भारत में छोटे बड़े 51 शक्तिपीठ हैं पर इनमें से चार की गणना आदि शक्तिपीठों में होती है। गौर करने की बात है कि ये सारे पीठ भारत के पूर्वी इलाके में स्थित हैं। पुरी के जगन्नाथ मंदिर, गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर और कोलकाता के काली मंदिर के तीन पीठों के बारे में तो आप भली भांति परिचित होंगे। पर क्या आप जानते हैं कि चौथा आदि शक्तिपीठ कहाँ है? आदि शक्तिपीठों की चौथी पीठ दक्षिणी ओडीसा के ब्रह्मपुर ( Brahmapur) या बरहमपुर ( Berhampur) शहर से तीस किमी दूर तारा तारिणी मंदिर में स्थित है। तो चलिए आज आपको लिये चलते हैं इस शक्तिपीठ के दर्शन पर..
तारा तारिणी का भव्य मंदिर |
पिछले लेखों में आपको बता चुका हूँ कि गोपालपुर में समुद्र के सानिध्य में बिताई शाम और सुबह कितनी रमणीक थी । गोपालपुर में एक रात ठहरने के बाद अगले दिन भोजन के उपरांत हमारा समूह तारा तारिणी मंदिर की ओर चल पड़ा। गोपालपुर से तारा तारिणी मंदिर की दूरी पैंतीस किमी के लगभग है जो तकरीबन एक घंटे में पूरी होती है। पंथ निवास से हमने एक कार की बुकिंग की थी पर ऐन वक़्त पर जब ये चमचमाती हुई महिंद्रा की मिनी वैन आकर खड़ी हुई तो लगा कि इस पर सैर करने का आनंद ही अलग होगा। जनवरी का महीना था सो दिन की धूप तेज होते हुए भी कड़ी नहीं थी। कुछ दूर तक सफ़र राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 59) से होकर गुजरा और फिर राज्य राजमार्ग (SH 32) की दुबली पतली सड़क का दामन हमने थाम लिया।
गोपालपुर से तारा तारिणी तक जाने का मार्ग |
सड़क पर ट्राफिक नगण्य था सो हम पचास मिनट में ही कुमारी पहाड़ियों के
नीचे थे। पहाड़ी के नीचे से एक सड़क मंदिर तक जाती है, साथ ही अगर आपमें दम
खम हो तो यहाँ की 999 सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं। पर जब आपके सामने इतना सुंदर
उड़न खटोला हो तो बाकी के विकल्प तो बेमानी हो ही जाएँगे। रोपवे से मंदिर के
प्रांगण तक की दूरी पाँच मिनट में तय होती है और इस दौरान आप आस पास बसे
गाँव , खेत खलिहान और उनके ठीक बगल से बहती ऋषिकुल्या नदी का मनोरम
नज़ारा देख सकते हैं।
उड़न खटोला (Rope Way) , तारा तारिणी मंदिर |
ऋषिकुल्या दक्षिणी ओडीसा की एक प्रमुख नदी है जो विंध्याचल के पूर्वी हिस्से से निकल कर काँधमाल और गंजाम जिलों से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है। गंजाम के पास इस नदी का मुहाना है। इसी मुहाने पर कछुओं की प्रजाति Olive Ridley Turtle द्वारा हर साल काफी मात्रा में अंडे दिए जाते हैं। तारा तारिणी मंदिर के आहाते से सर्पीले आकार में अपना रास्ता बदलती इस नदी के पाट को आप बखूबी देख सकते हैं।
ऋषिकुल्या नदी का मनमोहक रूप |
तारा तारिणी मंदिर की स्थापना कैसे हुई ये आज भी अबूझा प्रश्न है। शक्ति पीठ के आलावा तारा तारिणी पीठ की गणना एक तंत्र पीठ से भी होती है। कुछ लोग इस तंत्र परंपरा को बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय की धारणाओं से जुड़ा बताते हैं। मंदिर के नाम में 'तारा' का होना (बौद्ध मान्यताओं के हिसाब से तारा बोधिसत्व का स्त्री रूप थी) भी इस धारणा को बल देता है।
