पिछड़े हफ्ते आपसे वादा तो था जैसलमेर में स्थित पटवों की हवेली में घुमाने का पर वार्षिक संगीतमाला की व्यस्तताओं की वज़ह से वो आलेख पूरा ना कर सका। इसी वज़ह से आज आपको लेकर आया हूँ गडसीसर झील के नौका विहार पर। रेलवे स्टेशन से मात्र दो किमी दूरी पर स्थित इस त्रिभुजाकार झील को जैसलमेर के महारावल गडसी ने पीने के पानी के स्रोत के तौर पर बनवाया था। फोटोग्राफी पसंद करने वाले लोगों के लिए ये एक आदर्श जगह है। सूर्योदय या फिर सूर्यास्त के समय इस झील और इसके आस पास के इलाकों का सौंदर्य देखते ही बनता है। सूर्योदय के समय तो मैं जैसलमेर के किले में चला गया था इसलिए दिन ढ़लते ही हम चार बजते बजते झील के किनारे पहुँच चुके थे।
नीली जमीं और नीला आसमां देखो ले आया है मुझे कहाँ !
गड़सीसर रोड से झील की ओर जो रास्ता जाता है वो टिलन के द्वार पर खत्म होता है। रास्ते में कारीगर राजस्थानी हस्तकला के कई नमूने बेचते हुए दिख जाएँगे। जब हम झील के पास पहुँचे तो चारों ओर निखरी तेज धूप की वज़ह से वहाँ काफी शांति थी। नौका विहार पाँच बजे से पहले शुरु नहीं होता। लिहाज़ा हम झील के किनारे ही चहलकदमी करने लगे। झील के किनारे किनारे काफी दूर तक सीढ़ियाँ बनी हैं। झील के अंदर भी कुछ छतरियाँ और उनसे जुड़े चबूतरे हैं जिनका प्रयोग संभवतः विशेष आयोजनों के समय किया जाता रहा होगा। हर छतरी की छत के कोने कोने पर कबूतरों ने कब्जा जमा रखा था।
मुझे मालूम है उनका ठिकाना फिर कहाँ होगा परिंदा आसमां छूने से जब नाकाम हो जाए...
पानी का स्रोत होने के कारण इसके किनारों पर समय के साथ कई छोटे बड़े मंदिरों और अन्य इमारतों का निर्माण हो गया। आज झील का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। पर्यटकों की वज़ह से आज इस झील में काफी मछलियाँ हो गयी हैं। झील के किनारे ही मछलियों के खाने की सामग्री बिकती है। खाने की कोई वस्तु पानी में डालते ही सैकड़ों मछकियों का झुंड एक साथ उन पर लपकता है और ये दृश्य देखने लायक होता है। पर गर्मी के दिनों में मछलियों के मरने से सरोवर में गंदगी भी फैलती है।
झील के किनारे घाट ,मंदिर जाती वो बाट
झील में काम करने वाले ये नाविकों के लिए ये कुछ ही महिनों का रोज़गार है। बारिश ना होने की शक्ल में ये झील सूखने लगती है और गर्मियों में वैसे भी कौन जैसलमेर की तपती दुपहरियों का सामना करने यहाँ आना चाहेगा ?
कान में बाली और ABCD... है ना कुछ बात जुदा हमारे इस खवैया की
जैसे जैसे घड़ी की सुइयाँ आगे की ओर बढ़ने लगीं, मंदिर और छतरियों पर पड़ती धूप गहरे सुनहरे रंग का रूप लेती गई। रंगों में ये परिवर्तन कैसे हुआ देखिए मेरे कैमरे की नज़र से..
झील की गहन शांति में अपने आप को एकाकार करती एक विदेशी पर्यटक
पानी पर बनती परछाइयाँ
ढलती सूर्य किरणें ने बख्शा है इस छतरी को सुनहरी आभा से..
