चलने पर यही श्रेयस्कर है।
हटाएंगाड़ियों की भी प्री बुकिंग होती है। सिक्किम पर्यटन के वेब साइट पर अधिकृत ट्रेवेल एजेंड्स की सूची भी उपलब्ध है।