अपने ब्लॉग मुसाफ़िर हूँ यारों पर अब तक आपको उदयपुर, चित्तौड़, माउंट आबू, कुंभलगढ़, राणकपुर, जोधपुर, जैसलमेर की यात्रा करा चका हूँ। जैसलमेर तक जाकर कोई बीकानेर ना जाए ऐसा हो सकता है भला। तो आज आपको लिए चलते हैं बीकानेर की ओर। वैसे तो बीकानेर के नाम से ही आँखों के सामने पापड़, भुजिया व नमकीन का स्वाद जीभ पर उतरने लगता है पर वहाँ का किला भी काफी शानदार है ऐसा सुना था। पर इन सब से ज्यादा जिस बात ने मुझे वहाँ जाने के लिए उत्साहित कर रखा था वो था देशनोक का चूहे वाला मंदिर।
इसलिए जैसलमेर से चलते ही गाड़ी के चालक को मैंने कह दिया था कि मुझे देशनोक होते हुए बीकानेर पहुँचना है। बीकानेर से 32 किमी दूर करनी माता का ये मंदिर जोधपुर बीकानेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ता है। जैसलमेर से जोधपुर जाइए या बीकानेर पोखरन तक रास्ता एक ही है उसके बाद ये दुबली पतली सड़क आपको बीकानेर तक ले चलती है।
फलोदी के पहले तक सड़क के दोनों ओर के मैदानों में खेतों का नामोनिशान न था। बहुत से बहुत दूर दूर तक फैली रेतीली ज़मीन पर बबूल की झाड़ियों के बीच पीलापन लिए जंगली घास ही दिखाई पड़ती थी। साढ़े तीन सौ किमी की दूरी तय करने में हमें साढ़े पाँच घंटे से थोड़ा ज्यादा समय लगा। लगभग पौने पाँच बजे हम मंदिर प्रांगण के सामने खड़े थे। अपने गुलाबी परकोटों के बीच दूर से इस मंदिर का शिल्प सादा सादा ही दिखता है।
पर जब इसके संगमरमर से बनाए गए मुख्य द्वार के पास पहुँचते हैं तो इसकी भव्यता निखर उठती है। द्वार के पास तो हम पहुँच गए पर चूहों के दर्शन हमें नहीं हुए। मूषको से मिलने के लिए हम उत्कंठित तो थे पर उनकी संख्या का अंदाज़ा ना होने के कारण ये भय भी सता रहा था कि कहीं हमारे शरीर को आने जाने का रास्ता समझ वो मुझ पर ना चढ़ बैंठें। एक ज़माने में इस मंदिर में प्रचलित प्रथा ये थी कि अगर गलती से भी आपका पैर पड़ने से किसी चूहे की मृत्यु हुई तो आपको उसी के जैसा एक सोने का चूहा मंदिर को अर्पित करना पड़ेगा। ख़ैर मँहगाई के इस ज़माने में तो अब तो सोने के बजाए चाँदी से ही काम चला लिया जाता होगा।
वैसे तो मुख्य मंदिर छः सौ साल पुराना है पर संगमरमर का काम बहुत बाद में महाराज गंगा सिंह ने करवाया था। चाँदी के मुख्य द्वार और उसपर उत्कीर्ण आकृतियाँ गंगा महाराज के समय की देन हैं।
मंदिर के अंदर की दीवारों पर करणी माता के जीवन की झांकियों को महीन काम द्वारा चित्रित किया गया है।
बाहरी द्वार को पार कर हम जैसे ही मंदिर के मुख्य अहाते में पहुँचे चूहों की पूरी फौज़ दूध और उसमें मिली बूँदी का सामूहिक भोग लगाती दिखाई दी। अहाते का ऊपरी सिरा लोहे की जालियों से बंद था ताकि चील, कौवे नीचे चलते इस शाही भोज में तल्लीन मेहमानों पे आक्रमण ना कर दें। चूहे यहाँ इतने पूज्य हैं कि मंदिर में बँटने वाला प्रसाद उनसे छुलाकर ही वितरित किया जाता है। आख़िर गणेश की सवारी बनने वाले मूषक महाराज को दुर्गा का अवतार माने जाने वाली करणी माता के दरबार में इतना सम्मान क्यूँ मिल गया? ये जानने के लिए आपको करणी माता के बारें में कुछ बातें बतानी पड़ेंगी।