टिलन के द्वार के ठीक दूसरी तरफ़ हरे भरे मैदानों के बीच खड़ा एक पेड़
विदा लेती सूर्य किरणें और चाँद की उभरती बिंदी
गड़सीसर झील की ये सुनहरी संध्या आप को कैसी लगी बताना ना भूलिएगा। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
प्रकृति के आकार में रचा बसा परिवेश।
जवाब देंहटाएंbeen jaiselmer twice but never visited gadisar lake. shall go there on next road trip to the golden sand dunes :)
जवाब देंहटाएंreally nice pictorial post.
Defiant Princess
www.khanvibes.com
Its a must visit for persons like u who love nature and want to capture its beauty in camera.
हटाएंवैसे शुक्रिया यहाँ पधारने का 'राजकुमारी' जी :)
Sarfrosh film me bhi aap gadisar jheel ko dekh skte h. Atisunder varnan.Aapke dono blog meri antarjal padhaniy samgri me pratham paydan par rahate h. Aapka bahut bahut aabhar hamari baudhik bhukh mitane ke liye.
जवाब देंहटाएंअनिल शुक्रिया आपके इन प्यार भरे शब्दों का..!
हटाएंanil ji.....you told my words.....
हटाएंमनीष जी असल में ये झील और आस-पास का माहौल बेहद वीराना और उदास है । कोई जगह खूबसूरत इसलिए लगती है कि आपके अपने पास में होते हैं । दुनिया की सबसे सुन्दर जगहें भी अकेले बकवास लगती हैं और साधारण जगहें अपनों के साथ सबसे सुन्दर । वैसे एक नई जगह की सैर कराने के लिए धन्यवाद , उत्तम पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंही कह रहे हैं मुनीश..अकेले सफ़र कभी किया नहीं हर वक़्त दोस्तों और परिवार का साथ रहा है। पर किसी जगह की वीरानियत मे खूबसूरत प्रकृति का साथ मुझे चुंबक की तरह खींचता है और अपनों का साथ होते हुए भी मैं उन पलों में उस माहौल में इस क़दर डूबा पाता हूँ कि मुझे उस वक़्त किसी से बात करने की इच्छा नहीं होती।बस इन पंक्तियों की सी गूँज उस उदास माहौल में दिल के भीतर चलती रहती है
हटाएंटेरता मानो विजन है
और तन मन में अगन है
नयन में सपना सजा है
दर्द भी लगता सगा है..
ये अच्छी बात है । मैंने तो अक्सर अकेले ही किया है इसलिए जानता हूँ अन्तर । आप हमेशा सबके साथ चलते रहें ऐसी ही मेरी कामना है ।
हटाएंयादें अभी ताज़ा ही थीं, और भी ताज़ा हो गईं :):)
जवाब देंहटाएंHaven't been to Jaisalmer, let alone this beautiful lake. :(
जवाब देंहटाएंYour pictures tell a a different tale, I don't think ye utni veerani jagah hai.
Mujhe sabse achhi photo lagi us boatman ki. :-)
नवंबर के महिने में जब मैं यहाँ गया था तो मुट्ठी भर पर्यटक ही यहाँ थे। सूरज की ढ़लती रोशनी में चुपचाप बैठ कर ढलती धूप को छतरियों और पाटों पर पसरते देखना मन को अजीब सी शति से भर देता है। ये शांति किसी के मन में आध्यात्मिक, रूमानियत या उदासी की भावनाएँ उत्पन्न कर दे ये तो व्यक्ति की मनःस्थिति पर निर्भर करता है। क्यूँ है ना निशा जी?
हटाएंवाह चित्रों की तो छटा ही निराली है. मैं जैसलमेर 3 बार गया हूं पर आपके कैमरे से इसे देखन कुछ अलग ही है.
जवाब देंहटाएंकहते हैं सूर्योदय और सूर्यास्त का समय इस झील में नौका विहार के लिए सबसे उत्तम होता है। मैं सूर्यास्त के थोड़ा पहले पहुँचा..खुशनसीब था कि नीला आसमान मिला जिसकी वज़ह से अच्छी तसवीरें ले पाया।
हटाएंआपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (3 से 9 जनवरी, 2014) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
हार्दिक आभार !
हटाएंगजब.;बहुत ही खूबसूरत वर्णण है
जवाब देंहटाएंThis is amazing! 😍
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