सेलम की चम्पई सुबह का नज़ारा तो आपने
पिछले आलेख में देखा ही, आइए आज ले चलते हैं आपको सेलम से सटे पर्वतीय स्थल
येरकाड में जो कॉफी और मसालों के बागानों के लिए जाना जाता रहा है। सेलम शहर से मात्र 28 किमी की दूरी पर स्थित येरकाड, बेंगलूरु (बंगलौर) से भी चार घंटे की दूरी पर है इसलिए अक्सर इन शहरों से सैलानी सप्ताहांत बिताने यहाँ आते हैं। मार्च के प्रथम हफ्ते में दिन के एक बजे जब हम सेलम से निकले तो पारा 35 डिग्री से. को छू रहा था। पर पन्द्रह सौ मीटर की ऊँचाई पर स्थित येरकाड (तमिल उच्चारण के हिसाब से इसे येरकौद भी पुकारा जाता है) तक पहुँचते पहुँचते तापमान दस डिग्री नीचे गिर चुका था।
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रंग बिरंगी छटा बिखेरती येरकाड (येरकौद) घाटी |
1500 मीटर की इस ऊँचाई को छूने में तकरीबन बीस हेयरपिन घुमाव पार करने होते हैं। वैसे
हेयरपिन घुमावों के पीछे के नामाकरण को समझना चाहें तो ये
ये आलेख पढ़ सकते हैं। शुरुआती कुछ
घुमावों को पार करते ही बाँस के जंगल नज़र आने लगते हैं जो अधिकतम ऊँचाई तक पहुँचने के बाद भी अपने आकार और रंग की वज़ह से अलग झुंड में दूर से ही चिन्हित हो जाते हैं।
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घुमावदार रास्तों का साथ देते बाँस के जंगल |
पर रास्ते का असली आनंद तब आता है जब आप सात सौ मीटर से ऊपर उठना शुरु करते हैं। येरकाड ( येरकौद ) के इसी इलाके में कॉफी और काली मिर्च के पौधे भारी तादाद में दिखते हैं। इन पौधों को करीब से देखने का सबसे अच्छा उपाय तो ये है कि आप ऊपर तक गाड़ी से जाएँ और फिर बागानों के बीच से ट्रैक करते नीचे उतर आएँ। हमारे पास आधे दिन का ही समय था इसलिए अपनी गाड़ी को बीच बीच में रुकवाते रहे। कालीमिर्च के पौधे को इससे पहले मैंने अपनी
केरल यात्रा में दिसंबर के महीने में देखा था। पर इस बार खुशी की बात ये थी कि मार्च में काली मिर्च के पौधे में ढेर सारी कच्ची फलियाँ आई हुई थीं। काली मिर्च यानि ब्लैक पेपर (Black Pepper) की लताएँ
Creepers यानि दूसरे पेड़ों पर चढ़ने वाली होती हैं। इसके लिए उन्हें ऐसे तनों की जरूरत होती है जो ख़ुरदुरे हों। चंपा की तरह ही इन्हें भी वही जगहें रास आती हैं जहाँ मिट्टी में जलवाष्प तो हो पर पानी ठहरा या जमा हुआ ना हो। पहाड़ियों की ढलाने इसके लिए उपयुक्त होती हैं।
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हरी फलियों से लदी काली मिर्च की लताएँ |
गाड़ी से उतर कर हम जंगल में घुसे और इन कच्ची फलियों का स्वाद लिया। खाने
में जायक़ा काली मिर्च जैसा ही था पर तीखापन अपेक्षाकृत कम था। ये फलियाँ
जब पक जाती हैं तो इन्हें पानी में उबाला जाता है और फिर सूखने के लिए छोड़
दिया जाता है। सूखने के बाद ये सिकुड़ने लगती हैं और इनका रंग काला हो जाता
है। शहर में जगह जगह इन्हें बिकता पाया। बाद में घर आकर शिकायत सुनी कि इन्हें खरीद लेते तो फिर हम यहीं सुखा कर खाते :)
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अहा क्या स्वाद था इनका भी ! |
काली मिर्च का स्वाद चखने के बाद मेरा ध्यान कॉफी के पौधों की ओर गया।
चाय के सुव्यवस्थित और खूबसूरत बागानों की अपेक्षा कॉफी के पौधे छोटी छोटी
झाड़ियों की शक्ल में बेतरतीबी से पहाड़ी ढलानों पर फैले होते हैं। इनकी फलियाँ लाल या जामुनी रंग की होती हैं। पर कॉफी तो इन फलियों से नहीं बल्कि इनके अंदर पाए जाने वाले बीज से बनती हैं।
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लाल जामुनी कॉफी की फलिया (कोने में देखिए जमीन से सटकर फैलती इनकी झाड़ियाँ) |
