शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

चलिए चिलिका झील रंभा के आस पास के द्वीपों की सैर पर Islands around Rambha, Chilika

चिलिका झील को अक्सर लोग पुरी जाते समय वहाँ से नज़दीक इसके उत्तर पूर्वी किनारे सतपाड़ा में जाकर ही देखते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि ग्यारह सौ वर्ग किमी में फैली इस झील के दो मुख्य प्रवेश द्वार और भी हैं? जहाँ सतपाड़ा से आप चिलिका के समुद्र से मिलन स्थल (Sea mouth, Chilka) तक की सैर करते हैं वहीं इसके पश्चिमी मध्य किनारे पर स्थित बड़कुल (Barkul) से चिलिका के अंदर बने कालीजय मंदिर और नलवन तक पहुँचा जा सकता है। चिलिका तक गंजाम जिले के ब्रह्मपुर से भी पहुँचा जा सकता है। ये द्वार है रंभा का जो अंग्रेजों के जमाने से उनकी सैरगाह के रूप में जाना जाता था। OTDC ने पर्यटकों की सुविधा को देखते हुए इन तीनों जगहों पर पंथनिवास बनाए हैं। आज आपको मैं ले चल रहा हूँ रंभा से चिलिका झील की नौका यात्रा पर जो अपने साथ कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादें छोड़ गयीं।   

मछली फँसने का शायद ये भी इंतजार कर रहा है

जैसा मैंने पिछले आलेख में आपको बताया था चिलिका की इस नौका यात्रा में सरकारी और निजी दोनों तरह की नावें उपलब्ध हैं। सरकारी नावें ऊपर से छायादार दिखीं, साथ ही उसमें सुरक्षा जैकेट भी उपलब्ध थे। ये अलग बात है कि नाविक उन सुरक्षा जैकेटों को नाव पर चढ़ने के पहले यात्रियों से पहनने की सख़्त ताकीद नहीं करते। दो तीन घंटों की इस यात्रा का सरकारी किराया तो दो हजार रुपये के आस पास था, स्पीड बोट का इससे भी ज्यादा  पर मोल भाव कर इसे हम तीन चार सौ रुपये तक कम कर पाए। मेरे ख्याल से इसे किसी भी हालत में हजार और पन्द्रह सौ से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

बहरहाल चलने के पहले पंथनिवास में ये मानचित्र दिखाई दिया। हमारी नौका हमें  Breakfast Island, Bird Island, Sankunda होते हुए Honeymoon Island ले जाने वाली थी। द्वीपों के ऐसे नाम गंजाम में बसी यूरोपीय आबादी की वज़ह से ही आए होंगे। पर इस यात्रा के बाद जब मैंने अंतरजाल पर खोज की तो पाया कि लोग अलग अलग द्वीपों को इन नामों से जानते हैं।यानि इन नामों पर मतैक्य नहीं है।

पंथ निवास रंभा में चिलिका का मानचित्र
पंथ निवास के मानचित्र के हिसाब से हम सबसे पहले Breakfast Island की ओर मुखातिब थे। हमारी नाव को सफ़र की शुरुआत में ही लम्बवत आती लहरों का सामना करना पड़ा। नाव लहरों के साथ ही डगमगाने लगी। पंथनिवास के स्वादिष्ट जलपान और इस आने वाले ब्रेकफॉस्ट द्वीप को भूल कर हम अपनी सीट मजबूती से पकड़ दिल थाम कर बैठ गए। हमारे ठीक बगल से घंटासिला की पहाड़ियाँ गुजर रही थीं। लोग कहते हैं कि इसमें कोई गुफा भी है। ना हमारे नाविक ने वहाँ रोकने की ज़हमत उठाई और ना ही हिलोरें लेती लहरों के बीच हमें रुकने की इच्छा हुई। नाविक ने हमें बताया कि कभी यहाँ कलीकोट के राजा जलपान ग्रहण करने आया करते थे इसीलिए इसका नाम Breakfast Island रखा गया।