नदी से कुछ ही दूरी पर नारियल वृक्षों से घिरा सरोवर |
पर जहाँ तक ऐतिहासिक प्रमाणों का सवाल है इस इलाके में अशोक के शिलालेख और मंदिर में बुद्ध की छोटी सी प्रतिमा के आलावा कोई ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं जिनसे ये स्पष्ट रूप से साबित हो कि शक्ति पीठ के रूप में प्रचलित होने के पहले तारा तारिणी एक समय में बौद्धिक तंत्र पीठ रह चुका था। वैसे स्थानीय किवदंतियाँ तारा और तारिणी नाम की दो बहनों का भी जिक्र करती हैं जिन्हें माता की कृपा से दैवीय शक्ति प्राप्त हुई और बाद में उन्होंने इस पहाड़ी पर मंदिर की स्थापना की।
पहाड़ियों के नीचे से चोटी तक आती घुमावदार सड़क |
बहरहाल हिंदू मान्यताओं के अनुसार तो वही कथा सामने आती है जो बाकी शक्ति पीठों के बारे में कही जाती है। माँ पार्वती के पिता दक्ष ने एक बार एक यज्ञ का आयोजन करवाया पर भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा। पार्वती जी यज्ञ में शामिल हुई और पिता से अपने पति को ना बुलाने का कारण पूछा। जवाब में दक्ष ने भगवान शिव के प्रति अपशब्द कहे जिससे दुखी हो पार्वती ने अग्नि में अपनी आहुति दे दी। जब भगवान शिव को ये पता चला तो पार्वती के मृत शरीर को ले कर वो तांडव नृत्य करने लगे।
गाँव से निकलती सड़क के साथ पुआल का ढेर |
महाप्रलय के आसार को आता देखकर देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और शनि से शिव का क्रोध शांत करने को कहा। उन्हे लगा कि शिव का कोप शांत करने के लिए मृत शरीर को उनसे अलग करना आवश्यक है। पार्वती जी के मृत शरीर में घुसकर उन्होंने शरीर के हिस्सों कर अलग करना शुरु किया। ये हिस्से जहाँ जहाँ गिरे वो स्थान शक्ति पीठ कहलाए। तारा तारिणी में देवी का स्तन गिरा इसलिए ये मंदिर स्तन पीठ के नाम से जाना जाता है।
क्या इस बच्चे की मनचाही मुराद पूरी करोगे भगवन ? |
उड़न खटोले से उतरकर कुछ सीढ़ियाँ चढ़ते ही मंदिर का प्रांगण आ जाता है। बाँयी ओर एक कतार में पूजा सामग्री की दुकानें और दायीं ओर कुछ चबूतरे बने हैं। प्रांगण के ठीक बीचो बीच एक पीपल का पेड़ है जो मन्नत के लिए पेड़ की शाखाओं से बाँधे गए लाल कपड़ों से अटा पड़ा था।
तारा तारिणी मंदिर प्रवेश द्वार |
मंदिर के मुख्य द्वार के बाहर बंदर अपनी धमाचौकड़ी मचा रहे थे। चढ़ाने वाले प्रसाद को उनसे बचते बचाते हम अंदर घुसे। मुख्य मंदिर के ठीक बाहर फिर एक बार ये लाली दोबारा देखने को मिली। इसे देख कर कबीर का वो दोहा याद आ गया
लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल |
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ||
मन्नत की लाली पर दिल है सवाली |
मन्नत के रूप में धागे, घंटियाँ बाँधने का रिवाज़ तो पहले भी देखा था पर यहाँ लाल कपड़ों में चूड़ियों को बँधा पाया। मुख्य मंदिर के अंदर चित्र लेने की अनुमति नहीं है। मंदिर से निकल कर हम चिलिका झील के दक्षिणी सिरे रम्भा की ओर चले पड़े। कैसी रही हमारी रंभा तक की यात्रा देखना ना भूलिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में..
