Pages

शनिवार, 9 नवंबर 2013

पटना की नई पहचान बन रही है राजधानी वाटिका ! (Rajdhani Vatika, Patna)

पिछले हफ्ते दीपावली में पटना जाना हुआ। यूँ तो पटना में अक्सर ज्यादा वक़्त नाते रिश्तेदारों से मिलने में ही निकल जाता है पर इस बार दीपों के इस उल्लासमय पर्व को मनाने के बाद एक दिन का समय खाली मिला। पता चला कि विगत दो सालों से पटना के आकर्षण में राजधानी वाटिका और बुद्ध स्मृति उद्यान भी जुड़ गए हैं तो लगा क्यूँ ना इन तीन चार घंटों का इस्तेमाल इन्हें देखने में किया जाए। 

स्ट्रैंड रोड पर पुराने सचिवालय के पास बनी राजधानी वाटिका में पहुँचने में मुझे घर से आधे घंटे का वक़्त लगा। दिन के तीन बजे के हिसाब से वहाँ अच्छी खासी चहल पहल थी। दीपावली के बाद की गुनगुनी धूप भी इसका कारण थी। वैसे भी इस चहल पहल का खासा हिस्सा भारत के अमूमन हर शहर की तरह वैसे प्रेमी युगलों का रहता है जिन्हें शहर की भीड़ भाड़ में एकांत नसीब नहीं हो पाता। वैसे तो यहाँ टिकट की दर पाँच रुपये प्रति व्यक्ति है पर कैमरा ले जाओ तो पचास रुपये की चपत लग जाती है। वैसे जब मैंने टिकट घर में कैमरे का टिकट माँगा तो अंदर से सवाल आया कि कैसे फोटो खींचिएगा शौकिया या..। अब अपने आप को प्रोफेशनल फोटोग्राफर की श्रेणी में मैंने कभी नहीं रखा पर मुझे लगा कि उसके इस प्रश्न का मतलब मोबाइल कैमराधारियों से होगा । सो मैंने टिकट ले लिया वो अलग बात थी कि कैमरे की बैटरी पार्क में घुसते ही जवाब दे गई और मुझे सारे चित्र मोबाइल से ही लेने पड़े।

दो साल पहले यानि 2011 में जब इस वाटिका का निर्माण हुआ तो उसका उद्देश्य 'पटना का फेफड़ा' कहे जाने वाले संजय गाँधी जैविक उद्यान पर पड़ रहे आंगुतकों के भारी बोझ को ध्यान में रखते हुए एक खूबसूरत विकल्प देना था। इस जगह की पहचान सिर्फ एक वाटिका की ना रहे इसलिए पार्क के साथ साथ इसके एक हिस्से में बिहार से जुड़े नामी शिल्पियों के खूबसूरत शिल्प रखे गए। वहीं इसके दूसरे भाग में वैसे पेड़ो को तरज़ीह दी गई जिनका जुड़ाव हमारे राशि चिन्हों या धार्मिक संकेतों के रूप में होता है। तो आज की इस सैर में सबसे पहले आपको लिए चलते हैं इस वाटिका के सबसे लोकप्रिय शिल्प कैक्टस स्मृति के पास।


कैक्टस जैसे दिखने वाले इस शिल्प की खास बात ये है कि इसे रोजमर्रा काम में आने वाले स्टेनलेस स्टील के बर्तनों जैसे कटोरी,चम्मच, गिलास, टिफिन आदि से जोड़ कर बनाया गया है। इसे बनाने वाले शिल्पी हैं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिल्पकार सुबोध गुप्ता जिनका ताल्लुक पटना के खगौल इलाके से रहा है। 26 फीट ऊँचे और 2 टन भारी इस कैक्टस में गुप्ता बिहार के जीवट लोगों का प्रतिबिंब देखते हैं जो बिहार के काले दिनों में भी अपने अस्तित्व को बचाने में सफलतापूर्वक संघर्षरत रहे।



शिल्पकार गुप्ता ने कैक्टस की लंबी बेलनाकार शाखाओं के आलावा इस शिल्प में लाल रंग की दो गोलाकार आकृतियाँ बनाई हैं जो कैक्टस के फूलों को इंगित करती हैं। फूलों के ये हिस्से बिहार के नव निर्माण की उस प्रक्रिया की ओर इशारा करते हैं जिसने पिछले कुछ सालों में बिहार को पुनः विकास की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया है।


