फुकेट प्रवास के तीसरे दिन हमारा कार्यक्रम था फांग नगा खाड़ी के आस पास के इलाकों को देखने का। हम लोग फुकेट ( फुकेत ) के दक्षिण पश्चिम इलाके में थे और ये खाड़ी फुकेत के उत्तर पूर्वी सिरे पर स्थित है यानि करीब पचास किमी सड़क और पन्द्रह किमी समुद्र यात्रा तक हमें अपने गन्तव्य तक पहुँचना था। इस यात्रा के तीन मुख्य पड़ाव थे। बौद्ध गुफा मंदिर, फिर फांग नगा खाड़ी होते हुए मशहूर जेम्स बांड द्वीप और फिर वहाँ से खाड़ी के बीच बनी एक बस्ती में।
फुकेत शहर के बाहरी इलाकों में सबसे खूबसूरत दृश्य तब उभरता है जब आप पंक्तिबद्ध लगाए गए रबड़ के बागानों के बगल से गुजरते हैं। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हमारी गाड़ी एक पहाड़ी के सामने रुकी। पता चला कि इसी के अंदर वो मंदिर है जिसमें बुद्ध की सिर उठाकर लेटी मुद्रा में बनी सुनहरी मूर्ति है।
फुकेत शहर के बाहरी इलाकों में सबसे खूबसूरत दृश्य तब उभरता है जब आप पंक्तिबद्ध लगाए गए रबड़ के बागानों के बगल से गुजरते हैं। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हमारी गाड़ी एक पहाड़ी के सामने रुकी। पता चला कि इसी के अंदर वो मंदिर है जिसमें बुद्ध की सिर उठाकर लेटी मुद्रा में बनी सुनहरी मूर्ति है।
Reclining Buddha Statue at Wat Suwankhuha |
भारतीय मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में बंदरों की पूरी फौज़ मौजूद थी और यहाँ भी लोग बंदर को खिलाने के लिए वहाँ खास तौर पर इसी उद्देश्य से बिक रहे पैकेट खरीद रहे थे।
लेटे हुए सुनहरे बुद्ध की प्रतिमा दूर से बेहद भव्य लगती है। प्रतिमा के सामने बौद्ध पुजारियों की छोटी छोटी मूर्ति बनाई गई है। मुख्य प्रतिमा केी बगल की सीढ़ियाँ एक अन्य छोटे मंदिर को जाती हैं जहाँ नियमित पूजा अर्चना होती है।
करीब बीस मीटर लंबी और पन्द्रह मीटर चौड़ी मुख्य गुफा से एक रास्ता ऊपर की ओर जाता है।
गुफा के विभिन्न हिस्सों में बुद्ध की छोटी बड़ी अन्य प्रतिमाएँ भी हैं।
सीढ़ी से ऊपर पहुँचते ही बौद्ध संत की इस छवि से सामना हो जाता है।
गुफा के इस हिस्से में एक छोटा सी स्तूपनुमा आकृति दिखती है।
मंदिर का हिस्सा यही खत्म हो जाता है। चूँकि इस इलाके की ज्यादातर चट्टानें चूनापत्थर की हैं यहाँ पर अंडमान की गुफाओं की तरह ही stalactite and stalagmite की संरचना देखने को मिलती है
पानी की उपस्थिति में ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर बढ़ती ये चट्टानें तरह तरह के अद्भुत रूपों में यहाँ दिखाई पड़ती हैं। गुफा के इन हिस्सों में चमगादड़ों का भी डेरा है। साथ ही रिसते पानी की वजह से हल्की सी सीलन भी रहती है।
वैसे गुफा में रोशनी की पुख्ता व्यवस्था है। बुद्ध भगवान से इस मुलाकात के कुछ ही देर बाद जा पहुँचे फांग नगा खाड़ी के मुहाने तक। यहाँ से आगे हमें जेम्स बांड आइलैंड तक एक नौका में जाना था। कैसी रहा हमारा अनुभव जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में..
थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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बहुत शानदार !
जवाब देंहटाएंसराहने के लिए धन्यवाद प्रतिभा जी !
हटाएंसुन्दर
हटाएंधन्यवाद !
हटाएंईंट का सहारा लिये रिक्लाइनिंग बुद्ध की प्रतिमा को देख लगता है कि कैसे बचे होंगे वे सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस से!
जवाब देंहटाएंहा हा हा आपके sense of humour की दाद देनी होगी ज्ञानदत्त जी ! बड़ा सही बिंदु पकड़ा आपने !
हटाएंबंदरों के दर्शन होने से लगता ही नहीं कि ये पोस्ट भारत के किसी मंदिर का नहीं है,अत्यंत उम्दा पोस्ट
जवाब देंहटाएंवैसे बैंकाक के किसी भी मंदिर में मुझे बंदर नहीं दिखे क्यूँकि वो शहरी इलाका था। एक तो जंगल, दूसरे पहाड़ी और खाने पीने की निरंतर आपूर्ति की वझ़ह से यहाँ बंदरों का अच्छा खासा हुज़ूम हमेशा साथ रहता है।
हटाएंTravel unleashes such wonders. Love all the pictures. Would really like to know your experiences at the James Bond Island. Have been there myself!
जवाब देंहटाएंस्वागत है प्रतिष्ठा आपका इस ब्लॉग पर। कभी कभी गन्तव्य से ज्यादा वहाँ तक पहुँचने का सफ़र आपको ज्यादा आकर्षित करता है। जेम्स बांड आइलैंड भी एक ऐसी ही जगह लगी मुझे। विस्तार से तो आगे चर्चा करूँगा ही।
हटाएंगुफ़ा बड़ी सुन्दर है...
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