जापान जाने के पहले मेरी बड़ी इच्छा थी कि वहाँ जाकर सूमो पहलवानों को साक्षात देखूँ। पर टोक्यो और जापान के अन्य बड़े शहरों में जहाँ सूमो पहलवानों की कुश्ती होती है, वहाँ हमें ज्यादा रुकने का मौका ही नहीं मिला। यूँ तो सूमो कुश्ती जापान का राष्ट्रीय खेल है पर मार्शल आर्ट्स से जुड़े खेल भी यहाँ की प्राचीन समुराई संस्कृति से निकल कर आज तक अपने आप को चुस्त दुरुस्त रखने वाले जापानियों का पसंदीदा शगल बने हुए हैं। इसके विविध रूपों- जूडो, कराटे और केंडो में जापानी जनता आज भी काफी रुचि लेती है।
वैसे ये जरूर है कि अमेरिकी और यूरोपीय प्रभावों की वज़ह से आज की तारीख़ में जापान में सबसे लोकप्रिय खेल बेसबाल और फुटबाल हो गए हैं। भले ही हम सूमो पहलवानों का ना देख पाए हों पर जैसा कि पिछली पोस्ट में मैंने आपको बताया कि फुकुओका की यात्रा में हमें जापानी जूडो को करीब से देखने का मौका मिला।
वैसे ये जरूर है कि अमेरिकी और यूरोपीय प्रभावों की वज़ह से आज की तारीख़ में जापान में सबसे लोकप्रिय खेल बेसबाल और फुटबाल हो गए हैं। भले ही हम सूमो पहलवानों का ना देख पाए हों पर जैसा कि पिछली पोस्ट में मैंने आपको बताया कि फुकुओका की यात्रा में हमें जापानी जूडो को करीब से देखने का मौका मिला।
कीटाक्यूशू से फुकुओका लगभग सत्तर किमी है और हम चित्र के ठीक बाँयी ओर
दिखने वाली सड़क से होते हुए एक घंटे में फुकुओका पहुँचे। जूडो के इनडोर स्टेडियम के पास ही फुकुओका का बंदरगाह था।
जब हम जूडो स्टेडियम के प्रांगण में पहुँचे तो वहाँ खासी गहमागहमी थी। विभिन्न रंगों की जर्सियों में जूडोका स्टेडियम के बाहर और अंदर अलग अलग टोलियाँ बना कर घूम रहे थे। स्टेडियम के अंदर ही स्पोर्टस टी शर्ट और जर्सियों की दुकानें भारी भीड़ खींच रही थीं। स्टेडियम में घुसते ही हमारे गले में Official वाली नेम प्लेट टाँग दी गयी थी ताकि हम खिलाड़ियों के साथ बैठकर ही खेल का आनंद उठा सकें।
स्टेडियम खचाखच भरा था। सोचिए भारत में क्रिकेट, टेनिस व हॉकी छोड़ किस खेल में ऐसी भीड़ होती है? वैसे जापान ओलंपिक में अपने बीस फीसदी पदक इसी खेल से प्राप्त करता है। यूँ तो जापानी समाज सार्वजनिक स्थानों पर शांति से रहना पसंद करता है पर यहाँ माहौल दूसरा था। हर आयु वर्ग के लोग दर्शक दीर्घा में थे पर सबसे ज्यादा शोर किशोरवय के बच्चे ही मचा रहे थे। अलग अलग स्कूलों वा कॉलेजों का प्रतिनिधित्व कर रहे ये बच्चे अपनी टीम के खिलाड़ियों का भरपूर उत्साहवर्धन करते नज़र आए।
बतौर अतिथि हमें सबसे आगे बैठा तो दिया गया था पर हमारे समूह में किसी को भी जूडो के 'ज' तक का भी पता नहीं था। थोड़ी देर खेल देखने के बाद हमें बताया गया कि वहाँ के स्थानीय समाचारपत्र की एक पत्रकार हमारा साक्षात्कार लेना चाहती है। अब इस परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा ये तो हममें से किसी ने भी नहीं सोचा था। एक अदद मुर्गे की तलाश शुरु हुई जो मार्शल आर्ट्स से जुड़े प्रश्नों के जवाब दे सके। पता चला कि हमारे एक सहभागी ने बचपन में जूडो की तो नहीं पर ताइक्वोंडो की ट्रेनिंग ले रखी है। लिहाजा उसे ही इंटरव्यू के लिए सामने कर दिया गया।
