पिछली पोस्ट में मैंने आपको बताया था कि अगर आप शाकाहारी हैं तो जापानी शहरों में निरामिष भोजन ढूँढने की अपेक्षा अपना भोजन ख़ुद बनाना सबसे बेहतर उपाय है। जापान में एक हफ्ते बिताने के बाद हम भारतीयों का समूह बड़ा चिंतित था। शाकाहारी तो छोड़िए हमारे समूह के सामिष यानि नॉन वेज खाने वाले अंडों से आगे बढ़ नहीं पा रहे थे। एक तो बीफ और पोर्क का डर और दूसरे जापानी सामिष व्यंजनो् के अलग स्वाद ने उनकी परेशानी बढ़ा दी थी। शुरु के दो हफ्तों तक तो हमें अपने तकनीकी प्रशिक्षण केंद्र यानि JICA Kitakyushu में रहना था पर उसके बाद तोक्यो , क्योटो और हिरोशिमा की यात्रा पर निकलना था। हमारी जापानी भाषा की शिक्षिका हमारे इस दुख दर्द से भली भाँति वाकिफ़ थीं। जब तक हम अपने ट्रेनिंग हॉस्टल में थे तब तक चावल,मोटी रोटी, फिंगर चिप्स एक भारतीय वेज करी (जो स्वाद में भारतीय छोड़ सब कुछ लगती थी), दूध, जूस वैगेरह से हमारा गुजारा मजे में चल रहा था ।
पर अपने शहर से बाहर निकलने पर हमें ये खाद्य सुरक्षा नहीं मिलने वाली थी। सो मैडम ने हम सभी के लिए एक 'नेम प्लेट' बनाया था जिस पर लिखा था मैं सी फूड, माँस, बीफ,पोर्क और अंडा नहीं खाता। हम लोगों ने टोक्यो की ओर कूच करते वक़्त बड़े एहतियात से वो काग़ज़ अपने पास रख लिया था।
वैसे आपको बता दूँ कि अगर आप जापान जा रहे हैं तो जापानी भाषा के इन जुमलों को याद रखना बेहद जरूरी है। हमें तो वहाँ रहते रहते याद हो गए थे। जापान में माँस को 'नीकू' कहते है। Chicken, Pork और Beef जापानी में इसी नीकू से निकल कर 'तोरीनीकू', 'बूतानीकू' और 'ग्यूनीकू' कहलाते हैं। वैसे अंग्रेजी प्रभाव के कारण चिकेन, पार्क और बीफ और शाकाहार के लिए लोग चिकिन, पोकू , बीफू, बेजीटेरियन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगे हैं। अगर आपको कहना है कि "मैं माँस नहीं खाता" तो आपको जापानी में कहना पड़ेगा....
नीकू वा दामे देस:)।
भाषा के इस लोचे के बावज़ूद पश्चिमी देशों की तरह ही जापान के भोजनालयों के सामने भोजन की रिप्लिका को थाली में परोस कर दिखाया जाता है। दूर से देखने पर आपको ये सचमुच का भोजन ही दिखाई पड़ेगा। यानि कुछ बोल ना भी सकें तो देखें परखें और खाएँ। जापानी शहरों में कई गैर भारतीय रेस्ट्राँ में हमने नॉन की उपलब्धता को इस तरह के 'डिस्पले' से ही पकड़ा।
वैसे आपको बता दूँ कि अगर आप जापान जा रहे हैं तो जापानी भाषा के इन जुमलों को याद रखना बेहद जरूरी है। हमें तो वहाँ रहते रहते याद हो गए थे। जापान में माँस को 'नीकू' कहते है। Chicken, Pork और Beef जापानी में इसी नीकू से निकल कर 'तोरीनीकू', 'बूतानीकू' और 'ग्यूनीकू' कहलाते हैं। वैसे अंग्रेजी प्रभाव के कारण चिकेन, पार्क और बीफ और शाकाहार के लिए लोग चिकिन, पोकू , बीफू, बेजीटेरियन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगे हैं। अगर आपको कहना है कि "मैं माँस नहीं खाता" तो आपको जापानी में कहना पड़ेगा....