घंटासिला पहाड़ियों की बगल से गुजरती हमारी नाव
इस छोटे से कमरे और उसके ठीक बगल में बनी इस शंकुधारी मीनार को देख के मुझे ये ओडीसा के बजाए पश्चिमी वास्तुकला से प्रभावित संरचना ही लगी। यात्रा से लौटकर जब अंतरजाल पर खोजबीन की तो बंगाल के जिला गजटियर के हवाले से पता चला कि इसे कलीकोट के राजा ने नहीं बल्कि गंजाम के तत्कालीन कलक्टर Mr. Snodgrass जो उस वक़्त भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के नुमाइंदे थे, ने बनाया था। कमरे में वे कार्यालय का काम देखते थे और खाली समय में चिल्का की इस हरी नीली जलराशि का आँखों से रसपान किया करते थे। बगल का स्तंभ को शंकु के रूप में ऊपर एक रोशनी (ताकि रात में दूर से आने वाली नौकाओं को इस ओर ना आने की चेतावनी मिल जाए) लगाने के लिए बनाया गया था इसीलिए इसे Beacon Island के नाम से भी जाना जाता रहा।


बहरहाल अगर विकीपीडिया की माने तो Breakfast Island यहाँ पास ही में स्थित Sankuda द्वीप का दूसरा नाम है जहाँ कलीकोट के राजा के महल का भग्नावशेष मौज़ूद है। OTDC को चाहिए कि द्वीपों के नामों के पीछे फैली भ्रांतियों को दूर करे और हर द्वीप के सामने एक सूचना पट्ट लगाए जिसमें उस द्वीप के ऐतिहासिक या भौगोलिक महत्त्व का उल्लेख हो।


 पक्षियों का द्वीप पर बस नाम भर को ही
कलक्टर साहब के इस कक्ष से आगे चलते हुए जब हमारी नाव ने दिशा बदली तो  लहरों की उथल पुथल खत्म हो गई। कुछ ही देर में हम Bird Island पर थे। जनवरी के मौसम में भी वहाँ दूर दूर तक कोई परिंदा पर मारता हुआ नहीं दिखाई पड़ा। सामने एक डायनोसार की मानव निर्मित काया जरूर खड़ी थी। पर हवा के थपेड़ों की वज़ह से उसकी पूँछ चिलिका की लहरों में खो चुकी थी।

टूटी पूँछ के साथ स्वागत करता डायनोसार

हमने सोचा शायद इस पहाड़ी पर चढ़ने के बाद आस पास बसर करने वाले पंछियों की झांकी मिले। पहाड़ी पर चढ़ने का कोई मार्ग तो था नहीं पर बीस तीस मीटर चढ़ने के बाद भी सन्नाटे के आलावा हमें कोई नज़ारा देखने को नसीब नहीं हुआ। एक सिरे की ऊँचाई तक पहुँचने के बाद पक्षी तो नहीं दिखे हाँ सांप की निकाली हुई केंचुल जरूर दिखी। हम समझ गए कि यहाँ और अधिक समय व्यतीत करना ना तो सुरक्षित है और ना ही यहाँ कोई पक्षी दिखने वाले हैं।
Bird Island पर स्थित पहाड़ी से लिया झील का दृश्य

Bird Island की इस चढ़ाई में पक्षी भले ना दिखे पर चारों ओर दूर दूर तक अगाध जलराशि के बीच ये अनुभव मन में झील के जल सी शीतलता लाने वाला था। मछुआरों के जाल को बाँधने के काम आने वाले बाँस की कतारों से दूर हरी भरी पहाड़ियों की तरफ़ से आने वाली हवा मन को बेहद सुकून पहुँचा रही थी।

चिलिका झील का एक मनोरम दृश्य
अगले द्वीप का नाम हमें Honeymoon Island बताया गया। भगवान जाने क्या सोचकर यूरोपीय साहबों ने इसका नाम हनीमून द्वीप रखा होगा़। हमें यहाँ एक ही बात खास लगी वो यहाँ के तट की संरचना। तट पर हरी घास के बीच सफेद पत्थरों का जाल फैला था जिसमें एक अलग तरह की सुंदरता नज़र आ रही थी। साथ ही पानी से लगी चूनापत्थर सरीखी चट्टानें बुरी तरह अपरदित होकर भी मुख्य भूमि से खारे पानी का रास्ता रोक रही थीं।

पत्थरों से आज मैं टकरा गया तूने दी आवाज़ लो मैं आ गया @ Honeymoon island
अंत में हम संभवतः नक्शे के हिसाब से Sankuda द्वीप पर पहुँचे। किनारे तक नाव नहीं जा रही थी। छिछले पानी में नाव से उतरे और फिर कुछ देर यूँ ही जंगल का चक्कर लगाते रहे। कुछ दूर अंदर चलने पर किसी भवन के टूटे मलबे को बिखरा पाया। पास में एक कच्चा घर भी था जिसमें बैठी वृद्ध महिला हमें देख कुछ अचंभित कुछ घबरा सी गई।  इसलिए हम वहाँ ज्यादा देर रुके नहीं और जल्दी ही चलते बने। ये हमारी तीन घंटे की नौका यात्रा का आखिरी पड़ाव था।

