ढाई दिनों के तोक्यो प्रवास में मैंने तोक्यो महानगर का जितना हिस्सा देखा वो तो आपको भी दिखा दिया। वैसे तो तोक्यो जैसे विशाल शहर को देखने के लिए महिनों और समझने के लिए वर्षों लगेंगे पर एक बात तो तोक्यो में पाँव रखने के कुछ घंटों में ही मेरे पल्ले पड़ गई कि अगर इस शहर में घूमना है तो सबसे पहले आपको इसके जबरदस्त रेल नेटवर्क को समझना होगा। वैसे तो तोक्यो आने से पहले मैं Kitakyushu के रेल नेटवर्क पर कई बार सफ़र कर चुका था पर तोक्यो आने के कुछ घंटों में पहली बार जब इस नेटवर्क की वृहदता का सामना हुआ तो पहले का सँजोया आत्मविश्वास जाता रहा ।
जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था कि Kitakyushu से तोक्यो पहुँचते पहुँचते शाम हो गई थी। अगले दो दिनों का कार्यक्रम इतना कसा हुआ था कि अगर किसी से मिलना हो तो यहीं समय इस्तेमाल किया जा सकता था। मुनीश भाई से फोन नंबर तो लिया था पर ऐन वक़्त पर संपर्क ना हो सका। तोक्यो में एक करीबी रिश्तेदार के यहाँ जाना भी अनिवार्य था तो उन्हें आफिस से सीधे अपने हॉस्टल बुला लिया। अपने पास के स्टेशन से उनके स्टेशन तक पहुँचने के लिए हमने चार बार ट्रेनें बदलीं और वो भी बिना विराम के। यानि एक ट्रेन से उतरे, दूसरी का टिकट लिया और लो ट्रेन आ भी गई। यात्रा कै दौरान वो मुझे समझाते रहे ताकि मैं उसी मार्ग से अकेले वापस आ सकूँ। पर तीसरी ट्रेन बदलने के बाद मेरे चेहरे के भावों से उन्होंने समझ लिया कि ये इनके बस का नहीं है। सो कुछ घंटों के बाद जब मैं वापस लौटा तो उन्हें मेरे स्टेशन तक साथ ही आना पड़ा।
वैसे तो तोक्यो के रेल नेटवर्क में विभिन्न स्टेशनों पर अंग्रेजी जानने वाले लोगों को ध्यान में रखकर सारे चिन्ह जापानी के आलावा अंग्रेजी में भी प्रदर्शित किए गए हैं पर मुख्य मुद्दा भाषा का नहीं पर उस वृहद स्तर का है जिसको देख भारत जैसे देश से आया कोई यात्री सकपका जाता है। मिसाल के तौर पर नीचे का दिया गया मानचित्र देखिए। जापान से संबंधित हर यात्रा पुस्तक में आपको सबसे पहले इसके दर्शन होते हैं और इसकी सघनता देख मानचित्रों में खास रुचि रखने वाले मेरे जैसे व्यक्ति के भी पसीने छूट गए थे।।
झटका तब और लगता है जब ये पता चलता है कि कुछ निजी कंपनियों के स्टेशन तो इसमें दिखाए ही नहीं गए हैं। दुर्भाग्य से मेरे हॉस्टल के पास का स्टेशन भी उसी श्रेणी में था।
भारतीय रेल की समय सारणी से माथा पच्ची के दौरान कभी ना कभी आप भी परेशान हुए होंगे। मेरे लिए पहली ताज्जुब की बात ये थी कि तोक्यो में लगभग दर्जन भर निजी कंपनियाँ अपनी अलग अलग ट्रेन चलाती हैं। और तो और अगर आप शिंजुकु और शिबूया जैसे बड़े स्टेशनों पर पहुँच गए तो आपको पता चलेगा कि एक ही जगह पर चार अलग अलग स्टेशन हैं। जापानियों ने जमीन को कितना खोदा है ये इसी से समझिए कि एक बार जिस स्टेशन पर मैं उतरा उसके दो निचले तल्लों पर दो दूसरे और एक स्टेशन उसके ऊपरी तल्लों पर था। अगर आपको कहीं जाना हो तो पहले स्टेशन पर दिए हुए चार्ट या मानचित्र से अपना रास्ता पता कीजिए। फिर ये देखिए कि आप जिस स्टेशन पर हैं उसे चलाने वाली रेल कंपनी की ट्रेन सीधे उस स्टेशन तक जाती है या नहीं और अगर नहीं तो किस स्टेशन पर उतरकर आपको दूसरी रेल कंपनी की गाड़ी पकड़नी है? तोक्यो में हम जितने दिन रहे ऊपर के प्रश्न का जवाब अपने हॉस्टल के सहायता कक्ष से ले लेते थे। एक बार आपकी ये समस्या दूर हो जाए तो समझिए पचास प्रतिशत काम हो गया।
