जैसा कि मैंने आपको पिछले आलेख में बताया था घाट परिक्रमा के बाद वापस दशाश्वमेध घाट पर पहुँचते पहुँचते शाम के छः बज चुके थे। घाट के किनारे चौकियों की कतार बिछ चुकी थी। मोर पंख, शंख, दीपदान व हवन सामग्री इन सात चौकियों की शोभा बढ़ा रहे थे। चौकियों के सामने ही सफेद रंग की चादरों के साथ दरियाँ बिछा दी गयी थी, जिस पर भक्तजनों ने बैठना शुरु कर दिया था।
पिताजी के साथ कुछ देर मैं भी वहाँ बैठा रहा पर तैयारी में कुछ समय देख कर बगल के मानमंदिर घाट पर चला गया। वहाँ पर सन्नाटा छाया था सो ज्यादा देर बैठने का मन नहीं हुआ। मानमंदिर घाट की दूसरी तरफ़ प्रयाग घाट की ओर भी गंगा आरती की तैयारियाँ चल रही थीं। वापस लौटा तो देखा दरी के आलावा घाट की सीढ़ियों और चबूतरों पर भी भाड़ी भीड़ जमा है।
गंगा आरती : पूजा की चौकी
सात पंडितों को एक साथ आरती करते देखने के लिए मुझे एक ऊँचे चबूतरे की तलाश थी। घाट की सीढ़ियों के ऊपर एक छोटे से रेस्ट्राँ के सामने एक चबूतरा दिखा। छः सात विदेशी वहाँ पहले ही आसन जमाए बैठे थे पर एक दो लोगों के खड़े होने की थोड़ी सी जगह थी। उनमें से सारे अंग्रेज तो नहीं थे पर Excuse me का सहारा लेते हुए उनके पीछे से होते हुए उस खाली जगह तक पहुँचा। नीचे पालथी मारकर चबूतरे पर बैठा ही था कि मेरे जूते का कोना नीचे लगी अस्थायी पान की दुकान से लगा। मैंने तुरंत खेद व्यक्त किया पर पान वाला मेरे अभद्र आचरण पर बनारसी क्रोध दिखाता रहा। मैं चुप रहा क्यूँकि पंगा लेने से मेरा वहाँ जाने का उद्देश्य पूरा नहीं होता।
तभी एक साड़ी पहने जापानी महिला वहाँ कुछ खरीदने आई। पानवाले का ध्यान मेरे से हटा। लाल बार्डर और सफेद आँचल की साड़ी पहने वो महिला देवदास की पारो सी प्रतीत हो रही थी। सोचने लगा भारतीय संस्कृति कहाँ कहाँ के लोगों को आकर्षित कर लेती है और हम हैं कि अपनी ही संस्कृति से दूर भागने को आतुर हैं।
पंडित तैयार हैं..
साढ़े छः बज चुके थे और आरती अब शुरु होने ही वाली थी। सात पंडितों का दल सामने आ कर खड़ा हुआ था। पंडितों के नाम से मुझे हमेशा अधेड़ स्थूलकाय प्राणी की छवि ध्यान में आती थी। पर यहाँ तो अधिकांश दुबले पतले युवा थे और उनमें से एक ने तो बिल्कुल नए स्टाइल का चश्मा भी पहन रखा था। सबने सुनहरे श्वेत रंग की धोती और मैरून अचकन पहन रखी थी जो देखने में भव्य लग रही थी।
गंगा आरती का शुभारंभ
मंत्रोच्चारण के साथ दीपपात्र में द्वीपों का प्रज्ज्वलन हुआ और सारे पंडित
दीपपात्र को गंगा की ओर रखते हुए विभिन्न मुद्राओं में घुमाने लगे। ये
प्रक्रिया माँ गंगा के सम्मान में बोले जाने वाले मंत्रों के साथ चलती रही।
गंगा की इस आरती के पीछे मान्यता ये है की द्वीपों को माता के सामने इस
तरह जला कर अर्पित करने से दैवीय शक्ति दीपाग्नि में आ जाती है इसीलिए आरती
के बाद दोनों हाथों से उसके ताप को अंजुलि में भरकर हम अपने शरीर में
लगाते हैं।
गंगा की अग्नि अर्चना
अपनी चबूतरे वाली जगह को छोड़ आरती के दूसरी ओर के माहौल का जायज़ा लेने के लिए मैं नदी की ओर चल पड़ा। चौकियों के ठीक बगल से नदी की ओर जाती सीढ़ियाँ हैं।
है ना ये शानदार दीपपात्र !