1387 ई में जन्मी माता करणी एक ग्रामीण महिला थीं। उनका विवाह तो हुआ पर उसके कुछ समय बाद उन्होंने गृहस्थाश्रम छोड़ बंजारों का जीवन व्यतीत करना शुरु किया। धीरे धीरे उनकी चमत्कारिक शक्तियों के बारे में बातें दूर दूर तक फैलने लगी। उनका यश इतना फैला कि जोधपुर और बीकानेर के राजाओं ने उनसे आशीर्वाद लेने के बाद ही इन किलों की आधारशिला रखी। देशनोक के पास ही एक जगह है कोलायत जहाँ एक विशाल तालाब है। किवदंती है कि इसी तलाब में माता का दत्तक पुत्र गिर कर डूब गया। माता ने यम से उसकी जान वापस माँगी तो बहुत अनुनय करने पर यमराज ने ये बात मानी कि उनकी अगली पीढ़ी वापस मानव रूप धारण करने के पहले चूहों के रूप में जन्म लेगी।माना जाता है कि उनके दत्तकपुत्रों में से कुछ ने सफेद चूहों के रूप में जन्म किया और आज भी उनका दिखना शुभ माना जाता है।
मंदिर में घुसते ही जहाँ वो सफेद चूहा दिखा नहीं कि श्रद्धालु उसकी एक झलक
पाने के लिए इधर से उधर भाग दौड़ करना शुरु कर देते हैं। हम सौभाग्यशाली रहे
कि हमारे पूरे समूह को भी ये दर्शन सुख प्राप्त हुआ। मंदिर में कुल बीस हजार काले चूहे हैं। इनमें भी भेद हैं। एक करणी माता के
साथ रहने वाले और दूसरे बाहरी प्रांगण में रहने वाले। मंदिर के लोगों की
बात मानी जाए तो बाहर वाले बाहर और अंदर वाले हमेशा अंदर ही रहते हैं।
ज़ाहिर है माता के करीब रहने वालों का रोब दाब ज्यादा है और इसी वज़ह से
उनका भोजन भी अलग है।
मंदिर में इन चूहों के रहने के लिए जगह जगह छिद्र बनाए हैं ताकि इनके लिए सही आवास इन्हें मिल सके। वैसे जब तक मैं मंदिर में रहा दो तीन बार से ज्यादा उनका स्पर्श नहीं हुआ। जो हुआ भी वो उनके साथ चित्र खिंचवाने के चक्कर में। लोग कहते हैं कि आरती के समय इनकी तादाद सबसे ज्यादा हो जाती है। होती होगी मैंने तो वो मंज़र नहीं देखा क्यूँकि दिन भर की यात्रा के बाद हमें बीकानेर के अपने होटल में भी लौटना था।
शाम के साढ़े छः बजे हम अपने होटल में थे। थोरी देर विश्राम कर नीचे निकले। सड़क पर ट्राफिक चरम पर था पर बीकानेर से बिना वहाँ का नमकीन लेकर जाना हमें गवारा नहीं था। सो जा पहुँचे ऐसी ही एक दुकान में...
बीकानेर में बिताया हमारा अगला दिन वहाँ के विशाल किले को देखने के लिए मुकर्रर था। कैसा लगा हमें बीकानेर का किला वो देखना ना भूलिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ियों में।अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
मंदिर का द्वार बड़ा सुन्दर है मनीष जी। बीकाणा यानि आज के बीकानेर का राज्य गोदारा जाटों से बीका जी को दिलवाने में करणी माता की भूमिका बड़ी अहम थी। इसीलिए उन्हें राजघराने से सम्मान मिला। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार माता के चूहों का दूध अफ़ीम मिला होता है ...trade secret:)
जवाब देंहटाएंआपके पास तो जानकारियों का खजाना है। शुक्रिया इस रोचक तथ्य को बाँटने के लिए !
हटाएंवाह! आपकी पोस्ट सही समय पर आई है. अगले महीने बीकानेर, जैसलमेर जाने की प्लानिंग है. बीकानेर से जैसलमेर जाने के लिए क्या ठीक रहेगा? ट्रेन या टैक्सी? ट्रेन तो शायद एक-दो ही है. एक जो रात में चलती है और सुबह जैसलमेर पहुंचती है वह कैसा रहेगा. बाकी अन्य में तो रेल आरक्षण रिग्रेट बता रहा है.
जवाब देंहटाएंहम लोगों ने राजस्थान में कहीं ट्रेन नहीं ली थी। वहाँ की सड़कें चकाचक हैं । बीकानेर से जैसलमेर पाँच से छः घंटे के बीच कवर हो जाता है। गाड़ी साथ में रहने से फायदा ये रहता है कि आपको उस जगह जा कर फिर दिमाग नहीं खपाना पड़ता कि वहाँ कैसे और किस समय जाएँगे। वैसे ज्यादा समय आपको जैसलमेर के लिए रखना चाहिए कम से कम दो दिन।
हटाएंहमने देशनोक का मंदिर तथा बिकानेर का किला देखा सच मे बहुत अछा लगा
हटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट ...... फोटो भी अच्छे लगे.... | जय करणी माता और मंदिर के चूहों की !