स्टेशन पर टिकट खरीदने की प्रक्रिया शायद विदेशों में कमोबेश एक जैसी ही है। ऍसा मुझे तोक्यो के बाद पिछले हफ्ते बैंकाक की Sky Train पर यात्रा करने के बाद महसूस हुआ। एक बार गन्तव्य स्टेशन का किराया पता लग जाए तो आप वहाँ की मुद्रा टिकट मशीन में डालिए। तोक्यो आने से पहले तक हम अधिकतर टिकट आफिस में जाकर ही टिकट खरीद लेते थे। मशीन का प्रयोग करने से कतराने का कारण भारतीय मानसिकता थी। हम लोगों के दिमाग में होता कि अगर ज्यादा पैसे डाले और बाकी के बचे पैसे बाहर नहीं आए तब क्या होगा? पर तोक्यो में वो विकल्प ही नहीं था। मशीन में पहले किराया निश्चित करना होता था और फिर एक एक कर के पैसे डालने होते थे जैसे ही किराये से डाले गए पैसे बढ़ जाते छनाक की आवाज़ के साथ बाकी पैसों के साथ टिकट निकल आता और मजाल है कि आपका पैसा कभी मशीन में फँसा रह जाए।
हाँ ये जरूर है कि मँहगी जगह होने के कारण उस वक्त तोक्यो में किसी भी स्टेशन का न्यूनतम भाड़ा चाहे वो पाँच किमी की दूरी पर ही क्यूँ ना हो सौ रुपये से कम नहीं था। बैकांक में ये दर पचास साठ रुपये के पास थी। वैसे तोक्यो में अन्य महानगरों की तरह विदेशी नागरिक हजार येन का टिकट ले कर मेट्रों से शहर के भीतर कहीं आ जा सकते हैं। एक बार टिकट लेने के बाद इंगित चिन्हों और सूचना पट्ट पर आती जानकारी से अपने प्लेटफार्म पर पहुँचना कोई मुश्किल बात नहीं थी। तोक्यो में प्लेटफार्म पर पहँचने के बाद ट्रेन के लिए कभी पाँच मिनटों से ज्यादा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। पर हाँ प्लेटफार्म पर ये नहीं कि आप जहाँ मर्जी खड़े रहें। चाहे भीड़ हो या नहीं आपको दरवाजा खुलने की जगह पर पंक्ति बना कर खड़ा रहना है। उतरने वालों की प्रतीक्षा करनी है और फिर पंक्ति के साथ अंदर घुसना है। अगर आपको ये लग रहा हो कि जापान की मेट्रो में हमारे मुंबई महानगर में दौड़ने वाली मेट्रो से कम भीड़ होती होगी तो आप का भ्रम अभी दूर किए देते हैं। कार्यालय के समय में इन डिब्बों में तिल धरने की भी जगह नहीं होती पर फिर भी हर स्टेशन पर बिना किसी हल्ले गुल्ले के लोगों का चढ़ना उतरना ज़ारी रहता है।
तोक्यो का सरकारी पर्यटन केंद्र शिंजुकु इलाके में हैं जहाँ से तोक्यो के विभिन्न हिस्सों के लिए टूर कराए जाते हैं। ट्रेन से पहले आपको आपके गन्तव्य स्टेशन के पास ले जाया जाता है और फिर वहाँ से एक या दो गाइड आपको उसके आस पास के इलाके पैदल घुमाते हैं। बस भी यहीं काम करती हैं पर वे अपेक्षाकृत मँहगी है। अब दो से तीन हजार रुपये का चूना लगवाने के बजाए अगर आप ट्रेन टिकट खरीदकर और फिर लोगों से पूछते हुए अपने गन्तव्य तक पहुँच जाएँ तो जेब भी हल्की नहीं होगी और अपने समय का अपनी इच्छा से उपयोग करने की भी सुविधा रहेगी। हमारे समूह ने तो यही किया । तोक्यो में बिताए साठ घंटों में अलग अलग कंपनियों की ट्रेनों में सवार होकर मैं आपको Shinjuku, Roppongi Hills, Akihabara, Asakusa, Sky Tree और Tokyo Tower जैसी जगहें दिखा सका। वैसे तोक्यो के रेल मानचित्र में ये जगहें कितनी दूर हैं वो यहाँ देखिए।
