पिछली पोस्ट में आपको मैंने तोक्यो के शिंजुकू के पूर्वी हिस्से में ले जाने का वादा किया था। पर पिछले हफ्ते कार्यालय की एक परियोजना के सिलसिले में उड़ीसा के औद्योगिक नगर राउरकेला (Rourkela) में दस दिनों का प्रवास करना पड़ा और काम भी ऐसा कि सुबह नौ से रात के दस बजे तक दम मारने की फुर्सत नहीं मिली। तोक्यो की कहानी आगे बढ़ाता तो कब?
वैसे तो कार्यालय के काम से राउरकेला बीसों बार जा चुका हूँ पर हनुमान वाटिका के आलावा राउरकेला शहर से जुड़े आस पास के दर्शनीय स्थलों को कभी नहीं देख पाया था। अक्सर वहाँ के लोगों से सुना करता था कि शहर की सीमा से सट कर बहने वाली ब्राहम्णी नदी पर महर्षि वेद व्यास का मंदिर है पर वहाँ जाने का मौका मन में इच्छा रहते हुए भी नहीं बन पाया था। बहरहाल दस दिनों के अंतराल में एक रविवार की छुट्टी मिली तो घुमक्कड़ मन कुलाँचे मारने लगा। फिर क्या था सहकर्मियों को राजी किया और रविवार सुबह दस बजे हमारा पाँच लोगों का समूह राउरकेला के नए शहरी इलाके से पानपोश होता हुआ नदी के तट पर स्थित इस मंदिर परिसर में जा पहुँचा।
महाकाव्य महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास के नाम से शायद ही कोई भारतीय अपरिचित होगा। जैसा कि उनके नाम से स्पष्ट है वेदों को चार भाग में बाँटने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। पर वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना भारत के किस हिस्से में की, इस बारे में मतैक्य नहीं है। महाभारत में इस बात का जिक्र आता है कि वेद व्यास जी ने इस महाग्रंथ की रचना हिमालय की तलहटी में स्थित किसी पवित्र गुफा में की । संभवतः ये गुफा आज के नेपाल में हो। पर इसके आलावा आँध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर भी ऐसी ही एक जगह होने की बात कही जाती है। यही सवाल अगर आप राउरकेला में करें तो आपको उत्तर में इसी मंदिर का पता बताया जाएगा। वैसे कुछ इतिहासकारों की मान्यता ये भी है कि वेद व्यास कोई एक ॠषि नहीं
बल्कि अठारह ॠषियों का एक समूह था जिन्होंने सारे भारत में एक ही विचारधारा
का महाभारत के माध्यम से प्रतिपादन किया। हो सकता है कि ये व्यास मंदिर ॠषियों के समूह में से किसी एक की कर्मभूमि रही हो।
वेद व्यास मंदिर के ठीक पहले एक वैदिक गुरुकुल और आश्रम है। पूरे मंदिर परिसर का मुख्य आकर्षण चट्टानों की आड़ में बना हुआ वो स्थल है जहाँ स्थानीय मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की थी।
व्यास मुनि के ध्यान स्थल पर एक वेद वीथी भी है जिस पर व्यास देव लेखन का कार्य किया करते थे। मंदिर के पुजारी सात पुश्तों से अपने परिवार द्वारा इस स्थल पर पूजा अर्चना करते आए हैं पर उसके पहले इस मंदिर का कर्ताधर्ता कौन था इसका तो उनको भी पता नहीं। महर्षि व्यास के ध्यान स्थल के ठीक ऊपर बाद में बना जगन्नाथ जी का मंदिर है जो ओडीसा के सबसे लोकप्रिय आराध्य देव हैं। वेद व्यास मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है इसकी भोगोलिक स्थिति। झारखंड से बहकर आने वाली कोयल और छत्तीसगढ़ से आती शंख नदी का पानी इस मंदिर के लगभग एक किमी पहले मिलता है।
इसीलिए इस जगह को त्रिधारा संगम के नाम से भी जाना जाता है। इलाहाबाद की तरह यहाँ भी तीसरी धारा सरस्वती नदी की बताई जाती है। नीचे के चित्र में बाँयी ओर अगर आप ध्यान से देखें तो एक पुल नज़र आएगा जो कि शंख नदी पर बना है। दाँयी ओर दिखती हुई पहाड़ियों के बगल से बह कर आने वाली कोयल नदी का जल जब शंख में मिलता है तो वो ब्राहम्णी का रूप ले लेता है। दूर दूर से लोग इस पवित्र स्थल पर अस्थि विसर्जन के लिए आते हैं।
हमारा समूह और पार्श्व में दिखती कोयल नदी की जलधारा..
वैसे अगर आपने कभी मुंबई से हावड़ा का सफ़र रेल से तय किया हो तो राउरकेला से ठीक पहले ब्राह्मणी नदी का रेलवे पुल पार करते हुए इस नदी के दर्शन अवश्य किए होंगे। मंदिर के सामने एक छज्जा बना है जो हरे भरे विशाल पेड़ों से घिरा है। पेड़ों की झुरमुटों के बीच नदी की ओर से आने वाली ठंडी हवा का सेवन मन में अपने आप एक शांति ले आता है।
मंदिर से थोड़ा और आगे बढ़ने पर नीचे की तरफ एक रास्ता जाता है। इसी रास्ते पर एक कुंड है जिसमें सालों भर पानी रहता है। यहाँ इसे सरस्वती कुंड के नाम से जाना जाता है। राउरकेला इस्पात संयंत्र के सौजन्य से इस कुंड के चारों ओर बाँस से एक मोहक परिसर का निर्माण किया गया है। एक और खास बात ये भी दिखती है कि पूरे मंदिर परिसर के निर्माण में पुराने पेड़ों को बिना काटे छतें या मंदिर के फर्श बनाए गए हैं।
अगर आप राउरकेला में हों और सुबह के दो तीन घंटे आपके पास हों तो यहाँ अवश्य जाएँ। प्रकृति की गोद में में बसे इस मंदिर का शांत और साफ सुथरा वातावरण और महर्षि वेद व्यास की ये कर्म भूमि आपको जरूर अपनी ओर आकृष्ट करेगी। राउरकेला से कल वापस राँची आ गया हूँ तो शीघ्र ही तोक्यो दर्शन की आगे की कड़ियों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा।
Bisiyon baar gaya hoon idhar. Puraani yaad taaza kar diya tumne. Thanks.
जवाब देंहटाएंअच्छी खासी सैर करा दी आपने। हमारे नसीब में हुआ तो हम भी यहाँ ज़रूर जाएँगे। :)
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मनीष भाई
जवाब देंहटाएंराउरकेला में कार्य किया है, व्यास की नगरी में रहने का सौभाग्य मिला है।
जवाब देंहटाएंआप के लेख ने तो हमें वैदिक काल की अनुभूति करा दिया ।सुन्दर प्रस्तुति!!धन्यवाद मनीष जी।
जवाब देंहटाएंरोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी
जवाब देंहटाएंमैने तो इस जगह के बारे में पहली बार ही सुना है... बहरहाल, यहाँ जाउँगा जरूर...
जवाब देंहटाएंशु्क्रिया हर्षवर्धन, प्रवीण, प्रशांत,राजीव, सुनीता, सुदीप्तो और मृत्युंजय इस प्रविष्टि को पसंद करने और अपनी राय जाहिर करने के लिए !
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