मैंने जब इस फली को तोड़ के देखा तो उसमें से दो बीज निकले। अभी बीज कच्चे
थे। जब ये पक जाते हैं तो इन्हें इन फलियों से निकाल कर फर्मेंटेसन की
प्रक्रिया से गुजारा जाता है और फिर सुखाया जाता है। इस अवस्था में इन
बीजों को हरी कॉफी (Green Coffee) का नाम दिया जाता है। घर में हम लोग जो कॉफी पीते हैं वो इस हरी
कॉफी को भूनने और पीसने के बाद बनती है।
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इसे कहते हैं बढ़िया Sense of Humor ! |
करीब दो बजे हम बीसवाँ हेयरपिन बेंड पार कर येरकाड शहर में प्रवेश कर चुके
थे। पर्यटकों के लिए यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ की झील है। पर झील पानी
की कमी के कारण सिकुड़ सी गई थी। मुन्नार, नैनी और नक्की जैसी झीलों के
सामने इस सिमटी हुई झील में अपना सीमित वक़्त बिताना मुझे कुछ खास उचित
नहीं लगा और हम यहाँ के एक ऊँचे शिखर की ओर चल पड़े।चोटी पर लिखे इस
मजेदार संदेश को पढ़कर हँसी आ गई।
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येरकाड घाटी और पीछे दिखते हेयरपिन बैंड |
कुछ साल पहले तक येरकाड की इन हरी भरी वादियों में बॉक्साइट के अवैध खनन से ग्रहण सा लगता नज़र आ रहा था। पर अब भारी विरोध के बाद निजी कंपनियों द्वारा ये खनन बंद करा दिया गया है। पर आज भी येरकाड से वो इलाका देखा जा सकता है जहाँ ये खनन हुआ करता था।
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बॉक्साइट की बंद खदानें |
दिन का भोजन करने के बाद थोड़ी देर हम यहाँ के हरे भरे जंगलों में भटकते रहे।
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ऐसे ही तनों पर चढ़ती हैं काली मिर्च की बेलें |
यूँ तो सर्वत्र हरियाली ही छाई थी पर बीच बीच में अचानक रंगों का बदलाव मन को मोह लेता था।
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हरे पीले की बीच मन को खुश करता बैंगनी |
करीब चार बजे येरकाड से हम वापस चल पड़े क्यूँकि शाम तक हमें सेलम पहुँच
जाना था। रास्ते भर मैं चित्र लेने के लिए रुकता रहा। वसंत का आगमन तो नए
फूलों के साथ होता ही है। पर यहाँ ऐसे पेड़ों और लता की बहुतायत थी जिसमें
डालियाँ और फूल तो थे पर पत्ते बिल्कुल नहीं थे। पतली पतली डंडियों के घने
जाल के बीच झांकते इन लाल, सफेद व पीले फूलों को देखना मन को रास्ते भर
सुकून देता गया।
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सुर्ख लाली कितनी प्यारी ! |
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पत्तों से हमारा हुस्न छुपता जो था सो गिरा दिया उन्हें :) |
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ढलती रोशनी में ये सूखा से पेड़ ऐसा लग रहा था मानो काग़ज़ पर बनी कोई सुंदर सी पेंटिंग हो |
इस श्रंखला की अगली कड़ी में आपको बताएँगे कि क्यूँ येरकाड के
GRT Natural Resort का Skywalk है इतना मशहूर !
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सेलम यरकॉड (यरकौद) यात्रा से जुड़ी सारी कड़ियाँ
आपके पोस्ट से एक नए येरकाड को देखने का मौका मिला ,काली मिर्च के पोधे हम लोग नहीं देख पाये थे, या कहिये मुझे इनके बारे में जानकारी ही नहीं थी,वास्तव में गर्मियों के कारण यहाँ काफी काम हरियाली के दर्शन हो रहे हैं
जवाब देंहटाएंयेरकाड में हरियाली थी पर झील में पानी बेहद कम था। पर नीचे उतरते उतरते ये हरियाली इन कोपलविहीन वृक्षों में तब्दील हो गई थी।
हटाएंAwesome
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंBeautiful pictures.
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