राजधानी वाटिका का दूसरा सबसे सुंदर शिल्प मुझे राजा शैलेश का लगा। वैसे सच कहूँ तो इतिहास में रुचि होने के बावज़ूद दुसाधों के इस नृप का नाम मैंने पहली बार इस वाटिका में ही देखा। इस शिल्प को बनाया है रजत कुमार घोष ने जो सुबोध गुप्ता की ही तरह पटना के कला और शिल्प महाविद्यालय के पुराने छात्र रहे हैं। घोष की रुचि सदा से उन आंचलिक क्षत्रपों के बारे में जानने समझने की रही है जिन्होंने अपने समाज का चेहरा बदलने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। घोष को बिहार के मिथिला इलाके से जुड़े दुसाध राज शैलेश के बारे में मणि पद्मा की लिखी किताब से पता चला और तभी उन्होंने उनका शिल्प बनाने का निश्चय किया। 



आठ टन इस्पात से बनाए गए इस सुनहरे शिल्प में राजा शैलेश को एक आक्रामक जंगली जीव की सवारी करता हुआ दिखाया गया है।



बिहार की प्राचीन संस्कृति और शिक्षा के अमूल्य धरोहर का प्रतीक नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर माने जाते हैं। नालंदा के इन खंडहरों और उस काल के चिन्हों को भी राजधानी वाटिका में स्थान मिला हुआ है।

उद्यान में नालंदा के इस कोने को विकसित किया है हालैंड की प्रसिद्ध शिल्पकार डायना हेगेन (Diana Hagan) और संजीव कुमार सिन्हा ने।

 

वैसे उद्यान में घुसते ही सबसे पहले आपकी नज़र जाएगी इन हँसते मुस्कुराते हुए होठों की तरफ। चार भागों में बँटे इस शिल्प में विभिन्न धर्मों द्वारा पूजा करते समय नीचे की ओर हाथ की अलग अलग भंगिमाएँ दिखाई गई हैं जबकि ऊपर मुस्कराते होठ चारों तरफ ही हैं।

दूर से इस को देखने से ऍसा प्रतीत होता है कि शिल्प कह रहा हो कि इबादत का तरीका भले अलग हो उससे प्रसन्न होने वाला एक ही है।

ये तो हुई शिल्पों की बात पर राजधानी वाटिका का दूसरा हिस्सा भी उतना ही खूबसूरत है।  राजधानी वाटिका के दूसरे हिस्से में ले चलेंगे आपको अगली प्रविष्टि में.. 

अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

मुसाफ़िर हूँ यारों पर पटना से जुड़े आलेख

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर । विश्वास नहीं होता कि इतने सुन्दर बाग वाले राज्य का मुख्यमंत्री बम धमाकों के बाद किसी तरह का अफ़सोस ज़ाहिर करने की बजाय कह रहा था कि देश की आधी आइसक्रीम गुजराती खा जाते हैं । बहरहाल ये बाग कुछ कुछ चंडीगढ़ के सुंदर उद्यानों की याद दिला रहा है और आधुनिक कला के नमूने भी बेजोड़ हैं ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हाँ, बिहार से जुड़े कलाकारों को अपनी कला को प्रदर्शित करने का अच्छा अवसर दिया है इस उद्यान के माध्यम से सरकार ने।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सही कह रहे हैं अर्जुन सिर्फ उन्हें उचित मौके देने की जरूरत है।

      हटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर.. मौका मिला तो इस बाग को जरूर देखना चाहूँगा..
    :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. राँची के नक्षत्र वन से प्रेरणा लेते हुए ये उससे बहुत बेहतर ढंग से बनाया गया है।

      हटाएं
  4. अरे वाह मैं तो अब तक इस उद्दान से बिल्कुल अनजान ही था । अबकि बार पटना गया तो जरूर देखना चाहूंगा जी । फ़ोटो और जानकारियां साझा करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मनीष जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जरूर देखिए! पटना में हाल फिलहाल में वैसे तो बुद्ध स्मृति पार्क भी बनाया गया है पर उसकी तुलना में ये उद्यान एक बड़े हरे भरे इलाके में फैला हुआ है और ज्यादा विविधता लिए हुए है।

      हटाएं
  5. Basheer Ahmed Khanदिसंबर 12, 2013

    Thanks Manishjee. It is nice to hear such comments about the park. As one of the persons connected with the development of the park I feel happy when I see the park being visited by large number of people and comments like yours only add to the feeling of happiness.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. निश्चय ही पटना की मिट्टी से जुड़े लोगों के लिए यह वाटिका एक खूबसूरत तोहफा है। जानकर खुशी हुई कि आपका भी इस पार्क के विकास में योगदान रहा है। ये पार्क भविष्य में अपने अंदर और खूबसूरती समेटे मेरी शुभकामना है।

      वैसे एक सुझाव ये कि इस पार्क में प्रवेश का टिकट तो बेहद कम है जबकि कैमरे को ले जाने का टिकट जरूरत से ज्यादा। इसे व्यावहरिक करने की जरूरत है ताकि ना केवल लोग इस उद्यान की खूबसूरती का आनंद उठाएँ बल्कि उसकी सुंदरता को वहाँ खींचे गए चित्रों से बाँटें।

      हटाएं