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Accha blog & post..
जवाब देंहटाएंShubh Navroj
शुक्रिया !
हटाएंबढ़िया ! मैने पहले ये नाम नहीं सुना था |
जवाब देंहटाएंतारा तारिणी मंदिर की गणना आदि शक्ति पीठ में होती है ये मुझे भी वहाँ जाने के बाद पता चला।
हटाएंउत्तम यात्रा वृत्तांत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हर्षिता !
हटाएंपर जहाँ तक ऐतिहासिक प्रमाणों का सवाल है इस इलाके में अशोक के शिलालेख और मंदिर में बुद्ध की छोटी सी प्रतिमा के आलावा कोई ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं जिनसे ये स्पष्ट रूप से साबित हो कि शक्ति पीठ के रूप में प्रचलित होने के पहले तारा तारिणी एक समय में बौद्धिक तंत्र पीठ रह चुका था? Typical thinking!
जवाब देंहटाएंसिर्फ typical thinking कह देने से कैसे चलेगा गुमनाम भाई। अगर आपकी जानकारी में कुछ और बाते हों तो अपने नाम के साथ यहाँ स्पष्ट रूप से रखने का साहस रखिए।
हटाएंVery nice article
जवाब देंहटाएंNice to know that u liked it.
हटाएंThanks
जवाब देंहटाएंI congratulate u 2 show Odisha's history 2 the world. Ma Tara Tarini will bless u.
जवाब देंहटाएंआपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद !
हटाएंBahut bandhiya laga jankar mauka laga to ek bar jarur jaunga
जवाब देंहटाएंDHANYAWAD
Nice articles
जवाब देंहटाएंThx for visiting :)
हटाएंGood write abt puri also
जवाब देंहटाएंNice article on Tara Tarini Shakti peeth.
जवाब देंहटाएंManish ji, Its an well-known shakti peeth and Tantra peeth.
In puranas, tantras and in tribal& Folk literature you can find enough evidence regarding its puja system and influence on the society in various ages.
The great religious texts including the kalika Purana (the Asthashakti) recognize the four major Shakti Peethas. Like
(Bimala, Pada Khanda) inside the Jagannath Temple, Puri, Odisha,
(Tara Tarini) Sthana Khanda (Breasts), near Brahmapur, Odisha, (Kamakshi, Yoni khanda) near Guwahati, Assam and
(Dakhina Kalika, Mukha khanda) in Kolkata, West Bengal
originated from the limbs of the Corpse of Mata Sati.
In a hymn, the Kalika Purana (Asthashakti) clearly says:
[[“Vimala Pada khandancha,
Stana khandancha Tarini (Tara Tarini),
Kamakhya Yoni khandancha,
Mukha khandancha Kalika (Kali)
Anga pratyanga sangena
Vishnu Chakra Kshate nacha……”]]
Historians believe goddesses Taratarini was the ista devi of kalinga emperors, whose capital 'SAMPA' was near Tara tarini before the invasion of ashoka in 2263 B.C.
Even Buddhists imitated the TARA worship from this place.
After Ashoka's kalinga conquest this famous hindu shrine was came under the control of Buddhists. It was during Adi Sankaracharya who released this peeth from Buddhist tantrikas. Due to this various traditions of this temple were destroyed.
Tara Tarini is a big research topic and very complex to understand. if you read the available literature from the net then you can know various new things about this peeth.
But you have done a praise worthy work. thanks for your efforts.
Ram Prasad Tripathy
Berhampur, Odisha
इस जानकारी को साझा करने व यहाँ पधारने के लिए धन्यवाद !
हटाएंतंत्र शास्त्र में 'पूर्ण गिरी' के रूप में यह जगा प्रसिद्ध हे .
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