चीड़ के जंगलों में विचरने के बाद कौसानी का हमारा अगला पड़ा बैजनाथ के मंदिर थे। बैजनाथ के ये मंदिर कौसानी बागेश्वर मार्ग पर कौसानी से 16 किमी दूरी पर स्थित हैं। दोपहर को जब हम कौसानी से चले तो धूप खिली हुई थी। कौन कह सकता था कि सुबह की इतनी गहरी धुंध दिन तक ऐसा रूप ले लेगी? कौसानी से बैजनाथ पहुँचने के ठीक पहले गरुड़ (Garud) नाम का कस्बा आता है जो इस इलाके का मुख्य बाजार है। इस मंदिर के ठीक बगल से यहाँ गोमती नदी बहती है। पर कोसी की तरह ही ये वो गोमती नहीं है जो आपको लखनऊ में दिखाई देती हैं।
मुख्य सड़क से मंदिर की ओर जाता गलियारा कुछ दूर तक इस नदी के समानांतर चलता है। एक ओर फूलों की क्यारियाँ और दूसरी ओर बैजनाथ कस्बे का परिदृश्य मन को मोहता है। गलियारे को पार कर ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए बैजनाथ के मंदिर समूह के प्रथम दर्शन होते हैं। एक नज़र में पत्थर से बने छोटे बड़े इन मंदिरों का बाहरी शिल्प एक सा नज़र आता है।
जब हम वहाँ पहुँचे तो पाया कि मंदिर प्रांगण से नदी के पाट की तरफ़ ज्यादा चहल पहल है। स्थानीय निवासी और बाहर से घूमने आए लोग अक्टूबर की इस धूप में नदी के जल में छई छपा छई का आनंद लेते दिखे। चूंकि यहाँ मछलियाँ मारने की मनाही है इसलिए नदी के स्वच्छ जल में छोटी बड़ी तैरती मछलियाँ बच्चों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थीं।
समुद्र तल से 1100 मीटर से भी अधिक ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर पर इस कस्बे का नाम पड़ा है। कत्यूरी नरेशों के ज़माने में इस स्थान का नाम कार्तिकेयपुर था। बैजनाथ के ये मंदिर नागर शैली के मंदिर हैं और संभवतः इन्हें नवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच कुमाऊँ के कत्यूरी शासकों ने बनवाया। इन मंदिर समूहों में मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जबकि अन्य सत्रह छोटे छोटे मंदिरों में केदारेश्वर, लक्ष्मीनारायण और ब्राहम्णी देवी की मूर्तियाँ प्रमुख हैं।
हिंदू मान्यताओं के हिसाब से शंकर और पार्वती का विवाह गरुड़ गंगा और गोमती
के संगम पर हुआ था। मुख्य मंदिर में काले रंग के पत्थर पर उकेरी गई पार्वती
की सुंदर प्रतिमा भी है। जैसा कि मंदिरों में प्रायः होता है यहाँ भी अंदर
चित्र खींचने की इजाज़त नहीं है।
मंदिर के आहाते में आप शिवलिंग, नंदी की मूर्तियों समेत कई अन्य मूर्तियों को खुले में स्थापित पाएँगे। आहाते के मंदिरों में एक पर जाकर मेरी नज़र ठिठक गई। पीछे से देखने पर इसका एक ओर झुकना स्पष्ट देखा जा सकता है।
बैजनाथ के मंदिरों को देखने के बाद हम लौटते समय कौसानी के हस्तकरघा केंद्र भी गए जहाँ करघों पर बुनाई का काम चल रहा था। ज़ाहिर है कि इस हस्तकरघा केंद्र के
साथ दुकानें भी थीं जहाँ मूल्य को हमने कमोबेश वाज़िब ही पाया।
वैसे कौसानी में कुछ चाय के बागान भी हैं। पर इन्हें मुन्नार व दार्जिलिंग के चाय बागानों जैसा मत सोचिएगा। यहाँ के चाय बागान उनकी तुलना में बेहद छोटे हैं। थोड़ा आराम करने के बाद हमारा समूह फिर कौसानी के गली कूचों में टहलने निकला और टहलते टहलते हम जा पहुँचे हि्दी कविता के मजबूत स्तंभ सुमित्रानंदन पंत के घर पर जिसे अब आम घुमक्कड़ों के लिए भी खोल दिया गया है। कैसे माहौल में रहते थे पंत ये दिखाएँगे आपको इस श्रंखला की अगली कड़ी में...
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हम भी पहले लखनऊ की गोमती समझ बैठे थे। सुन्दर तीर्थ।
जवाब देंहटाएंनदी तट पर स्थित होना इस मंदिर की सुंदरता को बढ़ा देता है।
हटाएंआपकी यात्रा बड़ी भाई उस बैजनाथ को भी ज्योतिर्लिंग बताते हैं जब कि शायद ऐसा नहीं है
जवाब देंहटाएंवहाँ कम से कम पुरातत्त्व विभाग द्वारा ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई थी जिससे ये स्पष्ट हो कि इसे बारह ज्योतिर्लिंग में एक माना जा सके।
हटाएंबैजनाथ 12 ज्योतिर्लिंगो में नहीं आता है । यहाँ तक जागेश्वर जो अल्मोड़ा से 39 किमी अल्मोड़ा पिथोरागढ़ मार्ग पर स्थित है को दारुकावने कहा जाता है पर वो भी ज्योतिर्लिंग नहीं है ।
हटाएंसुशील जी इस जानकारी को यहाँ साझा करने के लिए धन्यवाद !
हटाएंगोमती का नाम शीर्षक मेँ देख सोचा कि उस नाले के बारे मेँ क्या पढ़ना। पर यह तो अप्रतिम है!
जवाब देंहटाएंउत्तराखंड सरकार भी तैय्यारी कर रही है इसको भी नाले में बदल डालने की । इलाके में सीमेंट कारखाना खोलने का षडयंत्र चल रहा है ।
हटाएंअगली कड़ी का इंतज़ार..
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी हाज़िर है। :)
हटाएंसुन्दर यात्रा वृतांत ..... अपनी कौसानी, बैजनाथ यात्रा याद हो आई.... |
जवाब देंहटाएंरीतेश ....
www.safarhainsuhana.blogspot.in
http://ritesh.onetourist.in/2014/04/taj-nature-walk-agra-6.html
शुक्रिया !
हटाएंIt is one of the most beautiful and picturesque place of Uttarakhand. I have been there several times.
जवाब देंहटाएंAbsolutely...
हटाएंबहुत सुंदर..चित्रों को देख यहां घूमने को मन मचल उठा...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर कि आपको चित्र पसंद आए।
हटाएंबहुत सुंदर !!!
जवाब देंहटाएंक्या मनोरम नज़ारा है! अति सुंदर।
जवाब देंहटाएंसरिता जी, नम्रता सच में चीड़ के जंगल, सड़क के साथ बहती नदी इस पूरे इलाके की खूबसूरती को बढ़ा देते हैं।
हटाएंManish Jee
जवाब देंहटाएंAap ke sath sath main bhi ghar baithe Kausani ki sair kar rahan hoon, Dhanyavaad,
Kay Munsiary ki taraf bhi jaane ka Irada hai ? Munsiary bhi ho lete to main bhi ghoom leta.
Alok
मुन्सयारी तो नहीं पर आलोक आपको बिनसर तक जरूर ले जाऊँगा
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