Sankuda द्वीप के बीच जंगलों में उभरती लाली के साथ
दस बजे से घूमते घूमते अब दिन का एक बज चुका था। वापसी की यात्रा चिलिका झील के चारों ओर फैली पहाड़ियों, छोटे छोटे गाँवों और मछली पकड़ने निकली इन पाल की नौकाओं को निहारते गुजरीं।  

झील की नीरवता को रंगों की चमक देती नौकाएँ
डेढ़ बजे तक हम वापस पंथ निवास में थे। शाम को वापस भुवनेश्वर की राह पकड़नी थी। भोजन कर हम वापस उसी जेटी के पास आ गए और चुपचाप उसके छोर पर बने चबूतरे पर जाकर बैठ गए। सच बताऊँ तो जितना आनंद मुझे वहाँ की शांति के बीच  चिल्का में उठती लहरों, झुंड मे उड़ते पंक्षियों और पानी में जगह जगह तैरते जालों को देखने में आया उतना तो नौका विहार में भी नहीं आया।
पंथ निवास रंभा के करीब स्थित जेटी
वैसे अगली बार अगर रंभा आऊँ तो उम्मीद रहेगी कि OTDC रंभा के आस पास बिखरे इन पुराने द्वीपों के रखरखाव में बेहतरी लाएगा। इस संदर्भ में पोर्ट ब्लेयर से सटे रॉस द्वीप का सुंदर रखरखाव तुरंत याद आ जाता है। ब्रह्मपुर, तम्पारा, रंभा और गोपालपुर की इस यात्रा को यहीं विराम देते हैं और मिलते हैं किसी नई जगह के नए किस्सों के साथ।

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14 टिप्‍पणियां:

  1. मजा आ गया.. हम तो सिर्फ राजहंस द्वीप तक ही गए हैं, इस बार बाकी के द्वीप भी जरूर जाएंगे..

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    1. धन्यवाद.. वैसे राजहंस द्वीप में क्या देखा था तुमने ?

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    2. वहां समुद्र और चिलिका मिलते हैं... और लाल केकड़े... :)

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    3. सतपाड़ा से वहाँ मैं भी गया हूँ पर उस द्विप का ये नाम है ये याद नहीं था वैसे लाल केकड़ों की फौज़ दीघा के निकट तालसरी में भी देखने को मिलती है।

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  2. थोड़ा खुल कर लिखा करे ताकि पढ़ते ही दृश्यावलोकन स्वतः ही हो जाय। आन्नद आ गया।

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    1. जरूर पर आप अगर थोड़ा खुल कर बताते तो मुझे भी समझने में सहूलियत होती :)

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  3. वाह, मीरजापुर वाली जेट्टी से तो हम अभिए चिल्का घूम कर आए हैं। अगली बार रम्भा की तरफ़ से जाते हैं।

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    1. रंभा नहीं तो फिर बड़कुल की तरफ़ से जाइए प्रवासी पक्षियों के आने के वक़्त तब साइबेरियन क्रेन के कुनबे को शायद आप देख पाएँ।

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  4. Jo log nahi ja sakte padhkr anandanubhuti kr sakte hai

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  5. बढ़िया।
    पंछियों के झुंड की फोटो रह गयी।
    बहुत दिनों बाद आया इधर। :)

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    1. स्वागत है मुझे तो लगा कि शादी विवाह के चक्कर में ब्लागिंग से निपट लिए। :p
      रही पक्षियों के झुंड की बात तो ज़रा पोस्ट तो ध्यान से पढ़िए जनाब Bird Island छान मारा था पर एक परिंदा भी पर मारता नहीं दिखा.. सो चित्र कहाँ से खींचते

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  6. ओडिसा के पर्यटक स्थलों के बारे में पहली बार आपके यात्रा संस्मरण से ही जानकारी मिल रही है,ये स्थल तो बिलकुल अनजाने से ही लग रहे हैं

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    1. ज्यादातर लोग पुरी कोर्णार्क और भुवनेश्वर को निबटा कर उड़ीसा यात्रा को पूर्ण मान लेते हैं पर उड़ीसा में हीराकुड, उदयगिरि, भितरकनिका, गोपालपुर और चाँदीपुर जैसी खूबसूरत जगहें हैं और मैंने इनके बारे में विस्तार से लिखा भी है।

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