जवाब देंहटाएंwww.safarhainsuhana.blogspot.in
धन्यवाद जान कर खुशी हुई।
हटाएंसुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया यात्रा वृत्तान्त।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सराहने के लिए !
हटाएंManish ji
जवाब देंहटाएंBikaner is my city excellent narration
Thanks
Shukriya mujhe yaad hai Ajay ki aap Bikaner se hain :)
हटाएंManish ji mujhe bhi aapki team me samil kar lo.....
हटाएं"I Am Kalam" फिल्म में देखा था ये मंदिर....
जवाब देंहटाएंओह! मैंने अभी तक ये फिल्म नहीं देखी है।
हटाएंAmaranth Yates keep bare me Bhutan lichen vacate sir
हटाएंबहुत अच्छी जानकारी है। आपका प्रत्येक लेख पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि जीवन में यात्रा करना बहुत जरुरी है।
जवाब देंहटाएंचलिए अगर मेरे लेख ऐसा करने के लिए आपको प्रेरित कर पाएँ तो मेरे लिए खूशी की बात होगी।
हटाएंAapka yatra lekh mere dil ko chu jati hai. Hame to aaj pata chala ki hamare desh me yesa mandi v hai... thanku..ji...
जवाब देंहटाएंजानकर अच्छा लगा।
हटाएंसर ,आप के यात्रावृतांत रोचक होने के साथ हि सजीव होते है लगता है की हम भी आपके साथ ही उस यात्रा कर रहे है
जवाब देंहटाएंशु्क्रिया पसंदगी ज़ाहिर करने के लिए !
हटाएंबहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंअगर अपना नाम भी लिख दें तो आपसी संवाद में सहूलियत होगी मित्र !
हटाएंक्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंNice place....
जवाब देंहटाएंI love historical places
Me too...
हटाएंPhoto Nice
जवाब देंहटाएंThanx !
हटाएंNice....but also be more informative like few good hotels ...tariff. .etc ...also can suggest best restaurants .for food
जवाब देंहटाएंवेदांत अगर ऐसा कुछ उल्लेखनीय होता है तो बताने की कोशिश करता हूँ। जैसलमेरे के भौजन में लाल मिर्च, जोधपुर के रसगुल्ले और बीकानेर के नमकीन का जिक्र संबंधित पोस्टस में आया है। पूरे राजस्थान दौरे में हमने कभी भी सात सौ रुपये से ज्यादा के होटल में नहीं ठहरे ज़ाहिर है होटल अति साधारण थे। वैसे यात्राओं के बारे में किसी भी प्रश्न का जवाब मैं हर सप्ताहांत इस ब्लॉग के फेसबुक पेज पर देता हूँ।
हटाएंVery good manish ji
जवाब देंहटाएंThanx :)
हटाएंBhut sundar manish ji
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंyeh mandir mere dimaag mein bahut saaloN se hai, kabhi mauka he nahi mila dekhne ka. Aapne darshan kara diya. :)
जवाब देंहटाएंहा हा जब तक चूहे आपके पैरों के अगल बगल या ऊपर से ना गुजर जाएँ दर्शन अधूरा है :p
हटाएंNice sir g
जवाब देंहटाएंThanks Kulwinder !
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंThanks Ajay !
हटाएंNice post sir g..
जवाब देंहटाएंShukriya Rajesh!
हटाएंMast collection
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंVery nice story mai ek baar jarur. Jaaunga karni. Maata thanks sir
जवाब देंहटाएंOctober to March is best season to visit Bikaner.
हटाएंThanks manish ji. M also from bikaner.
जवाब देंहटाएंNice to know !
हटाएंSuperb essay its very knowedgeable
जवाब देंहटाएंNyce
Thanks for appreciation !
हटाएंमनीष जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंRealy manish g..its a lovely place..kaash m b yahan kabi ja paaun..
जवाब देंहटाएंHope your wish will be fulfilled soon.
हटाएंबहुत खूब लिखा है आपने... .
जवाब देंहटाएंकभी श्री गंगानगर पधारने का कष्ट करें...
धन्यवाद
देखिए कब आना हो पाता हैं वहाँ !
हटाएंI got this site from my buddy who told me concerning this website and at the moment this time I am browsing this web site and
जवाब देंहटाएंreading very informative articles at this
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हटाएंउम्दा लेख मनीष सर और बहुत ही उत्तम ब्लॉग है आपका इतनी डिटेल में पोस्ट आप लिखते हो की मजा आ जाता है और भाषा शैली भी आपकी सराहनीय है मैंने भी एक ट्रेवल का हिंदी में ब्लॉग बनाया है कृपया कभी फुर्सत हो आपको तो एक बार अवश विजिट करे मेरे ब्लॉग और मुझे मेरी गलतियाँ समझाने धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंब्लॉग - सफ़र जानकारी