सोमवार, 21 जुलाई 2014

यादें क्योटो की : क्या फर्क है एक बौद्ध मंदिर औेर शिंतो पूजास्थल में ? Heian Shrine Kyoto : The difference between a Shinto and Buddhist Temple in Japan.

भारत में अगर मंदिरों के शहर की बात की जाए तो सबसे पहले वाराणसी यानि बनारस का ध्यान आता है। बनारस के हर दूसरे गली कूचे पर छोटे बड़े मंदिर आपको मिलते रहेंगे। पर बनारस से पाँच हजार से भी ज्यादा किमी की दूरी पर स्थित जापान का क्योटो शहर एक ऐसा शहर है जहाँ हजारों की संख्या में बौद्ध मंदिर और शिंतो पूजा स्थल है। जापान की कोई भी यात्रा बिना इसके धार्मिक शहर क्योटो में जाए अधूरी है। आज से ठीक दो साल पहले इसी जुलाई के महिने में मैंने आपने साथियों के साथ क्योटो की यात्रा की थी। पर इससे पहले कि आपको क्योटो के इन मंदिरों की सैर कराऊँ जापानियों की धार्मिक आस्था से आपका परिचय कराना आवश्यक रहेगा। 

अगर एक भारतीय से जापान के मुख्य धर्म के बारे में पूछा जाए तो अधिकांश का जवाब बौद्ध धर्म ही होगा। बहुत कम लोगों को पता है कि ज्यादातर जापानी बौद्ध और शिंतो जीवन पद्धति दोनों पर आस्था रखते हैं। बौद्ध धर्म तो चीन और कोरिया के रास्ते जापान आया पर शिंतो तो जापान के अंदर ही धीरे धीरे पनपा और पहली बार लिखित रूप में ईसा पूर्व छठी (660 BC) शताब्दी में आया। शिंतो धर्म की सबसे दिलचस्प बात है कि कई बातों में ये हिंदू धर्म दर्शन से मिलता जुलता है। हम अक्सर कहते हैं कि हिंदुत्व जीवन जीने की एक शैली है। वैसे ही शिंतो भी एक ऐसी जीवन पद्धति है जो आज के जापानियों को उनके पूर्वजों के तौर तरीकों से भिन्न भिन्न रीति रिवाज़ों के माध्यम से जोड़ती है। शिंतो धर्म जापान के अलग अलग अंचलों के निवासियों की धारणाओं का एक संकलित रूप है। हर इलाके में अलग अलग भगवान यानि कामी हो सकते हैं। हर कामी किसी न किसी प्राकृतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इतना ही नहीं हिंदू धर्म दर्शन की तरह ये कामी व्यक्ति के आलावा ब्रह्मांड में ईश्वर द्वारा निर्मित किसी भी सजीव या निर्जीव वस्तु जैसे पेड़, पहाड़ , नदी व जानवर में विद्यमान रह सकते हैं।



जब हमारा समूह टोक्यो से शिनकानशेन यानि वहाँ की बुलेट ट्रेन से क्योटो पहुँचा तो दिन के ग्यारह बज रहे थे। क्योटो के मंदिरों को देखने के लिए हमारे पास सिर्फ आधे दिन का वक़्त था। हल्का फुल्का जलपान कर हम वहाँ आए अन्य देशों के पर्यटकों के साथ क्योटो के तीन बड़े मंदिरों की सैर पर निकल पड़े। हमारा गाइड बेहद हँसमुख स्वाभाव का था। उसने मुझसे पूछा कि आप के यहाँ अभिवादन कैसे करते हैं? मैंने कहा हाथ जोड़ के। वो मुस्कुराते हुए बोला कि कम से कम जापान में आप ऐसा ना करें तो अच्छा है। जापान में भी सम्मान में हाथ जोड़ने का प्रावधान है पर वैसे लोगों के लिए जो गुज़र चुके हों। क्योटो शहर का हमारा पहला पड़ाव था Heian Shrine जो कि एक शिंतो पूजास्थल है। शिंतो पवित्र स्थलों और बौद्ध मंदिरों के बीच में सबसे बड़ा फर्क ये है कि शिंतो पूजास्थल के सामने ऊपर के चित्र के आकार का ब्राह्य दरवाज़ा होता है जिसे तोरी (Torii) कहा जाता है। 