गंगा आरती, शंखनाद
अग्नि अर्चना खत्म होने के बाद मोरपंख, धूपदान को भी घुमा घुमा कर मंत्र पढ़े जाते हैं। फिर एक साथ शंखनाद का स्वर पूरे वातावरण को भक्तिमय कर देता है। वैसे गंगा आरती आजकल गंगा से सटे हर शहर में छोटे बड़े रूपों में होने लगी है। हरिद्वार और ॠषिकेश में होने वाली आरती इतनी भव्य तो नहीं होती पर वहाँ आध्यात्मिकता का पुट वाराणसी से ज्यादा होता है।
मंत्रमुग्ध भक्तगण
गंगा आरती को जितने लोग घाट पर बैठ कर देखते हैं उतने ही इसे नाव में सवार होकर सामने से देखते हैं।
गंगा नदी में नाव से आरती देखती जनता
गंगा आरती पौन घंटे चली और शाम सवा सात बजे हम सब अपने अपने ठिकानों की ओर लौट गए। कुल मिलाकर इस आरती में शिरक़त करना आध्यात्मिक अनुभव तो नहीं पर यादगार जरूर रहा। वैसे आपको कैसी लगी ये गंगा आरती? अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
गंगा माँ के प्रति संस्कृति के स्नेहिल पक्षों का अद्भुत निरूपण।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रवीण इस प्रविष्टि को पसंद करने के लिए !
हटाएंKoi lota de mujhe mere beete huye din.
जवाब देंहटाएंBhu ki yad taja kar di, Vanaras ke ghat aur Ganga par ki Ramlila ka maja hi kuch aur tha.
Waise itane detail mai Arti kabhi nahi dekhi.....nice coverage
हाँ सर अपने कॉलेज में बिताए दिन हमेशा अनमोल होते हैं। फक़ैती के लिए जो समय मिलता था उसका स्वाद अब कहाँ ! मेसरा से सटे जंगलों में विचरना और सुवर्णरेखा नदि के किनारे बैठने का सुख आज भी याद आता है।
हटाएंFully enjoyed ur post !
जवाब देंहटाएंNice to know that Mahesh !
हटाएंब्लॉग के माध्यम से गंगा आरती देखकर मन प्रसन्न हो गया......
जवाब देंहटाएंजय गंगा माँ.....
http://ritesh.onetourist.in/2014/02/akbar-tomb-agra-5.html
पोस्ट पसंद करने के लिए शुक्रिया !
हटाएंManish, this is really a wonderful post. Enjoyed it fully!
जवाब देंहटाएंआपको ये शब्द चित्र पसंद आया जानकर खुशी हुई।
हटाएंवाह कब आये थे सर आप।। आरती के साथ कभी कभी मै ही तबला बजाता हूं।। और घाट के बगल में ही रहता हूँ यदि पता होता तो आप जैसे संगीत मर्मग्य से मिल के बहुत खुशी होती।।।
जवाब देंहटाएंअरे अतुल कुछ महीने पहले की बात है। अगली बार कभी घाट पर आना हुआ तो आपका तबला वादन जरूर सुनेंगे और संगीत के सच्चे सेवक तो आप लोग हैं। मैं तो सिर्फ एक सुधी श्रोता का फर्ज अदा करने का प्रयास भर कर रहा हूँ।
हटाएंबहुत बढ़िया रेखाचित्र मनीष
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी !
हटाएंKabhi ye meri fav jagah hua karti thi.. aapne bahut achha likha hai aur tasveerein bhi bahut sundar hain.. loved this piece..
जवाब देंहटाएंअच्छा ! जानकर खुशी हुई।
हटाएंAmazing Post!
जवाब देंहटाएंThx Sunita jee !
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