नीकू वा दामे देस:)।
भाषा के इस लोचे के बावज़ूद पश्चिमी देशों की तरह ही जापान के भोजनालयों के सामने भोजन की रिप्लिका को थाली में परोस कर दिखाया जाता है। दूर से देखने पर आपको ये सचमुच का भोजन ही दिखाई पड़ेगा। यानि कुछ बोल ना भी सकें तो देखें परखें और खाएँ। जापानी शहरों में कई गैर भारतीय रेस्ट्राँ में हमने नॉन की उपलब्धता को इस तरह के 'डिस्पले' से ही पकड़ा।
फिर भी शुद्ध शाकाहारी भोजन की कल्पना करना जापान में ख़्वाब देखने जैसा है। दिक्कत ये है कि जापानी किसी भी भोजन में मीट के टुकड़े यूँ डालते हैं जैसे हमारे यहाँ लोग सब्जी बनाने के बाद धनिया डालते हैं।मीट से बच भी जाएँ तो समुद्री भोजन से बचना बेहद मुश्किल है। जापान में सबसे ज्यादा प्रचलित सूप 'मीशो सूप' (Misho Soup) में भी सूखी मछलियों का प्रयोग होता है।
दरअसल जापान में शाकाहार भोजन का कोई तरीका ही नहीं है। अगर आप किसी के घर जाएँ और ये कह दें कि आप शाकाहारी हैं तो सच मानिए उस परिवार की गृहस्थिनों पर वज्र गिर पड़ेगा क्यूँकि वो सोच भी नहीं सकती कि 'सी फूड' (Sea Food) और मीट के बगैर कुछ खाने योग्य हो सकता है। वैसे जापान में शाकाहार से सबसे नज़दीक अगर कोई भोजन का तरीका है तो वो है 'शोजिन र्योरी' यानि धार्मिक भोजन। क्योटो के मंदिरों में आपको कई जगह ऐसे भोजनालय दिखेंगे। इस तरह के भोजन में सोयाबीन, बीज फल और हरी सब्जियों का प्रयोग होता है, पर सब्जियों वैसी जिसमें तने को उखाड़ने की जरूरत ना पड़े। यानि भारतीय शाकाहारी व्यंजन का नायक 'आलू' आपको यहाँ भी नहीं दिखेगा।
जापानी निरामिष व्यंजनों का पहला स्वाद हमने क्योटो में चखा जब वहाँ हमारे स्वागत में एक जापानी कंपनी ने हमारे लिए एक शाकाहारी भोज रखा। जापान में दो हफ्ते गुजारने के बाद हमें ये तो समझ आ ही गया था कि हमारे भोजन के तौर तरीके इतने भिन्न हैं कि क्या माँसाहार क्या शाकाहार, हमें शायद ही वहाँ कोई भोजन रुचेगा। फिर भी उत्सुकता थी कि ज़रा देखें तो जापानी शाकहारी थाली आख़िर दिखती कैसी है?
जापानी भोजन पद्धिति में व्यंजनों को सजाकर पेश करने का व्यापक चलन है। छः सात कटोरियों से भरी थाली मे हमें क्या मिला ज़रा आप भी करीब से देखिए..
जापान में चावल को अक्सर सूप के साथ ही खाना पड़ता है क्यूँकि वहाँ दाल जैसी कोई चीज़ होती नहीं। उबली हुई मटर और गाजर के साथ जो गुलाब जामुन सा दिख रहा है दरअसल वो शकरकंद है। साथ में वहाँ के कुछ स्थानीय कंद हैं।
भोजन का सबसे स्वादिष्ट हिस्सा थे ये तले हुए बैंगन। इसके ऊपर की सफेद परत के रहस्य को तो हम नहीं जान पाए पर चावल ख़त्म करने के बाद सबसे पहले हमने इसी पर हाथ साफ किया। बैंगन के साथ जो डंडी दिख रही है वो कमल की है।
खाने के बाद कुछ मीठा खाना तो बनता ही है ना और इतनी सुसज्जित मिठाई को भला कौन छोड़ेगा। पर सच तो ये है कि सोयाबीन से बनी इस मिठाई का हममें से कोई एक टुकड़े से ज्यादा खाने की हिम्मत ना कर सका। ख़ैर भोजन समाप्त होने के बाद हम सभी ने उठकर वहाँ के रसोइयों का एक साथ अभिवादन किया कि हमारे लिए उन्होंने इतनी मेहनत की।
ये तो हुई हमारे पहले शाकाहारी भोजन की दास्तान। अगली पोस्ट में आपको
बताएँगे कि क्या हुआ जापान के चार सितारा होटल में हमारा हाल। तब तक के लिए
राम राम ! अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
मीट के टुकड़े यूं डालते हैं जैसे धनिया!