वेसे इन स्टेशनों से निकलकर बाहर सड़क पर आने के लिए कभी कभी आपको दो सौ से चार सौ मीटर दूरी तय करनी पड़ सकती है। पर घबराइए नहीं रास्ते के दोनों ओर सजी दुकानें आपको ये अहसास ही नहीं होने देंगी कि आप स्टेशन से निकल रहे हैं। तोक्यो के रेल नेटवर्क की इतनी बात हो और शिनकानसेन (Shinkansen) यानि बुलेट ट्रेन का जिक्र नहीं आए ये कैसे हो सकता है? तोक्यो से अपने अगले गन्तव्य क्योटो तक पहुँचने के लिए हमें इसकी ही मदद लेनी पड़ी और इसी वज़ह से हमें तोक्यो के मुख्य स्टेशन के दर्शन हो गए जहाँ से ये ट्रेन चलती है।
जापान की यात्रा को कुछ दिनों के लिए यहीं विराम देते हुए मैं आपको अगली कुछ प्रविष्टियों में ले चलूँगा राजस्थान के जैसलमेर और बीकानेर की यात्रा पर। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ
भारतीय रेल की समय सारणी से माथा पच्ची के दौरान कभी ना कभी आप भी परेशान हुए होंगे। मेरे लिए पहली ताज्जुब की बात ये थी कि तोक्यो में लगभग दर्जन भर निजी कंपनियाँ अपनी अलग अलग ट्रेन चलाती हैं। और तो और अगर आप शिंजुकु और शिबूया जैसे बड़े स्टेशनों पर पहुँच गए तो आपको पता चलेगा कि एक ही जगह पर चार अलग अलग स्टेशन हैं। जापानियों ने जमीन को कितना खोदा है ये इसी से समझिए कि एक बार जिस स्टेशन पर मैं उतरा उसके दो निचले तल्लों पर दो दूसरे और एक स्टेशन उसके ऊपरी तल्लों पर था। अगर आपको कहीं जाना हो तो पहले स्टेशन पर दिए हुए चार्ट या मानचित्र से अपना रास्ता पता कीजिए। फिर ये देखिए कि आप जिस स्टेशन पर हैं उसे चलाने वाली रेल कंपनी की ट्रेन सीधे उस स्टेशन तक जाती है या नहीं और अगर नहीं तो किस स्टेशन पर उतरकर आपको दूसरी रेल कंपनी की गाड़ी पकड़नी है? तोक्यो में हम जितने दिन रहे ऊपर के प्रश्न का जवाब अपने हॉस्टल के सहायता कक्ष से ले लेते थे। एक बार आपकी ये समस्या दूर हो जाए तो समझिए पचास प्रतिशत काम हो गया।
स्टेशन पर टिकट खरीदने की प्रक्रिया शायद विदेशों में कमोबेश एक जैसी ही है। ऍसा मुझे तोक्यो के बाद पिछले हफ्ते बैंकाक की Sky Train पर यात्रा करने के बाद महसूस हुआ। एक बार गन्तव्य स्टेशन का किराया पता लग जाए तो आप वहाँ की मुद्रा टिकट मशीन में डालिए। तोक्यो आने से पहले तक हम अधिकतर टिकट आफिस में जाकर ही टिकट खरीद लेते थे। मशीन का प्रयोग करने से कतराने का कारण भारतीय मानसिकता थी। हम लोगों के दिमाग में होता कि अगर ज्यादा पैसे डाले और बाकी के बचे पैसे बाहर नहीं आए तब क्या होगा? पर तोक्यो में वो विकल्प ही नहीं था। मशीन में पहले किराया निश्चित करना होता था और फिर एक एक कर के पैसे डालने होते थे जैसे ही किराये से डाले गए पैसे बढ़ जाते छनाक की आवाज़ के साथ बाकी पैसों के साथ टिकट निकल आता और मजाल है कि आपका पैसा कभी मशीन में फँसा रह जाए।