बतौर अतिथि हमें सबसे आगे बैठा तो दिया गया था पर हमारे समूह में किसी को भी जूडो के 'ज' तक का भी पता नहीं था। थोड़ी देर खेल देखने के बाद हमें बताया गया कि वहाँ के स्थानीय समाचारपत्र की एक पत्रकार हमारा साक्षात्कार लेना चाहती है। अब इस परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा ये तो हममें से किसी ने भी नहीं सोचा था। एक अदद मुर्गे की तलाश शुरु हुई जो मार्शल आर्ट्स से जुड़े प्रश्नों के जवाब दे सके। पता चला कि हमारे एक सहभागी ने बचपन में जूडो की तो नहीं पर ताइक्वोंडो की ट्रेनिंग ले रखी है। लिहाजा उसे ही इंटरव्यू के लिए सामने कर दिया गया।
पत्रकार जूडो के प्रति हमारी रुचि के बारे में पूछती रही और हमारे सहयोगी भी किसी तरह घुमा फिरा कर जवाब देते रहे। भाषा की दीवार भी काम आ गई। बाद में वो इंटरव्यू जब छपा तो हमें ये समझ नहीं आया कि उसमें जापानी में क्या लिखा है। पर जिनका साक्षात्कार हुआ था वे इसी में खुश हो गए कि जापानी में ही सही अख़बार में नाम तो आया।
प्रतियोगिता में लड़कों के साथ लड़कियाँ भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही थीं। एक साथ आठ दस मैच चल रहे थे। कुछ देर मैच देखने के बाद हम स्टेडियम के बाद हमने दोपहर के भोजन तक का समय स्टेडियम का माहौल करीब से महसूस करने के लिए दर्शक दीर्घा में घूम घूम कर बिताया। आइए आपको दिखाएँ इस खेल और खिलाड़ियों की कुछ झलकियाँ...
इनडोर स्टेडियम की भरी हुई दर्शक दीर्घाएँ
शुरुआती दाँव की कोशिश में दो महिला खिलाड़ी ..
और लगता है इस बार दाँव लग गया....
अपनी टीम के खिलाड़ी को हारते देख कुछ गुस्सा तो आएगा ना..
और ये है Exclusive Pose खास तौर पर मुसाफ़िर हूँ यारों के पाठकों के लिए..:)
जूडो तो आपने देख लिया अगली बार बताएँगे आपको कीटाक्यूशू से जापान की राजधानी टोक्यो तक की यात्रा का हाल। बस बने रहिए इस सफ़र में मेरे साथ।अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
वाह, स्वास्थ्य, मनोरंजन और सुरक्षा का साझा कार्यक्रम।
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल !
हटाएंsahi hai...
जवाब देंहटाएंये एक तरह का 'बोक्सिंग' ही है क्या..??
जवाब देंहटाएंनहीं ये बाक्सिंग से बिल्कुल अलग है प्रशांत ! इसमें ज्यादातर अपने हाथ और पैर की ताकत और गिरफ़त का प्रयोग होता है। आप इसमें ना मुक्के का प्रयोग कर सकते हैं ना कराटे की तरह किक मार सकते हैं। विपक्षी खिलाड़ी के चेहरे को भी छूने की इज़ाजत नहीं होती इस खेल में।
हटाएंGood Morning Manish ji.very interesting n informative.enjoyed a lot.Thank u very much.
जवाब देंहटाएंThx Sunita ji for visiting & expressing your view.
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
धन्यवाद !
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