जवाब देंहटाएंहरे राम!
ज्ञानदत्त जी जब आप जापानी त्योहारों में सड़क के किनारे बनते पकवानों की फेरहिस्त पर नज़र डालेंगे तो 'राम' नाम की बहुत जरूरत पड़ेगी :)
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (23-07-2013) को मंगलवारीय चर्चा 1315----तस्मै श्री गुरुवे नमः ! पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"मयंक के कोने" में इस प्रविष्टि को थोड़ी जगह देने के लिए धन्यवाद शास्त्री जी !
हटाएंइतना कम खाने को मिलेगा तो शरीर ही साथ देना बन्द कर देगा।
जवाब देंहटाएंआप इसे कम कह रहे हैं, मुझसे तो यही पूरा नहीं खाया जा रहा था। वैसे जापान और पूर्वी एशिया के अन्य देशों में चावल गीले और चिपके हुए बनाए जाते हैं ताकि उन्हें चॉपस्टिक से खाया जा सके। ये चावल देखने में कम लगता है पर थोड़ा गरिष्ठ ही होता है।
हटाएंयह भी एक अभियान हो गया !
जवाब देंहटाएंहमारे यहां के सत्तू ऐसे मौकों पर बहुत काम आते हैं,चीनी या नमक मिला कर घोल कर पी लिए 2-1 घंटों की छुट्टी- बाकी फल और दूध ब्रेड!
मैं और मेरे मित्र सत्तू का पूरा एक किलो का पैकेट ले के गए थे पर अपने मेस और हर शहर में भारतीय रेस्टराँ को खोज निकालने की हमारी महारत की वज़ह से उसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी।
हटाएंमैं जानता हूँ कि एक शाकाहारी होने के नाते! And it is very difficult to get it right anymore on Google translate in Hindi :D
जवाब देंहटाएंU r vegetarian Mridula ? I didn't know that .
हटाएंइस श्रृंखला में मज़ा आ रहा है :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया साथ बने रहने का दीपिका...
हटाएं:-)
जवाब देंहटाएंपनीर नहीं मिलता क्या वहां???
याने डेयरी प्रोडक्ट्स पर जिंदा नहीं रह सकते क्या ??
अनु
हम चालीस दिन वहाँ रहे और बिना कोई वज़न घटाए लौटे और वो भी प्रत्यक्ष रूप से शाकाहारी बने रहकर। प्रत्यक्ष इसलिए कि तेल के बारे में देख के क्या कह सकते हैं। वैसे दूध, फल, फलों का रस और चावल और फिंगर चिप्स तो मिलता ही है वहाँ जिससे आपका काम चलता रहे। रही पनीर की बात तो वो वहाँ सोया के दूध से बनता है पर वो हमें कुछ खास नहीं जँचा।
हटाएंजापान तो बिलकुल दिलचस्प देश है.. खाने पीने के मामले में वो भारत से बिलकुल ही भिन्न लग रहा है... वैसे वहां का मुख्य भोजन क्या है..?
जवाब देंहटाएंमुख्य भोजन चावल और उसके साथ किसी भी तरह का सामिष व्यंजन। जापान में सी फूड की बहार है। मीट और बीफ तो वे पसंद करते ही हैं।
हटाएंआपकी चिंता मत करें आपके लायक कोई ना कोई मछली वहाँ मिल ही जाएगी :)
जापान का तो तेल भी शाकाहारी नहीं होता , चिप्स ,राईस क्रेकर्स से भी मछली के तेल की गंध आती है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चल रहा है, यात्रा वृतांत
हाँ सही कह रही हैं फिंगर चिप्स खाते वक़्त कई बार हमने भी महसूस किया :)
हटाएंha ha ha maje aa gye padh ke :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर ।
हटाएंवहां जल का जला हुवा छाछ भी फूंक फूंक के पीता होगा.....
जवाब देंहटाएंनीतू कितना भी फूँके कहीं ना कहीं तो समझौता करना ही पड़ता था खासकर ये तो हम सुनिश्चित नहीं करा सकते थे कि हमारा भोजन में प्रयुक्त तेल शाकाहारी है या नहीं ?