हाँ ये जरूर है कि मँहगी जगह होने के कारण उस वक्त तोक्यो में किसी भी स्टेशन का न्यूनतम भाड़ा चाहे वो पाँच किमी की दूरी पर ही क्यूँ ना हो सौ रुपये से कम नहीं था। बैकांक में ये दर पचास साठ रुपये के पास थी। वैसे तोक्यो में अन्य महानगरों की तरह विदेशी नागरिक हजार येन का टिकट ले कर मेट्रों से शहर के भीतर कहीं आ जा सकते हैं। एक बार टिकट लेने के बाद इंगित चिन्हों और सूचना पट्ट पर आती जानकारी से अपने प्लेटफार्म पर पहुँचना कोई मुश्किल बात नहीं थी। तोक्यो में प्लेटफार्म पर पहँचने के बाद ट्रेन के लिए कभी पाँच मिनटों से ज्यादा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। पर हाँ प्लेटफार्म पर ये नहीं कि आप जहाँ मर्जी खड़े रहें। चाहे भीड़ हो या नहीं आपको दरवाजा खुलने की जगह पर पंक्ति बना कर खड़ा रहना है। उतरने वालों की प्रतीक्षा करनी है और फिर पंक्ति के साथ अंदर घुसना है। अगर आपको ये लग रहा हो कि जापान की मेट्रो में हमारे मुंबई महानगर में दौड़ने वाली मेट्रो से कम भीड़ होती होगी तो आप का भ्रम अभी दूर किए देते हैं। कार्यालय के समय में इन डिब्बों में तिल धरने की भी जगह नहीं होती पर फिर भी हर स्टेशन पर बिना किसी हल्ले गुल्ले के लोगों का चढ़ना उतरना ज़ारी रहता है।
तोक्यो का सरकारी पर्यटन केंद्र शिंजुकु इलाके में हैं जहाँ से तोक्यो के विभिन्न हिस्सों के लिए टूर कराए जाते हैं। ट्रेन से पहले आपको आपके गन्तव्य स्टेशन के पास ले जाया जाता है और फिर वहाँ से एक या दो गाइड आपको उसके आस पास के इलाके पैदल घुमाते हैं। बस भी यहीं काम करती हैं पर वे अपेक्षाकृत मँहगी है। अब दो से तीन हजार रुपये का चूना लगवाने के बजाए अगर आप ट्रेन टिकट खरीदकर और फिर लोगों से पूछते हुए अपने गन्तव्य तक पहुँच जाएँ तो जेब भी हल्की नहीं होगी और अपने समय का अपनी इच्छा से उपयोग करने की भी सुविधा रहेगी। हमारे समूह ने तो यही किया । तोक्यो में बिताए साठ घंटों में अलग अलग कंपनियों की ट्रेनों में सवार होकर मैं आपको Shinjuku, Roppongi Hills, Akihabara, Asakusa, Sky Tree और Tokyo Tower जैसी जगहें दिखा सका। वैसे तोक्यो के रेल मानचित्र में ये जगहें कितनी दूर हैं वो यहाँ देखिए।
वेसे इन स्टेशनों से निकलकर बाहर सड़क पर आने के लिए कभी कभी आपको दो सौ से चार सौ मीटर दूरी तय करनी पड़ सकती है। पर घबराइए नहीं रास्ते के दोनों ओर सजी दुकानें आपको ये अहसास ही नहीं होने देंगी कि आप स्टेशन से निकल रहे हैं। तोक्यो के रेल नेटवर्क की इतनी बात हो और शिनकानसेन (Shinkansen) यानि बुलेट ट्रेन का जिक्र नहीं आए ये कैसे हो सकता है? तोक्यो से अपने अगले गन्तव्य क्योटो तक पहुँचने के लिए हमें इसकी ही मदद लेनी पड़ी और इसी वज़ह से हमें तोक्यो के मुख्य स्टेशन के दर्शन हो गए जहाँ से ये ट्रेन चलती है।