इसके विपरीत बौद्ध मंदिरों में बहुमंजिला शंकु का आकार लेती इमारत यानी पैगोडा को देखा जा सकता है। नाम के उच्चारण से भी आप ये पता कर सकते हैं कि कौन सा मंदिर बौद्ध है और कौन शिंतो ? सारे बौद्ध मंदिरों के अंत में 'जी' प्रत्यय लगता है जैसे सेंसो जी, तोदा जी आदि । जैसा कि आप जानते हैं कि बौद्ध मंदिरों में प्रार्थना पूरी शांति से की जाती है। पर Heian Shrine में जाकर हमें  शिंतो पवित्र स्थल में पूजा की दिलचस्प पद्धति का पता चला। भारत की तरह मंदिरों में चप्पल पहनने की इज़ाजत नहीं है। जब आप पूजा स्थल के मुख्य कक्ष के सामने जाते हैं तो दो बार हाथों को एक दूसरे के समानांतर ले जाकर ताली बजानी पड़ती है। जापानी मान्यता के अनुसार ऐसा इसलिए किया जाता है कि पूर्वजों की आत्मा जान जाएँ कि आप उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आए हैं। एक बार भगवन जाग गए तो आप हाथ जोड़ उनका नमन कर सकते हैं :)।


Heian Shrine  में मुख्य दरवाजे से घुसने के बाद ही जापानी महल का हिस्सा दायीं ओर दिखता है। दरअसल ये पवित्र स्थल हीयान शासन काल में बनाए गए महल के स्वरूप में उसके मूल आकार से 5/8 भाग छोटा कर बनाया गया है। इतिहासकार मानते हैं कि जापान सम्राट Kammu  ने बौद्ध पुजारियों के राजकाज में बढ़ते दखल से परेशान होकर 794 ई में जापान की राजधानी नारा से बदल कर हीयान (Heian) कर दी। हीयान आज के क्योटो का प्राचीन नाम है। क्योटो शहर के ग्यारह सौ साल पूरे होने पर इसके प्रथम सम्राट Kammu  और आख़िरी सम्राट Komei की स्मृति में इस पूजा स्थल का निर्माण किया गया था। बाद में मेज़ी शासनकाल में ये राजधानी टोक्यो में तब्दील हो गई। हालांकि ऐसा करते समय सम्राट द्वारा कोई राजकीय फ़रमान नहीं जारी किया गया। इसीलिए आज भी कुछ लोग क्योटो को सैंद्धांतिक रूप से जापान की राजधानी मानते हैं।



पूजास्थल के ठीक सामने इस प्रांगण के मध्य हिस्से में इतनी खाली जगह है कि एक फुटबाल का मैदान आ जाए। जापान के बौद्ध मंदिरों की तरग शिंतो पूजा स्थलों में भी परिसर में प्रवेश करने के पहले हाथ और मुँह धो कर शुद्धिकरण की परंपरा है। हर शिंतो पूजा स्थल के प्रहरी के रूप में किसी जानवर की मूर्ति को आप मुख्य द्वार या उसके प्रांगण में देख सकते हैं।


भारत में मनौती मानने की प्रवृति से आप सभी परिचित हैं। जैसा कि सेंसोजी का यात्रा विवरण लिखते समय आपको बताया था कि जापान में भी अपना भाग्य पता करने के लिए लकड़ी के बक्सों को खोलते हैं और देखते हैं कि उसके अंदर के कागज़ पर क्या लिखा है।


अगर भाग्य अच्छा आता है तो उसे अपने साथ लेकर चले जाते हैं और अगर खराब रहा तो नीचे के इस चित्र की तरह उस काग़ज़ को यहाँ लटका कर अपने भगवान द्वारा ठीक करने के लिए छोड़ जाते हैं।


हीयान पूजा स्थल के साथ ही एक सुंदर सी झील और जापानी बागीचा भी जुड़ा है। कैसा होता है जापानी उद्यान ये जानिएगा क्योटों की यादों से जुड़ी मेरी अगली कड़ी में..
यादें क्योटो की
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15 टिप्‍पणियां:

  1. यह मेरे लिए नयी जानकारी है

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  2. सुंदर व रोचक जानकारी धन्यवाद

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  3. Very good. I enjoyed writing while remembering those days.....

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  4. Kuchh naya aur mahatvapurna Jana aj maiyne. Aasha karti hu Ki mujhe bhi kabhi Kyoto Jane ka awsar prapt ho.

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  5. बहुत बढ़िया , जानकारी देती पोस्ट

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  6. Bahut sundar, mujhe iski jankari nahi thi bilkul

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  7. शु्क्रिया आप सभी का यहाँ आने का और पोस्ट को पसंद करने का।

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  8. बहुत सुन्दर जानकारी।

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