हटाएंऊफ़्फ़ वाकई बहुत ही मुश्किल है.. हमारे मित्र अभी इंडोनेशिया से आये हैं.. कह रहे थे कि पूरे दो महीने केवल ब्रेड बन और सलाद पर गुजारे हैं.. शुद्ध शाकाहारी होने से यही समस्या है.. वैसे तो हमारे यहाँ के मांसाहारी भी बाहर जाकर शाकाहारी हो जाती है ।
जवाब देंहटाएं"वैसे तो हमारे यहाँ के मांसाहारी भी बाहर जाकर शाकाहारी हो जाते हैं।"
हटाएंसही कह रहे हैं आप। हमारे समूह के साथ भी यही हुआ। कइयों ने नान वेज सिर्फ भारतीय रेस्ट्राँ में ही मँगवाया बाहर नहीं।
Japani Sea food mein Octopus bahut hi testy hota hai sir. Indian food India mein sab jagah ek jaisa nahi milta hai Japan mein kaha se milega....
जवाब देंहटाएंसवाल एक तरह के भोजन का नहीं बल्कि शाकाहारी भौजन का है। मैं तो शाकाहारी हूँ इसलिए आक्टोपस के स्वाद के बारे में नहीं बोल पाऊँगा। पर हाँ जापानी बाजारों में मैंने उसे बिकते कई जगह देखा।
हटाएंबहुत दु:ख हुआ आप के खाना के समस्या के बारे में सुनकर।मैं भी जब कहीं बाहर जाती हुँ तो खाना के कारण ही बिमार पड जाती हुँ।
जवाब देंहटाएंळेकिन मनीष जी, आप जिस तरह यात्रा विवरण लिखते है ना वो बहुत ही रोचक होते है।पाठक स्वयं भी उसी जगह पहुँच जाते है।पाठकों को ऎसी visualisation कराना लेखक की बहुत बढी खुबी है।आप को बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद और एक बात मेरी हिन्दी भी सुधारकर पढ लीजिएगा।
सुनीता जी हम लोगों के जापान प्रवास में ज्यादा दिन मेस का खाना मिला जिसमें हमारा काम आराम से चल गया। हाँ ये जरूर था कि उस एकरसता की वज़ह से हम बोर जरूर हुए पर नई जगह में इतना तो समझौता करना पड़ता है।
हटाएंपर जो लोग जापान घूमने के लिए जाते हैं उनके लिए ये समस्या ज्यादा विकट है। आपको मेरी लेखन शैली पसंद आती है, जानकर प्रसन्नता हुई। जब जब पाठकों से ऐसी प्रतिक्रिया मिलती है तो ये जरूर लगता है कि मेरी मेहनत सार्थक हो रही है।
मनीष जी आप की सुन्दर प्रस्तुति ने ही हम लोगों को जापान पहुँचा दिया है इसलिए हमें तो ऐसी विकट समस्या का सामना नहीं करना पडेगा।और एक बात मैं भी भाषा–साहित्य से ही सम्बन्धित हूँ।इसलिए सुन्दर शैली से प्रभावित होना स्वाभाविक ही है ना चाहे वो किसी भी भाषा में क्यों न हो।ऐसी सुन्दर शैली में यात्रा–विवरण या संस्मरण लिखना हर किसी की वश की बात नहीं होती।आप ने अपनी कला को एकदम सही उपयोग करके हम सब को भी भला किया है।आप को बहुत–बहुत धन्यवाद एवं आभार।
हटाएंफ़िर से सिद्ध हुआ कि परहेज वालों के लिये जीवन आसान नहीं लेकिन साथ ही यह भी सिद्ध हुआ कि जहाँ चाह वहाँ राह भी है।
जवाब देंहटाएंसंजय जी बिल्कुल सही निष्कर्ष निकाला है आपने।
हटाएंआज कल हल्दीराम के रेडी टू ईट बहुत मिलते हे बाजार में
जवाब देंहटाएंहाँ दुबे जी हम हल्दीराम और MTR के पाँच छः पैकेट ले गए थे। पर चालीस दिनों के लिए आप कितना कुछ ले जाएँगे? दूसरे जहाँ हम ठहरे थे वहाँ नियमतः हमें खुद से कुछ भी बनाने की मनाही थी।
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