जापान की यात्रा को कुछ दिनों के लिए यहीं विराम देते हुए मैं आपको अगली कुछ प्रविष्टियों में ले चलूँगा राजस्थान के जैसलमेर और बीकानेर की यात्रा पर। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ
- माउंट फूजी और हरे भरे खेत (Outskirts of Tokyo : Mount Fuji and Green paddy fields)
- तोक्यो खाड़ी का इलाका (Tokyo Bay Area)
- तोक्यो और रात की रंगीनियाँ ( Night Life of Tokyo)
- शिंजुकु की गगनचुंबी इमारतें ( Skyscrapers of Tokyo)
- तोक्यो टॉवर और शिंजुकु के रात्रि दृश्य
- Akihabara इलेक्ट्रिक टाउन , स्काई ट्री,शाही बाग और जापानी संसद
- तोक्यो का सबसे पुराना बौद्ध मंदिर सेंसो जी
- कैसे करें तोक्यो में रेल की सवारी ?
सुन्दर व रोचक वृत्तान्त, मानचित्र देखकर यह बात तो स्पष्ट हो गयी कि १०-१२ छोरों वाले नगर में एक से दूसरे छोर पर पहुँचने के लिये कई बार ट्रेन बदलना आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस पोस्ट को पसंद करने के लिए। ट्रेन बदलने की क़वायद दो तीन दिनों में साफ होने लगती है पर तब तक तोक्यो से जाने का वक़्त आ जाता है।:)
हटाएंयह मानचित्र तो बिलकुल 'सर्किट डायग्राम' की तरह दिख रहा है...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल प्रशांत इसी लिए तो उसे देखकर ही झटका लग गया था मुझे :)
हटाएंKamal ka rail network hai Japan main. Pad kar hee main hairan hoon. Bullet train to wakayee jadu bhari lag rahee hai...
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल कमाल का सिस्टम है प्रसाद जी! अनुशासनबद्ध और समय से चलता हुआ। वैसे इतनी घनी आबादी वाले शहर में लाखों लोगों को मिनटों में एक छोर से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए इसका कमाल होना जरूरी भी है।
हटाएंहवाई जहाज जैसी शक्ल की ट्रेन, वाह वाह
जवाब देंहटाएंऔर रफ़्तार में भी हवाई जहाज सी चलती है ये ट्रेन !
हटाएंबुलेट ट्रेन के भी बारे मॆं और बताते तो मजा आ जाता, हमने तो केवल फ़ोटो में ही देखी है, आपने अनुभव किया है।
जवाब देंहटाएंबुलेट ट्रेन के लिए तोक्यो से आगे निकलने दीजिए विवेक जी। तोक्यो से क्योटो और क्योटो से कोकुरा का सफ़र हमने बुलेट ट्रेन में ही किया था। एक पूरी पोस्ट ही उस पर होगी।
हटाएंआपको ये सर्किट डायग्राम समझने में कितने दिन लगे बंधू? कोई कोचिंग क्लास भी चलती है क्या वहां पर ये समझाने के लिए कि मेट्रो में कैसे सफ़र करें..
जवाब देंहटाएंवो कहावत है ना 'Practice makes the man perfect'.हमारी भी कोचिंग इसी तरह शुरु हुई :)। सो पूरे नक़्शे पर ज्यादा दिमाग ना डालते हुए हमने सिर्फ उन जगहों का मान चित्र लिया जहाँ हमें जाना था। पोस्ट में जो दूसरा नक़्शा दिख रहा है वो हमारे ज्यादा काम का था। वैसे इंटरनेट पर जापान मेट्रो की कई साइटें हैं जहाँ से आप रेल में सवारी की जरूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हटाएंमतलब दिमाग पर जोर डालने और इत्ती पढ़ाई लिखाई के बिना मेट्रो पर सफ़र नहीं हो सकेगा...
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