जैसा कि पिछली प्रविष्टि में आपको बताया था कि हम जैसलमेर से सटे थार रेगिस्तान में अपनी शाम बिताकर वापस शहर लौट गए थे। हमारा होटल किले की ओर जाती सड़क पर था। रात को सोने के पहले ही मैंने ये योजना बना ली थी कि सुबह सूरज की पहली किरण किले पर पड़ने के बाद तुरंत किले की सैर के लिए चल पड़ेंगे। सूर्योदय के पहले ही होटल की बॉलकोनी से मैं अपना कैमरा ले कर तैयार था। सूर्योदय के बाद अपने कैमरे से नवंबर के गहरे नीले आसमान की छत के नीचे फैले इस विशाल किले की जो पहली छवि क़ैद की वो आपके सामने है।
वैस पीले चूनापत्थरों से बने इस किले का रंग सूर्यास्त के ठीक पहले की रोशनी में बिल्कुल सुनहरा हो जाता है और इसलिए लोग इसे सोनार किले के नाम से पुकारते हैं। फिल्मों में रुचि रखने वाले लोगों के लिए ये जानना रुचिकर रहेगा कि निर्देशक सत्यजित रे ने इसी नाम से एक बाँग्ला थ्रिलर भी बनाई थी जिसमें इस किले को बड़ी खूबसूरती से फिल्मांकित किया गया था। जैसलमेर के त्रिकूट पर्वत पर 76 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस किले का निर्माण भाटी राजा राव जैसल ने 1156 ई में करवाया था। सोनार किले का अनूठापन इस बात में है कि ये दुनिया के उन चुनिंदे किलों में से एक है जिसमें लोग निवास करते हैं। राजपूत राज तो अब नहीं रहा पर राजाओं द्वारा बसाए गए पुष्करणा ब्राह्मणों और जैनों की बाद की पीढ़ियाँ आज भी इस किले को आबाद किए हुए हैं।
किले की विशालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी बाहरी दीवार का घेरा पाँच किमी लंबा है और इसकी दीवारें 2-3 मीटर मोटी और 3-5 मीटर ऊँची है। किले की लंबी सर्पीली दोहरी प्राचीर के मध्य 2-3 मीटर चौड़ा रास्ता है जिसमें सैनिक गश्त के लिए घूमा करते थे। किले का परकोटा 99 बुर्जियों और छज्जेदार अटारियों द्वारा सुसज्जित है। मजे की बात ये है कि बिना सीमेंट और गारे के पत्थरों को आपस में फँसाकर किले और उसकी अंदर की इमारतों को बनाया गया है ।
होटल से निकल कर हम किले के मुख्य दरवाजे सूरज पोल की ओर बढ़ने लगे। उस वक़्त सुबह के साढ़े सात बज रहे थे। किले में लोगों की आवाजाही शुरु हो चुकी थी। सूरज पोल से अंदर घुसते चौड़ पत्थरों से बनी सड़कें दिखने लगती हैं। सुबह के वक़्त तो ये सड़के सूनी रहती हैं पर शाम को इन सड़कों के किनारे बने चबूतरें और दीवारें राजस्थानी शिल्प और वस्त्रों की दुकानों में तब्दील हो जाती हैं। ऊपर बढ़ते बढ़ते हम किले के दूसरे दरवाजे गणेश पोल के सामने आ गए ।
गणेश पोल से राजा के मुख्य महल तक जाने के बीच एक और द्वार पड़ता है जिसे हवा पोल के नाम से जाना जाता है। किले के चार दरवाजों में ये दरवाजा इसके ठीक ऊपर बने रंग महल के खूबसूरत छज्जों और मेहराबों की वज़ह से बिल्कुल अलग सा दिखता है। कहते हैं कि किले के इस हिस्से को राजा मूलराज द्वितीय ने अठारहवीं शताब्दी में बनाया था।
पर जैसलमेर किले के अंदर की सबसे खूबसूरत इमारत है महारावल का महल जिसे मेघ दरबार या बादल महल भी कहा जाता है। चित्र में आप सात मंजिली इमारत के सिर्फ ऊपर का हिस्सा देख रहे हैं। आज इसे म्यूजियम में परिवर्तित कर दिया गया है। चूँकि इसके खुलने का समय नौ बजे का था हम इस इमारत के अंदर नहीं जा सके। महारावल के महल के ठीक आगे एक चौक है जिसे आप किले का केंद्र मान सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि तेरहवीं शताब्दी में अलाउद्दिन खिलजी ने जब किले की घेराबंदी कर इसे फतह किया था तो राजपूत महिलाओं ने दुश्मन के हाथों से बचने के लिए यहीं अपनी आहुति दी थी।
चौक से ही एक पतली गली किले में स्थित जैन मंदिर समूह की ओर जाती है। गली में आम घर तो हैं ही, विदेशियों को आकर्षित करते छोटे बड़े होटल भी हैं। किले का किस कदर व्यावसायीकरण हो चुका है ये आपको दीवारों पर लिखे टैक्सी के विज्ञापनों और गली में लहराते रिकमेन्डेड बाई लोनली प्लैनेट (Recommended by Lonely Planet) के बैनरों से समझ आ जाएगा।
पाँच दस मिनटों तक एक गली से दूसरी गली का चक्कर लगाते हुए जब मैं जैन मंदिर के पास पहुँचा तो एक क्षण विश्वास ही नहीं हुआ कि इन संकरी टेढ़ी मेढ़ी गलियों के बीच कोई इतना खूबसूरत मंदिर हो सकता है।
मंदिर की शानदर छत पर की गई नक्काशी हो या फिर दीवारों पर रचे गए ये अद्भुत
रूप, मंदिर का कोना कोना आपको तसवीरें लेने पर मजबूर करता है। पाँचवे और बाइसवें जैन तीर्थांकरों को समर्पित इन मंदिरों को बारहवीं से सोलहवीं शताब्दी के बीच बनाया गया है।
जनसंख्या के बढ़ते दबाव का असर किले पर दिखने लगा है। त्रिकूट पर्वत की चट्टानों से रिसते पानी की वज़ह से किले की नींव जगह जगह जर्जर हो गई है। इसका प्रभाव किले की कई इमारतों पर दिखने लगा है जो टूटने की कगार पर हैं। इसके आलावा इलाके में भूकंपीय क्रियाशीलता भी चिंता का एक विषय है। देखना ये है कि हम इन खतरों से चेत कर हम किस तरह अपनी इस अनमोल धरोहर को सुरक्षित रख पाते हैं?
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
kya baat
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंshukriya !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंLast ki nakkashi wali photo pata nahi kyon mujhe Ganpatipule ke mandir ki yaad dila rahi hain. Bahut badhiya.
जवाब देंहटाएंनिशा गणपतिपूले के उस मंदिर में तो मैं भी गया हूँ वहाँ ईंट के रंग के पत्थरों पर विभिन्न मुद्राओं में गणपति व अन्य आकृतियाँ उकेरी गयी हैं जबकि राजस्थान के जैन मंदिरों में हल्के रंग के पत्थरों का प्रयोग जैन मंदिरों में आम है।
हटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएं